महाभारतम्-09-शल्यपर्व-020
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सात्यकिना कृतवर्मपराजयः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-20-1x |
तस्मिंस्तु निहते शूरे साल्वे समितिशोभने। तवाभज्यद्बलं वेगाद्वातेनेव महाद्रुमः।। | 9-20-1a 9-20-1b |
तत्प्रभग्नं बलं दृष्ट्वा कृतवर्मा महारथः। दधार समरे शूरः शत्रुसैन्यं महाबलः।। | 9-20-2a 9-20-2b |
सन्निवृत्तास्तु ते शूरा दृष्ट्वा सात्वतमाहवे। शैलोपमं स्थिरं राजन्कीर्यमाणं शरैर्युधि।। | 9-20-3a 9-20-3b |
ततः प्रववृते युद्धं कुरूणां पाण्डवैः सह। निवृत्तानां महाराज मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 9-20-4a 9-20-4b |
तत्राश्चर्यमभूद्युद्वं सात्वतस्य परैः सह। यदेको वारयामास पाण्डुसेनां दुरासदाम्।। | 9-20-5a 9-20-5b |
तेषामन्योन्यसुहृदां कृते कर्मणि दुष्करे। सिंहनादः प्रहृष्टानां दिविस्पृक्सुमहानभूत्।। | 9-20-6a 9-20-6b |
तेन शब्देन वित्रस्तान्पाञ्चालान्भरतर्षभ। शिनेर्नप्ता महाबाहुरन्वपद्यत सात्यकिः।। | 9-20-7a 9-20-7b |
स समासाद्य राजानं क्षेमधूर्तिं महाबलम्। सप्तभिर्निशितैर्बाणैरनयद्यमसादनम्।। | 9-20-8a 9-20-8b |
तमायान्तं महाबाहुं प्रवपन्तं शिताञ्शरान्। जवेनाभ्यपतद्वीमान्हार्दिक्यः शिनिपुङ्गवम्।। | 9-20-9a 9-20-9b |
तौ सिंहाविव नर्दन्तौ धन्विनौ रथिनां वरौ। अन्योन्यमभिधावन्तौ शस्त्रप्रवरधारिणौ।। | 9-20-10a 9-20-10b |
पाण्डवाः सहपाञ्चाला योधाश्चान्ये नृपोत्तमाः। प्रेक्षकाः समपद्यन्त तयोः पुरुषसिंहयोः।। | 9-20-11a 9-20-11b |
नाराचैर्वत्सदन्तैश्च वृष्ण्यन्धकमहारथौ। अभिजघ्नतुरन्योन्यं प्रहृष्टाविव कुञ्चरौ।। | 9-20-12a 9-20-12b |
चरन्तौ विविधान्मार्गान्हार्दिक्यशिनिपुङ्गवौ। मुहुरन्तर्दधाते तौ बाणवृष्ट्या परस्परम्।। | 9-20-13a 9-20-13b |
चापवेगबलोद्वूतान्मार्गणान्वृष्णिसिंहयोः। आकाशे समपश्याम पतङ्गानिव शीघ्रगान्।। | 9-20-14a 9-20-14b |
तमेकं सत्यकर्माणमासाद्य हृदिकात्मजः। अविध्यन्निशितैर्बाणैश्चतुर्भिश्चतुरो हयान्।। | 9-20-15a 9-20-15b |
स दीर्घबाहुः सङ्क्रुद्धस्तोत्रार्दित इव द्विपः। अष्टभिः कृतवर्माणमविध्यत्परमेषुभिः।। | 9-20-16a 9-20-16b |
ततः पूर्णायतोत्सृष्टैः कृतवर्मा शिलाशितैः। सात्यकिं त्रिभिराहत्य धनुरेकेन चिच्छिदे।। | 9-20-17a 9-20-17b |
निकृत्तं तद्धनुःश्रेष्ठमपास्य शिनिपुङ्गवः। अन्यदादत्त वेगेन शैनेयः सशरं धनुः।। | 9-20-18a 9-20-18b |
तदादाय धनुःश्रेष्ठं वरिष्ठः सर्वधन्विनाम्। आरोप्य च धनुः शीघ्रं महावीर्यो महाबलः।। | 9-20-19a 9-20-19b |
अमृष्यमाणो धनुषश्छेदनं कृतवर्मणा। कुपितोऽतिरथः शीघ्रं कृतवर्माणमभ्ययात्।। | 9-20-20a 9-20-20b |
ततः सुनिशितैर्बाणैर्दशभिः शिनिपुङ्गवः। जघान सूतं चाश्वांश्च ध्वजं च कृतवर्मणः।। | 9-20-21a 9-20-21b |
ततो राजन्महेष्वासः कृतवर्मा महारथः। हताश्वसूतं सम्प्रेक्ष्य रथं हेमपरिष्कृतम्।। | 9-20-22a 9-20-22b |
रोषेण महताऽऽविष्टः शूलमुद्यम्य मारिष। चिक्षेप भुजवेगेन जिघांसुः शिनि पुङ्गवम्।। | 9-20-23a 9-20-23b |
तच्छूलं सात्वतो ह्याजौ निर्भिद्य निशितैः शरैः। चूर्णितं पातयामास मोहयन्निव माधवम्। ततोऽपरेण भल्लेन हृद्येनं समताडयत्।। | 9-20-24a 9-20-24b 9-20-24c |
सुयुद्वे युयुधानेन हताश्वो हतसारथिः। कृतवर्मा कृतास्त्रेण धरमीमन्वपद्यत।। | 9-20-25a 9-20-25b |
तस्मिन्सात्यकिना वीरे द्वैरथे विरथीकृते। समपद्यत सर्वेषां सैन्यानां सुमहद्भयम्।। | 9-20-26a 9-20-26b |
पुत्राणां तव चात्यर्थं विषादः समजायत। हतसूते हताश्वे तु विरथे कृतवर्मणि।। | 9-20-27a 9-20-27b |
हताश्वं च समालक्ष्य हतसूतमरिन्दम। अभ्यधावत्कृपो राजञ्जिघांसुः शिनिपुङ्गवम्।। | 9-20-28a 9-20-28b |
तमारोप्य रथोपस्थे मिषतां सर्वधन्विनाम्। अपोवाह महाबाहुं तूर्णमायोधनादपि।। | 9-20-29a 9-20-29b |
शैनेयेऽधिष्ठिते राजन्विरथे कृतवर्मणि। दुर्योधनबलं सर्वं पुनरासीत्पराङ्मुखम्।। | 9-20-30a 9-20-30b |
तत्परे नान्वबुध्यन्त सैन्येन रजसा वृताः। तावकाः प्रद्रुता राजन्दुर्योधनमृते नृपम्।। | 9-20-31a 9-20-31b |
दुर्योधनस्तु सम्प्रेक्ष्य भग्नं स्वबलमन्तिकात्। जवेनाभ्यपतत्तूर्णं सर्वांश्चैको न्यवारयत्।। | 9-20-32a 9-20-32b |
पाण्डूंश्च सर्वान्सङ्क्रुद्धो धृष्टद्युम्नं च पार्षतम्। शिखण्डिनं द्रौपदेयान्पाञ्चालानां च ये गणाः।। | 9-20-33a 9-20-33b |
केकयान्सोमकांश्चैव सृञ्जयांश्चैव मारिष। असम्भ्रमं दुराधर्षः शितैर्बाणैरवाकिरत्।। | 9-20-34a 9-20-34b |
अतिष्ठदाहवे यत्तः पुत्रस्तव महाबलः। यथा यज्ञे महानग्निर्मन्त्रपूतः प्रकाशते। तथा दुर्योधनो राजा सङ्ग्रामे सर्वतोऽभवत्।। | 9-20-35a 9-20-35b 9-20-35c |
तं परे नाभ्यवर्तन्त मर्त्या मृत्युमिवाहवे। अथान्यं रथमास्थाय हार्दिक्यः समपद्यत।। | 9-20-36a 9-20-36b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वमि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे विंशोऽध्यायः।। 20 ।। |
9-20-3 सात्वतं कृतवर्माणम्।। 9-20-20 विंशोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-019 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-021 |