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{{block center|{{bold|<poem>मया खलु नृशंसेन परलोकमजानता। |
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| स्त्री |
| स्त्री रतिर्वाविशेषेण शेषमेषोऽभिधास्यति ॥ ३० ॥</poem>}}}} |
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{{gap}}'''विदूषकः'''--किं किम् ? । [ किं किम् ? । ] |
{{gap}}'''विदूषकः'''--किं किम् ? । [ किं किम् ? । ] |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''—(कर्णे ) ऐ1वमेवम् । |
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{{gap}}'''विदूषकः'''-- को एव्वं भणादि ? । [क एवं भणति ? । |
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{{gap}}'''चारुदत्तः'''---( |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''---( संज्ञया शकारं दर्शयति ) नन्वेष तपस्वी हेतुभूतः |
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कृतान्तो मां व्याहरति ।। |
कृतान्तो मां व्याहरति ।। |
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{{gap}}'''विदूषकः'''--( जनान्तिकम् ) एव्वं कीस ण भणीअदि-गेहं गदे |
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त्ति ? । [एवं किमर्थ न भण्यते-गृहं गतेति ? । ] |
त्ति ? । [एवं किमर्थ न भण्यते-गृहं गतेति ? । ] |
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{{gap}}'''चारुदत्तः''' |
{{gap}}'''चारुदत्तः'''–उच्यमानमप्यवस्थादोषान्न गृह्यते । |
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{{gap}}'''विदूषकः'''–भो भो अज्जा ! जेण दाव पुरट्टावणविहारारामदेउ- |
{{gap}}'''विदूषकः'''–भो भो अज्जा ! जेण दाव पुरट्टावणविहारारामदेउ- |
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लतडागकूवजूवेहिं अलंकिदा णअरी उज्जइणी, सो अणीसो |
लतडागकूवजूवेहिं अलंकिदा णअरी उज्जइणी, सो अणीसो अत्थकल्ल- |
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वत्तकारणादो एरिसं |
वत्तकारणादो एरिसं अकज्जं अणुचिट्ठदि त्ति ? । ( सक्रोधम् ) अरे रे |
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काणेलीसुदा राअश्शालसंठाणआ उस्सुंखलआ |
काणेलीसुदा राअश्शालसंठाणआ उस्सुंखलआ किदजणदोसभंडआ |
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बहुसुवण्णमंडिदमक्कडआ ! भण भण मम अग्गदो, जो दाणिं मम |
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पिअवअस्सो कुसुमिदं माधवीलदं पि आअद्विअ |
पिअवअस्सो कुसुमिदं माधवीलदं पि आअद्विअ कुसुमावचअं ण |
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करेदि कदा वि आअद्विदाए पल्लवच्छेदो भोदि |
करेदि कदा वि आअद्विदाए पल्लवच्छेदो भोदि त्ति, सो कधं एरिसं |
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अकज्जं उहअलोअविरुद्धं करेदि १ । चिट्ठ रे कुट्टणिपुत्ता 1 चिट्ठ। जाव |
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एदिणा तव हिअअकुडिलेण |
एदिणा तव हिअअकुडिलेण दंडअट्ठेण मत्थरअं दे सदखंडं करेमि । |
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[ भो भो आर्याः ! येन |
[ भो भो आर्याः ! येन तावत्पुरस्थापनविहारारामदेवालयतडागकूपयूपैरलं- |
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मयेति ॥ ३० ॥ पुरस्थापनं पुराबस्थितिः । |
'''मयेति''' ॥ ३० ॥ पुरस्थापनं पुराबस्थितिः । पुरनिर्माणमिति यावत् । कूपयू. |
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टिप्प:--- मय। वसन्तसेना |
टिप्प:--- मय। वसन्तसेना पुष्पकरण्डजीणोंद्याने धनलोभेन मारितेति |
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4एवमेवम्' इत्यस्याशयः । 2 |
4एवमेवम्' इत्यस्याशयः । 2 दारिद्रदोषान्न विश्वस्यते इति भावः । |