महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-009
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द्रौणिकृपकृतवर्मभिर्दुर्योधनमेत्य शोचनम्।। 1 ।। दुर्योधनम्प्रति द्रौणिना सुप्तजवधकथनम्।। 2 ।। दुर्योधनेन प्राणत्यागः।। 3 ।। द्रौण्यादीनां नगरगमनम्।। 4 ।। सञ्जयस्य व्यासानुग्रहप्राप्तदिव्यज्ञाननाशः।। 5 ।।
सञ्जय उवाच। | 10-9-1x |
ते हत्वा सर्वपाञ्चालान्द्रौपदेयांश्च सर्वशः। आगच्छन्सहितास्तत्र यत्र दुर्योधनो हतः।। | 10-9-1a 10-9-1b |
गत्वा चैनमपश्यन्त किञ्चित्प्राणं जनाधिपम्। ततो रथेभ्यः प्रस्कन्द्य परिवव्रुस्तवात्मजम्।। | 10-9-2a 10-9-2b |
तं भग्रसक्थं राजेन्द्र कृच्छ्रप्राणमचेतसम्। वमन्तं रुधिरं वक्त्रादपश्यन्वसुधातले।। | 10-9-3a 10-9-3b |
वृतं समन्ताद्बहुभिः श्वापदैर्घोरदर्शनैः। सालावृकगणैश्चैव भक्षयिष्यद्भिरन्तिकात्।। | 10-9-4a 10-9-4b |
निरायन्तं कृच्छ्रात्ताञ्श्वापदांश्च चिखादिषून्। विवेष्टमानमुरुभ्यां सुभृशं गाढवेदनम्।। | 10-9-5a 10-9-5b |
तं शयानं तथा दृष्ट्वा भूमौ सुरुधिरोक्षितम्। हतशिष्टास्त्रयो वीराः शोकार्ताः पर्यदेवयन्। अश्वत्थामा कृपश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।। | 10-9-6a 10-9-6b 10-9-6c |
तैस्त्रिभिः शोणितादिग्धौर्निः श्वसद्भिर्महारथैः। शुशुभे स वृतो राजा वेदी त्रिभिरिवाग्निभिः।। | 10-9-7a 10-9-7b |
ते तं शयानं सम्प्रेक्ष्य राजानमतथोचितम्। अविषह्येन दुःखेन ततस्ते रुरुदुस्त्रयः।। | 10-9-8a 10-9-8b |
ततस्तु रुधिरं हस्तैर्मुखान्निर्मृज्य तस्य हि। रणे राज्ञः शयानस्य कृपः सम्पर्यदेवयत्।। | 10-9-9a 10-9-9b |
कृप उवाच। | 10-9-10x |
न दैवस्यातिभारोऽस्ति यदयं रुधिरोक्षितः। एकादशचमूभर्ता शेते दुर्योधनो हतः।। | 10-9-10a 10-9-10b |
पश्य चामीकराभस्य चामीकरविभूषिताम्। गदां गदाप्रियस्येमां समीपे पतितां भुवि।। | 10-9-11a 10-9-11b |
इयमेनं गदा शूरं न जहाति रणेरणे। स्वर्गायापि व्रजन्तं हि न जहाति यशस्विनम्।। | 10-9-12a 10-9-12b |
पश्येमां सह वीरेण जाम्बूनदविभूषिताम्। शयानां शयने हर्म्ये भार्यां प्रीतिमतीमिव।। | 10-9-13a 10-9-13b |
योऽयं मूर्धाभिषिक्तानामग्रे याति परन्तपः। स हतो ग्रसते पांसून्पश्य कालसय पर्ययम्।। | 10-9-14a 10-9-14b |
येनाजौ निहता भूमौ शेरते क्षत्रियर्षभाः। स भूमौ निहतः शेते कुरुराजः परैरयम्।। | 10-9-15a 10-9-15b |
भयान्नमन्ति राजानो यस्य स्म शतसङ्घशः। स वीरशयने शेते क्रव्याद्भिः परिवारितः।। | 10-9-16a 10-9-16b |
यमुपासन्नृपाः पूर्वमर्थहेतोर्महीपतिम्। उपात्पते च तं ह्यद्य क्रव्यादा मांसगृद्धिनः।। | 10-9-17a 10-9-17b |
सञ्जय उवाच। | 10-9-18x |
तं शयानं कुरुश्रेष्ठं ततो भरतसत्तमम्। अश्वत्थामा समालिङ्ग्य करुणं पर्यदेवयत्।। | 10-9-18a 10-9-18b |
आहुस्त्वां राजशार्दूल मुख्यं सर्वधनुष्मताम्। धनाध्यक्षोपमं युद्धे शिष्यं सङ्कर्षणस्य च।। | 10-9-19a 10-9-19b |
कथं विवरमद्राक्षीद्भीमसेनस्तवानघ। बलिनं कृतिनो नित्यं सूदः पापात्मवान्नृप।। | 10-9-20a 10-9-20b |
कालो नूनं महाराज लोकेऽस्मिन्बलवत्तरः। पश्यामो निहतं त्वां च भीमसेनेन संयुगे।। | 10-9-21a 10-9-21b |
कथं त्वां सर्वधर्मज्ञं क्षुद्रः पापो वृकोदरः। निकृत्या हतवान्मन्दो नून कालो दुरत्ययः।। | 10-9-22a 10-9-22b |
द्वन्द्वयुद्धे ह्यधर्मेण समाहूयौजसा मृधे। गदया भीमसेनेन निर्भग्ने सक्थिनी तव।। | 10-9-23a 10-9-23b |
अधर्मेण हतस्याजौ मृद्यमानं पदा शिरः। य उपेक्षितवान्क्षुद्रं धिक्तमस्तु--युधिष्ठिरम्।। | 10-9-24a 10-9-24b |
युद्धेष्वपवदिष्यन्ति योधा नूनं वृकोदरम्। यावत्स्थास्यन्ति भूतानि निकृत्या ह्यसि पातितः।। | 10-9-25a 10-9-25b |
ननु रामोऽब्रवीद्राजंस्त्वां सदा यदुनन्दनः। दुर्योधनसमो नास्ति गदायामिति वीर्यवान्।। | 10-9-26a 10-9-26b |
श्लाघते त्वां हि वार्ष्णेयो राजन्संसत्सु भारत। स शिष्यो मम कौरव्यो गदायुद्ध इति प्रभो।। | 10-9-27a 10-9-27b |
यां गतिं क्षत्रियस्याहुः प्रशस्तां परमर्षयः। हतस्याभिमुखस्याजौ प्राप्तस्त्वमसि तां गतिम्।। | 10-9-28a 10-9-28b |
दुर्योधन न शोचामि त्वामहं पुरुषर्षभ। हतपुत्रौ तु शोचामि गान्धारीं पिरं च ते।। | 10-9-29a 10-9-29b |
द्वावनाथौ कृतौ वीर त्वया नाथेन वर्धितौ। भिक्षुकौ विचरिष्येते शोचन्तौ पृथिवीमिमाम्।। | 10-9-30a 10-9-30b |
घिगस्तु कृष्णं वार्ष्णेयमर्जुनं चापि दुर्मतिम्। धर्मज्ञमानिमौ यौ त्वां वध्यमानमुपेक्षताम्।। | 10-9-31a 10-9-31b |
पाण्डवाश्चापि ते सर्वे किं वक्ष्यन्ति नराधिप। कथं दुर्योधनोऽस्माभिर्हत इत्यनपत्रपाः।। | 10-9-32a 10-9-32b |
धन्यस्त्वमसि गान्धारे यस्वमायोधने हतः। प्रयातोऽभिमुखः शत्रून्धर्मेण पुरुषर्षभ।। | 10-9-33a 10-9-33b |
हतपुत्रा हि गान्धारी निहतज्ञातिबान्धवा। प्रज्ञाचक्षुश्च दुर्धर्षः कां दशां प्रतिपत्स्यते।। | 10-9-34a 10-9-34b |
धिगस्तु कृतवर्माणं मां कृपं च महारथम्। ये वयं न गताः स्वर्गं त्वां पुरस्कृत्य पार्थिवम्।। | 10-9-35a 10-9-35b |
दातारं सर्वकामानां रक्षितारं प्रजाहितम्। यद्वयं नानुगच्छाम त्वां धिगस्मान्नराधमान्।। | 10-9-36a 10-9-36b |
कृपस्य तव वीर्येण मम चैव पितुश्च मे। सभृत्यानां नरव्याघ्र रत्नवन्ति गृहाणि च।। | 10-9-37a 10-9-37b |
तव प्रसादादस्माभिः समित्रैः सह बान्धवैः। अवाप्ताः क्रतवो मुख्या बहवो भूरिदक्षिणाः।। | 10-9-38a 10-9-38b |
कुतश्चापीदृशं पापाः प्रवर्तिष्यामहे वयम्। यादृशेन पुरस्कृत्य त्वं गतः सर्वपार्थिवान्।। | 10-9-39a 10-9-39b |
वयमेव त्रयो राजन्गच्छन्तं परमां गतिम्। यद्वै त्वां नानुगच्छाभस्तेन तप्स्यामहे वयम्। | 10-9-40a 10-9-40b |
तत्स्वर्गहीना हीनार्थाः स्मरन्तः सुकृतस्य ते। किं नाम तद्भवेत्कर्म येन त्वां न व्रजाम वै।। | 10-9-41a 10-9-41b |
दुःखं नून कुरुश्रेष्ठ चरिष्याम महीमिमाम्। हीनानां नस्त्वया राजन्कुतः शान्तिः कुतः सुखं।। | 10-9-42a 10-9-42b |
गत्वैव तु महाराज समेत्य च महारथान्। यथाज्येष्ठं यथाश्रेष्ठं पूजयेर्वचनान्मम।। | 10-9-43a 10-9-43b |
आचार्यं पूजयित्वा च केतुं सर्वधनुष्मताम्। हतं मयाऽद्य शंशेथा दृष्टद्युम्नं नराधिप।। | 10-9-44a 10-9-44b |
परिष्वजेथा राजानं बाह्लिकं सुमहारथम्। सैन्धवं सोमदत्तं च भूरिश्रवसमेव च।। | 10-9-45a 10-9-45b |
तथा पूर्वगतानन्यान्स्वर्गे पार्थिवसत्मान्। अस्मद्वाक्यात्परिष्वज्य सम्पृच्छेस्वमनामयम्।। | 10-9-46a 10-9-46b |
सञ्जय उवाच। | 10-9-47x |
इत्येवमुक्वा राजानं भग्नसक्थमचेतसम्। अश्वत्थामा लघुप्राणं पुनर्वचनमब्रवीत्।। | 10-9-47a 10-9-47b |
दुर्योधन जीवसि चेद्वाक्यं श्रोत्रमुखं शृणु। सप् पाण्डवतः शिष्टा धार्तराष्ट्रास्त्रयो वयम्।। | 10-9-48a 10-9-48b |
ते चैव भ्रातरः पञ्च वासुदेवोऽथ सात्यकिः। अहं च कृतवर्मा च कृपः शारद्वतस्तथा।। | 10-9-49a 10-9-49b |
द्रौपदेया हताः सर्वे धृष्टद्युम्नस्य चात्मजाः। पञ्चाला निहताः सर्वे मत्स्यशेषं च भारत।। | 10-9-50a 10-9-50b |
कृते प्रतिकृतं पश्य हतपुत्रा हि पाण्डवाः। सौप्तिके शिबिरं तेषां हतं सनरवाहनम्।। | 10-9-51a 10-9-51b |
मया च पापकर्माऽसौ धृष्टद्युम्नो महीपते। प्रविश्य शिबिरं रात्रौ पशुमारेण मारितः।। | 10-9-52a 10-9-52b |
दुर्योधनस्तु तां वाचं निशम्य मनसः प्रियाम्। प्रतिलभ्य पुनश्चेत इदं वचनमब्रवीत्।। | 10-9-53a 10-9-53b |
न मेऽकरोत्द्गाङ्गेयो न कर्णो न च ते पिता। यत्त्वया कृपभोजाभ्यां सहितेनाद्य मे कृतम्।। | 10-9-54a 10-9-54b |
स च सेनापतिः क्षुद्रो हतः सार्धं शिखण्डिना। तेन मन्ये मघवता सममात्मानमद्य वै।। | 10-9-55a 10-9-55b |
स्वस्ति प्राप्नुत भद्रं वः स्वर्गे नः सङ्गमः पुनः। इत्येवमुक्त्वा पुत्रस्ते कुरुराजो महामनाः।। | 10-9-56a 10-9-56b |
प्राणानुपासृजद्वीरः सुहृदां दुःखमादधत्। अपाक्रामद्दिवं पुण्यां शरीरं क्षितिमाविशत्।। | 10-9-57a 10-9-57b |
एवं ते निधनं यातः पुत्रो दुर्योधनो नृप। अग्रे यात्वा रणे शूरः पश्राद्विनिहतः परैः।। | 10-9-58a 10-9-58b |
तथैव ते परिष्वक्ताः परिष्वज्य च ते नृपम्। पुनः पुनः प्रेक्षमाणाः स्वकानारुरुहू रथान्।। | 10-9-59a 10-9-59b |
इत्येवं द्रोणपुत्रस्य निशम्य करुणां गिरम्। प्रत्यूषकाले शोकार्ताः प्राद्रवन्नगरं प्रति।। | 10-9-60a 10-9-60b |
एवमेष क्षयो वृत्तः कुरुपाण्डवसेनयोः। घोरो विशसनो रौद्रो राजन्दुर्मन्त्रिते तव।। | 10-9-61a 10-9-61b |
तव पुत्रे गते स्वर्गं शोकार्स्य ममानघ। ऋषिदत्तं प्रनष्टं तद्दिव्यदर्शित्वमद्य वै।। | 10-9-62a 10-9-62b |
वैशम्पायन उवाच। | 10-9-63x |
इति श्रुत्वा स नृपतिर्ज्ञातिपुत्रवधं तदा। निःश्वस्य दीर्घमुष्णं च ततश्चिन्तापरोऽभवत्।। | 10-9-63a 10-9-63b |
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9 ।। |
10-9-17 उपासत द्विजाः पूर्वमर्थहेतोर्यमीश्वरमिति झ.पाठः।। 10-9-23 धर्मयुद्धे ह्यधर्मेणेति झ.पाठः।। 10-9-9 नवमोऽध्यायः।।
सौप्तिकपर्व-008 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सौप्तिकपर्व-010 |