महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-018
← आश्रमवासिकपर्व-017 | महाभारतम् पञ्चादशपर्व महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-018 वेदव्यासः |
आश्रमवासिकपर्व-019 → |
कुन्त्या स्वस्य वनगमनाध्यवसायेन विषीदतो युधिष्ठिरादीन्प्रति सहेतूपन्यासं समाश्वासनम्।। 1 ।।
कुन्त्युवाच। | 15-18-1x |
एवमेतन्महाबाहो यथा वदसि पाण्डवः। कृतमुद्धरणं पूर्वं मया वः सीदतां नृपाः।। | 15-18-1a 15-18-1b |
द्यूतापहृतराज्यानां पतितानां सुखादपि। ज्ञातिभिः परिभूतानां कृतमुद्धरणं मया।। | 15-18-2a 15-18-2b |
कथं पाण्डोर्न नश्येत संततिः पुरुषर्षभाः। यशश्च वो न नश्येत इति चोद्धरणं कृतम्।। | 15-18-3a 15-18-3b |
यूयमिन्द्रसमाः सर्वे देवतुल्यपराक्रमाः। मा परेषां मुखप्रेक्षाः स्थेत्येवं तत्कृतं मया।। | 15-18-4a 15-18-4b |
कथं धर्मभृतां श्रेष्ठो राजा त्वं वासवोपमः। पुनर्वने न दुःखी स्या इति चोद्धरणं कृतम्।। | 15-18-5a 15-18-5b |
नागायुतसमप्राणः ख्यातविक्रमपौरुषः। नायं भीमोत्ययं गच्छेदिति चोद्धरणं कृतम्।। | 15-18-6a 15-18-6b |
भीमसेनादवरजस्तथाऽयं वासवोपमः। विजयो नावसीदेत इति चोद्धरणं कृतम्।। | 15-18-7a 15-18-7b |
नकुलः सहदेवश्च तथेमौ गुरुवर्तिनौ। क्षुधा कथं न सीदेतामिति चोद्धरणं कृतम्।। | 15-18-8a 15-18-8b |
इयं च बृहती श्यामा तथाऽत्यायतलोचना। वृथा सभातले क्लिष्टा मा भूदिति च तत्कृतं।। | 15-18-9a 15-18-9b |
अपेक्षतामेव वो भीम वेपन्तीं कदलीमिव। स्त्रीधर्मिणीमरिष्टाङ्गीं तथा द्यूतपराजिताम्।। | 15-18-10a 15-18-10b |
दुःशासनो यदा मौर्ख्याद्दासीवत्पर्यकर्षत। तदैव विदितं मह्यं पराभूतमिदं कुलम्।। | 15-18-11a 15-18-11b |
निषण्णाः कुरवश्चैव तदा मे श्वशुरादयः। सा दैवं नाथमिच्छन्ती व्यलपत्कुररी यथा।। | 15-18-12a 15-18-12b |
केशपक्षे परामृष्टा पापेन् हतबुद्धिना। यदा दुःशासनेनैषा तदा मुह्याम्यहं नृपाः।। | 15-18-13a 15-18-13b |
युष्मत्तेजोविवृद्ध्यर्तं मया ह्युद्धरणं कृतम्। तदानीं विदुलावाक्यैरिति तद्वित्त पुत्रकाः।। | 15-18-14a 15-18-14b |
कथं न राजवंशोऽयं नश्येत्प्राप्य सुतान्मम। पाण्डोरिति मया पुत्रस्तस्मादुद्धरणं कृतम्।। | 15-18-15a 15-18-15b |
न तस्य पुत्राः पौत्रा वा क्षतवंशस्य पार्थिव। लभ्ते सुकृताँल्लोकान्यस्माद्वंशः प्रणश्यति।। | 15-18-16a 15-18-16b |
भुक्तं राज्यफलं पुत्रा भर्तुर्मे विपुलं पुरा। महादानानि दत्तानि पीतः सोमो यथाविधि।। | 15-18-17a 15-18-17b |
नाहमात्मफलार्थं वै वासुदेवमचूचुदम्। विदुलायाः प्रलापैस्तैः पालनार्थं च तत्कृतम्।। | 15-18-18a 15-18-18b |
नाहं राज्यफलं पुत्राः कामये पुत्रनिर्जितम्। पतिलोकानहं पुण्यान्कामये तपसा पिभो।। | 15-18-19a 15-18-19b |
श्वश्रूश्वशुरयोः कृत्वा शुश्रूषां वनवासिनोः। तपसा शोषयिष्यामि युधिष्ठिर कलेवरम्।। | 15-18-20a 15-18-20b |
निवर्तस्व कुरुश्रेष्ठ भीमसेनादिभिः सह। धर्मे ते धीयतां बुद्धिर्मनस्तु महदस्तु च।। | 15-18-21a 15-18-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि अष्टादशोऽध्यायः।। 18 ।। |
15-18-10 पश्यन्त्या मे तथा भीतां वेपन्तीमिति क.थ.पाठः।।
आश्रमवासिकपर्व-017 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्रमवासिकपर्व-019 |