महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-117
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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गालवेन दिवोदासंप्रति स्वागमनकारणकथनम् ।। 1 ।।
तेन स्वस्याप्यश्वशतद्वयवत्त्वेन एकपुत्रोत्पादनकथनम् ।। 2 ।।
तथा शुल्कदानेन तस्यां प्रतर्दनाख्यसुतमुत्पाद्य कालान्तरागताय गालवाय माधवीप्रत्यर्पणम् ।। 3 ।।
गालव उवाच। | 5-117-1x |
महावीर्यो महीपालः काशीनामीश्वरः प्रभुः। | 5-117-1a 5-117-1b |
तत्र गच्छावहे भद्रे शनैरागच्छ मा शुचः । | 5-117-2a 5-117-2b |
नारद उवाच। | 5-117-3x |
तमुपागम्य स मुनिर्न्यायतस्तेन सत्कृतः। | 5-117-3a 5-117-3b |
दिवोदाम उवाच। | 5-117-4x |
श्रुतमेतन्मया पूर्वं किमुक्त्वा विस्तरं द्विज। | 5-117-4a 5-117-4b |
एतच्च मे बहुमतं यदुत्सृज्य नराधिपान्। | 5-117-5a 5-117-5b |
स एव विभवोऽसमाकमश्वानामपि गालव। | 5-117-6a 5-117-6b |
नारद उवाच। | 5-117-7x |
तथेत्युक्त्वा द्विजश्रेष्ठः प्रादात्कन्यां महीपतेः। | 5-117-7a 5-117-7b |
रेमे स तस्यां राजर्षिः प्रभावत्यां यथा रविः। | 5-117-8a 5-117-8b |
यथा चन्द्रश्च रोहिण्यां यथा धूमोर्णया यमः। | 5-117-9a 5-117-9b |
यथा नारायणो लक्ष्म्यां जाह्नव्यां च यथोदधिः । | 5-117-10a 5-117-10b |
अदृश्यन्त्यां च वासिष्ठो वसिष्ठश्चाक्षमालया। | 5-117-11a 5-117-11b |
अगस्त्यश्चापि वैदर्भ्यां सावित्र्यां सत्यवान्यथा। | 5-117-12a 5-117-12b |
रेणुकायां यथार्चीको हैमवत्यां च कौशिकः। | 5-117-13a 5-117-13b |
यथा भूम्यां भूमिपतिरुर्वश्यां च पुरूरवाः। | 5-117-14a 5-117-14b |
शकुन्तलायां दुष्यन्तो धृत्यां धर्मश्च शाश्वतः। | 5-117-15a 5-117-15b |
जरत्कारुर्जरत्कार्वां पुलस्त्यश्च प्रतीच्यया। | 5-117-16a 5-117-16b |
वासुकिः शतशीर्षायां कुमार्यां च धनञ्जयः। | 5-117-17a 5-117-17b |
तथा तु रममाणस्य दिवोदासस्य भूपतेः । | 5-117-18a 5-117-18b |
अथाजगाम भगवान्दिवोदासं स गालवः । | 5-117-19a 5-117-19b |
निर्यातयतु मे कन्यां भवांस्तिष्ठन्तु वाजिनः । | 5-117-20a 5-117-20b |
नारद उवाच। | 5-117-21x |
दिवोदासोऽथ धर्मात्मा समये गालवस्य ताम्। | 5-117-21a 5-117-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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