महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-015
← स्त्रीपर्व-014 | महाभारतम् स्त्रीपर्व महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-015 वेदव्यासः |
स्त्रीपर्व-016 → |
युधिष्ठिरादिभिर्गान्धारीकुन्त्योरभिवादनम्।। 1 ।। सकुन्त्या गान्धार्या द्रौपदीसमाश्वासनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 11-15-1x |
तमेवमुक्त्वा गान्धारी युधिष्ठिरमपृच्छत। क्व स राजेति सक्रोधा पुत्रपौत्रवधार्दिता।। | 11-15-1a 11-15-1b |
तामभ्यगच्छत्कौन्तेयो वेपमानः कृताञ्जलिः। युधिष्ठिरस्तु गान्धारीं मधुरं वाक्यमब्रवीत्।। | 11-15-2a 11-15-2b |
पुत्रहन्ता नृशंसोऽहं तव देवि युधिष्ठिरः। शापार्हः पृथिवीनाशे हेतुभूतः शपस्व माम्।। | 11-15-3a 11-15-3b |
नहि मे जीवितेनार्थो न राज्येन सुखेन वा। तादृशान्सुहृदो हत्वा प्रमूढस्य सुहृद्द्रुहः।। | 11-15-4a 11-15-4b |
तमेवंवादिनं भीतं सन्निकर्षागतं तदा। नोवाच किञ्चिद्गान्धारी निःश्वासपरमा नृप।। | 11-15-5a 11-15-5b |
तस्मावनतदेहस्य पादयोर्निपतिष्यतः। युधिष्ठिरस्य नृपतेर्धर्मज्ञा दीर्घदर्शिनी।। | 11-15-6a 11-15-6b |
अङ्गुल्यग्राणि ददृशे देवी पट्टान्तरेण सा। ततः स कुनखीभूतो दर्शनीयनखो नृपः।। | 11-15-7a 11-15-7b |
तं दृष्ट्वा चार्जुनोऽगच्छद्वासुदेवस्य पृष्ठतः।। | 11-15-8a |
एवं सञ्चेष्टमानांस्तानितश्चेतश्च भारत। गान्धारी विगतक्रोधा सांत्वयामास मातृवत्।। | 11-15-9a 11-15-9b |
ते पाण्डवा अनुज्ञाता मातरं वीतमत्सराः। अभ्यगच्छन्त सहिताः पृथां पृथुवलक्षसः।। | 11-15-10a 11-15-10b |
चिरस्य दृष्ट्वा पुत्रान्सा पुत्राधिभिरभिप्लुता। बाष्पमाहारयद्देवी वस्त्रेणावृत्य वै मुखम्।। | 11-15-11a 11-15-11b |
ततो बाष्पं समुत्सृज्य सह पुत्रैस्तदा पृथा। अपश्यदेनाञ्शस्त्रौघैर्बहुधा परिविक्षतान्।। | 11-15-12a 11-15-12b |
सा तानेकैकशः पुत्रान्संस्पृशन्ती पुनःपुनः। अन्वशोचत दुःखार्ता द्रौपदीं निहतात्मजाम्। रुदन्तीमथ पाञ्चालीं ददर्श पतितां भुवि।। | 11-15-13a 11-15-13b 11-15-13c |
द्रौपद्युवाच। | 11-15-14x |
आर्ये पौत्रास्तु ते सर्वे सौभद्रसहिता गताः। न त्वां तेऽद्याभिगच्छन्ति चिरं दृष्ट्वा अनिन्दिते। किन्नु राज्येन मे कार्यं विहीनायाः सुतैर्वरैः।। | 11-15-14a 11-15-14b 11-15-14c |
तां समाश्वासयामास पृथा पृथललोचना। उत्थाप्याङ्केन सुदतीं रुदतीं शोककर्शिताम्।। | 11-15-15a 11-15-15b |
तयैव सहिता चापि पुत्रैरनुगता पृथा। अभ्यगच्छत गान्धारीमार्तामार्ततरा स्वयम्।। | 11-15-16a 11-15-16b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-15-17x |
तामुवाचाथ गान्धारी सह कुन्त्या यशस्विनीम्। मैवं पुत्रीति शोकार्ता पश्य मामपि दुःखितां।। | 11-15-17a 11-15-17b |
मन्ये लोकविनाशोऽयं कालपर्यायनोदितः। अवश्यभावी सम्प्राप्तः स्वभावाद्रोमहर्षणः।। | 11-15-18a 11-15-18b |
इदं तत्समनुप्राप्तं विदुरस्य वचो महत्। असिद्धानुनये कृष्णे यदुवाच महामतिः।। | 11-15-19a 11-15-19b |
तस्मिन्नपरिहार्येऽर्थे व्यतीते च विशेषतः। मा शुचो न हि शोच्यास्ते सङ्ग्रामे निधनं गताः।। | 11-15-20a 11-15-20b |
यथैवाहं तथैव त्वं को वामाश्वासयिष्यति। ममैव ह्यपराधेन कुलमग्र्यं विनाशितम्।। | 11-15-21a 11-15-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि पञ्चदशोऽध्यायः।। 15 ।। |
11-15-7 कुनखीभूतो हस्तदेश इति शेषः।। 11-15-14 आर्ये पौत्रा हताः सर्वे इति क.छ.पाठः।। 11-15-21 वां आवाम्।। 11-15-15 पञ्चदशोऽध्यायः।।
स्त्रीपर्व-014 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्त्रीपर्व-016 |