महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-014
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अर्जुनेन कृष्णाज्ञया द्रौण्यस्त्रप्रत्यस्त्रप्रयोगः।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 10-14-1x |
इङ्गितेनैव दाशार्हस्तस्याभिप्रायमादितः। द्रौणेर्बुद्धा महाबाहुरर्जुनं प्रत्यभाषत।। | 10-14-1a 10-14-1b |
अर्जुनार्जुन यद्दिव्यमस्त्रं ते हृदि वर्तते। द्रोणोपदिष्टं तस्यायं कालः सम्प्रति पाण्डव।। | 10-14-2a 10-14-2b |
भ्रातॄणामात्मनश्चैव परित्राणाय भारत। विसृजैतत्त्वमप्याजावस्त्रमस्त्रनिवारणम्।। | 10-14-3a 10-14-3b |
केशवेनैवमुक्तोऽथ पाण्डवः परवीरहा। अवातरद्रथात्तूर्णं प्रगृह्य सशरं धनुः।। | 10-14-4a 10-14-4b |
पूर्वमाचार्यपुत्राय ततोऽनन्तरमात्मने। भ्रातृभ्यश्चैव सर्वेभ्यः स्वस्तीत्युक्त्वा परन्तपः।। | 10-14-5a 10-14-5b |
देवताभ्यो नमस्कृत्य गुरुभ्यश्चैव सर्वशः। उत्ससर्ज शिवं ध्यायन्नस्त्रमस्त्रेण शाम्यताम्।। | 10-14-6a 10-14-6b |
ततस्तदस्रं सहसा सृष्टं गाण्डीवधन्वना। प्रजज्वाल महार्चिष्मद्युगान्तानलसन्निभम्।। | 10-14-7a 10-14-7b |
तथैव द्रोणपुत्रस्य तदस्त्रं तिग्मतेजसः। प्रजज्वाल महाज्वालं तेजोमण्डलसंवृतम्।। | 10-14-8a 10-14-8b |
निर्घाता बहवश्चासन्पेतुरुल्काः सहस्रशः। महद्भयं च भूतानां सर्वेषां समजायत।। | 10-14-9a 10-14-9b |
सशब्दमभवद्व्योम ज्वालामालाकुलं भृशम्। चचाल च मही कृत्स्ना सपर्वतवनद्रुमा।। | 10-14-10a 10-14-10b |
तावस्त्रतेजसा लोकांस्त्रासयन्तौ ततः स्थितौ। महर्षी सहितौ तत्र दर्शयामासतुस्तदा।। | 10-14-11a 10-14-11b |
नारदः सर्वधर्मात्मा भरतानां पितामहः। उभौ शमयितुं वीरौ भारद्वाजधनञ्जयौ।। | 10-14-12a 10-14-12b |
तौ मुनी सर्वधर्मज्ञौ सर्वभूतहितैपिणौ। दीप्तयोरस्रयोर्मध्ये स्थितौ परमतेजसौ।। | 10-14-13a 10-14-13b |
तदन्तरमनाधृष्यावुपगम्य यशस्विनौ। आस्तामृषिवरौ तत्र ज्वलिताविव पावकौ।। | 10-14-14a 10-14-14b |
प्राणभृद्भिरनाधृष्यौ देवदानवसम्मतौ। अस्त्रतेजः शमयितुं लोकानां हितकाम्यया।। | 10-14-15a 10-14-15b |
ऋषी ऊचतुः। | 10-14-16x |
महास्त्रविदुषः पूर्वे येऽप्यतीता महारथाः। नैतदस्रं मनुष्येषु तैः प्रयुक्तं कथञ्चन। किमिदं साहसं वीरौ कृतवन्तौ महात्ययम्।। | 10-14-16a 10-14-16b 10-14-16c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि ऐषीकपर्वमि चतुर्दशोऽध्यायः।। 14 ।। |
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