महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-073
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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भीमसेनेन श्रीकृष्णंप्रति दुर्योधनस्य दुराराध्यत्वकथनपूर्वकं यथाकथंचित् शमस्वावश्यकर्तव्यत्ककथनम् ।। 1 ।।
भीम उवाच। | 5-73-1x |
यथायथैव शान्तिः स्यात्कुरूणां मधुसूदन। | 5-73-1a 5-73-1b |
अमर्षी जातसंरम्भः श्रेयोद्वेषी महामनाः। | 5-73-2a 5-73-2b |
प्रकृत्या पापसत्वश्च तुल्यचेतास्तु दस्युभिः । | 5-73-3a 5-73-3b |
अदीर्घदर्शी निष्ठूरी क्षेप्ता क्रूरपराक्रमः । | 5-73-4a 5-73-4b |
म्रियेतापि न भज्येत नैव जह्यात्स्वकं मतम्। | 5-73-5a 5-73-5b |
सुहृदामप्यवाचीनस्त्यक्तधर्मा प्रियानृतः । | 5-73-6a 5-73-6b |
स मन्युवशमापन्नः स्वभावं दुष्टमास्थितः । | 5-73-7a 5-73-7b |
दुर्योधनो हि यत्सेनः सर्वथा विदितस्तव । | 5-73-8a 5-73-8b |
पुरा प्रसन्नाः कुरवः सहपुत्रास्तथा वयम्। | 5-73-9a 5-73-9b |
दुर्योधनस्य क्रोधेन भरता मधुसूदन। | 5-73-10a 5-73-10b |
अष्टादशेमे राजानः प्रख्यात मधुसूदन । | 5-73-11a 5-73-11b |
असुराणां समृद्धानां ज्वलतामिव तेजसा। | 5-73-12a 5-73-12b |
हैहयानामुदावर्तो नीपानां जनमेजयः । | 5-73-13a 5-73-13b |
अजबिन्दुः सुवीराणां सुराष्ट्राणां रुषर्द्धिकः। | 5-73-14a 5-73-14b |
हयग्रीवो विदेहानां वरयुश्च महौजसाम् । | 5-73-15a 5-73-15b |
सहजश्चेदिमत्स्यानां प्रवीराणां वृषध्वजः । | 5-73-16a 5-73-16b |
शमश्च नन्दिवेगानामित्येते कुलपांसनाः । | 5-73-17a 5-73-17b |
अप्ययं नः कुरूणां स्याद्युगान्ते कालसंभृतः । | 5-73-18a 5-73-18b |
तस्मान्मृदु शनैर्ब्रूया धर्मार्थसहितं हितम् । | 5-73-19a 5-73-19b |
अपि दुर्योधनं कृष्ण सर्वे वयमधश्चराः। | 5-73-20a 5-73-20b |
अप्युदासीनवृत्तिः स्याद्यथा नः कुरुभिः सह। | 5-73-21a 5-73-21b |
वाच्यः पितामहो वृद्धो ये च कृष्ण समासदः । | 5-73-22a 5-73-22b |
अहमेतद्ब्रवीम्येवं राजा चैव प्रशंसति । | 5-73-23a 5-73-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उग्योगपर्वणि |
5-73-4 निष्ठूरी निष्ठुरवाक् । क्षेप्ता निन्दकः । अनेयः शिक्षयितुमयोग्यः ।। 5-73-6 अवाचीनो विपरीतः ।। 5-73-12 पर्यायकाले धर्मान्तकाले ।। 5-73-19 कामानुबद्धं बहुलं बाहुल्येन तस्य चित्तानुसारी ।।
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