महाभारतम्-04-विराटपर्व-008
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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विराटनगरं गच्छता युधिष्ठिरेण दुर्गायाः स्तवनम् ।। 1 ।।
[वैशंपायन उवाच। | 4-8-1x |
विराटनगरं रम्यं गच्छमानो युधिष्ठिरः। | 4-8-1a 4-8-1b |
यशोदागर्भसंभूतां नारायणवरप्रियाम् । | 4-8-2a 4-8-2b |
कंसविद्रावणकरीमसुराणां क्षयंकरीम्। | 4-8-3a 4-8-3b |
वासुदेवस्य भगिनीं दिव्यमाल्यविभूषिताम्। | 4-8-4a 4-8-4b |
भारावतरणे पुण्ये ये स्मरन्ति सदा शिवाम् । | 4-8-5a 4-8-5b |
स्तोतुं प्रचक्रमे भूयो विविधैः स्तोत्रसंभवैः । | 4-8-6a 4-8-6b |
नमोस्तु वरदे कृष्णे कुमारि ब्रह्मचारिणि । | 4-8-7a 4-8-7b |
चतुर्भुजे चतुर्वक्रे पीनश्रोणिपयोधरे। | 4-8-8a 4-8-8b |
भासि देवि यथा पद्मा नारायणपरिग्रहः । | 4-8-9a 4-8-9b |
कृष्णच्छविसमा कृष्णा संकर्षणसमानना । | 4-8-10a 4-8-10b |
पात्री च पङ्कजी घण्टी स्त्री विशुद्धा च या भुवि । | 4-8-11a 4-8-11b |
कुण्डलाभ्यां सुपूर्णाभ्यां कर्णाभ्यां च विभूषिता । | 4-8-12a 4-8-12b |
मुकुटेन विचित्रेण केशबन्धेन शोभिना। | 4-8-13a 4-8-13b |
विभ्राजसे चाऽऽबद्धेन भोगेनेवेह मन्दरः। | 4-8-14a 4-8-14b |
कौमारं व्रतमास्थाय त्रिदिवं पावितं त्वया। | 4-8-15a 4-8-15b |
त्रैलोक्यरक्षणार्थाय महिषासुरनाशिनि । | 4-8-16a 4-8-16b |
जया त्वं विजया चैव संग्रामे च जयप्रदा। | 4-8-17a 4-8-17b |
विन्ध्ये चैव नगश्रेष्ठे तव स्थानं हि शाश्वतम्। | 4-8-18a 4-8-18b |
कृतानुयात्रा भूतैस्त्वं वरदा कामचारिणी। | 4-8-19a 4-8-19b |
प्रणमन्ति च ये त्वां हि प्रभाते तु नरा भुवि । | 4-8-20a 4-8-20b |
दुर्गात्तारयसे दुर्गे तत्त्वं दुर्गा स्मृता जनैः । | 4-8-21a 4-8-21b 4-8-21c |
जलप्रतरणे चैव कान्तारेष्वटवीषु च। | 4-8-22a 4-8-22b |
त्वं कीर्तिः श्रीर्धृतिः सिद्धिर्ह्रीर्विद्या संततिर्मतिः। | 4-8-23a 4-8-23b |
नृणां च बन्धनं मोहं पुत्रनाशं धनक्षयम्। | 4-8-24a 4-8-24b |
सोहं राज्यात्परिभ्रष्टः शरणं त्वां प्रपन्नवान् । | 4-8-25a 4-8-25b |
त्राहि मां पद्मपत्राक्षि सत्ये सत्या भवस्व नः। | 4-8-26a 4-8-26b |
एवं स्तुता हि सा देवी दर्शयामास पाण्डवम् । | 4-8-27a 4-8-27b |
देव्युवाच । | 4-8-28x |
शृणु राजन्महाबाहो मदीयं वचनं प्रभो। | 4-8-28a 4-8-28b |
मम प्रसादान्निर्जित्य हत्वा कौरववाहिनीम् । | 4-8-29a 4-8-29b |
भ्रातृभिः सहितो राजन्प्रीतिं प्राप्स्यसि पुष्कलाम् । | 4-8-30a 4-8-30b |
ये च संकीर्तयिष्यन्ति लोके विगतकल्मषाः। | 4-8-31a 4-8-31b |
प्रवासे नगरे वाऽपि संग्रामे शत्रुसंकटे । | 4-8-32a 4-8-32b |
ये स्मरिष्यन्ति मां राजन्यथाऽहं भवता स्मृता । | 4-8-33a 4-8-33b |
इदं स्तोत्रवरं भक्त्या शृणुयाद्वा पठेत वा। | 4-8-34a 4-8-34b |
मत्प्रसादाच्च वः सर्वान्विराटनगरे स्थितान् । | 4-8-35a 4-8-35b |
इत्युक्त्वा वरदा देवी युधिष्ठिरमरिंदमम्। | 4-8-36a 4-8-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-8-3 शिलातटे कंसेनैव विनिक्षिप्ता सती आकाशं गता ताम् ।। 3 ।। 4-8-6 स्तोत्रार्थमेव संभव उद्भवो येषां नाम्नां वरदे इत्यादीनांतैः। आमन्त्र्य संबोध्य ।। 6 ।। 4-8-9 पद्मा लक्ष्मीं अत एव नारायणपरिग्रहो विष्णुकान्ता ।। 9 ।। 4-8-10 कृष्णच्छविर्नीलमेघस्तेन समा अत एव कृष्णा । अष्टभुजामाह बिभ्रतीति। विपुलौ वराभयप्रदत्वेन ऊर्जितौ द्वौ बाहू ।। 10 ।। 4-8-11 तत एकः पात्री पात्रवान्पङ्कजी पङ्कजवान् घण्टी घण्टावान् पञ्चमः पाशं धनुर्महाचक्रं च बिभ्रतीति पूर्वेणान्वयः ।। 11 ।।
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