महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-021
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नारपर्वतादिभिर्धृतराष्ट्रादिदिदृक्ष्या शतयूपाश्रमं प्रत्यागमनम्।। 1 ।। नारदेन धृताराष्ट्रंप्रति तत्तपोवनस्यि सहस्रचि त्यादिराजर्षीणां स्वर्गप्रापकत्वमहिमोक्तिपूर्वकं विदुरादिभिः सह तस्यापि भविष्यत्सिद्धिप्रदत्वकथनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-21-1x |
ततस्तत्र मुनिश्रेष्ठा राजानं द्रष्टुमभ्ययुः। नारदः पर्वतश्चैव देवलश्च महातपाः।। | 15-21-1a 15-21-1b |
द्वैपायनः सशिष्यश्च सिद्धाश्चान्ये मनीषिणः। शतयूपश्च राजर्षिर्वृद्धः परमधार्मिकः।। | 15-21-2a 15-21-2b |
तेषां कुन्ती महाराज पूजां चक्रे यथाविधि। ते चापि तुतुषुस्तस्यास्तापसाः परिचर्यया।। | 15-21-3a 15-21-3b |
तत्र धर्म्याः कथास्तात चक्रुस्ते परमर्षयः। रमयन्तो महात्मानं धृतराष्ट्रं जनाधिपम्।। | 15-21-4a 15-21-4b |
कथान्तरे तु कस्मिंश्चिद्देवर्षिर्नारदस्ततः। कथामिमामकथयत्सर्वप्रत्यक्षदर्शिवान्।। | 15-21-5a 15-21-5b |
नारद उवाच। | 15-21-6x |
पुरा प्रजापतिसमो राजाऽऽसीदकुतोभयः। सहस्रचित्यि इत्युक्तः शतयूपपितामहः।। | 15-21-6a 15-21-6b |
स पुत्रे राज्यमासज्ज्यि ज्येष्ठे परमधार्मिके। सहस्रचित्यो धर्मात्मा प्रविवेश वनं नृपः।। | 15-21-7a 15-21-7b |
स गत्वा तपसः पारं दीप्तस्य वसुधाधिपः। पुरंदरस्य संस्थानं प्रतिपेदे महाद्युतिः।। | 15-21-8a 15-21-8b |
दृष्टपूर्वः स बहुशो राजन्सम्पतता मया। महेन्द्रसदने राजा तपसा दग्धकिल्बिषः।। | 15-21-9a 15-21-9b |
तथा शैलालयो राजा भगत्तपितामहः। तपोबलेनैव नृपो महेन्द्रसदनं गतः।। | 15-21-10a 15-21-10b |
तथा पृषध्रो राजाऽऽसीद्राजन्वज्रधरोपमः। स चापि तपसा लेभे नाकपृष्ठमितो गतः।। | 15-21-11a 15-21-11b |
अस्मिन्नरण्ये नृपते मांधातुरपि चात्मजः। पुरुकुत्सो नृपः सिद्धिं महतीं समवाप्तवान्।। | 15-21-12a 15-21-12b |
भार्या समभवद्यस्य नर्मदा सरितां वरा। सोस्मिन्नरण्ये नृपतिस्तपस्तप्त्वा दिवं गतः।। | 15-21-13a 15-21-13b |
शशलोमा च राजाऽऽसीद्राजन्परमधार्मिकः। सम्यगस्मिन्वने तप्त्वा ततो दिवमवाप्तवान्।। | 15-21-14a 15-21-14b |
द्वैपायनप्रसादाच्च त्वमपीदं तपोवनम्। राजन्नवाप्य दुष्प्रापां सिद्धिमग्र्यां गमिष्यसि।। | 15-21-15a 15-21-15b |
त्वं चापि राजशार्दूल तपसोन्ते श्रिया वृतः। गान्धारीसहितो गन्ता गतिं तेषां महात्मनां | 15-21-16a 15-21-16b |
पाण्डुः स्मरति ते नित्यं बलहन्तुः समीपगः। त्वां सदैव महाराज श्रेयसा स च योक्ष्यति।। | 15-21-17a 15-21-17b |
तव शुश्रूषया चैव गान्धार्याश्च यशस्विनी। भर्तुः सलोकतां कुन्ती गमिष्यति वधूस्तव।। | 15-21-18a 15-21-18b |
युधिष्ठिरस्य जननी स हि धर्मः सनातनः। वयमेतत्प्रपश्यामो नृपते दिव्यवक्षुषाः।। | 15-21-19a 15-21-19b |
प्रवेक्ष्यति महात्मानं विदुरश्च युधिष्ठिरम्। संजयस्तदनुध्यानादितः स्वर्गमवाप्स्यति।। | 15-21-20a 15-21-20b |
वैशम्पायन उवाच। | 15-21-21x |
एतच्छ्रुत्वा कौरवेन्द्रो महात्मा सार्धं पत्न्या प्रीतिमान्सम्बभूव। विद्वान्वाक्यं नारदस्य प्रशस्य चक्रे पूजां चातुलां नारदाय।। | 15-21-21a 15-21-21b 15-21-21c 15-21-21d |
ततः सर्वे नारदं विप्रसङ्घाः सम्पूजयामासुरतीव राजन्। राज्ञः प्रीत्या धृतराष्ट्रस्य ते वै पुनःपुनः सम्प्रहृष्टास्तदानीम्।। | 15-21-22a 15-21-22b 15-21-22c 15-21-22d |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि एकविंशोऽध्यायः।। 21 ।। |
15-21-11 तदा प्रवृद्धो राजसीदिति क.थ.पाठः।।
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