महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-020

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पञ्चादशपर्व
महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-020
वेदव्यासः
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धृतराष्ट्रेण विदुरादिभिः सह गङ्गातीरात्कुरुक्षेत्रमेत्य तत्र शतयूपाश्रमे व्यासाज्ञया तदुपदिष्टविधिना तीव्रतपश्चरणम्।। 1 ।।

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वैशम्पायन उवाच। 15-20-1x
ततो भागीरथीतीरे मेध्ये पुण्यजनोचिते।
निवासमकरोद्राजा विदुरस्य मते स्थितः।।
15-20-1a
15-20-1b
तत्रैनं पर्युपातिष्ठन्ब्राह्मणा वनवासिनः।
क्षत्रविट्शूद्रसङ्खाश्च बहवो भरतर्षभ।।
15-20-2a
15-20-2b
स तैः परिवृतो राजा कथाभिः परिनन्द्य तान्।
अनुजज्ञे स शिष्यान्वै विधिवत्प्रतिपूज्य च।।
15-20-3a
15-20-3b
सायाह्ने स महीपालस्ततो गङ्गामुपेत्य च।
चकार विधिवच्छौचं गान्धारी च यशस्विनी।।
15-20-4a
15-20-4b
ते चैवान्ये पृथक् सर्वे तीर्थेष्वाप्लुत्य भारत।
चक्रुः सर्वाः क्रियास्तत्र पुरुषा विदुरादयः।।
15-20-5a
15-20-5b
कृतशौचं ततो वृद्धं श्वशुरं कुन्तिभोजजा।
गान्धारीं च पृथा राजन्गङ्गातीर्थमुपानयत्।।
15-20-6a
15-20-6b
राज्ञस्तु याजकैस्तत्र कृतो वेदीपरिस्तरः।
जुहाव तत्र वह्निं स नृपतिः सत्यसङ्गरः।।
15-20-7a
15-20-7b
ततो भागीरथीतीरात्कुरुक्षेत्रं जगाम सः।
सानुगो नृपतिर्वृद्धो नियतः संयतेन्द्रियः।।
15-20-8a
15-20-8b
तत्राश्रमपदं धीमानभिगम्य स पार्थिवः।
आससादाथ राजर्षिं शतयूपं मनीषिणम्।।
15-20-9a
15-20-9b
स हि राजा महानासीत्केकयेषु परंपतः।
स्वपुत्रं मनुजैश्वर्ये निवेश्य वनमाविशत्।।
15-20-10a
15-20-10b
तेनासौ सहितो राजा ययौ व्यासाश्रमं प्रति।
तत्रैनं विधिवद्राजन्प्रत्यगृह्णात्कुरूद्वहम्।।
15-20-11a
15-20-11b
स दीक्षां तत्र संप्राप्य राजा कौरवनन्दनः।
शतयूपाश्रमे तस्मिन्निवासमकरोत्तदा।।
15-20-12a
15-20-12b
तस्मै सर्वं विधिं राज्ञे राजाऽऽचख्यौ महामतिः।
आरण्यकं महाराज व्यासस्यानुमते तदा।।
15-20-13a
15-20-13b
एवं च तपसा राजन्धृतराष्ट्रो महामनाः।
योजयामास चात्मानं तांश्चाप्यनुचरांस्तदा।।
15-20-14a
15-20-14b
तथैव देवी गान्धारी वल्कलाजिनधारिणी।
कुन्त्या सह महाराजि समानव्रतचारिणी।।
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15-20-15b
कर्मणा मनसा वाचा चक्षुषा चैव ते नृप।
सन्नियम्येन्द्रियग्राममास्थिताः परमं तपः।।
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15-20-16b
त्वगस्थिभूतः परिशुष्कमांसो
जटाजिनी वल्कलसंवृताङ्गः।
स पार्तिवस्तत्र तपश्चचार
महर्षिवत्तीव्रमपेतमोहः।।
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क्षत्ता च धर्मार्थविदग्र्यबुद्धिः
ससंजयस्तं नृपतिं सदारम्।
उपाचरद्धोरतपोर्जितात्मा
तदा कृशो वल्कलचीरवासाः।।
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।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि
आश्रमवासपर्वणि विंशोऽध्यायः।। 20 ।।
आश्रमवासिकपर्व-019 पुटाग्रे अल्लिखितम्। आश्रमवासिकपर्व-021