"पृष्ठम्:मृच्छकटिकम्.pdf/२११" इत्यस्य संस्करणे भेदः
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पुटस्थितिः | पुटस्थितिः | ||
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{{gap}}'''चेटः'''-भश्टके ! गामशअलेहिं लुद्धे लाअमग्गे। तदो चालुदत्तश्श लुक्खवाड़िआए पवहणं थाविअ तर्हि ओदलिअ जाव चक्कपलिवट्टियं कलेमि, ताव एशा पावणविपज्जाशेण इह आलुढे त्ति |
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{{gap}}'''चैट'''-भटके ! गामशअलेहिं सुद्धे लाअमग्गे। तदो चालु- |
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दत्तश्श लुक्खवाड़िआए पवणं थाविअ तर्हि ओदलिअ जाव चक- |
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पलिवट्टियं कलेमि, ताव एशा पावणविपज्जाशेण इह आळूढे त्ति |
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प्रवहणविपर्यासेनेहारूढेति तर्कयामि ।। |
प्रवहणविपर्यासेनेहारूढेति तर्कयामि ।। |
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{{gap}}'''शकारः'''–कधं |
{{gap}}'''शकारः'''–कधं पवहणविपज्जाशेण आगदा, ण मं अहिशालिदुं ? ।। |
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ता ओदल ओदल ममकेलकादो |
ता ओदल ओदल ममकेलकादो पवहणादो । तुमं तं दलिद्दशत्थवाहपुत्तकं अहिशालेशि । ममकेलकाई गोणाइं वाहेशि । ता ओदल ओदल |
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पुत्तकं अहिशालेशि । ममकेलकाई गोणाई वाहेशि । ता ओदल ओदल |
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गब्भदाशि ! ओदल ओदल । [कथं प्रवहणविपर्यासेनागता, ने मामभि- |
गब्भदाशि ! ओदल ओदल । [कथं प्रवहणविपर्यासेनागता, ने मामभि- |
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सारयितुम् ? तदवतरावतर मदीयात्प्रवहणात् । |
सारयितुम् ? तदवतरावतर मदीयात्प्रवहणात् । त्वं तं दरिद्रसार्थवाहपुत्रकमभिसरसि । मदीयौ गावौ वायसयसि । तदवतरावतर गर्भदासि ! |
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अवतरावतार ।। |
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पुन्नकमभिसरसि । मदीयौ गावौ बायसे । तदवतरिवतर गर्भदासि ! |
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अवतरवतार ।। |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''--तं अज्जचारुदत्तं अहिसारेसि त्ति जं सच्चं, अलंकिदम्हि इमिणा वअणेण । संपदं जे भोदु तं भोदु । [ तमार्यचारुदत्तमभिसरसीसीति यत्सत्यम् , अलंकृताऽस्म्यमुना वचनेन। सांप्रतं यद्भवति |
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{{gap}}'''वसन्तसेना'''--तं अजचारुदत्तं अहिसारेसि त्ति जं सच्चे, अलं- |
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तद्भवति ।] |
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किदम्हि इमिणा वअणेण । संपदं जे भोदु तं भोदु । [ तमार्यचारु- |
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दत्तमभिसरसीसीति यस्सस्यम् , अलंकृताऽस्म्यमुना वचनेन। सांप्रतं यद्भवति |
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वति ।] |
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{{gap}}'''शकारः'''--- |
{{gap}}'''शकारः'''--- |
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{{block center|{{bold|<poem> |
{{block center|{{bold|<poem>एदेहिं दे दशणहुप्पलमंडलेहिं। |
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::इत्थेहिं चाडुशदताडणलंपडेहिं । |
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कट्ठामि दे |
कट्ठामि दे वलतणुं णि अजाणकादो |
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::केशेशु |
::केशेशु बालिदइअं वि जहा जड़ाऊ ॥ २० ॥</poem>}}}} |
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ये चुम्बिता मातृकाम्बिकाभिर्गता न देवानामपि ये प्रमाणम् ( प्रणामम् )। ते |
ये चुम्बिता मातृकाम्बिकाभिर्गता न देवानामपि ये प्रमाणम् ( प्रणामम् )। ते |
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पातिताः |
पातिताः पादतलेन मुण्डा वने श्रृगालेन या मृदङ्गाः ॥ मातृका इति स्वार्थे |
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कः । मुण्डा इति बहुवचनमप्यनर्थकम् ॥ १९ ॥ |
कः । मुण्डा इति बहुवचनमप्यनर्थकम् ॥ १९ ॥ '''एदेहिं इत्यादि''' । वसन्त- |