महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-018
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कृष्णम्प्रति गान्धारीवचनम्।। 1 ।।
गान्धार्युवाच। | 11-18-1x |
पश्य माधव पुत्रान्मे शतसङ्ख्याञ्जितक्लमान्। गदया भीमसेनेन भूयिष्ठं निहतान्रणे।। | 11-18-1a 11-18-1b |
इदं दुःखतरं मेऽद्य यदिमा मुक्तमूर्धजाः। हतपुत्रा रणे बालाः परिधावन्ति मे स्नुषाः।। | 11-18-2a 11-18-2b |
प्रासादतलचारिण्यश्चरमैर्भूषणान्वितैः। कायेनाद्य स्पृशन्तीमां रुधिरार्द्रां वसुन्धराम्।। | 11-18-3a 11-18-3b |
कृच्छ्रादुत्सारयन्ति स्म गृध्रगोमायुवायसान्। दुःखेनार्ता विघूर्णन्त्यो मत्ता इव चरन्त्युत।। | 11-18-4a 11-18-4b |
एषाऽन्या त्वनवद्याङ्गी करसम्मितमध्यमा। घोरमायोधनं दृष्ट्वा निपतत्यतिदुःखिता।। | 11-18-5a 11-18-5b |
दृष्ट्वा मे पार्थिवसुतामेतां लक्ष्मणमातरम्। राजपुत्रीं महाबाहो मनो न ह्युपशाम्यति।। | 11-18-6a 11-18-6b |
भ्रातॄंश्चान्याः पितॄंश्चान्याः पुत्रांश्च निहतान्भुवि। दृष्ट्वा परिपतन्त्येषाः प्रगृह्य सुमहाभुजान्।। | 11-18-7a 11-18-7b |
मध्यमानां तु नारीणां वृद्धानां चापराजित। आक्रन्दं हतबन्धूना दारुणे वैशसे शृणु।। | 11-18-8a 11-18-8b |
रथनीडानि देहांश्च हतानां गजवाजिनाम्। आश्रित्य श्रममोहार्ताः स्थिताः पश्य महाभुज।। | 11-18-9a 11-18-9b |
अन्या चापहृतं कायाच्चारुकुण्डलमुन्नसम्। स्वस्य बन्धोः शिरः कृष्ण गृहीत्वा पश्य तिष्ठति।। | 11-18-10a 11-18-10b |
पूर्वजातिकृतं पापं मन्ये नाल्पमिवानघ। एताभिर्निरवद्याभिर्मया चैवाल्पपुण्यया। यदिदं धर्मराजेन घातितं नो जनार्दन।। | 11-18-11a 11-18-11b 11-18-11c |
न हि नाशोऽस्ति वार्ष्णेय कर्मणोः शुभपापयोः।। | 11-18-12a |
प्रत्यग्रवयसः पश्य दर्शनीयकुचाननाः। कुलेषु जाता हीमत्यः कृष्णपक्ष्माक्षिमूर्धजाः।। | 11-18-13a 11-18-13b |
हंसगद्गदभाषिण्यो दुःखशोकप्रमोहिताः। सारस्य इव वाशन्त्यः पतिताः पश्य माधव।। | 11-18-14a 11-18-14b |
फुल्लुपद्यप्रकाशानि पुण्डरीकाक्ष योषिताम्। अनवद्यानि वक्त्राणि तापयत्येष रश्मिवान्।। | 11-18-15a 11-18-15b |
सेर्ष्याणां मम पुत्राणां वासुदेवावरोधनम्। मत्तमातङ्गदर्पाणां पश्यन्त्यद्य पृथग्जनाः।। | 11-18-16a 11-18-16b |
शतचन्द्राणि चर्माणि ध्वजांश्चादित्यवर्चसः। रौक्माणि चैव वर्माणि निष्कानपि च काञ्चनान्।। | 11-18-17a 11-18-17b |
शिरस्त्राणानि चैतानि पुत्राणां मे महीतले। पश्य दीप्तानि गोविन्द पावकान्सुहुतानिव।। | 11-18-18a 11-18-18b |
एष दुःशासनः शेते शूरेणामित्रघातिना। पीतशोणिxx सर्वाङ्गो युधि भीमेन पातितः।। | 11-18-19a 11-18-19b |
गदया भीमसेनेन पश्य माधव मे सुतम्। द्यूतक्लेशाननुस्मृत्य द्रौपदीचोदितेन च।। | 11-18-20a 11-18-20b |
उक्ता ह्यनेन पाञ्चाली सभायां द्यूतनिर्जिता। प्रियं चिकीर्षता भ्रातुः कर्णस्य च जनार्दन।। | 11-18-21a 11-18-21b |
सहैव सहदेवेन नकुलेनार्जुनेन च। दासीभूताऽसि पाञ्चालि क्षिप्रं प्रविश नो गृहान्।। | 11-18-22a 11-18-22b |
ततोऽहमब्रुवं कृष्ण तदा दुर्योधनं नृपम्। मृत्युपाशपरिक्षिप्तां द्रौपदीं पुत्र वर्जय।। | 11-18-23a 11-18-23b |
निबोधैनं सुदुर्बुद्धिं मातुलं कलहप्रियम्। क्षिप्रमेनं परित्यज्य पुत्र संशाम्य पाण्डवैः।। | 11-18-24a 11-18-24b |
न बुद्ध्यसे त्वं दुर्बुद्धे भीमसेनममर्षणम्। वाङ्गराचैस्तुदंस्तीक्ष्णैरुल्काभिरिव कुञ्जरम्।। | 11-18-25a 11-18-25b |
तानेवं रहसि क्रुद्धो वाक्शल्यानवधारयन्। उत्ससर्ज विषं तेषु सर्पो गोवृषभेष्विव।। | 11-18-26a 11-18-26b |
एष दुःशासनः शेते विक्षिप्य विपुलौ भुजौ। निहतो भीमसेनेन सिहेनेव महागजः।। | 11-18-27a 11-18-27b |
अत्यर्थमकरोद्रौद्रं भीमसेनोऽत्यमर्षणः। दुःशासनस्य यत्क्रुद्धोऽपिबच्छोणितमाहवे।। | 11-18-28a 11-18-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि स्त्रीविलापपर्वणि अष्टादशोऽध्यायः।। 18 ।। |
11-18-5 करसम्मितमध्यमा मुष्टिप्रमितमध्या।। 11-18-23 क्षिप्तं शकुनिं पुत्र वजेयेति झ.पाठः।। 11-18-18 अष्टादशोऽध्यायः।।
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