महाभारतम्-18-स्वर्गारोहणपर्व-004
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युधिष्ठिरेण स्वर्गे निवसतां कृष्णकर्णादीनां दर्शनम्।। 1 ।।
इन्द्रेण युधिष्ठिराय द्रौपदेयादीनां तत्तत्स्थानगतानां पृथक्पृथक्प्रदरशनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच | 18-4-1x |
ततो युधिष्ठिरो राजा देवैः सर्षिमरुद्गणैः। स्तूयमानो ययौ तत्र यत्र ते कुरुपुङ्गवाः।। | 18-4-1a 18-4-1b |
ददर्श तत्र गोविन्दं ब्राह्मेण वपुषाऽन्वितम्। तेनैव दृष्टपूर्वेण सादृश्येनैव सूचितम्।। | 18-4-2a 18-4-2b |
दीप्यमानं स्ववपुषा दिव्यैरस्त्रैरुपस्थितम्। चक्रप्रभृतिभिर्घोरैर्दिव्यैः पुरुषविग्रहैः।। | 18-4-3a 18-4-3b |
उपास्यमानं वीरेण फल्गुनेन सुवर्चसा। तथास्वरूपं कौन्तेयो ददर्श मधुसूदनम्।। | 18-4-4a 18-4-4b |
तावुभौ पुरुषव्याघ्रौ समुद्वीक्ष्य युधिष्ठिरम्। यथावत्प्रतिपेदाते पूजया देवपूजितौ।। | 18-4-5a 18-4-5b |
अपरस्मिन्नथोद्देशे कर्णं शस्त्रभृतां वरम्। द्वादशादित्यसहितं ददर्श कुरुनन्दनः।। | 18-4-6a 18-4-6b |
अथापरस्मिन्नुद्देशे मरुद्गणवृतं विभुम्। भीमसेनमथापश्यत्तेनैव वपुषाऽन्वितम्।। | 18-4-7a 18-4-7b |
वायोर्मूर्तिमतः पार्श्वे दिव्यमूर्तिसमन्वितम्। श्रिया परमया युक्तं सिद्धिं परमिकां गतम्।। | 18-4-8a 18-4-8b |
अश्विनोस्तु तथा स्थाने दीप्यमानौ स्वतेजसा। नकुलं सहदेवं च ददर्श कुरुनन्दनः।। | 18-4-9a 18-4-9b |
तथा ददर्श पाञ्चालीं कमलोत्पलमालिनीम्। वपुषा स्वर्गमाक्रम्य तिष्ठन्तीमर्कवर्चसम्।। | 18-4-10a 18-4-10b |
तत्रैनां सहसा राजा स्प्रष्टुमैच्छद्युधिष्ठिरः। ततोऽस्य भगवानिन्द्रः कथयामास देवराट्।। | 18-4-11a 18-4-11b |
श्रीरेषा द्रौपदीरूपा त्वदर्थे मानुषं गता। अयोनिजा लोककान्ता पुण्यगन्धा युधिष्ठिर।। | 18-4-12a 18-4-12b |
रत्यर्थं भवतां ह्येषा निर्मिता शूलपाणिना। द्रुपदस्य कुले जाता भवद्भिश्चोपजीविता।। | 18-4-13a 18-4-13b |
एते पञ्च महाभागा गन्धर्वाः पावकप्रभाः। द्रौपद्यास्तनया राजन्युष्माकममितौजसः।। | 18-4-14a 18-4-14b |
पश्य गन्धर्वराजानं धृतराष्ट्रं मनीषिणम्। एनं च त्वं विजानीहि भ्रातरं पूर्वजं पितुः।। | 18-4-15a 18-4-15b |
अयं ते पूर्वजो भ्राता कौन्तेयः पावकद्युतिः। सूर्यपुत्रो रथिश्रेष्ठो राधेय इति विश्रुतः। आदित्यसहितो भाति पश्यैनं पुरुषर्षभम्।। | 18-4-16a 18-4-16b 18-4-16b |
साध्यानामथ देवानां विश्वेषां मरुतामपि। गणेषु पश्य राजेन्द्र वृष्णन्धकमहारथान्। सात्यकिप्रमुखान्वीरान्भोजांश्चैव महाबलान्।। | 18-4-17a 18-4-17b 18-4-17c |
सोमेन सहितं पश्य सौभद्रमपराजितम्। अभिमन्युं महेष्वासं निशाकरसमद्युतिम्।। | 18-4-18a 18-4-18b |
एष पाण्डुर्महेष्वासः कुन्त्या माद्र्या च सङ्गतः। विमानेन सदाऽभ्येति पिता तव ममान्तिकम्।। | 18-4-19a 18-4-19b |
वसुभिः सहितं पश्य भीष्मं शान्तनवं नृपम्। द्रोणं बृहस्पतेः पार्श्वे गुरुमेनं निशामय।। | 18-4-20a 18-4-20b |
एते चान्ये महीपाला योधास्तव च पाण्डव। गन्धर्वसहिता यान्ति यक्षपुण्यजनैस्तथा।। | 18-4-21a 18-4-21b |
गुह्यकानां गतिं चापि केचित्प्राप्ता नराधिपाः। त्यक्त्वा देहं जितः स्वर्गः पुण्यवाग्बुद्धिकर्मभिः।। | 18-4-22a 18-4-22b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्वार्गारोहणपर्वणि चतुर्थोऽध्यायः।। 4 ।। |
18-4-2 ब्राह्मेण ब्रह्मणा आराध्येन।। 18-4-3 उपस्थितं सेवितं अस्त्रैः।। 18-4-12 मानुषं मानुषभावम्।।
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