1. अध्यायः १
  2. अध्यायः २
  3. अध्यायः ३
  4. अध्यायः ४
  5. अध्यायः ५
  6. अध्यायः ६
  7. अध्यायः ७
  8. अध्यायः ८
  9. अध्यायः ९
  10. अध्यायः १०
  11. अध्यायः ११
  12. अध्यायः १२
  13. अध्यायः १३
  14. अध्यायः १४
  15. अध्यायः १५
  16. अध्यायः १६
  17. अध्यायः १७
  18. अध्यायः १८
  19. अध्यायः १९
  20. अध्यायः २०
  21. अध्यायः २१
  22. अध्यायः २२
  23. अध्यायः २३
  24. अध्यायः २४
  25. अध्यायः २५
  26. अध्यायः २६
  27. अध्यायः २७
  28. अध्यायः २८
  29. अध्यायः २९
  30. अध्यायः ३०
  31. अध्यायः ३१
  32. अध्यायः ३२
  33. अध्यायः ३३
  34. अध्यायः ३४
  35. अध्यायः ३५
  36. अध्यायः ३६
  37. अध्यायः ३७
  38. अध्यायः ३८
  39. अध्यायः ३९
  40. अध्यायः ४०
  41. अध्यायः ४१
  42. अध्यायः ४२
  43. अध्यायः ४३
  44. अध्यायः ४४
  45. अध्यायः ४५
  46. अध्यायः ४६
  47. अध्यायः ४७
  48. अध्यायः ४८
  49. अध्यायः ४९
  50. अध्यायः ५०
  51. अध्यायः ५१
  52. अध्यायः ५२
  53. अध्यायः ५३
  54. अध्यायः ५४
  55. अध्यायः ५५
  56. अध्यायः ५६
  57. अध्यायः ५७
  58. अध्यायः ५८
  59. अध्यायः ५९
  60. अध्यायः ६०
  61. अध्यायः ६१
  62. अध्यायः ६२
  63. अध्यायः ६३
  64. अध्यायः ६४
  65. अध्यायः ६५
  66. अध्यायः ६६
  67. अध्यायः ६७
  68. अध्यायः ६८
  69. अध्यायः ६९
  70. अध्यायः ७०
  71. अध्यायः ७१
  72. अध्यायः ७२
  73. अध्यायः ७३
  74. अध्यायः ७४
  75. अध्यायः ७५
  76. अध्यायः ७६
  77. अध्यायः ७७
  78. अध्यायः ७८
  79. अध्यायः ७९
  80. अध्यायः ८०
  81. अध्यायः ८१
  82. अध्यायः ८२
  83. अध्यायः ८३
  84. अध्यायः ८४
  85. अध्यायः ८५
  86. अध्यायः ८६
  87. अध्यायः ८७
  88. अध्यायः ८८
  89. अध्यायः ८९
  90. अध्यायः ९०
  91. अध्यायः ९१
  92. अध्यायः ९२
  93. अध्यायः ९३
  94. अध्यायः ९४
  95. अध्यायः ९५
  96. अध्यायः ९६
  97. अध्यायः ९७
  98. अध्यायः ९८
  99. अध्यायः ९९
  100. अध्यायः १००
  101. अध्यायः १०१
  102. अध्यायः १०२
  103. अध्यायः १०३
  104. अध्यायः १०४
  105. अध्यायः १०५
  106. अध्यायः १०६
  107. अध्यायः १०७
  108. अध्यायः १०८

सूत उवाच।।
देवकूटे गिरौ मध्ये महाकूटे सुशोभने।।
हेमवैडूर्यमाणिक्यनीलगोमेदकांतिभिः।। ५१.१ ।।

तथान्यैर्मणिमुख्यैश्च निर्मिते निर्मले शुभे।।
शाखाशत सहस्राढ्ये सर्वद्रुमविभूषिते।। ५१.१ ।।(५१.२)

चंपकाशोकपुंनागवकुलासनमंडिते।।
पारिजातकसंपूर्णे नानापक्षिगणान्विते।। ५१.३ ।।

नैकधातुशतैश्चित्रे विचित्रकुसुमाकुले।।
नितंबपुष्पसालंबे नैकसत्त्वगणान्विते।। ५१.४ ।।

विमलस्वादुपनीये नैकप्रस्रवणैर्युते।।
निर्झरैः कुसुमाकीर्णैरनेकैश्च विभूषिते।। ५१.५ ।।

पुष्पोडुपवहाभिश्च स्रवंतीभिरलंकृते।।
स्निग्धवर्णं महामूलमनेकस्कंधपादपम्।। ५१.६ ।।

रम्यं ह्यविरलच्छायं दशयोजन मंडलम्।।
तत्र भूतवनं नाम नानाभूतगणालयम्।। ५१.७ ।।

महादेवस्य देवस्य शंकरस्य महात्मनः।।
दीप्तमायतनं तत्र महामणिविभूषितम्।। ५१.८ ।।

हेमप्राकारसंयुक्तं मणितोरणमंडितम्।।
स्फाटिकैश्च विचित्रैस्च गोपुरैश्च समन्वितम्।। ५१.९ ।।

सिंहासनैर्मणिमयैः शुभास्तरणसंयुतैः।।
क्षितावितस्ततः सम्यक् शर्वेणाधिष्ठितैः शुभैः।। ५१.१೦ ।।

अम्लानमालानिचितैर्नानावर्णैर्गृहोत्तमैः।।
मंडपैः सुविचित्रैस्तु स्फाटिकस्तंभसंयुतैः।। ५१.११ ।।

संयुतं सर्वभूतेन्द्रैर्ब्रह्मेन्द्रोपेन्द्रपूजितैः।।
वराहगज सिंहर्क्षशार्दूलकरभाननैः।। ५१.१२ ।।

गृध्रोलूकमुखैश्चान्यैर्मृगोष्ट्राजमुखैरपि।।
प्रमथैर्विविधैः स्थूलैर्गिरिकूटोपमैः शुभैः।। ५१.१३ ।।

करालैर्हरिकेशैश्च रोमशैश्च महाभुजैः।।
नानावर्णाकृतिधरैर्नानासंस्थानसंस्थितैः।। ५१.१४ ।।

दीप्तास्यैर्दीप्तचरितैर्नन्दीश्वरमुखैः शुभैः।।
ब्रह्मेन्द्रविष्णुसंकाशैरणिमादि गुणान्वितैः।। ५१.१५ ।।

अशून्यममरैर्नित्यं महापरिषदैस्तथा।।
तत्र भूतपतेर्देवाः पूजां नित्यं प्रयुंजते।। ५१.१६ ।।

झर्झरैः शंखपटहैर्भेरीडिंडिम गौमुखैः।।
ललितावसितोद्गीतैर्वृत्तवल्गितगर्जितैः।। ५१.१७ ।।

पूजितो वै महादेवः प्रमथैः प्रमथेश्वरः।।
सिद्धर्षिदेवगंधर्वैर्ब्रह्मणा च महात्मना।। ५१.१८ ।।

उपेन्द्रप्रमुखैश्चान्यैः पूजितस्तत्र शकरः।।
विभक्तचारुशिखरं यत्र तच्छंखवर्चसम्।। ५१.१९ ।।

कैलासो यक्षराजस्य कुबेरस्य महात्मनः।।
निवालः कोटियक्षाणां तथान्येषां महात्मनाम्।। ५१.२೦ ।।

तत्रापि देवदेवस्य भवस्यायतनं महत्।।
तस्मिन्नायतने सोमः सदास्ते सगणो हरः।। ५१.२१ ।।

यत्र मंदाकिनी नाम नलिनी विपुलोदका।।
सवर्णमणिसोपाना कुबेरशिखरे शुभे।। ५१.२२ ।।

जांबूनदमयैः पद्मैर्गंधस्पर्शगुणान्वितैः।।
नीलवैडूर्यपत्रैश्च गंधोपेतैर्महोत्पलैः।। ५१.२३ ।।

तथा कुमुदषण्डैश्च महापद्मैरलंकृता।।
यक्षगंधर्वनारीभिरप्सरोभिश्च सेविता।। ५१.२४ ।।

देवदानवगंधर्वैर्यक्षराक्षसकिन्नरैः।।
उपस्पृष्टजला पुण्या नदी मंदाकिनी शुभा।। ५१.२५ ।।

तस्याश्चोत्तरपार्श्वे तु भवस्यायतनं शुभम्।।
वैडूर्यमणिसंपन्नं तत्रास्ते शंकरोऽव्ययः।। ५१.२६ ।।

द्विजाः कनकनंदायास्तीरे वै प्राचिदक्षिणे।।
वनं द्विजसहस्राढ्यं मृगपक्षिसमाकुलम्।। ५१.२७ ।।

तत्रापि सगणः सांबः क्रीडतोद्रिसमे गृहे।।
नंदायाः पश्चिमे तीरे किंचिद्वै दक्षिणाश्रिते।। ५१.२८ ।।

पुरं रुद्रपुरी नाम नानाप्रासादसंकुलम्।।
तत्रापि शतधा कृत्वा ह्यात्मानं चांबया सह।। ५१.२९ ।।

क्रीडते सगणः सांबस्तच्छिवालयमुच्यते।।
एवं शतसहस्राणि शर्वस्यायतनानि तु।। ५१.३೦ ।।

प्रतिद्वीपे मुनिश्रेष्ठः पर्वतेषु वनेषु च।।
नदीनदतटाकानां तीरेष्वर्णवसांधिषु।। ५१.३१ ।।

इति श्रीलिंगमहापुराणे पूर्वभागे एकपञ्चशत्तमोध्यायः।। ५१ ।।