महाभारतम्-09-शल्यपर्व-018
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-18-1x |
पातिते युधि दुर्धर्षे मद्रराजे महारथे। तावकास्तव पुत्राश्च प्रायशो विमुखाऽभवन्।। | 9-18-1a 9-18-1b |
वणिजो नावि भिन्नायां यथागाधे महार्णवे। अपारे पारमिच्छन्तो हते शूरे महात्मनि।। | 9-18-2a 9-18-2b |
मद्रराजे महाराज वित्रस्ताः शरविक्षताः। अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहार्दिता इव।। | 9-18-3a 9-18-3b |
वृषा यथा भग्नशृङ्गाः शीर्णदन्ता यथा गजाः। मध्याह्ने प्रत्यपायाम निर्जिताऽजातशत्रुणा।। | 9-18-4a 9-18-4b |
न संस्थातुमनीकानि न च राजन्पराक्रमे। आसीद्बुद्धिर्हते शल्ये तव योधस्य कस्यचित्।। | 9-18-5a 9-18-5b |
भीष्मे द्रोणे च निहते सूतपुत्रे च पातिते। यद्दुःखं तव योधानां भयं चासीद्विशाम्पते।। | 9-18-6a 9-18-6b |
तद्भयं स च नः शोको भूय एवाभ्यवर्तत। निराशाश्च जये राजन्हते शल्ये महारथे।। | 9-18-7a 9-18-7b |
हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ताश्च शितैः शरैः। मद्रराजे हते राजन्योधास्ते प्राद्रवन्भयात्।। | 9-18-8a 9-18-8b |
अश्वानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः। आरुह्य जवसम्पन्ना पादाताः प्राद्रवंस्तथा।। | 9-18-9a 9-18-9b |
द्विसाहस्राश्च महातङ्गा गिरिरूपाः प्रहारिणः। xxप्राद्रवन्हते शल्ये अङ्कुशाङ्गुष्ठनोदिताः।। | 9-18-10a 9-18-10b |
ते रणाद्भरतश्रेष्ठ तावकाः प्राद्रवन्दिशः। धावतश्चाप्यपश्याम श्वसमानाञ्शराहतान्।। | 9-18-11a 9-18-11b |
तान्प्रभग्नान्हतान्दृष्ट्वा हतोत्साहान्पराजितान्। अभ्यवर्तन्त पाञ्चालाः पाण्डवाश्च जयैषिणः।। | 9-18-12a 9-18-12b |
बाणशब्दरवाश्चापि सिंहनादाश्च पुष्कलाः। शङ्खशब्दश्च शूराणां दारुणः समपद्यत।। | 9-18-13a 9-18-13b |
दृष्ट्वा तु कौरवं सैन्यं भयत्रस्तं प्रविद्रुतम्। अन्योन्यं समभाषन्त पाञ्चालाः पाण्डवैः सह।। | 9-18-14a 9-18-14b |
अद्य राजा सत्यधृतिर्हतामित्रो युधिष्ठिरः। अद्य दुर्योधनो हीनो दीप्तया नृपतिश्रिया।। | 9-18-15a 9-18-15b |
अद्य श्रुत्वा हतं पुत्रं धृतराष्ट्रो जनेश्वरः। निःसंज्ञः पतितो भूमौ किल्बिषं प्रतिपत्स्यते।। | 9-18-16a 9-18-16b |
अद्य जानाति बीभत्सुं समर्थं स्वधन्विनाम्। अद्यात्मानं च दुर्मेधा गर्हयिष्यति पापकृत्।। | 9-18-17a 9-18-17b |
अद्य क्षत्तुर्वचः सत्यं स्मरतां ब्रुवतो हितम्। अद्यप्रभृति पार्थं च प्रेष्यभूत इवाचरन्। विजानातु नृपो दुःखं यत्प्राप्तं पाण्डुनन्दनैः।। | 9-18-18a 9-18-18b 9-18-18c |
अद्य कृष्णस्य माहात्म्यं विजानातु महीपतिः। अद्यार्जुनधनुर्घोषं घोरं जानातु संयुगे।। | 9-18-19a 9-18-19b |
अत्त्राणां च बलं सर्वं बाह्वोश्च बलमाहवे। `पुत्राणां च वधं घोरं भीमेन श्रोष्यते नृपः'।। | 9-18-20a 9-18-20b |
अद्य ज्ञास्यति भीमस्य बलं घोरं महात्मनः। हते दुर्योधने युद्धे शक्रेणेव तु शम्बरे।। | 9-18-21a 9-18-21b |
यत्कृतं भीमसेनेन दुःशासनवधे तदा। कोऽन्यः कर्ताऽस्ति तल्लोके ऋते भीमान्महाबलात्। | 9-18-22a 9-18-22b |
अद्य ज्येष्ठस्य जानीतां पाण्डवस्य पराक्रमम्। मद्रराजं हतं श्रुत्वा देवैरपि सुदुःसहम्।। | 9-18-23a 9-18-23b |
अद्य ज्ञास्यति सङ्ग्रामे माद्रीपुत्रौ सुदुःसहौ। निहते सौबले वीरे गान्धारेषु च सर्वशः।। | 9-18-24a 9-18-24b |
xxxx न तेषां स्याद्येषां योद्धा धनञ्जयः। xxxxx धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः।। | 9-18-25a 9-18-25b |
xxxx पञ्च माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ। शिखण्डी च महेष्वासो राजा चैव युधिष्ठिरः।। | 9-18-26a 9-18-26b |
येषां च जगतो नाथो नाथः कृष्णो जनार्दनः। कथं तेषां जयो न स्याद्येषां धर्मो व्यपाश्रयः।। | 9-18-27a 9-18-27b |
`लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराभवः। येषां नाथो हृषीकेशः सर्वलोकविभुर्हरिः'।। | 9-18-28a 9-18-28b |
भीष्मं द्रोणं च कर्णं च मद्रराजानमेव च। तथाऽन्यान्नृपतीन्वीराञ्शतशोऽथ सहस्रशः।। | 9-18-29a 9-18-29b |
कोऽन्यः शक्तो रणे जेतुमृते पार्थाद्युधिष्ठिरात्। यस्य नाथो हृषीकेशः सदा सत्ययशोनिधिः।। | 9-18-30a 9-18-30b |
इत्येवं वदमानास्ते हर्षेण महता युताः। प्रभग्नांस्तावकान्योधान्संहृष्टाः पृष्ठतोऽन्वयुः।। | 9-18-31a 9-18-31b |
धनञ्जयो रथानीकमभ्यवर्तत वीर्यवान्। माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महारथः।। | 9-18-32a 9-18-32b |
तान्प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान्भीमसेनभयार्दितान्। दुर्योधनस्तदा सूतमब्रवीद्विस्मयन्निव।। | 9-18-33a 9-18-33b |
मामतिक्रमते पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम्। जघने सर्वसैन्यानां शनैरश्वान्प्रचोदय।। | 9-18-34a 9-18-34b |
जघने युध्यमानं हि कौन्तेयो मां न संशयः। नोत्सहेदभ्यतिक्रान्तुं वेलामिव महोदधिः।। | 9-18-35a 9-18-35b |
पश्य सैन्यं महत्सूत पाण्डवैः समभिद्रुतम्। सैन्यरेणुं समुद्भूतं पश्य चैनं समन्ततः।। | 9-18-36a 9-18-36b |
सिंहनादांश्च समुद्भूतं पश्य चैनं समन्ततः।। तस्माद्याहि शनैः सूत जघनं परिपालय।। | 9-18-37a 9-18-37b |
मयि स्थिते च समरे निरुद्धेषु च पाण्डुषु। पुनरावर्तते तूर्णं मामकं बलमोजसा।। | 9-18-38a 9-18-38b |
तच्छ्रुत्वा तव पुत्रस्य शूरस्य सदृशं वचः। सारथिर्हेमसञ्छन्नाञ्शरैरश्वानचोदयत्।। | 9-18-39a 9-18-39b |
गजाश्वरथिभिर्हीनास्त्यक्तात्मानः पदातयः। एकविंशतिसाहस्राः संयुगायावतस्थिरे।। | 9-18-40a 9-18-40b |
नानादेशसमुद्भूता नानारञ्जितवाससः। अवस्थितास्तदा योधाः प्रार्थयन्तो महद्यशः।। | 9-18-41a 9-18-41b |
तेषामापततां तत्र संहृष्टानां परस्परम्। सम्मर्दः सुमहाञ्चज्ञे घोररूपो भयानकः।। | 9-18-42a 9-18-42b |
भीमसेनं तदा राजन्धृष्टद्युम्नं च पार्षतम्। बलेन चतुरङ्गेण नानादेश्यानवारयत्।। | 9-18-43a 9-18-43b |
भीममेवाभ्यवर्तन्त रणेऽन्ये तु पदातयः। प्रक्ष्वेड्यास्फोट्य संहृष्टा वीरलोकं यियासवः।। | 9-18-44a 9-18-44b |
आसाद्य भीमसेनं तु संरब्धा युद्धदुर्मदाः। धार्तराष्ट्रा विनेदुर्हि नान्यामकथनयन्कथाम्। परिवार्य रणे भीमं निजघ्नुस्ते समन्ततः।। | 9-18-45a 9-18-45b 9-18-45c |
स वध्यमानः समरे पदातिगणसंवृतः। न चचाल ततः स्थानान्मैनाक इव पर्वतः।। | 9-18-46a 9-18-46b |
ते तु क्रुद्धा महाराज पाण्डवस्य महारथम्। निग्रहीतुं प्रवृत्ता हि योधांश्चान्यानवारयन्।। | 9-18-47a 9-18-47b |
अक्रुध्यत रणे भीमस्तैस्तदा पर्यवस्थितैः। सोऽवतीर्य रथात्तूर्णं पदातिः समवस्थितः।। | 9-18-48a 9-18-48b |
जातरूपप्रतिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम्। अवधीत्तावकान्योधान्दण्डपाणिरिवान्तकः।। | 9-18-49a 9-18-49b |
रथाश्वविप्रहीणांस्तु तान्भीमो गदया बली। एकविंशतिसाहस्रान्पदातीन्समपोथयत्।। | 9-18-50a 9-18-50b |
हत्वा तत्पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः। धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य न चिरात्प्रत्यदृश्यत।। | 9-18-51a 9-18-51b |
पादाता निहता भूमौ शिश्यिरे रुधिरोक्षितः। सम्भग्ना इव वातेन कर्णिकाराः सुपुष्पिताः।। | 9-18-52a 9-18-52b |
नानाशस्त्रसमायुक्ता नानाकुण्डलधारिणः। नानाजात्या हतास्तत्र नादेशसमागताः।। | 9-18-53a 9-18-53b |
पताकाध्वजसञ्छन्नं पदातीनां महद्बलम्। निकृत्तं विबभौ रौद्रं घोररूपं भयावहम्।। | 9-18-54a 9-18-54b |
युधिष्ठिरपुरोगाश्च सहसैन्या महारथाः। अभ्यधावन्महात्मानं पुत्रं दुर्योधनं तव।। | 9-18-55a 9-18-55b |
ते सर्वे तावकान्दृष्ट्वा महेष्वासान्पराङ्मुखान्। नाभ्यवर्तन्त ते पुत्रं वेलामिव महोर्मयः।। | 9-18-56a 9-18-56b |
तदद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्। यदेकं सहिताः पार्था न शेकुरतिवर्तितुम्।। | 9-18-57a 9-18-57b |
नातिदूरापयातं तु कृतबुद्वि पलायने। दुर्योधनः स्वकं सैन्यमब्रवीद्भृशविक्षतम्।। | 9-18-58a 9-18-58b |
न तं देशं प्रपश्यामि पृथिव्यां पर्वतेषु च। यत्र यातान्न वा हन्युः पाण्डवाः किं सृतेन वः।। | 9-18-59a 9-18-59b |
अल्पं च बलमेतेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ। यदि सर्वेऽत्र तिष्ठामो ध्रुवं नो विजयो भवेत्।। | 9-18-60a 9-18-60b |
विप्रयातांस्तु वो भिन्नान्पाण्डवाः कृतविप्रियाः। अनुयाय हनिष्यन्ति श्रेयान्नः समरे वधः।। | 9-18-61a 9-18-61b |
शृण्वन्तु क्षत्रियाः सर्वे यावन्तोऽत्र समागताः। यदा शूरं च भीरुं च मारयत्यन्तकः सदा।। | 9-18-62a 9-18-62b |
को नु मूढो न युध्येत पुरुषः क्षत्रियो ध्रुवम्। श्रेयान्नो भीमसेनस्य क्रुद्धस्याभिमुखे स्थितः।। | 9-18-63a 9-18-63b |
सुखः साङ्ग्रामिको मृत्युर्दुःखो व्याधिजरादिभिः। मर्त्येनावश्यमर्तव्यं गृहेष्वपि कदाचन।। | 9-18-64a 9-18-64b |
युध्यतः क्षत्रधर्मेण मृत्युरेष सनातनः। हत्वेह सुखमाप्नोति हतः प्रेत्य महत्फलम्।। | 9-18-65a 9-18-65b |
न युद्धधर्माच्छ्रेयान्वै पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः। अचिरेणैव ताँल्लोकान्हतो युद्धे समश्नुते।। | 9-18-66a 9-18-66b |
श्रुत्वा तद्वचनं तस्य पूजयित्वा च पार्थिवाः। पुनरेवाभ्यवर्तन्त पाण्डवानाततायिनः।। | 9-18-67a 9-18-67b |
तानापतत एवाशु व्यूढानीकाः प्रहारिणः। प्रत्युद्ययुस्तदा पार्था जयगृद्धाः प्रमन्यवः।। | 9-18-68a 9-18-68b |
धनञ्जयो रथेनाजावभ्यवर्तत वीर्यवान्। विश्रुतं त्रिषु लोकेषु व्याक्षिपन्गाण्डिवं धनुः।। | 9-18-69a 9-18-69b |
माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महाबलः। जवेनाभ्यपतन्हृष्टा यत्ता वै तावकं बलम्।। | 9-18-70a 9-18-70b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे अष्टादशोऽध्यायः।। 18 ।। |
9-18-34 न मातेक्रमते पाथः इति ङ. पाठः। न मानसस्यते इति क.पाठः।। 9-18-18 अष्टादशोऽध्यायः।।
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