महाभारतम्-16-मौसलपर्व-002
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वैशंपायनेन जनमेजयंपति यादवानां मौसलेन निधनप्रकारकथनारम्भः।। 1 ।।
कदाचन विश्वामित्राकदिमहर्षिषु द्वारकः मागतेषु कैश्चन यादवैः सांबस्य स्त्रीवेषपरिकल्पनेन मुनीन्प्रति गर्भिणीयं किंरूपमपत्यं प्रसविष्यतीति प्रश्नः।। 2 ।।
ततो रुष्टैर्महर्षिभिः स्वकुलविनाशकमायसं मुसलं प्रसविष्यतीति शापदानम्।। 3 ।।
ततः परेथुः सांवेन मुसले प्रसूते भीतैस्तै राजाज्ञया तस्य चूर्णकरणेन समुद्र प्रक्षेपणम्।। 4 ।।
जनमेजय उवाच। | 16-2-1x |
कथं विनष्टा भगवन्नन्धका वृष्णिभिः सह। पश्यतो वासुदेवस्य भोजश्चैवक महारथाः।। | 16-2-1a 16-2-1b |
वैशम्पायन उवाच। | 16-2-2x |
षट्त्रिंशेऽथ ततो वर्षे वृष्णीनामनयो महान्। अन्योन्यं मुसलैस्ते तु निजघ्नुः कालचोदिताः।। | 16-2-2a 16-2-2b |
जनमेजय उवाच। | 16-2-3x |
केनानुशप्तास्ते वीराः क्षयं वृष्ण्यन्धका गताः। भोजाश्च द्विजवर्य त्वं विस्तरेण वदस्व मे।। | 16-2-3a 16-2-3b |
वैशम्पायन उवाच। | 16-2-4x |
विश्वामित्रं च कण्वं च नारदं च तपोधनम्। सारणप्रमुखा वीरा ददृशुर्द्वारकां गतान्।। | 16-2-4a 16-2-4b |
ते वै सांबं पुरस्कृत्य भूषयित्वा स्त्रियं यथा। अब्रुवन्नुपसङ्गम्य् दैवदण्डिनिपीडिताः।। | 16-2-5a 16-2-5b |
इयं स्त्री पुत्रकामस्य बभ्रोरमिततेजसः। ऋषयः साधु जानीत किमियं जनयिष्यति।। | 16-2-6a 16-2-6b |
इत्युक्तास्ते तदा राजन्विप्रलम्भप्रधर्षिताः। प्रत्यबुवंस्तान्मुनयो यत्तच्छृणु नराधिप।। | 16-2-7a 16-2-7b |
वृष्ण्यन्धकविनाशाय मुसलं घोरमायसम्। वासुदेवस्य दायादः सांबोऽयं जनयिष्यति।। | 16-2-8a 16-2-8b |
येन यूयं सुदुर्वृत्ता नृशंसा जातमन्यवः। उच्छेत्तारः कुलं कृत्स्नमृते रामजनार्दनौ।। | 16-2-9a 16-2-9b |
समुद्रं यास्यति श्रीमांस्त्यक्त्वा देहं हलायुधः। जरःकृष्णं महात्मानं शयानं भुवि भेत्स्यति।। | 16-2-10a 16-2-10b |
इत्यब्रुवंस्ततो राजन्प्रलब्धास्तैर्दुरात्मभिः। मुनयः क्रोधरक्ताक्षाः समीक्ष्याथ परस्परम्। तथोक्त्वा मुनयस्ते तु यथागतमथो ययुः।। | 16-2-11a 16-2-11b 16-2-11c |
अथाब्रवीत्तदा वृष्णीञ्श्रुत्वैतन्मधुसूदनः। अन्तज्ञो मतिमांस्तस्य भवितव्यं तथेति तान्।। | 16-2-12a 16-2-12b |
एवमुक्त्वा हृषीकेशः प्रविवेश पुरं तदा। कृतान्तमन्यथा नैच्छत्कर्तुं स जगतः प्रभुः।। | 16-2-13a 16-2-13b |
श्वोभूतेऽथ ततः सांबो मुसलं तदसूकत वै। येन वृष्णन्धककुले पुरुषा भस्मसात्कृताः।। | 16-2-14a 16-2-14b |
वृष्ण्यन्धकविनाशाय किंकरप्रतिमं महत्। असूत सापजं घोरं तच्च राज्ञे न्यवेदयन्।। | 16-2-15a 16-2-15b |
विषण्णरूपस्तद्राजा सूक्ष्मं चूर्णमकारयत्। तच्चूर्णं सागरे चापि प्राक्षिपन्पुरुषा नृप।। | 16-2-16a 16-2-16b |
अघोषयंश्च नगरे वचनादाहुकस्य ते। जनार्दनस्य रामस्य बभ्रोश्चैव महात्मनः।। | 16-2-17a 16-2-17b |
अद्यप्रभृति सर्वेषु वृष्ण्यन्धककुलेष्विह। सुरासवो न कर्तव्यः, सर्वैर्नगरवासिभिः।। | 16-2-18a 16-2-18b |
यश्च नो विदितं कुर्यात्पेयं कश्चिन्नरः क्वचित्। जीवन्स शूलमारोहेत्स्वयं कृत्वा सबान्धवः।। | 16-2-19a 16-2-19b |
ततो राजभयात्सर्वे नियमं चक्रिरे तदा। नराः सासनमाज्ञाय तस्य राज्ञो महात्मनः।। | 16-2-20a 16-2-20b |
।। इति श्रीमन्महाभारते मौसलपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2 ।। |
16-2-2 मुसलैरेरकालग्नैर्मुसलकणैः।। 16-2-10 जरा कृष्णमिति झ.पाठः। जरानामा कश्चित्कैवर्तः।। 16-2-15 किङ्करो यमदूतस्तत्तुत्यम्।। 16-2-19 खयंकृत्वा स्वयंकर्ता।।
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