महाभारतम्-16-मौसलपर्व-006
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दारुकेण हास्तिनपुरमेत्य पाण्डवेषु सर्वयादवक्षयनिवेदनम्।। 1 ।।
अर्जुनेन द्वारकामेत्य रुक्मिण्यादिपरिसान्त्वनपूर्वकं वसुदेवगृहंप्रति गमनम्।। 2 ।।
वैशम्पाय उवाच। | 16-6-1x |
दारुकोपि कुरून्गत्वा दृष्ट्वा पार्थान्महारथान्। आचष्ट मौसले वृष्णीनन्योन्येनोपसंहृतान्।। | 16-6-1a 16-6-1b |
श्रुत्वा विनष्टान्वार्ष्णेयान्सभोजान्धककौकुरान्। पाण्डवाः शोकसंतप्ता वित्रस्तमनसोऽभवन्।। | 16-6-2a 16-6-2b |
ततोऽर्जुनस्तानामन्त्र्य केशवस्य प्रियः सखा। प्रययौ मातुलं द्रष्टुं नेदमस्तीति चाब्रवीत्।। | 16-6-3a 16-6-3b |
स वृष्णिनिलयं गत्वा दारुकेण सह प्रभो। ददर्श द्वारकां वीरो मृतनाथामिव स्त्रियम्।। | 16-6-4a 16-6-4b |
याः स्म ता लोकनाथेन नाथवत्यः पुराऽभवन्। तास्त्वनाथास्तदा नाथं पार्थं दृष्ट्वा विचुक्रुशुः।। | 16-6-5a 16-6-5b |
षोडश स्त्रीसहस्राणि वासुदेवपरिग्रहाः। तासामासीन्महान्नादो दृष्ट्वैवार्जुनमागतम्।। | 16-6-6a 16-6-6b |
तास्तु दृष्ट्वैव कौरव्यो बाष्पेणापिहितेक्षणः। हीनाः कृष्णेन पुत्रैश्च नाशकत्सोभिवीक्षितुम्।। | 16-6-7a 16-6-7b |
स तां वृष्ण्यन्धकजलां हयमीनां रथोडुपाम्। वादित्ररथघोषौघां वेश्मतीर्थमहाग्रहाम्।। | 16-6-8a 16-6-8b |
रत्नशैवलसंघातां वज्रप्राकारमालिनीम्। रथ्यास्रोतोजलावर्तां चत्वरस्तिमितह्रदाम्।। | 16-6-9a 16-6-9b |
रामकृष्णमहाग्राहां द्वारकां सरितं तदा। कालपाशग्रहां भीमां नदीं वैतरणीमिव।। | 16-6-10a 16-6-10b |
ददर्श वासविर्धीमान्विहीनां वृष्णिपुङ्गवैः। गतश्रियं विरानन्दां पद्मिनीं शिशिरे यथा। | 16-6-11a 16-6-11b |
तां दृष्ट्वा द्वारकां पार्थस्ताश्च कृष्णस्य योषितः। सस्वनं बाष्पमुत्सृज्य निपात महीतले।। | 16-6-12a 16-6-12b |
सात्राजिती ततः सत्या रुक्मिणी च विशांपते। अभिपत्य प्ररुरुदुः परिवार्य धनंजयम्।। | 16-6-13a 16-6-13b |
ततस्तं काञ्चने पीठे समुत्ताप्योपवेश्य च। अभिनन्द्य महात्मानं परिवार्योपतस्थिरे।। | 16-6-14a 16-6-14b |
ततः संस्तूय गोविन्दं कथयित्वा च पाण्डवः। आश्वास्य ताः स्त्रियश्चापि मातुलं द्रष्टुमभ्यगात्।। | 16-6-15a 16-6-15b |
।। इति श्रीमन्महाभारते मौसलपर्वणि षष्ठोऽध्यायः।। 6 ।। |
16-6-14 अब्रुवन्त्यो महामानमिति झ.पाठः।।
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