महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-023
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युधिष्ठिरादिभिः कुन्तीधृतराष्ट्रादीनां प्रव्रजनशोकेनाभिमन्युप्रभृतिबन्धुजनानुस्मरणजशोकेन स्वस्वव्यापारेष्वप्यनादरणम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-23-1x |
वनं गते कौरवेन्द्रे दुःखशोकसमन्विताः। बभूवुः पाण्डवा राजन्मातृशोकेनि चान्विताः।। | 15-23-1a 15-23-1b |
तथा पौरजनः सर्वः शोचन्नास्ते जनाधिपम्। कुर्वाणाश्च कथास्तत्र ब्राह्मणा नृपतिं प्रति।। | 15-23-2a 15-23-2b |
कथं न राजा वृद्धः स वने वसति निर्जने। गान्धारी च महाभागा सा च कुन्ती पृथा कथम्।। | 15-23-3a 15-23-3b |
सुखार्हः स हि राजर्षिरसुखी तद्वनं महत्। किमवस्थः समासाद्य प्रज्ञाचक्षुर्महामनाः।। | 15-23-4a 15-23-4b |
सुदुष्करं कृतवती कुन्ती पुत्रानपास्य सा। राज्यश्रियं परित्यज्य वनं सा समरोचयत्।। | 15-23-5a 15-23-5b |
विदुरः किमवस्थश्च भ्रातृशुश्रूषुरात्मवान्। स च गावल्गणिर्धीमान्भर्तृपिण्डानुपालकः।। | 15-23-6a 15-23-6b |
आकुमारं च पौरास्ते चिन्ताशोकसमाहताः। तत्रतत्र कथाश्चक्रुः समासाद्य परस्परम्।। | 15-23-7a 15-23-7b |
पाण्डवाश्चैव ते सर्वे भृशं शोकपरायणाः। शोचन्तो मातरं वृद्धामूषुर्नातिचिरं पुरे।। | 15-23-8a 15-23-8b |
तथैव वृद्धं पितरं हतपुत्रं जनेश्वरम्। गान्धारीं च महाभागां विदुरं च महामतिम्।। | 15-23-9a 15-23-9b |
नैषां बभूव सम्प्रीतिस्तान्विचिन्तयतां तदा। न राज्ये न च नारीषु न वेदाध्ययनेषु च।। | 15-23-10a 15-23-10b |
परं निर्वेदमगमंश्चिन्तयन्ता नराधिपम्। तं च ज्ञातिवधं घोरं संस्मरन्तः पुनःपुनः।। | 15-23-11a 15-23-11b |
अभिमन्योश्च बालस्य विनाशं रणमूर्धनि। कर्णस्य च महाबाहोः सङ्ग्रामेष्वपलायिनः।। | 15-23-12a 15-23-12b |
तथैव द्रौपदेयानामन्येषां सुहृदामपि। वधं संस्मृत्य ते वीरा नातिप्रमनसोऽभवन्।। | 15-23-13a 15-23-13b |
हतप्रवीरां पृथिवीं हृतरत्नां च भारत। सदैव चिन्तयन्तस्ते न शमं चोपलेभिरे।। | 15-23-14a 15-23-14b |
द्रौपदी हतपुत्रा च सुभद्रा चैव भामिनी। नातिप्रीतियुते देव्यौ तदास्तामप्रहृष्टवत्।। | 15-23-15a 15-23-15b |
वैराट्यास्तनयं दृष्ट्वा पितरं ते परिक्षितम्। धारयन्ति स्म ते प्राणांस्तव पूर्वपितामहाः।। | 15-23-16a 15-23-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि त्रयोविंशोऽध्यायः।। 23 ।। |
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