महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-020
← स्त्रीपर्व-019 | महाभारतम् स्त्रीपर्व महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-020 वेदव्यासः |
स्त्रीपर्व-021 → |
कृष्णंप्रति गान्धार्या रुदन्तीनां स्त्रीणां प्रदर्शनम्।। 1 ।।
गान्धार्युवाच। | 11-20-1x |
अध्यर्धगुणमाहुर्यं बले शौर्ये च केशव। पित्रा त्वया च दाशार्ह दृप्तं सिंहमिवोत्कटम्।। | 11-20-1a 11-20-1b |
यो बिभेद चमूमेको मम पुत्रस्य दुर्भिदाम्। स भूत्वा मृत्युरन्येषां स्वयं मृत्युवशं गतः।। | 11-20-2a 11-20-2b |
तस्योपलक्षये कृष्ण कार्ष्णेरमिततेजसः। अभिमन्योर्हतस्यापि प्रभा नैवोपशाम्यति।। | 11-20-3a 11-20-3b |
एषा विराटदुहिता स्नुषा गाण्डीवधन्वनः। हतं बाला पतिं वीरं दृष्ट्वा शोचत्यनिन्दिता।। | 11-20-4a 11-20-4b |
तमेषा हि समागम्य भार्या भर्तारमन्तिके। विराटदुहिता कृष्ण पाणिना परिमार्जति।। | 11-20-5a 11-20-5b |
तस्य वक्त्रमुपाघ्राय सौभद्रस्य मनस्विनी। विबुद्धकमलाकारं कम्बुवृत्तशिरोधरम्।। | 11-20-6a 11-20-6b |
कामरूपवती चैषा परिष्वजति भामिनी। लज्जमाना पुरा चैनं माध्वीकमदमूर्च्छिता।। | 11-20-7a 11-20-7b |
तस्य क्षतजसन्दिग्धं जातरूपपरिष्कृतम्। विमुच्य कवचं कृष्ण शीरमभिवीक्षते।। | 11-20-8a 11-20-8b |
अवेक्षमाणा तं बाला कुष्ण त्वामभिभाषते। अयं ते पुण्डरीकाक्ष कसदृशाक्षो निपातितः।। | 11-20-9a 11-20-9b |
बले वीर्ये च सदृशस्तेजसा चैव तेऽनघ। रूपेण च तथाऽत्यर्थं शेते भुवि निपातितः।। | 11-20-10a 11-20-10b |
अत्यन्तं सुकुमारस्य राङ्कवाजिनशायिनः। कच्चिदद्य शरीरं ते भूमौ न परितप्यते।। | 11-20-11a 11-20-11b |
मातङ्गभुजवर्ष्णाणौ ज्याक्षेपकठिनत्वचौ। काञ्चनाङ्गदिनौ शेते निक्षिप्य विपुलौ भुजौ। व्यायम्य बहुधा नूनं सुखसुप्तः श्रमादिव।। | 11-20-12a 11-20-12b 11-20-12c |
एवं विलपतीमार्तां किं मां न प्रतिभाषसे। न स्मराम्यपराधं ते किं मां न प्रतिभाषसे।। | 11-20-13a 11-20-13b |
ननु मां त्वं पुरा दूरादभिवीक्ष्याभिभाषसे। न स्मराम्यपराधं मे किं मां न प्रतिभाषसे।। | 11-20-14a 11-20-14b |
आर्यामार्य सुभद्रां तवमिमां श्च त्रिदशोपमान्। पितॄन्मां चैव दुःखार्तां विहाय क्व गमिष्यसि।। | 11-20-15a 11-20-15b |
तस्य शोणितदिग्धान्वै केशानुन्नम्य पाणिना। उत्सङ्गे वक्तमाधाय जीवन्तमिव पृच्छति।। | 11-20-16a 11-20-16b |
स्वस्रीयं वासुदेवस्य पुत्रं गाण्डीवधन्वनः। कथं त्वां रणमध्यस्थं जघ्रुरेते महारथाः।। | 11-20-17a 11-20-17b |
धिगस्तु क्रूरकर्तॄंस्तान्कृपकर्णजयद्रथान्। द्रोणद्रौणायतनी चोभौ यैरहं विधवा कृता।। | 11-20-18a 11-20-18b |
रथर्षभाणां सर्वेषां कथमासीत्तदा मनः। बालं त्वां पिरवार्यैकमनेकेषां च जघ्नताम्।। | 11-20-19a 11-20-19b |
कथं नु पाण्डवानां च पाञ्चालानां तु पश्यताम्। त्वं वीर निधनं प्राप्तो नाथवान्सन्ननाथवत्।। | 11-20-20a 11-20-20b |
दृष्ट्वा बहुभिराक्रन्दे निहतं त्वां पिता तव। वीरः पुरुषशार्दूलः कथं जीवति पाण्डवः।। | 11-20-21a 11-20-21b |
न राज्यलाभो विपुलः शत्रूणां च पराभवः। प्रीतिं धास्यति पार्थानां त्वामृते पुष्करेक्षण।। | 11-20-22a 11-20-22b |
तव शस्त्रजिताँल्लोकान्धर्मेण च दमेन च। क्षिप्रमन्वागमिष्यामि तत्र मां प्रतिपालय।। | 11-20-23a 11-20-23b |
दुर्मरं पुनरप्राप्ते काले भवति केनचित्। यदहं त्वां रणे दृष्ट्वा हतं जीवामि दुर्भगा।। | 11-20-24a 11-20-24b |
कामिदानीं नरव्याघ्र श्लक्ष्णया स्मितया गिरा। पितृलोके समेत्यान्यां मामिवामन्त्रयिष्यसि।। | 11-20-25a 11-20-25b |
नूनमप्सरसां स्वर्गे मनांसि प्रमथिष्यसि। परमेण च रूपेण गिरा च स्मितपूर्वया।। | 11-20-26a 11-20-26b |
प्राप्य पुण्यकृताँल्लोकानप्सरोभिः समेयिवान्। सौभद्र विहन्काले स्मरेथाः सुकृतानि मे।। | 11-20-27a 11-20-27b |
एतावानिह संवासो विहितस्ते मया सह। षण्मासान्सप्तमे मासि त्वं वीर निधनं गतः।। | 11-20-28a 11-20-28b |
इत्युक्तवचनामेनामपकर्षन्ति दुःखिताम्। उत्तरां मोघसङ्कल्पां मत्स्यराजकुलस्त्रियः।। | 11-20-29a 11-20-29b |
उत्तरामपकृष्यैनामार्तामार्ततराः स्वयम्। विराटं निहतं दृष्ट्वा क्रोशन्ति विलपन्ति च।। | 11-20-30a 11-20-30b |
द्रोणास्त्रशरसङ्कृत्तं शयानं रुधिरोक्षितम्। विराटं वितुदन्त्येते गृध्रगोमायुवायसाः।। | 11-20-31a 11-20-31b |
वितुद्यमानं विहगैर्विराटमसितेक्षणाः। न शक्नुवन्ति विहगान्निवारयितुमातुराः।। | 11-20-32a 11-20-32b |
आसामातपतप्तानामायासेन च योषिताम्। श्रमेण च विवर्णानां वक्त्राणां विप्लुतं वपुः।। | 11-20-33a 11-20-33b |
उत्तरं चाभिमन्युं च काम्भोजं च सुदक्षिणम्। कार्ष्णिनाऽभिहतं पश्य लक्ष्मणं प्रियदर्शनम्। | 11-20-34a 11-20-34b |
आयोधनशिरोमध्ये शयानं पश्य माधव।। | 11-20-35a |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि |
11-20-1 अध्यर्धगुणं सार्धुगुणम्।। 1 ।। 11-20-24 दुष्करं पुनरप्राप्तं काले भवति केनचित् इति क.पाठः। दुष्करं प्रति न प्राप्तमित्यादि छ.ट. पाठः।। 11-20-33 वपुः शस्ताकृतिः। वपुः क्लीबं तनौ शस्ताकृतावपीति मेदिनी।। 11-20-20 विंशतितमोऽध्यायः।।
स्त्रीपर्व-019 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्त्रीपर्व-021 |