सम्भाषणम्:ऋग्वेदः सूक्तं २.३४

Latest comment: ७ माह पहले by Puranastudy in topic आपानं ब्रह्म

आपानं ब्रह्म

सम्पाद्यताम्

तं नो दात मरुतो वाजिनं रथ आपानं ब्रह्म चितयद्दिवेदिवे । इषं स्तोतृभ्यो वृजनेषु कारवे सनिं मेधामरिष्टं दुष्टरं सहः ॥७॥

आपानं ब्रह्म की अवधारणा :

इस प्रसंग में यह ध्यातव्य है कि उदकनामों में ब्रह्म शब्द भी परिगणित है और ऋ. २.३४.७ में मरुतों से प्रार्थना की गई है[12] कि वे प्रतिदिन हमारे भीतर ‘‘आपानं ब्रह्म’’ को सचेत करें। आपानं ब्रह्म का अर्थ है :- ‘‘आ समन्तात् पानं यस्य क्रियते तत् ब्रह्म’’ अर्थात् ब्रह्म का वह स्तर जिस पर उसका चारों ओर से पान किया जा सकता है। इससे ध्वनित होता है कि ब्रह्म को भी एक पेयरस के रूप में कल्पित करके उसे उदक तुल्य मान लिया गया है। चारों ओर से पान किये जाने की कल्पना को समझने के लिए हमें तैत्तिरीयोपनिषद् के ब्रह्मवल्ली में प्राप्त ब्रह्म के स्वरूप को समझना होगा। वहां मनुष्य के पंचकोशों में ब्रह्म के जिन पांच स्वरूपों का उल्लेख है, वे इस प्रकार हैं :-

कोष ब्रह्म का स्वरूप

१. अन्नमय अन्नं ब्रह्मेत्युपासीत

२. प्राणमय प्राणं ब्रह्मेत्युपासीत

३. मनोमय मनः ब्रह्मेत्युपासीत

४. विज्ञानमय विज्ञानं ब्रह्मेत्युपासीत

५. आनन्दमय आनन्दं ब्रह्मेत्युपासीत

इस वर्णन से स्पष्ट है कि यह ब्रह्म कोई ऐसी शक्ति है, जो अन्नमय कोश से उत्तरोत्तर उठती हुई अपनी गुणात्मक सूक्ष्मता का बृंहण करती जाती है। इस बृंहण के कारण ही उसका नाम ब्रह्म है। अपने अंतिम रूप में जब उसका बृंहण परिपूर्ण हो जाता है, तब उसकी परब्रह्म संज्ञा होती है और उसमें उसके अन्य सभी स्वरूपों का पान अथवा विलय माना जा सकता है। यही ‘‘आपान ब्रह्म’’ की स्थिति है, जिसकी अवधारणा उक्त मन्त्र में प्रस्तुत की गई है। इस प्रसंग में यह भी उल्लेखनीय है कि निघण्टु के उदकनामों में परिगणित पूर्वोक्त इन्दु शब्द के ‘‘पूर्वासः उपरासः’’ रूपान्तर भी प्रत्येक ब्रह्म का सेवन करने वाले बताये गये हैं[13] और इन्हीं अनेक रूपान्तरों के अद्वैत रूपान्तर को इन्दु कहकर उसे अपने स्वामी के सदन में (इनस्य सदने) प्रभूत आपः को जन्म देने वाले (उरूब्जम्) गर्भ का धारक बताया गया है[14]। इसका स्पष्ट अर्थ यही हो सकता है कि परब्रह्म की ब्राह्मी शक्ति आपः नामक उदक के नानात्व में रूपांतरित होती है और अन्त में उसी के भीतर समस्त नानात्व का पान अथवा विलीनीकरण माना जा सकता है। Puranastudy (सम्भाषणम्) ०८:०८, ३० एप्रिल् २०२४ (UTC)उत्तर दें

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