महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-022
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शतयूपपृष्टेन नारदेन तंप्रति धृतराष्ट्रस्य वर्षत्रयादूर्ध्वं गान्धार्या सह कुबेरलोकप्राप्तिकथनम्।। 1 ।।
15-22-12 ऋषिपुत्रो व्यासपुत्रः।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-22-1x |
नारदस्य तु तद्वाक्यं शशंसुर्द्विजसत्तमाः। शतयूपस्तु राजर्षिर्नारदं वाक्यमब्रवीत्।। | 15-22-1a 15-22-1b |
अहो भगवता श्रद्धा कुरुराजस्य वर्धिता। सर्वस्य च जनस्यास्य मम चैव महाद्युते।। | 15-22-2a 15-22-2b |
अस्ति काचिद्विवक्षा तु तां मे निगदतः शृणु। धृतराष्ट्रं प्रति नृपं देवर्षे लोकपूजित।। | 15-22-3a 15-22-3b |
सर्ववृत्तान्ततत्त्वज्ञो भवान्दिव्येन चक्षुषा। युक्तः पश्यसि विप्रर्षे गतयो विविधा नृणाम्।। | 15-22-4a 15-22-4b |
उक्तवान्नृपतीनां त्वं महेन्द्रस्य सलोकताम्। न त्वस्य नृपतेर्लोकाः कथितास्ते महामुने।। | 15-22-5a 15-22-5b |
स्थानमप्यस्य नृपतेः श्रोतुमिच्छाम्यहं विभो। त्वत्तः कीदृक्कदा चेति तन्ममाख्याहि तत्त्वतः।। | 15-22-6a 15-22-6b |
इत्युक्तो नारदस्तेन वाक्यं सर्वमनोनुगम्। व्याजहार सभामध्ये दिव्यदर्शी महातपाः।। | 15-22-7a 15-22-7b |
नारद उवाच। | 15-22-8x |
यदृच्छया शक्रसदो गत्वा शक्रं शचीपतिम्। दृष्टवानस्मि राजर्षे तत्र पाण्डुं नराधिपम्।। | 15-22-8a 15-22-8b |
तत्रेयं धृतराष्ट्रस्य कथा समभवन्नप। तपसो दुष्करस्यास्य यदयं तपते नृपः।। | 15-22-9a 15-22-9b |
तत्राहमिदमश्रौषं शक्रस्य वदतः स्वयम्। वर्षाणि त्रीणि शिष्टानि राज्ञोस्य परमायुषः।। | 15-22-10a 15-22-10b |
ततः कुबेरभवनं गान्धारीसहितो नृपः। प्रयाता धृतराष्ट्रोऽयं राजराजाभिसत्कृतः।। | 15-22-11a 15-22-11b |
कामगेन विमानेन दिव्याभरणभूषितः। ऋषिपुत्रो महाभागस्तपसा दग्धकिल्बिषः।। | 15-22-12a 15-22-12b |
सञ्चरिष्यति लोकांश्च देवगन्धर्वरक्षसाम्। स्वच्छन्देनेति धर्मात्मा व्यासस्य तु तपोबलात्।। | 15-22-13a 15-22-13b |
देवगुह्यमिदं प्रीत्या मया वः कथितं महत्। भवन्तो हि श्रुतधनास्तपसा दग्धकिल्बिषाः।। | 15-22-14a 15-22-14b |
वैशम्पायन उवाच। | 15-22-15x |
इति ते तस्य तच्छ्रुत्वा देवर्षेर्मधुरं वचः। सर्वे सुमनसः प्रीता बभूवुः स च पार्थिवः।। | 15-22-15a 15-22-15b |
एवं कथाभिरन्वास्य धृतराष्ट्रं मनीषिणः। विप्रजग्मुर्यथाकामं ते सिद्धगतिमास्थिताः।। | 15-22-16a 15-22-16b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।। |
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