महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-012
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धृतराष्ट्रेण भीष्मदुर्योधनादीनां श्राद्धदानाय विदुरमुखाद्युधिष्ठिरंप्रति द्रव्ययाचनम्।। 1 ।। तच्छ्रवणेन विमनायमाभीमे तद्भादज्ञेनार्जुनेन तम्प्रति द्रव्ययाचने भीमेन धृतराष्ट्रापनयानुस्मारणपूर्वकं तदनङ्गीकरणम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-12-1x |
ततो रजन्यां व्युष्टायां धृतराष्ट्रोंऽबिकासुतः। विदुरं प्रेषयामास युधिष्ठिरनिवेशनम्।। | 15-12-1a 15-12-1b |
स गत्वा राजवचनादुवाचाच्युतमीश्वरम्। युधिष्ठि महातेजाः सर्वबुद्धिमतांवरः।। | 15-12-2a 15-12-2b |
धृतराष्ट्रो महाराजो वनवासाय दीक्षितः। गमिष्यति वनं राजन्नागतां कार्तिकीमिमाम्।। | 15-12-3a 15-12-3b |
स त्वां कुरुकुलश्रेष्ठ किञ्चिर्थमभीप्सति। श्राद्धमिच्छति दातुं स गाङ्गेयस्य महात्मनः।। | 15-12-4a 15-12-4b |
द्रोणस्य सोमदत्तस्य बाह्लीकस्य च धीमतः। पुत्राणां चैव सर्वेषां ये चान्ये सुहृदो हताः। यदि चाप्यनुजानीषे सैन्धवापशदस्य च।। | 15-12-5a 15-12-5b 15-12-5c |
एतच्छ्रुत्वा तु वचनं विदुरस्य युधिष्ठिरः। हृष्टःक सम्पूजयामास गुडोकेशश्च पाण्डवः।। | 15-12-6a 15-12-6b |
न च भीमो द्दढक्रोधस्तद्वचो जगृहे तदा। विदुरस्य महातेजा दुर्योधनकृतं स्मरन्।। | 15-12-7a 15-12-7b |
अभिप्रायं विदित्वा तु भीमतसेनस्य फल्गुनः। किरीटी किञ्चिदानम्य तमुवाच नरर्षभम्।। | 15-12-8a 15-12-8b |
भीम राजा पिता वृद्धो वनवासाय दीक्षितः। दातुमिच्छति सर्वेषां सुहृदामौर्ध्वदेहिकम्।। | 15-12-9a 15-12-9b |
भवता निर्जितं वित्तं दातुमिच्छति कौरवः। भीष्मादीनां महाबाहो तदनुज्ञातुमर्हसि।। | 15-12-10a 15-12-10b |
दिष्ट्या त्वद्य महाबाहो धृतराष्ट्रः प्रयाचते। याचितो यः पुराऽस्माभिः पश्य कालस्य पर्ययम्।। | 15-12-11a 15-12-11b |
योसौ पृथिव्याः कृत्स्नाया भर्ता भूत्वा नराधिपः। परैर्विनिहतामात्यो वनं गन्तुमभीप्सति।। | 15-12-12a 15-12-12b |
मा तेऽन्यत्पुरुषव्याघ्र दानाद्भवतु दर्शनम्। अयशस्यमतोऽन्यत्स्यादधर्मश्च महाभुजः।। | 15-12-13a 15-12-13b |
राजानमुपतिष्ठस्व ज्येष्ठं भ्रातरमीश्वरम्। अर्हस्त्वमसि दातुं वै नादातुं भरतर्षभ।। | 15-12-14a 15-12-14b |
एवं ब्रुवाणं बीभत्सुं धर्मराजोऽप्यपूजयत्। भीमसेनस्तु सक्रोधमुवाच विजयं तदा।। | 15-12-15a 15-12-15b |
वयं भीष्मस्य दास्यामः प्रेतकार्यं तु फल्गुन। सोमदत्तस्य नृपतेर्भूरिश्रवस एव च।। | 15-12-16a 15-12-16b |
बाह्लीकस्य च राजर्षेर्द्रोणस्य च महात्मनः। अन्येषां चैव सुहृदां कुन्ती कर्णाय दास्यति।। | 15-12-17a 15-12-17b |
श्राद्धानि पुरुषव्याघ्र मा प्रदात्कौरवो नृपः। इति मे वर्तते बुद्धिर्मा वो नन्दन्तु शत्रवः।। | 15-12-18a 15-12-18b |
कष्टात्कष्टतरं यान्तु सर्वे दुर्योधनादयः। यैरियं पृथिवी कृत्स्ना घातिता कुलपांसनैः।। | 15-12-19a 15-12-19b |
कुतस्त्वमद्य विस्मृत्य वैरं द्वादशवार्षिकम्। अज्ञातवासगमनं द्रौपदीशोकवर्धनम्।। | 15-12-20a 15-12-20b |
क्व तदा धृतराष्ट्रस्य स्नेहोऽस्मद्गोचरो गतः। कृष्णाजिनोपसंवीतो हृताभरणभूषणः। सार्धं पाञ्चालपुत्र्या त्वं राजानमुपजग्मिवान्।। | 15-12-21a 15-12-21b 15-12-21c |
क्व तदा द्रोणभिष्मौ तौ सोमदत्तोपि वाऽभवत्। यत्र द्वादश वर्षाणि वने वन्येन जीवथ। न तदा त्वां पिता ज्येष्ठः पितृत्वेनाभिवीक्षते।। | 15-12-22a 15-12-22b 15-12-22c |
किं ते तद्विस्मृतं पार्थक यदेष कुलपांसनः। दुर्बुद्धिर्विदुरं प्राह द्यूते किं जितमित्युत।। | 15-12-23a 15-12-23b |
तमेवंवादिनं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। उवाच वचनं धीमाञ्जोषमास्स्वेति भर्त्सयन्।। | 15-12-24a 15-12-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि द्वादशोऽध्यायः।। 12 ।। |
15-12-4 किञ्चिदर्थं किञ्चित्कार्यं कर्तुं त्वामभीप्सति द्रष्टुमिति शेषः।। 15-12-8 किञ्चिदागम्य भीमं वचनमब्रवीदिति क.थ.पाठः।।
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