महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-019
← आश्रमवासिकपर्व-018 | महाभारतम् पञ्चादशपर्व महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-019 वेदव्यासः |
आश्रमवासिकपर्व-020 → |
कुन्त्या कृच्छ्रेण प्रतिनिवर्तितैर्युधिष्ठिरादिभिः कृच्छ्रात्पुनर्नगरं प्रत्यागमनम्।। 1 ।। धृताष्ट्रेण विदुरादिभिः सह वनमेत्य गङ्गातीरे सन्ध्योपास्त्यादिना रात्रियापनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-19-1x |
कुन्त्यास्तु वचनं श्रुत्वा पाण्डवा राजसत्तम। व्रीडिताः संन्यवर्तन्त पाञ्चाल्या सह भारत।। | 15-19-1a 15-19-1b |
ततः शब्दो महानेव सर्वेषामभवत्तदा। अन्तःपुराणां रुदतां दृष्ट्वा कुन्तीं तथा गताम्।। | 15-19-2a 15-19-2b |
प्रदक्षिणमथावृत्त्य राजानं पाण्डवास्तदा। अभिवाद्य न्यवर्तन्त पृथां तामनिवर्त्य वै।। | 15-19-3a 15-19-3b |
ततोऽब्रवीन्महातेजा धृतराष्ट्रोंऽबिकासुतः। गान्धारीं विदुरं चैव समाभाष्यावगृह्य च।। | 15-19-4a 15-19-4b |
युधिष्ठिरस्य जननी देवी साधु निवर्त्यताम्। यथा युधिष्ठिरः प्राह तत्सर्वं सत्यमेव हि।। | 15-19-5a 15-19-5b |
पुत्रैश्वर्यं महदिदमपास्य च महाफलम्। काऽनुगच्छेद्वनं दुर्गं पुत्रानुत्सृज्य मूढवत्।। | 15-19-6a 15-19-6b |
राज्यस्थया तपस्तप्तुं कर्तुं दानव्रतं महत्। अनया शक्यमेवाद्य श्रूयतां च वचो मम।। | 15-19-7a 15-19-7b |
गान्धारि परितुष्टोस्मि वध्वाः शुश्रूषणेन वै। तस्मात्त्वमेनां धर्मज्ञे समनुज्ञातुमर्हसि।। | 15-19-8a 15-19-8b |
इत्युक्ता सौबलेयी तु राज्ञा कुन्तीमुवाच ह। तत्सर्वं राजवचनं स्वं च वाक्यं विशेषवत्।। | 15-19-9a 15-19-9b |
न च सा वनवासाय देवी कृतमतिं तदा। शक्नोत्युपावर्तयितुं कुन्तीं धर्मपरां सतीम्।। | 15-19-10a 15-19-10b |
तस्यास्तां तु स्थितिं ज्ञात्वा व्यवसायं कुरुस्त्रियः। निवृत्तांश्च कुरुश्रेष्ठान्दृष्ट्वा प्ररुरुदुस्तदा।। | 15-19-11a 15-19-11b |
उपावृत्तेषु पार्थेषु सर्वास्वेव वधूषु च। ययौ राजा महाप्राज्ञो धृतराष्ट्रो वनं तदा।। | 15-19-12a 15-19-12b |
पाण्डवाश्चातिदीनास्ते दुःखशोकपरायणाः। यानैः स्त्रीसहिताः सर्वे पुरं प्रविविशुस्तदा।। | 15-19-13a 15-19-13b |
तदहृष्टमनानन्दं गतोत्सवमिवाभवत्। नगरं हास्तिनपुरं सस्त्रीवृद्धकुमारकम्।। | 15-19-14a 15-19-14b |
सर्वे चासन्निरुत्साहाः पाण्डवा जातमन्यवः। कुन्त्या हीनाः सुदुःखार्ता वत्सा इव विनाकृताः।। | 15-19-15a 15-19-15b |
धृतराष्ट्रस्तु तेनाह्ना गत्वा सुमहदन्तरम्। ततो भागीरथीतीरे निवासमकरोत्प्रभुः।। | 15-19-16a 15-19-16b |
प्रादुष्कृता यथान्यायमग्नयो वेदपारगैः। व्यराजन्त द्विजश्रेष्ठैस्तत्रतत्र तपोवने। प्रादुष्कृताग्निरभवत्स च वृद्धो नराधिपः।। | 15-19-17a 15-19-17b 15-19-17c |
स राजाऽग्नीन्पर्युपास्य हुत्वा च विधिवत्तदा। सन्ध्यागतं सहस्रांशुमुपातिष्ठत भारत।। | 15-19-18a 15-19-18c |
विदुरः संजयश्चैव राज्ञः शय्यां कुशैस्ततः। चक्रतुः कुरुवीरस्य गान्धार्याश्चाविदूरतः।। | 15-19-19a 15-19-19b |
गान्धार्याः सन्निकर्षे तु निषसाद कुशे सुखम्। युधिष्ठिरस्य जननी कुन्ती साधुव्रते स्थिता।। | 15-19-20a 15-19-20b |
तेषां संश्रवणे चापि निषेदुर्विदुरादयः। याजकाश्च यथोद्देशं द्विजा ये चानुयायिनः।। | 15-19-21a 15-19-21b |
प्राधीतद्विजमुख्या सा संप्रज्वलितपावका। बभूव तेषां रजनी ब्राह्मीव प्रीतिवर्धिनी।। | 15-19-22a 15-19-22b |
ततो रात्र्यां व्यतीतायां कृतपूर्वाह्णिकक्रियाः। हुत्वाऽग्निं विधिवत्सर्वे प्रययुस्ते यथाक्रमम्। उदङ्मुखा निरीक्षन्त उपवासपरायणाः।। | 15-19-23a 15-19-23b 15-19-23c |
स तेषामतिदुःखोऽभून्निवासः प्रथमेऽहनि। शोचतां वदतां चापि पौरजानपदैर्जनैः।। | 15-19-24a 15-19-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकर्वणि आश्रमवासपर्वणि एकोनविंशोऽध्यायः।। 19 ।। |
आश्रमवासिकपर्व-018 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्रमवासिकपर्व-020 |