महाभारतम्-09-शल्यपर्व-056

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वेदव्यासः
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(अथ गदायुद्धपर्व।। 3 ।।) गदायुद्धाय सन्नद्धयोर्भीमदुर्योधनयोर्वर्णनम्।। 1 ।।

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सञ्जय उवाच। 9-56-1x
रामसान्निध्यमागम्य पुत्रो दुर्योधनस्तव।
योद्धुकामो महाबाहुः समहृष्यत वीर्यवान्।।
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दृष्ट्वा लाङ्गलिनं राजा प्रत्युत्थाय च भारत।
प्रीत्या* परमया युक्तो युधिष्ठिरमथाब्रवीत्।।
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दुर्योधन उवाच। 9-56-3x
समन्तपञ्चकं पुण्यमितो याम विशाम्पते।
प्रथितोत्तरवेदी सा देवलोके प्रजापतेः।।
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9-56-3b
तस्मिन्महापुण्यतमे त्रैलोक्यस्य सनातने।
सङ्ग्रामे निधनं प्राप्य ध्रुवं स्वर्गं गमिष्यसि।।
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तथेत्युक्त्वा महाराज कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।
समन्तपञ्चकं वीरः प्रायादभिमुखः प्रभुः।।
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9-56-5b
ततो दुर्योधनो राजा प्रगृह्य महतीं गदाम्।
पद्ध्याममर्षी द्युतिमानगच्छत्पाण्डवैः सह।।
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तथा यान्तं गदाहस्तं वर्मणा चापि दंशितम्।
अन्तरिक्षचरा देवाः साधुसाध्वित्यपूजयन्।।
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वादकाश्च नरास्तत्र दृष्ट्वा ते हर्षमागताः।। 9-56-8a
स पाण्डवैः परिवृतः कुरुराजस्तवात्मजः।
मत्तस्येव गजेन्द्रस्य गतिमास्थाय सोऽव्रजत्।।
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9-56-9b
ततः शङ्खनिनादैश्च भेरीणां च महास्वनैः।
सिंहनादैश्च शूराणां दिशः सर्वाः प्रपूरिताः।।
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ततस्ते तु कुरुक्षेत्रं प्राप्ता नरवरोत्तमाः।
प्रतीच्यभिमुखं देशं यथोद्दिष्टं सुतेन ते।
दक्षिणेन सरस्वत्याः स्वयनं तीर्थमुत्तमम्।।
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तस्मिन्देशे त्वनिरिणे ते तु युद्धमरोचयन्।। 9-56-12a
ततो भीमो महाकोटिं गदां गृह्याथ वर्मभृत्।
बिभ्रद्रूपं महाराज सदृशं हि गरुत्मतः।।
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अवबद्धशिरस्त्राणः शुद्धकाञ्चनवर्मभृत्।
रराज राजन्पुत्रस्ते काञ्चनः शैलराडिव।।
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तौ तथा सङ्गतौ वीरौ भीमदुर्योधनावुभौ।
संयुगे सम्प्रकाशेते संरब्धाविव कुञ्जरौ।।
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9-56-15b
रथमण्डलमध्यस्थौ भ्रातरौ तौ नरर्षभौ।
अशोभेतां महाराज चन्द्रसूर्याविवोदितौ।।
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9-56-16b
तावन्योन्यं निरीक्षेतां क्रुद्धाविव महोरगौ।
दहन्तौ लोचनै राजन्परस्परवधैषिणौ।।
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संप्रहृष्टमना राजन्गदामादाय कौरवः।
सृक्विणी संलिहन्राजन्क्रोधरक्तेक्षणः श्वसन्।।
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ततो दुर्योधनो राजन्गदामादाय वीर्यवान्।
भीमसेनमभिप्रेक्ष्य गजो गजमिवाह्वयत्।।
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9-56-19b
अद्रिसारमयीं भीमस्तथैवादाय वीर्यवान्।
आह्वयामास नृपतिं सिंहः सिंहं यथा वने।।
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तावुद्यतगदापाणी दुर्योधनवृकोदरौ।
संयुगे सम्प्रकाशेतां गिरी सशिखराविव।।
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तावुभौ समतिक्रुद्धावुभौ भीमपराक्रमौ।
उभौ शिष्यौ गदायुद्धे रौहिणेयस्य धीमतः।।
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उभौ सदृशकर्माणौ वरुणस्य महाबलौ।
वासुदेवस्य रामस्य तथा वैश्रवणस्य च।।
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सदृशौ तौ महाराज मधुकैटभयोरपि।
उभौ सदृशकर्माणौ तथा सुन्दोपसुन्दयोः।।
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[रामरावणयोश्चैव वालिसुग्रीवयोस्तथा]।
तथैव कालस्य समौ मृत्योश्चैव परन्तपौ।।
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अन्योन्यमभिधावन्तौ मत्ताविव महाद्विपौ।
वासितासङ्गमे दृप्तौ शरदीव मदोत्कटौ।।
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उभौ क्रोधविषं दीप्तं वमन्तावुरगाविव।
अन्योन्यमभिसंरब्धौ प्रेक्षमाणावरिन्दमौ।।
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उभौ भरतशार्दूलौ विक्रमेण समन्वितौ।
सिंहाविव दुराधर्षौ गदायुद्धविशारदौ।।
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नखदंष्ट्रायुधौ वीरौ व्याघ्राविव दुरुत्सहौ।
प्रजासंहरणे क्षुब्धौ समुद्राविव दुस्तरौ।।
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लोहिताङ्गाविव क्रुद्धौ प्रतपन्तौ महारथौ।
[पूर्वपश्चिमजौ मेघौ प्रेक्षमाणावरिन्दमौ।।
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गर्जमानौ सुविषमं क्षरन्तौ प्रावृषीव हि।
रश्मियुक्तौ महात्मानौ दीप्तिमन्तौ महाबलौ।।
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ददृशाते कुरुश्रेष्ठौ कालसूर्याविवोदितौ।
व्याघ्राविव सुसंरब्धौ गर्जन्ताविवतोयदौ।।
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जहृषाते महाबाहु सिंहकेसरिणाविव।
गजाविव सुसंरब्धौ ज्वलिताविव पावकौ।।
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9-56-33b
ददृशाते महात्मानौ सशृङ्गाविव पर्वतौ।
रोषात्प्रस्फुरमाणोष्ठौ निरीक्षन्तौ परस्परम्।।
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तौ समेतौ महात्मानौ गदाहस्तौ नरोत्तमौ।]
उभौ परमसंहृष्टावुभौ परमसम्मतौ।।
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सदश्वाविव हेषन्तौ बृंहन्ताविव कुञ्जरौ।
वृषभाविव गर्जन्तौ दुर्योधनवृकोदरौ।
दैत्याविव बलोन्मत्तौ रेजतुस्तौ नरोत्तमौ।।
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ततो दुर्योधनो राजन्निदमाह युधिष्ठिरम्।
सृञ्जयैः सह तिष्ठन्तं तपन्तमिव भास्करम्।।
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इदं व्यवसितं युद्धं मम भीमस्य चोभयोः।
उपोपविष्टाः पश्यध्वं विमर्दं नृपसत्तमाः।।
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ततः समुपविष्टं तत्सुमहद्राजमण्डलम्।
विराजमानं ददृशे दिवीवादित्यमण्डलम्।।
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तेषां मध्ये महाबाहुः श्रीमान्केशवपूर्वजः।
उपविष्टो महाराज पूज्यमानः समन्ततः।।
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शुशुभे राजमध्यस्थो नीलवासाः सितप्रभः।
नक्षत्रैरिव सम्पूर्णो वृतो निशि निशाकरः।।
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तौ तथा तु महाराज गदाहस्तौ सुदुःसहौ।
अन्योन्यं वाग्भिरुग्राभिस्तक्षमाणौ व्यवस्थितौ।।
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अप्रियाणि ततोऽन्योन्यमुक्त्वा तौ कुरुसत्तमौ।
उदीक्षन्तौ स्थितौ तत्र वृत्रशक्रौ यथाऽऽहवे।।
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।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि
गयादुद्धपर्वणि षट्‌पञ्चाशत्तमोऽध्यायः।। 56 ।।
*एतच्छ्लोकस्य स्थाने झ.पुस्तके
अधोलिखिताः पञ्च श्लोका वर्तन्ते। ते च।
प्रीत्या परमया युक्ताः समभ्यर्च्य यथाविधि।
आसनं च ददौ तस्मै पर्यपृच्छदनामयम्।।
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ततो युधिष्ठिरं रामो वाक्यमेतदुवाच ह।
मधुरं धर्मसंयुक्तं शूराणां हितमेव च।।
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मया श्रुतं कथयतामृषीणां राजसत्तम।
कुरुक्षेत्रं परं पुण्यं पावनं स्वर्ग्यमेव च।।
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देवतैर्ऋषिभिर्जुष्टं ब्राह्मणैश्च महात्मभिः।
तत्र वै योत्स्यमाना ये देहं त्यक्ष्यन्ति मानवाः।।
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तेषां स्वर्गे ध्रुवो वासः शक्रेण सह मारिष।
तस्मात्समन्तपञ्चकमितो याम द्रुतं नृप।।
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9-56-8 वातिकाश्चारणा ये तु इति झ.पाठः। तत्र वातिकाः वातेन सह गच्छन्ति ते आकाशचारिणः। चारणाः सिद्धविशेषा इत्यर्थः।।। 9-56-11 स्वयनं सुगतिदम्।। 9-56-12 अनिरिणे अनूषरे।। 9-56-26 वासितासङ्गमे एककरिणीसङ्गमार्थे दृप्तौ मोहितौ।। 9-56-30 लोहिताङ्गौ द्वौ कुजाविवेत्यभूतोपमा।। 9-56-33 जहषाते हर्षं प्रापतुः।। 9-56-56 षट्पञ्चाशत्तमोऽध्यायः।।

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