महाभारतम्-04-विराटपर्व-072
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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उत्तरेण राजाभ्यनुज्ञयाऽन्तःपुरमेत्य तदभिवादनम् ।। 1 ।। युधिष्ठिरघ्रणावलोकनभीतोत्तरचोदनया विराटेन युधिष्ठिरक्षमापनम् ।। 2 ।। ततोऽर्जुनस्यान्तःप्रवेशः ।। 3 ।। उत्तरस्यैव जेतृत्वभ्रमहृष्टेन विराटेन तत्प्रशंसनम् ।। 4 ।। तेन तंतपि कस्यचिद्देवपुत्रस्यैव जेतृत्वकथनम् ।। 5 ।। ततोऽर्जुनेनोत्तराप्रभृतिभ्यः कुरुवस्त्रप्रदानम् ।। 6 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-72-1x |
सभाज्यमानः पौरैश्च स्त्रीभिर्जानपदैरपि। | 4-72-1a 4-72-1b |
ततो द्वाःस्थः समासाद्य प्रणिपत्य कृताञ्जलिः । | 4-72-2a 4-72-2b |
राजन्पृथुयशस्तुभ्यं जित्वा शत्रून्समागतः। | 4-72-3a 4-72-3b |
कुमारो योधमुख्यैस्च गणिकाभिस्च संवृतः । | 4-72-4a 4-72-4b |
ततो हृष्टो महीपालः क्षत्तारमिदमब्रवीत् । | 4-72-5a 4-72-5b |
क्षत्तारं कुरुराजस्तु शनैः कर्ण उपाजपत्। | 4-72-6a 4-72-6b |
तस्य हि महाबाहोर्व्रतं नित्यं महात्मनः। | 4-72-7a 4-72-7b 4-72-7c |
व्यक्तं भृसं सुसंक्रुद्धो मां दृष्ट्वैव सशोणितम्। | 4-72-8a 4-72-8b |
इन्द्रं वापि कुबेरं वा यमं वा वरुणं तथा। | 4-72-9a 4-72-9b |
क्षणमात्रं तु तत्रैव द्वारि तिष्ठतु वीर्यवान् । | 4-72-10a 4-72-10b |
इत्युक्त्वा क्षमया युक्तो धर्मराजो घृणान्वितः। | 4-72-11a 4-72-11b |
ततो राजसुतो ज्येष्ठः प्राविशत्पृथिवींजयः। | 4-72-12a 4-72-12b |
पश्यन्युधिष्ठिरं दृष्ट्या वक्रया चरणौ पितुः। | 4-72-13a 4-72-13b 4-72-13c |
ततो रुधिरसिक्ताङ्गमनेकाग्रमनागसम्। | 4-72-14a 4-72-14b 4-72-14c |
केनायं ताडितः कङ्कः केन पापमिदं कृतम्। | 4-72-15a 4-72-15b |
श्रोत्रियो ब्राह्मणश्रेष्ठ इन्द्रासनरतिक्षमः। | 4-72-16a 4-72-16b |
वैशंपायन उवाच। | 4-72-17x |
स पुत्रस्य वचः श्रुत्वा विराटो राष्ट्रवर्धनः। | 4-72-17a 4-72-17b |
पुत्र ते विजयं श्रुत्वा प्रहृष्टोऽहं मुदा भृशम्। | 4-72-18a 4-72-18b |
तत्राजयत्कुरून्सर्वानुत्तरो राष्ट्रवर्धनः। | 4-72-19a 4-72-19b 4-72-19c |
प्रशंसिते मया पुत्र विजये तव विश्रुते। | 4-72-20a 4-72-20b |
मया प्रशस्यमाने तु त्वयि पण्डं प्रशंसति। | 4-72-21a 4-72-21b 4-72-21c |
ताडितोऽयं यतिः कङ्क इत्युक्तं तद्वचोत्तरः। | 4-72-22a 4-72-22b |
अकार्यं ते कृतं राजन्क्षिप्रमेष प्रसाद्यताम्। | 4-72-23a 4-72-23b |
यावन्न क्षयमायाति कुलं सर्वमशेषनः। | 4-72-24a 4-72-24b |
प्रणम्य पादयोरस्य दण्डवत्क्षितिमण्डले । | 4-72-25a 4-72-25b |
दक्षेण पाणिना स्पृष्ट्वा शपे त्वां क्षपितं मया। | 4-72-26a 4-72-26b |
स पुत्रस्य वचः श्रुत्वा विराटः साध्वसाकुलः। | 4-72-27a 4-72-27b |
क्षमयन्तं तु राजानं पाण्डवः प्रत्यभाषत। | 4-72-28a 4-72-28b |
यदि स्म तत्पतेद्भूमौ रुधिरं मम पार्थिव । | 4-72-29a 4-72-29b |
न दूषयामि राजेन्द्र यस्तु हन्याददूषकम्। | 4-72-30a 4-72-30b |
वैशंपायन उवाच। | 4-72-31x |
शोणिते तु व्यतिक्रान्ते प्रविवेश बृहन्नला। | 4-72-31a 4-72-31b |
क्षमयित्वा तु कौरव्यं रणादुत्तरमागतम् । | 4-72-32a 4-72-32b 4-72-32c |
विराट उवाच। | 4-72-33x |
त्वया दायादवानस्मि कैकेयीनन्दिवर्धन। | 4-72-33a 4-72-33b |
पदं पदसहस्रेण यश्चरन्नापराध्नुयात्। | 4-72-34a 4-72-34b |
रणे यं प्रेक्ष्य सीदन्ति हृतवीर्यपराक्रमाः। | 4-72-35a 4-72-35b |
यस्य तद्विश्रुतं लोके महद्वृत्तमनुत्तमम् । | 4-72-36a 4-72-36b |
योऽयोधीत्समरे रामं जामदग्न्यं प्रतापिनम्। | 4-72-37a 4-72-37b |
पराक्रमी च दुर्धर्षो विद्वाञ्शूरो जितेन्द्रियः। | 4-72-38a 4-72-38b |
तेन ते सह भीष्मेण कुरुवृद्धेन संयुगे । | 4-72-39a 4-72-39b |
पर्वतं यो विनिर्भिन्द्याद्राजपुत्रो वरेषुभिः। | 4-72-40a 4-72-40b |
आचार्यो वृष्णिरीराणां पाञ्चालानां च यः प्रभुः। | 4-72-41a 4-72-41b |
सर्वशस्त्रभृतां श्रेष्ठः सर्वलोकेषु विश्रुतः। | 4-72-42a 4-72-42b |
आचार्यपुत्रो यः शूरो द्रोणादनवमो रणे। | 4-72-43a 4-72-43b |
सर्वे चैव महावीर्या धार्तराष्ट्रः महारथाः । | 4-72-44a 4-72-44b |
उत्तर उवाच। | 4-72-45x |
न मया निर्जिता गावो न मया कुरवो जिताः। | 4-72-45a 4-72-45b |
स हि भीतं द्रवन्तं मां भीष्मद्रोणमुखान्कुरून्। | 4-72-46a 4-72-46b |
स हि तिष्ठन्रथोपस्थे वज्रपाणिनिभो युवा। | 4-72-47a 4-72-47b |
तस्य तत्कर्म वीरस्य न मया तात तत्कृतम् । | 4-72-48a 4-72-48b 4-72-48c |
दुर्योदनं च समरे प्रभिन्नमिव कुञ्जरम्। | 4-72-49a 4-72-49b |
न हास्तिनपुरे त्राणं तव पश्यामि किंचन। | 4-72-50a 4-72-50b |
व्यायामेन परीप्सस्व जीवितं कौरवात्मज । | 4-72-51a 4-72-51b 4-72-51c |
स निवृत्तो नरव्याघ्रो मुञ्चन्वज्रनिभाञ्शरान्। | 4-72-52a 4-72-52b 4-72-52c |
यदभूद्धनसंकाशमनीकं व्यधमच्छरैः। | 4-72-53a 4-72-53b 4-72-53c |
एकेन तेन शूरेण षड्रथाः परिनिर्जिताः । | 4-72-54a 4-72-54b |
हयानां च गजानां च शूराणां च धनुष्मताम्। | 4-72-55a 4-72-55b |
सूतपुत्रं शतैर्विद्ध्वा हयान्हत्वा महारथः । | 4-72-56a 4-72-56b |
चतुर्भिः पुनरानर्च्छद्भीष्मं शान्तनवं शरैः। | 4-72-57a 4-72-57b |
दुर्योधनं च बलवान्बाणैर्विव्याध सप्तभिः। | 4-72-58a 4-72-58b |
द्रोणं कृपं च बलवान्सोमदत्तं जयद्रथम्। | 4-72-59a 4-72-59b |
त्रिभिस्त्रिभिः स विद्ध्वा तु दुःशासनमुखानपि। | 4-72-60a 4-72-60b |
द्वाभ्यां शराभ्यां विद्ध्वाऽथ तथाऽऽचार्यसुतं रणे। | 4-72-61a 4-72-61b |
विराट उवाच। | 4-72-62x |
क्व स वीरो महाबाहुर्देवपुत्रो महायशाः। | 4-72-62a 4-72-62b |
इच्छामि तममित्रघ्नं दुष्टुमर्चितुमेव च। | 4-72-63a 4-72-63b |
तस्मै दास्यामि तां पुत्रीं ग्रामांश्चैव तु हाटकान्। | 4-72-64a 4-72-64b |
उत्तर उवाच। | 4-72-65x |
अन्तर्धानं गतस्तात देवपुत्रः प्रतापवान्। | 4-72-65a 4-72-65b |
वैशंपायन उवाच। | 4-72-66x |
एवमाख्यायमानस्तु छन्नं सत्रेण पाण्डवम्। | 4-72-66a 4-72-66b |
ततः पार्थोऽभ्यनुज्ञातो विराटेन महात्मना। | 4-72-67a 4-72-67b |
इत्येवं ब्रूहि राजानं विराटं समुपस्थितम्। | 4-72-68a 4-72-68b 4-72-68c |
उत्तरा तु महार्हाणि वस्त्राण्याभरणानि च। | 4-72-69a 4-72-69b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-72-5 क्षत्तारं सारथिम् ।। 5 । 4-72-6 कर्ण उपाजपत् कर्णे इति च्छेदः ।। 6 ।। 4-72-7 ममाङ्ग इति मम युधिष्ठिरस्य । संग्रामाय गतात् गमनात्।। 7 ।। 4-72-13 रुधिरप्लुतं रुधिरत्रावम् ।। 13 ।। 4-72-14 अनेकाग्रं व्यग्रम् । युधिष्ठिरं दृष्ट्वा राजानं पप्रच्छेत्यन्वयः ।। 14 ।। 4-72- 22 तद्वचः इति च्छेदः संधिरार्षः ।। 22 ।। 4-72-30 तस्येति। स इति शेषः। स हन्ता तस्य स्वकृतहननस्य ।। 30 । 4-72-31 उपतिष्ठत उपातिष्ठत असेवत ।। 31 ।। 4-72- 33 दायादवान्पुत्रवान् ।। 33 । 4-72-34 पदसहस्रेण लक्ष्यसहस्रार्थम् । हेत्वर्थे तृतीया। युगपत्सहस्रलक्ष्याणि वेद्धुमित्यर्थः। चरन् बाणैः । पदं एकमपि लक्ष्यं नापराध्नुयात् लक्ष्यात् च्युतसायको न भवेदित्यर्थः ।। 34 ।। 4-72-47 तिष्ठन् अयुध्यतेति शेषः ।। 47 ।। 4-72-52 स निवृत्तोऽभूदित्यन्वयः ।। 52 ।। 4-72-53 सिंहेन दर्पे रामः । द्रावयत् .........।। 53 ।। 4-72-54 तृणचरास्तृणभक्षकाः ।। 54 ।। 4-72-66 सत्रेण वेषान्तरेण ।। 66 ।। 4-72-68 श्व इतो ब्रूहि राजानं विराट......चेति शo पाठः ।। 68 ।।
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