महाभारतम्-09-शल्यपर्व-003
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कृपेण कर्णवधदुःखितं दुर्योधनं प्रति स्वपरक्षयोर्दौर्बल्यप्राबल्याभिधानपूर्वकमुपायं प्रदर्श्य सन्धिविधानम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-3-1x |
शृणु राजन्नवहितो यथावृत्तो महान्क्षयः। कुरूणां पाण्डवानां च समासाद्य परस्परम्।। | 9-3-1a 9-3-1b |
निहते सूतपुत्रे च फल्गुनेन महात्मना। विद्रुतेषु च सैन्येषु समानीतेषु चासकृत्।। | 9-3-2a 9-3-2b |
विमुखे तव पुत्रे च शोकोपहतचेतसि। भृशोद्विग्नेषु सैन्येषु दृष्ट्वा पार्थस्य विक्रमम्।। | 9-3-3a 9-3-3b |
ध्यायमानेषु योधेषु दुऋखं प्राप्तेषु भारत। बलानां मत्यमानानां श्रुत्वा निनदमुत्तमम्।। | 9-3-4a 9-3-4b |
अभिज्ञानं नरेन्द्राणां विकृतं प्रेक्ष्य संयुगे। पतितानवनीपालान्धवजांश्चैव महात्मनाम्। रणे विनिहतान्नागान्दृष्ट्वा पत्तींश्च भारत।। | 9-3-5a 9-3-5b 9-3-5c |
आयोधनं महाघोरं रुद्रस्याक्रीडसन्निभम्। अप्रख्यातिं गतानां तु राज्ञां शतसहस्रशः।। | 9-3-6a 9-3-6b |
कृपाविष्टः कृपो दृष्ट्वा वयः शीलसमन्वितः। अब्रवीत्तत्र तेजस्वी सोऽभिसृत्य जनाधिपम्। दुर्योधनमनुक्रोशाद्वाक्यं वाक्यविशारदः।। | 9-3-7a 9-3-7b 9-3-7c |
दुर्योधन निबोधेयं यत्त्वां वक्ष्यामि कौरव। श्रुत्वा कुरु महाराज यदि ते रोचतेऽनघ।। | 9-3-8a 9-3-8b |
न युद्धधर्माच्छ्रेयान्वै पन्था राजेन्द्र विद्यते। यं समाश्रित्य युध्यन्ते क्षत्रियाः क्षत्रियर्षभ।। | 9-3-9a 9-3-9b |
पुत्रो भ्राता पिता चैव स्वस्रीयो मातुलस्तथा। सम्बन्धिबान्धवाश्चैव योद्वव्याः क्षत्रजीविन।। | 9-3-10a 9-3-10b |
वधे चैव परो धर्मस्तथाऽधर्मः पलायने। ते स्म घोरां समापन्ना जीविकां जीवितार्थिनः। तदत्र प्रतिवक्ष्यामि किञ्चिदेव हितं वचः।। | 9-3-11a 9-3-11b 9-3-11c |
हते भीष्मे च द्रोणे च कर्णे चैव महारथे। जयद्रथे च निहते तव भ्रातृषु चानघ। लक्ष्मणे तव पुत्रे च किं शेषं पर्युपास्महे।। | 9-3-12a 9-3-12b 9-3-12c |
येषु भारं समासज्य राज्ये मतिमकुर्महि। ते सन्त्यज्य तनूर्याताः शूरा ब्रह्मविदां गतिम्।। | 9-3-13a 9-3-13b |
वयं त्विह विनाभूता गुणवद्भिर्महारथैः। कृपणं वर्तयिष्यामः पातयित्वा नृपान्बहून्।। | 9-3-14a 9-3-14b |
सर्वैरथ च जीवद्भिर्बीभत्सुरपराजितः। कृष्णनेत्रो महाबाहुर्देवैरपि दुरासदः।। | 9-3-15a 9-3-15b |
इन्द्रकार्मुकवज्राभमिन्द्रकेतुमिवोच्छ्रितम्। वानरं केतुमासाद्य सञ्चचाल महाचमूः।। | 9-3-16a 9-3-16b |
सिंहनादेन भीमस्य पाञ्चजन्यस्वनेन च। गाण्डीवस्य च निर्घोषात्सम्मुह्यन्ते मनांसि नः।। | 9-3-17a 9-3-17b |
स्फुरन्तीव महाविद्युन्मुष्णन्ती नयनप्रभाम्। अलातमिव चाविद्वं गाण्डवीं समदृश्यत।। | 9-3-18a 9-3-18b |
जाम्बूनदविचित्रं च धूयमानं महद्धनुः। दृश्यते दिक्षु स्रवासु विद्युदभ्रघनेष्विव।। | 9-3-19a 9-3-19b |
उह्यमानश्च कृष्णेन वायुनेव बलाहकः। तावकं तद्बलं राजन्नर्जुनोऽस्त्रविशारदः। गहनं शिशिरापाये ददाहाग्निरिवोल्बणः।। | 9-3-20a 9-3-20b 9-3-20c |
गाहमानमनीकानि महेन्द्रसदृशप्रभम्। विक्षोभयन्तं सेनां वै त्रासयन्तं च पार्थिवान्। धनञ्जयमपश्याम नलिनीमिव कुञ्जरम्।। | 9-3-21a 9-3-21b 9-3-21c |
त्रासयन्तं तथा योधान्धनुर्घोषेण पांण्डवम्। भूय एनमपश्याम सिंहं मृगगणानिव।। | 9-3-22a 9-3-22b |
सर्वलोकमहेष्वासो वृषभौ सर्वधन्विनाम्। आमुक्तकवचौ कृष्णौ लोकमध्ये विरेजतुः।। | 9-3-23a 9-3-23b |
अद्य सप्तदशाहानि वर्तमानस्य भारत। सङ्ग्रामस्यातिघोरस्य युध्यतां चाभितो युधि।। | 9-3-24a 9-3-24b |
वायुनेव विधूतानि एव सैन्यानि गच्छता। शरदम्भोदजालानि विशीर्यन्ते समन्ततः।। | 9-3-25a 9-3-25b |
तां नावमिव पर्यस्तां मज्जमानां महार्णवे। तव सेनां महाराज सव्यसाची व्यकम्पयत्।। | 9-3-26a 9-3-26b |
क्वनु ते सूतपुत्रोऽभूत्क्वनु द्रोणः सहात्मजः। अहं क्व च क्व चात्मा ते हार्दिक्यश्च तथा क्वनु।। | 9-3-27a 9-3-27b |
दुःशासनश्च ते भ्राता भ्रातृभिः सहितः क्वनु।। | 9-3-28a |
वाणगोचरसम्प्राप्तं युध्यमानं जयद्रथम्। सम्बन्धिनस्ते भ्रातॄंश्च साहयान्मातुलांस्तथा। सर्वान्विक्रम्य मिपतो लोकमाक्रम्य मूर्धनि।। | 9-3-29a 9-3-29b 9-3-29c |
जयद्रथो हतो राजन्किन्नु शेषमुपास्महे। को वेह स पुमानास्ते यो विजेष्यति पाण्डवम्।। | 9-3-30a 9-3-30b |
तस्य चास्त्राणि दिव्यानि विदितानि महात्मनः। गाण्डीवस्य च निर्घोषो धैर्याणि हरते हि नः।। | 9-3-31a 9-3-31b |
नष्टचन्द्रा यथा रात्रिः सेनेयं हतनायका। नागभग्नद्रुमा शुष्का नदीव प्रतिभाति मे।। | 9-3-32a 9-3-32b |
ध्वजिन्यां हतनेत्रायां यथेष्टं श्वेतवाहनः। चरिष्यति महाराजः कक्षेष्वग्निरिव ज्वलन्।। | 9-3-33a 9-3-33b |
सात्यकेश्चैव यो वेगो भीमसेनस्य चोभयोः। दारयेत गिरीन्सर्वाञ्शोषयेच्चैव सागरान्।। | 9-3-34a 9-3-34b |
उवाच वाक्यं यद्भीमः सभामध्ये विशाम्पते। कृतं तत्सफलं सर्वं भूयश्चैव करिष्यति।। | 9-3-35a 9-3-35b |
प्रमुखस्थे तदा कर्णे बलं पाण्डवरक्षितम्। दुरासदं तदा गुप्तं व्यूढं गाण्डीवधन्वना।। | 9-3-36a 9-3-36b |
युष्माभिस्तानि चीर्णानि यान्यसाधूनि साधुषु। अकारणकृतान्येव तेषां वः फलमागतम्।। | 9-3-37a 9-3-37b |
आत्मनोऽर्थे त्वया लोके यत्नतः सर्व आहृतः। स ते संशयितस्तात आत्मा च भरतर्षभ।। | 9-3-38a 9-3-38b |
रक्ष दुर्योधनात्मानमात्मा सर्वस्य भाजनम्। भिन्ने हि भाजने तात दिशो गच्छति तद्गतम्।। | 9-3-39a 9-3-39b |
हीयमानेन वै सन्धिः पर्येष्टव्यः समेन वा। विग्रहो वर्धमानेन नीतिरेषा बृहस्पतेः।। | 9-3-40a 9-3-40b |
ते वयं पाण्डुपुत्रेभ्यो हीनाः स्म बलशक्तितः। अत्र ते पाण्डवैः सार्धं सन्धिं मन्ये क्षमं प्रभो।। | 9-3-41a 9-3-41b |
न जानीते हि यः श्रेयः श्रेयसश्चावमन्यते। स क्षिप्रं भ्रश्यते राज्यान्न च श्रेयोऽनुविन्दति।। | 9-3-42a 9-3-42b |
अणिपत्य हि राजानं राज्यं यदि लभेमहि। श्रेयः स्यान्न तु मौढ्येन राजन्गन्तुं पराभवम्।। | 9-3-43a 9-3-43b |
वैचित्रवीर्यवचनात्कृपाशीलो युधिष्ठिरः। विनियुञ्जीत राज्ये त्वां गोविन्दवचनेन च।। | 9-3-44a 9-3-44b |
`अजातशत्रुः कौरव्यो गुरुशुश्रूषणे रतः। धृतराष्ट्रस्य वचनं नावमंस्यति धार्मिकः।। | 9-3-45a 9-3-45b |
कुर्वन्ति भ्रातरश्चास्य वचनं नात्र संशयः।। | 9-3-46a |
यद्ब्रूयाद्धि हृषीकेशो राजानमपराजितम्। अर्जुनो भीमसेनश्च सर्वे कुर्युरसंशयम्।। | 9-3-47a 9-3-47b |
नातिक्रमिष्यते कृष्णो वचनं पाण्डवस्य तु। धृतराष्ट्रस्य मन्येऽहं नापि कृष्णस्य पाण्डवः।। | 9-3-48a 9-3-48b |
एतत्क्षममहं मन्ये तव पार्थैरविग्रहम्। न त्वां ब्रवीमि कार्पण्यान्न प्राणपरिरक्षणात्।। | 9-3-49a 9-3-49b |
पथ्यं राजन्ब्रवीमि त्वां तत्परासुः स्मरिष्यसि।। | 9-3-50a |
इति वृद्धो विलप्यैतत्कृपः शारद्वतो वचः। दीर्घमुष्णं च निःश्वस्यशुशोच च मुमोह च।। | 9-3-51a 9-3-51b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि तृतीयोऽध्यायः।। 3 ।। |
9-3-12 शेषास्त्वां पर्युपास्महे इति ङ.पाठः।। 9-3-15 कृष्णो नेत्रं नेता यस्य स तथा।। 9-3-24 वर्तमानस्य सङ्ग्रामस्य अभितो वध्यतां वध्यमानानां च अद्य सप्तदशाहानि जातानीत्यन्वयः। जातानीति शेषः।। 9-3-47 अर्जुनं भीमसेनं च इति झ. पाठः। असंशयं गतवैरमित्यर्थः।। 9-3-48 वचनं कौरवस्य तु इति झ. पाठः।। 9-3-3 तृतीयोऽध्यायः।।
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