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{{gap}}'''चारुदत्त'''---एवमेव । |
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{{gap}}'''अधिकरणिकः'''--आर्य ! वसन्तसेना क्व ।। |
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{{gap}}'''चारुदत्तः''' --गृहं गता। |
{{gap}}'''चारुदत्तः''' --गृहं गता। |
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{{gap}}'''श्रेष्ठिकायस्थ'ौ''-कधं गदा, कदा गदा, गच्छंती वा केण |
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अणुगदा ? । [कथं गता, कदा गता, गच्छन्ती वा केनानुगता ? ।] |
अणुगदा ? । [कथं गता, कदा गता, गच्छन्ती वा केनानुगता ? ।] |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''--( स्वगतम् ) किं प्रच्छन्नं गतेति ब्रवीमि |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''--( स्वगतम् ) किं प्रच्छन्नं गतेति ब्रवीमि । |
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{{gap}}'''श्रेष्ठिकायस्थौ'''-अज्ज । कघेहि । [ आर्य ! कथय ।] |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''--गृहं गता । |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''--गृहं गता । किमन्यद्ब्रवीमि । |
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{{gap}}|'''शकारः'''--मम केलकं पुप्फकलंडकजिण्णुज्जाणं पवेशिअ |
{{gap}}|'''शकारः'''--मम केलकं पुप्फकलंडकजिण्णुज्जाणं पवेशिअ अत्थणिमित्तं बाहुपाशबलक्कालेण मालिदा । अए ! शंपदं वदशि घलं गदेत्ति ।[ मदीयं पुष्पकरण्ञ्जकजीर्णोधानं प्रवेश्यार्थनिमित्तं बाहुपाशबलात्कारेण |
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णिमित्तं बाहुपाशबलकालेण मालिदा । अए ! शंपदं वदशि घले गदे |
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त्ति है।[ मदीयं पुष्पकरण्ञ्जकजीर्णोधानं प्रवेश्यार्थनिमित्तं बाहुपाशबलात्कारेण |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''--- |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''---आः, असंबद्धप्रलापिन् ! |
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{{block center|{{bold|<poem>अभ्युक्षितोऽसि सलिलैर्न बलाहकानां |
{{block center|{{bold|<poem>अभ्युक्षितोऽसि सलिलैर्न बलाहकानां |
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::चाषाग्रपक्षसदृशं भृशमन्तराले। |
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मिथ्यैतदननमिदं भवतस्तथा हि |
मिथ्यैतदननमिदं भवतस्तथा हि |
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::हेमन्तपम मिव |
::हेमन्तपम मिव निष्प्रभतामुपैति ॥ १९ ॥</poem>}}}} |
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{{gap}}'''अधिकरणिकः'''-( जनान्तिकम् ) |
{{gap}}'''अधिकरणिकः'''-( जनान्तिकम् ) |
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{{block center|{{bold|<poem>तुलनं चाद्रिराजस्य समुदस्य च तारणम् । |
{{block center|{{bold|<poem>तुलनं चाद्रिराजस्य समुदस्य च तारणम् । |
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ग्रहणं चानिलस्येव चारुदत्तस्य दूषणम् ॥ २० ॥</poem>}}}} |
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समीक्ष्यत |
समीक्ष्यत इत्याशङ्क्याह--'''छलमत्र''' नेति ॥ १८ ॥ '''अभ्युक्षितेति''' । |
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पक्षः केशविशेषः । |
पक्षः केशविशेषः । भृशमत्यर्थम् । अन्तराले एतद्वचनमध्ये । मेघजलसिक्तन्तनाशाखे जलबिन्दुर्यद्युत इति कर्मवशामेकं मिथ्यात्मसूचकमिति (१) |
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सिक्तन्तनाशाखे जलबिन्दुयॆद्युत इति कर्मवश मे कै मिथ्यात्म सूचकमिति (१) |