महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-023
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कृष्णप्रति गान्धार्या भीष्मद्रोणादिगुणानुवर्णनपूर्वकं तत्तच्छरीराणां विलपन्तीनां त्तत्स्त्रीणां च प्रदर्शनम्।। 1 ।।
गान्धार्युवाच। | 11-23-1x |
एष शल्यो हतः शेते साक्षान्नकुलमातुलः। धर्मज्ञेन हतस्तात धर्मराजेन संयुगे।। | 11-23-1a 11-23-1b |
यस्त्वया स्पर्धते नित्यं सर्वत्र पुरुषर्षभ। स एष निहतः शेते मद्रराजो महाबलः।। | 11-23-2a 11-23-2b |
`जयद्रथे यदि ब्रूयुरुपरोधं कथञ्चन। मद्रपुत्रे कथं ब्रूयुरुपरोधं विवक्षवः।।' | 11-23-3a 11-23-3b |
येन सङ्गृह्णता तात रथमाधिरथेर्युधि। जयार्थं पाण्डुपुत्राणां तदा तेजोवधः कृतः।। | 11-23-4a 11-23-4b |
अहो धिक्फश्य शल्यस्य पूर्णचन्द्रसुदर्शनम्। मुखं प्द्मपलाशाक्षं काकैरादष्टमव्रणम्।। | 11-23-5a 11-23-5b |
एषा चामीकराभस्य तप्तकाञ्चनसप्रभा। आस्याद्विनिः सृता जिह्वा भक्ष्यते कृष्ण पक्षिभिः।। | 11-23-6a 11-23-6b |
युधिष्ठिरेण निहतं शल्यं समितिशोभनम्। रुदन्त्यः पर्युपासन्ते मद्रराजं कुलाङ्गनाः।। | 11-23-7a 11-23-7b |
एताः सुसूक्ष्मवसना मद्रराजं नरर्षभम्। क्रोशन्त्योऽथ समासाद्य क्षत्रियाः क्षत्रियर्षभम्।। | 11-23-8a 11-23-8b |
शल्यं निपतितं नार्यः परिवार्याभितः स्थिताः। वासिता गृष्टयः पङ्के परिमग्नमिवर्षभम्।। | 11-23-9a 11-23-9b |
शल्यं शरणदं शूरं पश्येमं वृष्णिनन्दन। शयानं वीरशयने शरैर्विशकलीकृतम्।। | 11-23-10a 11-23-10b |
एष शैलालयो राजा भगदत्तः प्रतापवान्। गजाङ्कुशधरः श्रीमाञ्शेते भुवि निपातितः।। | 11-23-11a 11-23-11b |
यस्य रुक्ममयी माला शिरस्येषा विराजते। श्वापदैर्भक्ष्यमाणस्य शोभयन्तीव मूर्धजान्।। | 11-23-12a 11-23-12b |
एतेन किल पार्थस्य युद्धमासीत्सुदारुणम्। रोमहर्षणमत्युग्रं शक्रस्य त्वहिना यथा।। | 11-23-13a 11-23-13b |
योधयित्वा माहाबाहुरेष पार्थं धनञ्जयम्। संशयं गमयित्वा च कुन्तीपुत्रेण पातितः।। | 11-23-14a 11-23-14b |
यस्य नास्ति समो लोके शौर्ये वीर्ये च कश्चन्। स एष निहतः शेते भीष्मो भीष्मकृदाहवे।। | 11-23-15a 11-23-15b |
पश्य शान्तनवं कृष्ण शयानं सूर्यवर्चसम्। युगान्त इव कालेन पातितं सूर्यमम्बरात्।। | 11-23-16a 11-23-16b |
एष तप्त्वा रणे शत्रूञ्शस्त्रतापेन वीर्यवान्। नरसूर्योऽस्तमभ्येति सूर्योऽस्तमिव केशव।। | 11-23-17a 11-23-17b |
शरतल्पगतं भीष्ममूर्ध्वरेतसमच्युतम्। शयानं वीरशयने पश्य शूरनिषेविते।। | 11-23-18a 11-23-18b |
कर्णिनालीकनाराचैरास्तीर्य शयनोत्तमम्। आविश्य शेते भगवान्स्कन्दः शरवणं यथा।। | 11-23-19a 11-23-19b |
अतूलपूर्णं गाङ्गेयस्त्रिभिर्बाणैः समन्वितम्। उपधायोपधानाग्र्यं दत्तं गाण्डीवधन्वना।। | 11-23-20a 11-23-20b |
पालयानः पितुः शास्त्रमूर्ध्वरेता महायशाः। एष शान्तनवः शेते माधवाप्रतिमो युधि।। | 11-23-21a 11-23-21b |
धर्मात्मा तात सर्वज्ञः पारावर्येण निर्णये। अमर्त्य इव मर्त्यः सन्नेष प्राणानधारयत्।। | 11-23-22a 11-23-22b |
नास्ति युद्धे कृती कश्चिन्न विद्वान्न पराक्रमी। यत्र शान्तनवो भीष्मः शेतेऽद्य निहतः परैः।। | 11-23-23a 11-23-23b |
स्वयमेतेन शूरेण पृच्छयमानेन पाण्डवैः। धर्मज्ञेनाहवे मृत्युरादिष्टः सत्यवादिना।। | 11-23-24a 11-23-24b |
प्रनष्टः कुरुवंशश्च पुनर्येन समुद्वृतः। स गतः कुरुभिः सार्धं महाबुद्धिः पराभवम्।। | 11-23-25a 11-23-25b |
धर्मेण कुरवः केन परिद्रक्ष्यन्ति माधव। हते देवव्रते भीष्मे देवकल्पे नरर्षभे।। | 11-23-26a 11-23-26b |
अर्जुनस्य विनेतारमाचार्यं सात्यकेस्तथा। तं पश्य पतितं द्रोणं कुरूणां गुरुमुत्तमम्।। | 11-23-27a 11-23-27b |
अस्त्रं चतुर्विधं वेद यथैव त्रिदशेश्वरः। भार्गवो वा महावीर्यस्तथा द्रोणोऽपि माधव।। | 11-23-28a 11-23-28b |
यस्य प्रसादाद्बीभत्सुः पाण्डवः कर्म दुष्करम्। चकार स हतः शेते नैनमस्त्राण्यपालयन्।। | 11-23-29a 11-23-29b |
यं पुरोधाय कुरव आह्वयन्ति स्म पाण्डवान्। सोऽयं शस्त्रभृतां श्रेष्ठो द्रोणः शस्त्रपृथक्कृतः।। | 11-23-30a 11-23-30b |
यस्य निर्दहतः सेनां गतिरग्नरिवाभवत्। स भूमौ निहतः शेते शान्तार्चिरिव पावकः।। | 11-23-31a 11-23-31b |
धनुर्मुष्टिरशीर्णश्च हस्तावापश्च माधव। द्रोणस्य निहतस्यापि दृश्यते जीवतो यथा।। | 11-23-32a 11-23-32b |
वेदा यस्माच्च चत्वारः सर्वाण्यस्त्राणि केशव। अनपेतानि वै शूराद्यथैवादौ प्रजापतेः।। | 11-23-33a 11-23-33b |
चन्दनार्हाविमौ तस्य बन्दिभिर्वन्दितौ शुभौ। गोमायवो विकर्षन्ति पादौ शिष्यशतार्चितौ।। | 11-23-34a 11-23-34b |
द्रोणं द्रुपदपुत्रेण निहतं मधुसूदन। कृपी कृपणमन्वास्ते दुःखोपहतचेतना।। | 11-23-35a 11-23-35b |
तां पश्य रुदतीमार्तां मुक्तकेशीमधोमुखीम्। हतं पतिमुपासन्तीं द्रोणं शस्त्रभृतां वरम्।। | 11-23-36a 11-23-36b |
बाणैर्भिन्नतनुत्राणं धृष्टद्युम्नेन केशव। उपास्ते वै मृधे द्रोणं जटिला ब्रह्मचारिणी।। | 11-23-37a 11-23-37b |
प्रेतकृत्ये च यतते कृपी कृपणमातुरा। हतस्य समरे भर्तुः सुकुमारी यशस्विनी।। | 11-23-38a 11-23-38b |
अग्नीनाधाय विविधवच्चितां प्रज्वाल्य सर्वतः। द्रोणमाधाय गायन्ति त्रीणि सामानि सामगाः।। | 11-23-39a 11-23-39b |
कुर्वन्ति च चितामेते जटिला ब्रह्मचारिणः। धनुर्भिः शक्तिभिश्चैव रथनीडैश्च माधव।। | 11-23-40a 11-23-40b |
शरैश्च विविधैरन्यैर्धक्ष्यन्ते भूरितेजसम्। त एते द्रोणमादाय गायन्ति च रुदन्ति च।। | 11-23-41a 11-23-41b |
सामभिस्त्रिभिरन्तस्थैरनुशंसन्ति चापरे। अग्नावग्निं समाधाय द्रोणं हुत्वा हुताशने।। | 11-23-42a 11-23-42b |
गच्छन्त्यभिमुखा गङ्गां द्रोणशिष्या द्विजातयः। अपसव्यां चितिं कृत्वा पुरस्कृत्य कृपीं तथा।। | 11-23-43a 11-23-43b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि स्त्रीविलापपर्वणि त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।। |
11-23-9 परिमग्निमिव द्विपमिति झ.पाठः।। 11-23-13 अहिना वृत्रासुरेण।। 11-23-15 भीष्मकृत् भयङ्करकर्मकृत्।। 11-23-21 शास्त्रं आज्ञाम्।। 11-23-22 निर्णिये पारावर्येण । परावरौ परलोकेहलोकौ तद्विषयेण ज्ञानेन। तत्त्वज्ञानबलेन प्राणानधारयदित्यर्थः। पारपर्येऽथ निर्णय इति छ.पाठः। पाराशर्यस्य निर्णये इति क.ट.पाठः।। 11-23-26 धर्मेषु कुरवः कं नु परिप्रक्ष्यन्ति माधव। गते देवव्रते स्वर्गं देवकल्पे नरर्षभे इति झ.पाठः।। 11-23-34 शिष्यशरार्चिताविति क.पाठः।। 11-23-23 त्रोयविंशोऽध्यायः।।
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