महाभारतम्-09-शल्यपर्व-027
← शल्यपर्व-026 | महाभारतम् नवमपर्व महाभारतम्-09-शल्यपर्व-027 वेदव्यासः |
शल्यपर्व-028 → |
सहदेवेन शकुन्युलूकयोर्वधः।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-27-1x |
तस्मिन्प्रवृत्ते सङ्ग्रामे गजवाजिनरश्रो शकुनिः सौबलो राजन्सहदेवं xxxxxxयात्।। | 9-27-1a 9-27-1b |
ततोऽस्यापततस्तूर्णं सहदेवः पतापवान्। शरौघान्प्रेषयामास पतङ्गानिव शीघ्रगान्। उलूकं च रणे राजन्विव्याध दशभिः शरैः।। | 9-27-2a 9-27-2b 9-27-2c |
शकृनिश्च महाराज भीमं विद्ध्वा त्रिभिः शरैः। नवत्या निशितैर्बाणैः सहदेवमवाकिरत्।। | 9-27-3a 9-27-3b |
ते शूराः समरे राजन्समासाद्य परस्परम्। विव्यधुर्निशितैर्बाणैः कङ्कबर्हिणवाजितैः। स्वर्णपुङ्खैः शिलधौतैराकर्णप्रहितैः शरैः।। | 9-27-4a 9-27-4b 9-27-4c |
तेषां चापगुणोत्सृष्टा शरवृष्टिर्विशाम्पते। आच्छादयद्दिशः सर्वा धाराभिरिव तोयदः।। | 9-27-5a 9-27-5b |
ततः क्रुद्धो रणे भीमः सहदेवश्च भारत। चेरतुः कदनं सङ्ख्ये कुर्वन्तौ सुमहाबलौ।। | 9-27-6a 9-27-6b |
ताभ्यां शरशतैश्छनं तद्बलं तव भारत। सान्धकारमिवाकाशमभवत्तत्रतत्र ह।। | 9-27-7a 9-27-7b |
अश्वैर्विपरिधावद्भिः शरच्छन्नैर्विशाम्पते। तत्रतत्र कृतो मार्गो विकर्षद्भिर्हतान्बहून्।। | 9-27-8a 9-27-8b |
निहतानां हयानां च सहैव हयसादिभिः। वर्मभिर्विनिकृत्तैश्च प्रासैश्छिन्नैश्च मारिष।। | 9-27-9a 9-27-9b |
ऋष्टिभिः शक्तिभिश्चैव सासिप्रासपरश्वथैः। सञ्छन्ना पृथिवी जज्ञे कुसुमैः शबला इव।। | 9-27-10a 9-27-10b |
योधास्तत्र महाराज समासाद्य परस्परम्। व्यचरन्त रणे क्रुद्धा विनिघ्नन्तः परस्परम्।। | 9-27-11a 9-27-11b |
उद्वृत्तनयनै रोषात्सन्दष्टौष्ठपुटैर्मुखैः। सकुण्डलैर्मही च्छन्ना पद्मकिञ्चल्कसन्निभैः।। | 9-27-12a 9-27-12b |
भुजैश्छिन्नैर्महाराज नागराजकरोपमैः। साङ्गदैः सतनुत्रैश्च सासिप्रासपरश्वथैः।। | 9-27-13a 9-27-13b |
कबन्धैरुत्थितैश्छिन्नैर्नृत्यद्भिश्चापरैर्युधि। क्रव्यादगणसञ्छन्ना घोराऽभूत्पृथिवी विभो।। | 9-27-14a 9-27-14b |
अल्पावशिष्टे सैन्ये तु कौरवेयान्महाहवे। प्रहृष्टाः पाण्डवा भूत्वा निन्यिरे यमसादनम्।। | 9-27-15a 9-27-15b |
एतस्मिन्नन्तरे शूरः सौबलेयः प्रतापवान्। प्रासेन सहदेवस्य शिरसि प्राहरद्भृशम्।। | 9-27-16a 9-27-16b |
स विह्वलो महाराज रथोपस्थ उपाविशत्।। | 9-27-17a |
सहदेवं तथा दृष्ट्वा भीमसेनः प्रतापवान्। सर्वसैन्यानि सङ्क्रुद्धो वारयामास भारत।। | 9-27-18a 9-27-18b |
निर्बिभेद च नाराचैः शतशोऽथ सहस्रशः। स निर्भिद्याकरोच्चैव सिंहनादमरिन्दमः।। | 9-27-19a 9-27-19b |
तेन शभ्देन वित्रस्ताः सर्वे सहयवारणाः। प्राद्रवन्सहसा भीताः शकुनेश्च पदानुगाः।। | 9-27-20a 9-27-20b |
प्रभग्नानथ तान्दृष्ट्वा राजा दुर्योधनोऽब्रवीत्। निवर्तध्वमधर्मज्ञा युध्यध्वं किं सृतेन वः।। | 9-27-21a 9-27-21b |
इह कीर्ति समाधाय प्रेत्य लोकान्समश्नुते। प्राणाञ्जहाति यो धीरो युद्धे पृष्ठमदर्शयन्।। | 9-27-22a 9-27-22b |
एवमुक्तास्तु ते राज्ञा सौबलस्य पदानुगाः। पाण्डवानभ्यवर्तन्त मृत्युं कृत्वा निवर्तनम्।। | 9-27-23a 9-27-23b |
द्रवद्भिस्तत्र राजेन्द्र कृतः शब्दोऽतिदारुणः। क्षुब्धसागरसङ्काशः क्षुभितैः सर्वतो दिशम्।। | 9-27-24a 9-27-24b |
तांस्ततः पुरतो दृष्ट्वा सौबलस्य पदानुगान्। प्रत्युद्ययुर्महाराज पाण्डवा विजयोद्यताः।। | 9-27-25a 9-27-25b |
प्रत्याश्वस्य च दुर्धर्षः सहदेवो विशाम्पते। शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा हयांश्चास्य त्रिभिः शरैः। धनुश्चिच्छेद च शरैः सौबलस्य हसन्निव।। | 9-27-26a 9-27-26b 9-27-26c |
अथान्यद्धनुरादाय शकुनिर्युद्धदुर्मदः। विव्याध नकुलं षष्ट्या भीमसेनं च सप्ताभिः।। | 9-27-27a 9-27-27b |
उलूकोऽपि महाराज भीमं विव्याध सप्तभिः। सहदेवं च सप्तत्या परीप्सन्पितरं रणे।। | 9-27-28a 9-27-28b |
तं भीमसेनः समरे विव्याध नवभिः शरैः। शकुनिं च चतुःषष्ट्या पार्श्वस्थांश्च त्रिभिस्त्रिभिः।। | 9-27-29a 9-27-29b |
ते हन्यमाना भीमेन नाराचैस्तैलपायितैः। सहदेवं रणे क्रुद्धाश्छादयञ्शरवृष्टिभिः। पर्वतं वारिधाराभिः सविद्युत इवाम्बुदाः।। | 9-27-30a 9-27-30b 9-27-30c |
ततोऽस्यापततः शूरः सहदेवः प्रतापवान्। उलूकस्य महाराज भल्लेनापाहरच्छिरः।। | 9-27-31a 9-27-31b |
स जगाम रथाद्भूमिं सहदेवेन पातितः। रुधिराप्लुतसर्वाङ्गो नन्दयन्पाण्डवान्युधि।। | 9-27-32a 9-27-32b |
पुत्रं तु निहतं दृष्ट्वा शकुनिस्तत्र भारत। साश्रुकण्ठो विनिःश्वस्य क्षत्तुर्वाक्यमनुस्मरन्।। | 9-27-33a 9-27-33b |
चिन्तयित्वा मुहूर्तं स बाष्पपूर्णेक्षणः श्वसन्। सहदेवं समासाद्य त्रिभिर्विव्याध सायकैः।। | 9-27-34a 9-27-34b |
तानपास्य शरान्मुक्ताञ्शरसङ्घैः प्रताम्पवान्। सहदेवो महाराज धनुश्चिच्छेद संयुगे।। | 9-27-35a 9-27-35b |
छिन्ने धनुषि राजेन्द्र शकुनिः सौबलस्तदा। प्रगृह्य विपुलं खङ्गं सहदेवाय प्राहिणोत्।। | 9-27-36a 9-27-36b |
तमापतन्तं सहसा घोररूपं विशाम्पते। द्विधा चिच्छेद समरे सौबलस्य हसन्निव।। | 9-27-37a 9-27-37b |
असिं दृष्ट्वा द्विधा च्छिन्नं प्रगृह्य महतीं गदाम्। प्राहिणोत्सहदेवाय सा मोघा न्यपतद्भुवि।। | 9-27-38a 9-27-38b |
ततः शक्तिं महाघोरां कालरात्रीमिवोद्यताम्। प्रेषयामास सक्रुद्धः पाण्डवं प्रति सौबलः।। | 9-27-39a 9-27-39b |
तामापतन्तीं सहसा शरैः कनकभूषणैः। त्रिधा चिच्छेद समरे सहदेवो हसन्निव।। | 9-27-40a 9-27-40b |
सा पपात त्रिधा च्छिन्ना भूमौ कनकभूषणा। शीर्यमाणा यथा दीप्ता गगनाद्वै शतहदा।। | 9-27-41a 9-27-41b |
शक्तिं विनिहतां दृष्ट्वा सौबलं च भयार्दितम्। दुद्रुवुस्तावकाः सर्वे भये जाते ससौबलाः।। | 9-27-42a 9-27-42b |
अथोत्क्रुष्टं महच्चासीत्पाण्डवैर्जितकाशिभिः। धार्तराष्ट्रास्ततः सर्वे प्रायशो विमुखाऽभवन्।। | 9-27-43a 9-27-43b |
तान्वै विमनसो दृष्ट्वा माद्रीपुत्रः प्रतापवान्। शरैरनेकसाहस्रैर्वारयामास संयुगे।। | 9-27-44a 9-27-44b |
ततो गान्धारकैर्गुप्तं पुष्टैरश्वैर्जये धृतम्। आससाद रमे यान्तं सहदेवोऽथ सौबलम्।। | 9-27-45a 9-27-45b |
स्वमंशमवशिष्टं तं संस्मृत्य शकुनिं नृप। रथेन काञ्चनाङ्गेन सहदेवः समभ्ययात्।। | 9-27-46a 9-27-46b |
अधिज्यं बलवत्कृत्वा व्याक्षिपन्सुमहद्धनुः। स सौबलमभिद्रुत्य गार्ध्रपत्रैः शिलाशितैः।। | 9-27-47a 9-27-47b |
भृशमभ्यहन्त्कुद्धस्तोत्रैरिव महाद्विपम्। उवाच चैनं मेधावी विगृह्य स्मारयन्निव।। | 9-27-48a 9-27-48b |
क्षत्रधर्मे स्थिरो भूत्वा युध्यस्व पुरुषो भव। यत्तदा भाषसे मूढ गृह्णन्नक्षान्सभातले। फलमद्य प्रपद्यस्व कर्मणस्तस्य दुर्मते।। | 9-27-49a 9-27-49b 9-27-49c |
निहतास्ते दुरात्मानो येऽस्मानवहसन्पुरा। दुर्योधनः कुलाङ्गारः शिष्टस्त्वं चास्य मातुलः।। | 9-27-50a 9-27-50b |
अद्य ते निहनिष्यामि क्षुरेणोन्मथितं शिरः। वृक्षात्फलमिवाविद्वं लगुडेन प्रमाथिना।। | 9-27-51a 9-27-51b |
एवमुक्त्वा महाराज सहदेवो महाबलः। सङ्क्रुद्धो रणशार्दूलो वेगेनाभिजगाम तम्।। | 9-27-52a 9-27-52b |
अभिगम्य सुदुर्धर्षः सहदेवो युधां पतिः। विकृष्य बलवच्चापं क्रोधेन प्रज्वलन्निव।। | 9-27-53a 9-27-53b |
शकुनिं दशभिर्विद्ध्वा चतुर्भिश्चास्य वाजिनः। छत्रं ध्वजं धनुश्चास्य च्छित्त्वा सिंह इवानदत्।। | 9-27-54a 9-27-54b |
छिन्नध्वजधनुश्छत्रः सहदेवेन सौबलः। कृतो विद्धश्च बहुभिः सर्वमर्मसु सायकैः।। | 9-27-55a 9-27-55b |
ततो भूयो महाराज सहदेवः प्रतापवान्। शकुनेः प्रेषयान्मास शरवृष्टिं दुरासदाम्।। | 9-27-56a 9-27-56b |
ततस्तु क्रुद्धः सुबलस्य पुत्रो माद्रीसुतं सहदेवं विमर्दे। प्रासेन जाम्बूनदभूषणेन जिघांसुरेकोऽभिपपात शीघ्रम्।। | 9-27-57a 9-27-57b 9-27-57c 9-27-57d |
माद्रीसुतस्तस्य समुद्यतं तं प्रासं सुवृत्तौ च भुजौ रणाग्रे। भल्लैस्त्रिभिर्युगपत्सञ्चकर्त ननाद चोच्चैस्तरसाऽऽजिमध्ये।। | 9-27-58a 9-27-58b 9-27-58c 9-27-58d |
तस्याशुकारी सुसमाहितेन सुवर्णपुङ्खेन दृढायसेन। भल्लेन सर्वावरणातिगेन शिरः शरीरात्प्रममाथ भूयः।। | 9-27-59a 9-27-59b 9-27-59c 9-27-59d |
शरेण कार्तस्वरभूषितेन दिवाकराभेण सुसंहितेन। हृतोत्तमाङ्गो युधि पाण्डवेन पपात भूमौ सुबलस्य पुत्रः।। | 9-27-60a 9-27-60b 9-27-60c 9-27-60d |
स तच्छिरो वेगवता शरेण सुवर्णपुङ्खेन शिलाशितेन। प्रावेरयत्कुपितः पाण्डुपुत्रो यत्तत्कुरूणामनयस्य मूलम्।। | 9-27-61a 9-27-61b 9-27-61c 9-27-61d |
भुजौ सुवृत्तौ प्रचकर्त वीरः पश्चात्कबन्धं रुधिरावसिक्तम्। विस्पन्दमानं निपपात घोरं रथोत्तमात्पार्थिव पार्थिवस्य।। | 9-27-62a 9-27-62b 9-27-62c 9-27-62d |
हृतोत्तमाङ्गं शकुनिं समीक्ष्य भूमौ शयानं रुधिरार्द्रगात्रम्। योधास्त्वदीया भयनष्टसत्वा दिशः प्रजग्मुः प्रगृहीतशस्त्राः।। | 9-27-63a 9-27-63b 9-27-63c 9-27-63d |
प्रविद्रुताः शुष्कमुखा विसञ्ज्ञा गाण्डीवघोषेण समाहताश्च। भयार्दिता भग्नरथाश्वनागाः पदातयश्चैव सधार्तराष्ट्राः।। | 9-27-64a 9-27-64b 9-27-64c 9-27-64d |
ततो रथाच्छकुनिं पातयित्वा मुदान्विता भारत पाण्डवेयाः शङ्कान्प्रदध्युः समरेऽतिहृष्टाः सकेशवाः सैनिकान्हर्षयन्तः।। | 9-27-65a 9-27-65b 9-27-65c 9-27-65d |
तं चापि सर्वे प्रतिपूजयन्तो दृष्ट्वा ब्रुवाणाः सहदेवमाजौ। दिष्ट्या हतो नैकृतिको महात्मा सहात्मजो वीर रणे त्वयेति।। | 9-27-66a 9-27-66b 9-27-66c 9-27-66d |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे सप्तविंशोऽध्यायः।। 27 ।। |
9-27-7 अलङ्कृतमिवाकाशं इति क.पाठः।। 9-27-49 यत्तदा हृष्यसे मृढ ग्लहन्नक्षैः इति झ.पाठः।। 9-27-27 सप्तविंशोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-026 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-028 |