महाभारतम्-04-विराटपर्व-004
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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युधिष्ठिरंप्रति नकुलेन विराटनगरे अश्वपालकतया स्वस्य निवासकथनम् ।।1 ।।
सहदेवेन गोपालकतया स्वस्य निवासकथनम् ।। 2 ।।
द्रौपद्या सैरन्ध्रीभावेन स्वस्य निवासकथनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच । | 4-4-1x |
इत्येवमुक्त्वा पुरुषप्रवीरस्तथार्जुनो धर्मामृतां वरिष्ठः। | 4-4-1a 4-4-1b |
किंकर्मा किंसमाचारो नकुलोयं भविष्यति। | 4-4-2a 4-4-2b |
अदुःखार्हश्च बालश्च लालितश्चापि नित्यशः । | 4-4-3a 4-4-3b |
किं त्वं नकुल कुर्वाणस्तस्य तात चरिष्यसि। | 4-4-4a 4-4-4b |
नकुल उवाच। | 4-4-5x |
अश्वाध्यक्षो भविष्यामि विराटस्येति मे मतिः। | 4-4-5a 4-4-5b |
दामग्नन्थी परिज्ञातः कुशलो दामकर्मणि । | 4-4-6a 4-4-6b |
कुशलोत्स्म्यश्वशिक्षायां तथैवाश्वचिकित्सने। | 4-4-7a 4-4-7b |
न मां परिभविष्यन्ति किशोरा वडवास्तथा । | 4-4-8a 4-4-8b |
द्रक्ष्यन्ति ये च मां केचिद्विराटनगरे जनाः । | 4-4-9a 4-4-9b |
पाण्डवेन ह्यहं तात अश्वेष्वधिकृतः पुरा। | 4-4-10a 4-4-10b 4-4-10c |
वैशंपायन उवाच। | 4-4-11x |
नकुलेनैवमुक्तस्तु धर्मराजोऽब्रवीद्वचः। | 4-4-11a 4-4-11b |
मन्त्रैर्नानाविधैर्नीतः पथ्येषु परिनिष्ठितः । | 4-4-12a 4-4-12b |
न चास्य स्खलितं किंचिद्ददृशुस्तद्विदो जनाः। | 4-4-13a 4-4-13b |
अधिको मातुरस्माकं कुन्त्याः प्रियतमः सदा। | 4-4-14a 4-4-14b 4-4-14c |
सहदेव उवाच। | 4-4-15x |
गोसङ्ख्याता भविष्यामि विराटस्येति रोचये। | 4-4-15a 4-4-15b 4-4-15c |
अयोगा बहुलाः पुष्टाः क्षीरवत्यो बहुप्रजाः । | 4-4-16a 4-4-16b |
दृष्टचोरभया नित्यं व्याधिव्याघ्रविवर्जिताः । | 4-4-17a 4-4-17b |
भविष्यन्ति मया गुप्ता विराटनगरे तदा। | 4-4-18a 4-4-18b |
अहं हि भवता गोषु प्रहितः सतत पुरा। | 4-4-19a 4-4-19b |
लक्षणं चरितं चैव गवां यच्चापि मङ्गलम् । | 4-4-20a 4-4-20b |
वृषभानपि जानामि राजन्पूजितलक्षणान्। | 4-4-21a 4-4-21b |
सोऽहमेवं चरिष्यामि प्रीतिरत्र परा हि मे। | 4-4-22a 4-4-22b |
तोषयिष्ये च राजानां मा भूच्चिन्ता तवानघ । | 4-4-23a 4-4-23b 4-4-23c |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-4-24x |
केनात्र कर्मणा कृष्णा द्रौपदी विचरिष्यति। | 4-4-24a 4-4-24b |
माल्यागन्धानलङ्कारान्वस्त्राणि विविधानि च। | 4-4-25a 4-4-25b |
पतिव्रता महाभागा कथं नु विचरिष्यति। | 4-4-26a 4-4-26b |
मातेव परिपाल्या च पूज्या ज्येष्ठा स्वसेव च । | 4-4-27a 4-4-27b 4-4-27c |
द्रौपद्युवाच। | 4-4-28x |
अहं वत्स्यामि राजेन्द्र निर्वृतो भव पार्थिव। | 4-4-28a 4-4-28b 4-4-28c |
छन्ना वत्स्याम्यहं यन्मां न विजानन्ति केचन। | 4-4-29a 4-4-29b |
सैरन्ध्रीजातिसंपन्ना नाम्नाऽहं व्रतचारिणी । | 4-4-30a 4-4-30b |
सैरन्ध्र्यो रक्षिताः स्त्रीणां भुजिष्याः सन्ति भारत । | 4-4-31a 4-4-31b |
साऽहं ब्रुवाणा सैरन्ध्री कुशला केशकर्मणि। | 4-4-32a 4-4-32b |
युधिष्ठिरस्य वै गेहे द्रौपद्याः परिचारिका। | 4-4-33a 4-4-33b 4-4-33c |
नाहं तत्र भविष्यामि दुर्भरा राजवेश्मनि। | 4-4-34a 4-4-34b |
सुदेष्णां प्रत्युपस्थास्ये राजभार्यां यशस्विनीम् । | 4-4-35a 4-4-35b |
अथ गुप्ता चरिष्यामि युष्माभिस्तत्र तस्थुषी। | 4-4-36a 4-4-36b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-4-37x |
यथा नो दुर्हृदः पापा भवन्ति सुखिनः पुनः। | 4-4-37a 4-4-37b |
कल्याणं भाषसे कृष्णे यथा कौलेयकी तथा। | 4-4-38a 4-4-38b |
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