महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-002
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विदुरेण शास्त्रार्थकथनेन धृतराष्ट्रस्य शोकापनोदनम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 11-2-1x |
ततोऽमृतरसैर्वाक्यैर्ह्लादयन्पुरुषर्षभम्। वैचित्रवीर्यं विदुरो यदुवाच निबोध तत्।। | 11-2-1a 11-2-1b |
विदुर उवाच। | 11-2-2x |
उत्तिष्ठ राजन्किं शेषे धारयात्मानमात्मना। एषा वै सर्वसत्वानां लोकेश्वर परा गतिः।। | 11-2-2a 11-2-2b |
सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः। संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्।। | 11-2-3a 11-2-3b |
यदा शूरं च भीरुं च यमः कर्षति भारत। तत्किं न योत्स्यन्ति हि ते क्षत्रियाः क्षत्रियर्षभ।। | 11-2-4a 11-2-4b |
अयुध्यमानो म्रियते युध्यमानश्च जीवति। कालं प्राप्य महाराज न कश्चिदतिवर्तते।। | 11-2-5a 11-2-5b |
अभावादीनि भूतानि भावमध्यानि भारत। अभावनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।। | 11-2-6a 11-2-6b |
न शोचन्मृतमन्वेति न शोचन्म्रियते नरः। एवं सांसिद्धिके लोके किमर्थमनुशोचसि।। | 11-2-7a 11-2-7b |
कालः कर्षति भूतानि सर्वाणि विविधान्युत। न कालस्य प्रियः कश्चिन्न द्वेष्यः कुरुसत्तम।। | 11-2-8a 11-2-8b |
यथा वायुस्तृणाग्राणि संवर्तयति सर्वशः। तथा कालवशं यान्ति भूतानि भरतर्षभ।। | 11-2-9a 11-2-9b |
एकसार्थप्रयातानां सर्वेषां तत्र गामिनाम्। यस्य कालः स यात्यग्रे तत्र का परिदेवना।। | 11-2-10a 11-2-10b |
न चाप्येतान्हतान्युद्धे राजञ्शोचितुमर्हसि। प्रमाणं यदि शास्त्राणि गतास्ते परमां गतिम्।। | 11-2-11a 11-2-11b |
सर्वे स्वाध्यायवन्तो हि सर्वे च चरितव्रताः। सर्वे चाभिमुखाः क्षीणास्तत्र का परिदेवना।। | 11-2-12a 11-2-12b |
अदर्शनादापतिताः पुनश्चादर्शनं गताः। नैते तव न तेषां त्वं तत्र का परिदेवना।। | 11-2-13a 11-2-13b |
हतो हि लभते स्वर्गं जित्वा च लभते यशः। उभयं नो बहुगुणं नास्ति निष्फलता रणे।। | 11-2-14a 11-2-14b |
तेषां कामदुघाँल्लोकानिन्द्रः सङ्कल्पयिष्यति। इन्द्रस्यातिथयो ह्येते भवन्ति भरतर्षभ।। | 11-2-15a 11-2-15b |
न यज्ञैर्दक्षिणावद्भिर्न तपोभिर्न विद्यया। स्वर्गं यान्ति तथा मर्त्या यथा शूरा रणे हताः।। | 11-2-16a 11-2-16b |
शरीराग्निषु शूराणां जुहुवुस्ते शराहुतीः। हूयमानाञ्शरांश्चैव सेहुस्तेजस्विनो मिथः।। | 11-2-17a 11-2-17b |
एवं राजंस्तवाचक्षे स्वर्ग्यं पन्थानमुत्तमम्। न युद्धादधिकं किञ्चित्क्षत्रियस्येह विद्यते।। | 11-2-18a 11-2-18b |
क्षत्रियास्ते महात्मानः शूराः समितिशोभनाः। आशिषः परमाः प्राप्ता न शोच्याः सर्व एव हि।। | 11-2-19a 11-2-19b |
आत्मानमात्मनाऽऽश्वास्य मा शुचः पुरुषर्षभ। नाद्य शोकाभिभूतस्त्वं कायमुत्स्रष्टुमर्हसि।। | 11-2-20a 11-2-20b |
मातापितृसहस्राणि पुत्रदारशतानि च। संसारेष्वनुभूतानि कस्य ते कस्य वा वयम्।। | 11-2-21a 11-2-21b |
शोकस्थानसहसाणि भयस्थानशतानि च। दिवसेदिवसे मूढमाविशन्ति न पण्डितम्।। | 11-2-22a 11-2-22b |
न कालस्य प्रियः कश्चिन्न द्वेष्यः कुरुसत्तम। न मध्यस्थः क्वचित्कालः सर्वं कालः प्रकर्षति।। | 11-2-23a 11-2-23b |
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः। कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।। | 11-2-24a 11-2-24b |
अनित्यं यौवनं रूपं जीवितं द्रव्यसञ्चयः। आरोग्यं प्रियसंवासो गृद्ध्येदेषु न पण्डितः।। | 11-2-25a 11-2-25b |
न जानपदिकं दुःखमेकः शोचितुमर्हसि। अप्यभावेन युज्येत तच्चास्य न निवर्तते।। | 11-2-26a 11-2-26b |
अशोचन्प्रतिकुर्वीत यदि पश्येत्पराक्रमम्। भैषज्यमेतद्दुःखस्य यदेतन्नानुचिन्तयेत्।। | 11-2-27a 11-2-27b |
चिन्त्यमानं हि न व्येति भूयश्चापि प्रवर्धते।। अनिष्टसम्प्रयोगाच्च विप्रयोगात्प्रियस्य च। | 11-2-28a 11-2-28b |
मानुषा मानसैर्दुःखैर्युज्यन्ते येऽल्पबुद्धयः।। नार्थो न धर्मो न सुखं यदेतदनुशोचति। | 11-2-29a 11-2-29b |
तच्च नाप्नोति कार्यार्थं त्रिवर्गाच्चैव भ्रश्यते।। अन्योन्यबाधनावस्थां प्राप्य वैषयिकीं नराः। | 11-2-30a 11-2-30b |
असन्तुष्टाः प्रमुह्यन्ति सन्तोषं यान्ति पण्डिताः।। प्रज्ञया मानसं दुःखं हन्याच्छारीरमौषधैः। | 11-2-31a 11-2-31b |
एतद्विज्ञानसामर्थ्यं न बालैः समतामियात्।। शयानं चानुशेते हि तिष्ठन्तं चानुतिष्ठति। | 11-2-32a 11-2-32b |
अनुधावति धावन्तं कर्म पूर्वकृतं नरम्।। यस्यांयस्यामवस्थायां यत्करोति शुभाशुभम्। | 11-2-33a 11-2-33b |
तस्यांतस्यामवस्थायां तत्तत्फलमवाप्नुते।। [येनयेन शरीरेण यद्यत्कर्म करोति यः। | 11-2-34a 11-2-34b |
तेनतेन शरीरेण तत्फलं समुपाश्नुते।। आत्मैव ह्यात्मनः साक्षी कृतस्यापकृतस्य च।। | 11-2-35a 11-2-35b |
शुभेन कर्मणा सौख्यं दुःखं पापेन कर्मणा। कृतं भवति सर्वत्र नाकृतं विद्यते क्वचित्।। | 11-2-36a 11-2-36b |
न हि ज्ञानविरुद्धेषु बह्वपायेषु कर्मसु। मूलघातिषु सज्जन्ते बुद्धिमन्तो भवद्विघाः।।] | 11-2-37a 11-2-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः।। 2 ।। |
11-2-2 एषा मरणान्ता। अत उत्तिष्ठ शोकं त्यज।। 11-2-6 अभावादीनि दुःखानि दुःखमध्यानि भारतेति छ.पाठः।। 11-2-8 सांसिद्धिके स्वभावसिद्धे।। 11-2-9 संवर्तयति स्ववशं नयति।। 11-2-10 तत्र गामिनां परत्र गमनशीलानां यस्य काल उपस्थितः सोऽग्रे प्रयाति।। 11-2-13 अदर्शनादज्ञानात्।। 11-2-14 नोऽस्माकं क्षत्रियाणाम्।। 11-2-18 आचक्षे कथयामि।। 11-2-26 अतपदिकं सर्वसाधारणम्। अभावेन मरणेन। तच्च दुःखं च।। 11-2-30 नच नापैति कार्यार्थात्त्रिवर्गाच्चैव हीयते इति झ.पाठः। तत्र कार्यार्थान्नापैतीतिनापित्वपैत्येवेत्यर्थः।। 11-2-31 अन्यामन्यां पनावस्थां प्राप्य वैशेषिकीं नराः। इति झ.पाठः।। 11-2-34 अवस्थायां यौवनादिरूपायाम्।। 11-2-35 येनेति। स्थूलेन देहेन कृते तत्तेनैव भुज्यते। मनःकृत्तं चेत्तेनैव भुज्यते स्वप्नादौ।। 11-2-2 द्वितीयोऽध्यायः।।
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