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लक्ष्मीतन्त्रस्य अध्यायाः

पञ्चविंशोऽध्यायः - 25
श्रीः{1}---
इत्थं ते कथितः शक्र तारकस्यैष विस्तरः।
संसारतारिकाया मे तारिकायाः शृणु क्रमम् ।। 1 ।।
1. - - - - - - - - - - - - -
{1. श्रीरुवाच I. }
वर्णानां {2}विधिसिद्ध्यर्थं संज्ञाः पूर्वं निशामय।
श्रुतासु विधिवद्यासु विधिर्मान्त्रः{3} प्रवर्तते ।। 2 ।।
2. - - - - - - - - - - - - -
{2. सिद्धि B. E. }
{3. मन्त्रः A. B. C. I. }
अकारश्चाप्रमेयश्च प्रथमो व्यापकः स्मृतः।
आदिदेवस्तथाकार आनन्दो गोपनः स्मृतः ।। 3 ।।
3. - - - - - - - - - - - - -
रामसंज्ञ इकारश्च इद्ध इष्टः प्रकीर्तितः।
ईकारः पञ्चबिन्दुर्वै विष्णुर्माया पुरंदर ।। 4 ।।
4. - - - - - - - - - - - -
उकारो भुवनाख्यश्च उद्दाम उदयस्तथा।
ऊकार ऊर्जो लोकेशः प्रज्ञाधाराख्य एव च ।। 5 ।।
5. - - - - - - - - - - - - -
सत्यश्च ऋतधामा च ऋकारः स तु चाङ्कुशः।
ॠकारो विष्टराख्यश्च ज्वाला चैव प्रसारणम् ।। 6 ।।
6. - - - - - - - - - - - - -
लिङ्गात्मा भगवान् प्रोक्तो लृकारस्तारकः स्मृतः।
लृकारो दीर्घघोणश्च{4} देवदत्तस्तथा{5} विराट् ।। 7 ।।
7. - - - - - - - - - - - - - -
{4. कोणश्च A. }
{5. स्थिरो I. }
त्र्यश्र एकारसंज्ञश्च जगद्योनिरविग्रहः।
ऐश्वर्यं योगधाता{6} च ऐ स ऐरावणः स्मृतः ।। 8 ।।
8. - - - - - - - - - - - - - -
{6. दाता A. B. C. }
ओकार ओतदेहश्च{7} ओदनश्चैव विक्रमी।
और्वोऽथ भूधराख्यश्च औ स्मृतो ह्यौषधात्मकः ।। 9 ।।
9. - - - - - - - - - - - - - -
{7. देवश्च C. D. G. }
त्रैलोक्यैश्वर्यदो व्यापी व्योमेशोंऽकार एव च।
विसर्गः सृष्टिकृत्ख्यातो ह्यःकारः परमेश्वरः ।। 10 ।।
10. - - - - - - - - - - - - -
{8}कमलश्च करालश्च ककारः प्रकृतिः परा।
खकारः खर्वदेहश्च वेदात्मा विश्वभावनः ।। 11 ।।
11. - - - - - - - - - - - -
{8. कपिलश्च B.; अमलश्च D. }
{9}गदध्वंसी गकारस्तु गोविन्दश्च गदाधरः।
घकारस्त्वथ घर्मांशुस्तेजस्वी दीप्तिमांस्तथा ।। 12 ।।
12. - - - - - - - - - - - - -
{9. गत A. B. E. }
ङकार एकदंष्ट्राख्यो भूतात्मा भूतभावनः।
चकारश्चञ्चलश्चक्री{10} चन्द्रांशुः स तु कथ्यते ।। 13 ।।
13. - - - - - - - - - - - - - - -
{10. चक्रः A. D. }
छन्दःपतिश्छलध्वंसी{11} छकारश्छन्द एव च।
जन्महन्ताजितश्चैव जकारश्चैव शाश्वतः ।। 14 ।।
14. - - - - - - - - - - - -
{11. बलध्वंसी B. }
झकारो झषसंज्ञश्च सामगः सामपाठकः।
ईश्वरश्चोत्तमाख्यश्च ञकारस्तत्त्वधारकः ।। 15 ।।
15. - - - - - - - - - - - -
चन्द्री टकार आह्लादो विश्वाप्यायकरस्तथा।
धाराधरष्ठकारश्च नेमिः कौस्तुभ उच्यते ।। 16 ।।
16. - - - - - - - - - - - - -
दण्डधारो डकारश्च मौसलोऽखण्डविक्रमः।
ढकारो विश्वरूपश्च वृषकर्मा प्रतर्दनः ।। 17 ।।
17. - - - - - - - - - - -
णकारोऽभयदः शास्ता वैकुण्ठ इति{12} कीर्तितः।
{13}तकारस्ताललक्ष्मा च वैराजः स्रघ्धरः स्मृतः ।। 18 ।।
18. - - - - - - - - - - - - - - -
{12. वैकुण्ठः परि B. C. F. I. }
{13. D. omits 4 lines from here. }
{14}धन्वी भुवनपालश्च थकारः सर्वरोधकः।
दत्तावकाशो दमनो दकारः शान्तिदः स्मृतः ।। 19 ।।
19. - - - - - - - - - - - - -
{14. B. and C. omit 4 lines from here. }
धकारः शार्ङ्गधृद्धर्ता माधवश्च प्रकीर्तितः।
नरो नारायणः पन्था नकारः समुदाहृतः ।। 20 ।।
20. - - - - - - - - - - - -
पकारः पद्मनाभश्च पवित्रः पश्चिमाननः।
फकारः फुल्लनयनो लाङ्गली श्वेतसंज्ञितः{15} ।। 21 ।।
21. - - - - - - - - - - - - - -
{15. संज्ञकः B. C. F. I. }
बकारो वामनो ह्रस्वः पूर्णाङ्गः स च कथ्यते।
{16}भल्लातको भकारश्च ज्ञेयः सिद्धिप्रदो ध्रुवः ।। 22 ।।
22. - - - - - - - - - - - - - -
{16. भल्लाटकः B. C. E. }
मकारो मर्दनः कालः प्रधानः परिपठ्यते।
चतुर्गतिर्यकारश्च सुसूक्ष्मः शङ्ख उच्यते ।। 23 ।।
23. - - - - - - - - - - - - -
अशेषभुवनाधारो रोऽनलः कालपावकः।
लकारो विबुधाख्यश्च धरेशः पुरुषेश्वरः ।। 24 ।।
24. - - - - - - - - - - - -
वराहश्चामृताधारो वकारो वरुणः स्मृतः।
शकारः शंकरः शान्तः पुण्डरीकः प्रकीर्तितः ।। 25 ।।
25. - - - - - - - - - - - - -
{17}नृसिंहश्चाग्निरूपश्च षकारो भास्करस्तथा।
सकारस्त्वमृतस्तृप्तिः सोमश्च परिकीर्तितः ।। 26 ।।
26. - - - - - - - - - - - - -
{17. F. omits 2 lines from here. }
{18}सूर्यो हकारः प्राणस्तु परमात्मा प्रकीर्तितः।
अनन्तेशः क्षकारस्तु वर्गान्तो गरुडस्तथा{19} ।। 27 ।।
27. - - - - - - - - - - - - - -
{18. सूरो A. F. G. }
{19. स्मृतः A. I. }
अशेषसंज्ञा वर्णानामित्येताः कीर्तिता मया।
अनुलोमविलोमेन वर्ण्या वर्णस्य वै पुनः ।। 28 ।।
28. संज्ञायामनुलोमेन संख्यायां विलोमेन चेत्यर्थः। "अङ्कानां वामतो गतिः" इति प्रसिद्धम्।
संज्ञा संख्या{20} च या शक्र सामान्या सा महामते।
चिदंशाः सर्व एवैते वर्णा भास्वरविग्रहाः ।। 29 ।।
29. - - - - - - - - - - - -
{20. संख्या संज्ञा A. }
कारणं सर्वमन्त्राणां लक्ष्मीशक्त्युपबृंहिताः।
स्तुता संपूजिता ध्याता {21}वर्णाः संज्ञाभिरादरात् ।। 30 ।।
30. - - - - - - - - - - - - - - -
{21. वर्णसंज्ञाभिः A. }
प्रयच्छन्ति परामृद्धिं विज्ञानं भावयन्त्यपि।
परस्पराङ्गभावं च मन्त्रोत्पत्तौ व्रजन्त्यमी ।। 31 ।।
31. - - - - - - - - - - - - -
चराचरेऽस्मिंस्तन्नास्ति यदमीभिर्न भावितम्।
नित्या यद्यपि ता दिव्या मन्त्राणां मूर्तयः पराः ।। 32 ।।
32. - - - - - - - - - - - - - -
तथाप्येवंविधैर्वर्णैर्भाविता इति चिन्तना{22}।
भवन्ति पूर्णसामर्थ्या मन्त्राः शास्रनिदर्शनात् ।। 33 ।।
33. - - - - - - - - - - - - -
{22. चिन्तनाः C.; चिन्तनात् I. }
आलम्बनं धियां चैव भवन्त्येवं महामते।
अभागेऽपि यथा व्योम्नि धिया भागः प्रकल्प्यते ।। 34 ।।
34. - - - - - - - - - - - - - -
सौकर्याय तथा मन्त्रे वर्णभागोऽनुचिन्त्यते।
कृत्वैव भावगां व्याप्तिं वर्णानां पूजनं त्रिधा ।। 35 ।।
35. - - - - - - - - - - - - -
भूमौ पद्मे तथा{23} देव्यास्तनौ{24} मन्त्रान् समुद्धरेत्।
परमात्मानमादाय योजयेत् कालवह्निना ।। 36 ।।
36. तारिकामन्त्रमुद्धरति---परमात्मानमिति। परमात्मा हकारः। कालवह्निः रेफः। माया ईकारः। त्रैलोक्यैश्वर्यदः अनुस्वारः। एषां योगे ह्रीं इति तारिकामन्त्रः।
{23. अथवा D. F. }
{24. ततो I. }
त्रैलोक्यैश्वर्यदोपेतमायामस्मिन्नियोजयेत्।
इयं सा परमा शक्तिर्वैष्णवी सर्वकामदा ।। 37 ।।
37. - - - - - - - - - - - -
सत्ता पूर्णा{25} चिदानन्दा मम मूर्तिर्निरन्तरा।
इयं सा परमा निष्ठा या सा ब्रह्मविदां ध्रुवा{26} ।। 38 ।।
38. - - - - - - - - - - - - - - - -
{25. पूर्ण F. I. }
{26. विदस्तु वा F. }
अस्यां निष्ठाय तत्त्वज्ञा विशन्ति ब्रह्म मन्मयम्।
सैषा तत्त्वविदां मुख्यैः शास्रे शास्रे विचिन्त्यते ।। 39 ।।
39. - - - - - - - - - - - - -
ओतं प्रोतममुष्यां वै जगच्छब्दार्थतामयम्।
अनयैव सदा सांख्यैः संख्यायेऽहं सनातनी ।। 40 ।।
40. - - - - - - - - - - - - -
अनयैव समाधिस्थैः समाधीये समाधिना।
अभिधीयेऽनयैवाहं शैवैः षट्‌त्रिंशदन्तिमा ।। 41 ।।
41. - - - - - - - - - - - -
महाराज्ञी तथैवाहमनयैव त्रयी परा।
ऋग्यजुःसामसंघाते{27} चिन्त्ये{28} सौरे च मण्डले ।। 42 ।।
42. - - - - - - - - - - - - - - - - -
{27. संख्याते C. F. }
{28. चिन्त्या A. }
तरुणीं रूपसंपन्नां सर्वावयवसुन्दरीम्{29}।
अनयैव व्यवस्यन्ति लोकायतविचक्षणाः ।। 43 ।।
43. - - - - - - - - - - - -
{29. शोभिनीम् I. }
क्षणभङ्गविधानज्ञैश्चिन्त्ये निर्विषया च धीः।
आर्हतैश्चानयैवाहं यक्षीनाम्ना सदोदिता{30} ।। 44 ।।
44. - - - - - - - - - - - - -
{30. उदिता सदा D. I. }
परमा तारिका शक्तिस्तारिणी तारिकाकृतिः।
लक्ष्मीः पद्मा महालक्ष्मीस्तारा गौरी निरञ्जना ।। 45 ।।
45. - - - - - - - - - - - - - -
हृल्लेखा परमात्मस्था या शक्तिर्भुवनेश्वरी।
चिच्छक्तिः {31}शान्तिरूपा च घोषणी{32} घोषसंभवा ।। 46 ।।
46. - - - - - - - - - - - - - - - - -
{31. शान्त B. D. }
{32. घोषिणी D. }
कामधेनुर्महाधेनुर्जगद्योनिर्विभावरी।
एवमादीनि नामानि शास्रे शास्रे विचक्षणैः ।। 47 ।।
47. - - - - - - - - - - - - -
तारिकाया निरुक्तानि वेदे वेदे च पण्डितैः।
अस्या एवापरा मूर्तिर्विज्ञेया त्वनुतारिका ।। 48 ।।
48. - - - - - - - - - - - -
शान्तं नियोजयेत् स्थाने पूर्वस्य परमात्मनः।
शेषमन्यत्समं{33} ह्येषा तनुर्मेऽन्यानुतारिका ।। 49 ।।
49. शान्तः शकारः। अन्यत् सममिति। तारिकया समम्। रीं इति योजनीयमित्यर्थः। श्रीं इत्यनुतारिकामन्त्रः।
{33. एतत्समम् D. }
तारिकायामिवास्यां च विज्ञेयं वैभवं महत्।
इमे शक्ती परे दिव्ये मम तन्वौ पुरंदर ।। 50 ।।
50. - - - - - - - - - - - - -
यत्किंचिदेतया साध्यं साधनीयं तदन्यया।
इमे पूर्वापरीभावं प्रजतोऽन्योन्यवाञ्छया।।
सम्यक्साधयतश्चैव साधकानामभीप्सितम् ।। 51 ।।
51. - - - - - - - - - - - - -
इति {34}श्रीपाञ्चरात्रसारे लक्ष्मीतन्त्रे {35}तारानुताराप्रकाशो नाम पञ्चविंशोऽध्यायः
{34. श्रीपञ्चरात्र A.; श्रीपाञ्चरात्रे B. }
{35. तारकानुतारप्रकाशः G.; I. omits the title. }
********इति पञ्चविंशोऽध्यायः********