"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/४१" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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{{gap}}'''विदूषकः'''— ही ही भोः, पदोसमंदमारुदेण पशुबंधोवणीदस्स |
{{gap}}'''विदूषकः'''— ही ही भोः, पदोसमंदमारुदेण पशुबंधोवणीदस्स |
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विअ छागलस्स |
विअ छागलस्स हिअअं, फुरफुराअदि पदीवो । ( उपसृत्य रदनिकां |
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दृष्ट्वा ) भो रदणिए ! [ आश्चर्य भोः, प्रदोषमन्दमारुतेन पशुबन्धोपनी- |
दृष्ट्वा ) भो रदणिए ! [ आश्चर्य भोः, प्रदोषमन्दमारुतेन पशुबन्धोपनी- |
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तस्येव छागलस्य हृदयम्, फुरफुरायते प्रदीपः । भो रदनिके ! ] |
तस्येव छागलस्य हृदयम्, फुरफुरायते प्रदीपः । भो रदनिके ! ] |
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{{gap}}'''विदूषकः'''— जुत्तं पणेदं, सरिसं ण्णेदं, जं अज्जचारुदत्तस्स दलिद्द- |
{{gap}}'''विदूषकः'''— जुत्तं पणेदं, सरिसं ण्णेदं, जं अज्जचारुदत्तस्स दलिद्द- |
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दाए संपदं परपुरिसा गेहूं पवेसिअंति। [युक्तं नेदम् , सदृशं नेदम् , |
दाए संपदं परपुरिसा गेहूं पवेसिअंति। [युक्तं नेदम् , सदृशं नेदम् , यदार्यचारुदत्तस्य दरिद्रतया सांप्रतं परपुरुषा गेहं प्रविशन्ति । ] |
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र्यचारुदत्तस्य दरिद्रतया सांप्रतं परपुरुषा गेहं प्रविशन्ति । ] |
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{{gap}}'''रदनिका''' — अज्ज मित्तेअ ! पेक्ख में परिहवं । [ आर्य मैत्रेय ! |
{{gap}}'''रदनिका''' — अज्ज मित्तेअ ! पेक्ख में परिहवं । [ आर्य मैत्रेय ! |
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परिभवः अथवाऽस्माकम् ?।] |
परिभवः अथवाऽस्माकम् ?।] |
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{{gap}}'''रदनिका'''— णं तुम्हाणं |
{{gap}}'''रदनिका'''— णं तुम्हाणं ज्जेव्व । [ ननु युष्माकमेव ।] |
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{{gap}}'''विदूषकः'''— किं एसो |
{{gap}}'''विदूषकः'''— किं एसो बलक्कारो ? । [ किमेष बलात्कारः १ । |
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{{gap}}'''रदनिका'''— अध इं । [ अथ किम् ।] |
{{gap}}'''रदनिका'''— अध इं । [ अथ किम् ।] |
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पङ्क्तिः २९: | पङ्क्तिः २८: | ||
{{gap}}'''रदनिका'''— सच्चं । [ सत्यम् । |
{{gap}}'''रदनिका'''— सच्चं । [ सत्यम् । |
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{{gap}}'''विदूषकः'''— ( सक्रोधं दण्डकाष्ठमुद्यम्य ) मा दाव । भो, सके गेहे |
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कुक्कुरो वि दाव चंडो भोदि, किं उण अहं बम्हणॊ । ता एदिणा |
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‘छल्लि' इति पाठेऽपि शरो दध्र उपरिभागः ॥ '''इयमिति''' ॥ ४३ ।। ‘ही ही भो’ |
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इति परितोषे । पशुबन्धोपनीतस्यॆव छागलस्य हृदयं फुरफुरायति अत्यर्थ प्रकम्पते |
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प्रदीपः ॥ जुत्तं ण्णॆदं। नः काकौ । सदृशं नेदम् । संपदं सांप्रतम् ॥ किं एसो । किं |
प्रदीपः ॥ जुत्तं ण्णॆदं। नः काकौ । सदृशं नेदम् । संपदं सांप्रतम् ॥ किं एसो । किं |
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प्रश्ने। किमेष बलात्कारः? । ॥ मा तावत् । स्वकीयगृहसमीपे कुक्कुरोऽपि बलीयान्भवति। |
प्रश्ने। किमेष बलात्कारः? । ॥ मा तावत् । स्वकीयगृहसमीपे कुक्कुरोऽपि बलीयान्भवति। |
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ता ततः । एतॆनास्मादृशजनभागधॆयवक्त्रॆण दण्डकाष्ठॆन |
ता ततः । एतॆनास्मादृशजनभागधॆयवक्त्रॆण दण्डकाष्ठॆन दुष्टस्येव; कृतद्वेषस्य वैरिणॊ |
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