महाभारतम्-09-शल्यपर्व-001
← शल्यपर्व | महाभारतम् नवमपर्व महाभारतम्-09-शल्यपर्व-001 वेदव्यासः |
शल्यपर्व-002 → |
दुर्योधनेन शल्यस्य सैनापत्येऽभिषेचनपूर्वकं पुनर्युद्धाय निर्याणम्।। 1 ।।
सञ्जयाच्छल्यदुर्योधनादिवधश्रवणेन मूर्च्छितस्य धृतराष्ट्रस्य विदुरेण समाश्वासनम्।। 2 ।।
श्रीवेदव्यासाय नमः।। | 9-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। देवीं सरस्वतीं (व्यासं) चैव ततो जयमुदीरयेत्।। | 9-1-1a 9-1-1b |
जनमेजय उवाच। | 9-1-2x |
एवं निपातिते कर्णे समरे सव्यसाचिना। अल्पावशिष्टाः कुरवः किमकुर्वत वै द्विज।। | 9-1-2a 9-1-2b |
विदीर्यमाणं च बलं दृष्ट्वा राजा सुयोधनः। पाण्डवैः प्राप्तकालं च किं प्रापद्यत कौरवः।। | 9-1-3a 9-1-3b |
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं तदाचक्ष्व द्विजोत्तम। न हि तृप्यामि पूर्वेषां शृण्वानश्चरितं महत्।। | 9-1-4a 9-1-4b |
वैशम्पायन उवाच। | 9-1-5x |
ततः कर्णे हते राजन्धार्तराष्ट्रः सुयोधनः। भृशं शोकार्णवे मग्नो निराशः सर्वतोऽभवत्।। | 9-1-5a 9-1-5b |
हाकर्ण हाकर्ण इति शोचमानो मुहुर्मुहुः। कृच्छ्रात्स्वशिबिरं प्रायाद्वतशिष्टैर्नृपैः सह।। | 9-1-6a 9-1-6b |
स समाश्वास्यमानोऽपि हेतुभिः शास्त्रनिश्चितैः। राजन्विभूतिमिच्छद्भिः सूतपुत्रमनुस्मरन्।। | 9-1-7a 9-1-7b |
स दैवं बलवन्मत्वा प्रभाते विमले सति। सङ्ग्रामे निश्चयं कृत्वा पुनर्युद्वाय निर्ययौ।। | 9-1-8a 9-1-8b |
शल्यं सेनापतिं कृत्वा विधिवद्राजसत्तमम्। रणाय निर्ययौ राजा हतशिष्टैर्नृपैः सह।। | 9-1-9a 9-1-9b |
ततः सुतुमुलं युद्धं कुरुपाण्डवसेनयोः। बभूव भरतश्रेष्ठ देवासुररणोपमम्।। | 9-1-10a 9-1-10b |
ततः शल्यो महाराज कृत्वा कदनमाहवे। पाण्डुसैन्येऽथ मध्याह्ने धर्मराजेन पातितः।। | 9-1-11a 9-1-11b |
ततो दुर्योधनो राजा हतबन्धू रणाजिरात्। अपसृत्य हदं घोरं विवेश रिपुजाद्भुयात्।। | 9-1-12a 9-1-12b |
अथापराह्णे तस्याह्नः परिवार्य महारथैः। हदादाहूय युद्वाय भीमसेनेन पातितः।। | 9-1-13a 9-1-13b |
तस्मिंस्तु निहते वीरे महेष्वासास्त्रयो रणे। कृतवर्मा कृपो द्रौणिर्जघ्नुः पाण्डवसैनिकान्।। | 9-1-14a 9-1-14b |
ततः पूर्वाह्णसमये शिबिरादेत्य सञ्जयः। प्रविवेश पुरीं दीनो दुःखशोकसमन्वितः।। | 9-1-15a 9-1-15b |
स प्रविश्य पुरीं सूतो भूजावुच्छ्रित्य दुःखितः। वेपमानस्ततो राज्ञः प्रविप्रेश निवेशनम्।। | 9-1-16a 9-1-16b |
धावतश्चाप्यपश्यxxx तत्रत्यान्पुरुषर्षभान्। नष्टचित्तानिवोन्मत्ताञ्शोकेन भृशदुःखितान्।। | 9-1-17a 9-1-17b |
दृष्ट्वैव च नराञ्शीघ्रं व्याजहारातिदुःखितः। अहो बत विपन्नोऽस्मि निधनेन महात्मनः।। | 9-1-18a 9-1-18b |
अहो सुबलवान्कालो गतिश्च परमा तथा। शुक्रतुल्यबलाः सर्वे यत्राहन्यन्त पार्थिवाः।। | 9-1-19a 9-1-19b |
तं दृष्ट्वैव पुरे राजञ्जनः सर्वः स्म सञ्जयम्। प्ररुरोद भयोद्विग्नो हा राजन्निति सुस्वरम्।। | 9-1-20a 9-1-20b |
आकुमारं नरव्याघ्र तत्पुरं वै समन्ततः। आर्तनादं महच्चक्रे श्रुत्वा विनिहतं नृपम्।। | 9-1-21a 9-1-21b |
तथा स विह्वलः सूतः प्रविश्य नृपतिक्षयम्। ददर्श नृपतिश्रेष्ठं प्रज्ञाचक्षुषमीश्वरम्।। | 9-1-22a 9-1-22b |
दृष्ट्वा चासीनमनघं समन्तात्परिवारितम्। स्नुषामिर्भरतश्रेष्ठ गान्धार्या विदुरेण च। तथाऽन्यैश्च सुहृद्भिश्च ज्ञातिमिश्च हितैषिभिः।। | 9-1-23a 9-1-23b 9-1-23c |
तमेव चार्थं ध्यायन्तं कर्णस्य निधनं प्रति। रुदन्नेवाब्रवीद्वाक्यं राजानं जनमेजय।। | 9-1-24a 9-1-24b |
नातिहृष्टमनाः सूतो बाष्पसन्दिग्धया गिरा। सञ्जयोऽहं नरव्याघ्र नमस्ते भरतर्षभ।। | 9-1-25a 9-1-25b |
मद्राधिपो हतः शल्यः शकुनिः सौबलस्तथा। उलूकः पुरुषव्याघ्र कैतव्यो दृढविक्रमः।। | 9-1-26a 9-1-26b |
संशप्तका हताः सर्वे काम्भोजाश्च शकैः सह। म्लेच्छाश्च पार्वतीयाश्च यवनाश्च निपातिताः।। | 9-1-27a 9-1-27b |
प्राच्या हता महाराज दाक्षिणात्याश्च सर्वशः। उदीच्याश्च हताः सर्वे प्रतीच्याश्च नरोत्तमाः। राजानो राजपुत्राश्च सर्वे विनिहता नृप।। | 9-1-28a 9-1-28b 9-1-28c |
कर्णपुत्रो हतः शूरः सत्यसेनो महाबलः।। | 9-1-29a |
दुर्योधनो हतो राजा ययोक्तं पाण्डवेन ह। xxxxxx महाराज शेते पांसुषु रूषितः।। | 9-1-30a 9-1-30b |
xxxxxx हतो xxx जञ्शिखण्डी चापराजितः। उत्तमौज युधामन्युस्तथा सर्वे प्रभद्रकाः।। | 9-1-31a 9-1-31b |
पाञ्चालश्च नरव्याघ्र चेदयश्च निषूदिताः। तव पुत्रा हताः सर्वे द्रौपदेयाश्च भारत।। | 9-1-32a 9-1-32b |
नरा विनिहताः सर्वे गजाश्च विनिपातिताः। रथिनत्र नरव्याघ्र हयाश्च निहता युधि।। | 9-1-33a 9-1-33b |
निxxxx शिबिरं रावंजावकानां कृतं प्रभो। पाण्डवानां च शूराणां समासाद्य परस्परम्।। | 9-1-34a 9-1-34b |
xxxx स्रीशेषमभवज्जगत्कालेन मोहितम्। सप्त पाण्डवतः शिष्टा धार्तराष्ट्रास्त्रयोरथाः।। | 9-1-35a 9-1-35b |
ते चैव भ्रातरः पञ्च वासुदेवोऽथ सात्यकिः। कृपश्च कृतवर्मा च द्रौणिश्च जयतां वरः।। | 9-1-36a 9-1-36b |
एते शेषा महाराज रथिनो नृपसत्तम। अक्षौहिणीनामष्टानां दशानां च न संशयः।। | 9-1-37a 9-1-37b |
एते शेषा महाराज सर्वेऽन्ये निधनं गताः। कालेन निहतं सर्वं जगद्वै भरतर्षभ। दुर्योधनं वै पुरतः कृत्वा सर्वे नरा हताः।। | 9-1-38a 9-1-38b 9-1-38c |
वैशम्पायन उवाच। | 9-1-39x |
एतच्छ्रुत्वा वचः क्रूरं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः। निपपात स राजेन्द्रो गतसत्वो महीतले।। | 9-1-39a 9-1-39b |
तस्मिन्निपतिते वीरे विदुरोऽपि महायशाः। निपपात महाराज शोकव्यसनकर्शितः।। | 9-1-40a 9-1-40b |
गान्धारी च महाभागा सर्वाश्च कुरुयोषितः। पतिताः सहसा भूमौ श्रुत्वा घोरतरं वचः।। | 9-1-41a 9-1-41b |
निःसंज्ञं पतितं भूमौ तदाऽऽसीद्राजमण्डलम्। विलापमुक्तोपहतं चित्रं न्यस्तं पटे यथा।। | 9-1-42a 9-1-42b |
कृच्छ्रेण तु ततो राजा धृतराष्ट्रो महीपतिः। शनैरलभत प्राणान्पुत्रव्यसनकर्शितः।। | 9-1-43a 9-1-43b |
लब्ध्वा तु स नृपः प्राणान्वेपमानः सुदुःखितः। निरीक्ष्य च दिशः सर्वाः क्षत्तारं वाक्यमब्रवीत्।। | 9-1-44a 9-1-44b |
विद्धि क्षत्तर्महाप्राज्ञ त्वं गतिर्भरतर्षभ। ममानाथस्य सुभृशं पुत्रैर्हीनस्य सर्वशः। एवमुक्त्वा ततो भूयो विसंज्ञो निपपात ह।। | 9-1-45a 9-1-45b 9-1-45c |
तं तथा पतितं दृष्ट्वा बान्धवा येऽस्य केचन। शीतैस्ते सिषिचुस्तोयैर्विव्यजुर्व्यजनैरपि।। | 9-1-46a 9-1-46b |
स तु दीर्घेण कालेन प्रत्याश्वस्तो नराधिपः। तूष्णीमासीन्महीपालः पुत्रव्यसनकर्शितः।। | 9-1-47a 9-1-47b |
निःश्वसञ्जिह्मग इव कुम्भक्षिप्तोऽभवन्नृपः।। | 9-1-48a |
सञ्जयोऽप्यरुदत्तत्र दृष्ट्वा राजानमातुरम्। तथा सर्वाः स्त्रियश्चैव गान्धारी च यशस्विनी।। | 9-1-49a 9-1-49b |
ततो दीर्घेण कालेन विदुरं वाक्यमब्रवीत्। धृतराष्ट्रो नरश्रेष्ठ मुह्यमानो मुहुर्मुहुः।। | 9-1-50a 9-1-50b |
गच्छन्तु योषितः सर्वा गान्धारी च यशस्विनी। तथेमे सुहृदः सर्वे मुह्यते मे मनो भृशम्।। | 9-1-51a 9-1-51b |
एवमुक्तस्ततः क्षत्ता ताः स्त्रियो भरतर्षभ। विसर्जयामास शनैर्मुह्यमानः पुनःपुनः।। | 9-1-52a 9-1-52b |
निश्चक्रमुस्ततः सर्वाः स्त्रियो भरतसत्तम। सुहृदश्च तथा सर्वे दृष्ट्वा राजानमातुरम्।। | 9-1-53a 9-1-53b |
ततो नरपतिस्तत्र लब्ध्वा संज्ञां परन्तपः। गतिर्मे को भवेदद्य इति चिन्तासमाकुलः। अपृच्छत्सञ्जयं तत्र रोदमानं भृशातुरम्।। | 9-1-54a 9-1-54b 9-1-54c |
प्राञ्जलिं सञ्जयं दृष्ट्वा रोदमानं मुहुर्मुहुः। ज्ञातीन्स्त्रियोऽथ निर्याप्य प्रविश्य विदुरःपुनः।। | 9-1-55a 9-1-55b |
राजानं शोचमानस्तु तं शोचन्तं मुहुर्मुहुः। समाश्वासयत क्षत्ता वचसा मधुरेण च।। | 9-1-56a 9-1-56b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि शल्यवधपर्वणि प्रथमोऽध्यायः।। 1 ।। |
9-1-12 अपराहे अपरार्धे।। 9-1-41 विलापवुक्तोपहतं इति ङ.पाठः। विलापयुक्तं सुमहत् इति घ. पाठः।। 9-1-1 प्रथमोऽध्यायः।।
शल्यपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-002 |