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दे. वास्तोष्पतिः, आत्मा। १, ५ दैवी बृहती, ...... |
दिवे स्वाहा ॥१॥
पृथिव्यै स्वाहा ॥२॥
अन्तरिक्षाय स्वाहा ॥३॥
अन्तरिक्षाय स्वाहा ॥४॥
दिवे स्वाहा ॥५॥
पृथिव्यै स्वाहा ॥६॥
सूर्यो मे चक्षुर्वातः प्राणोऽन्तरिक्षमात्मा पृथिवी शरीरम् ।
अस्तृतो नामाहमयमस्मि स आत्मानं नि दधे द्यावापृथिवीभ्यां गोपीथाय ॥७॥
उदायुरुद्बलमुत्कृतमुत्कृत्यामुन् मनीषामुदिन्द्रियम् ।
आयुष्कृदायुष्पत्नी स्वधावन्तौ गोपा मे स्तं गोपायतं मा ।
आत्मसदौ मे स्तं मा मा हिंसिष्टम् ॥८॥