महाभारतम्-09-शल्यपर्व-045

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वेदव्यासः
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कुमारोत्पत्तिवर्णनम्।। 1 ।।

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जनमेजय उवाच। 9-45-1x
सरस्वत्याः प्रभावोऽयमुक्तस्ते द्विजसत्तम।
कुमारस्याभिषेकं तु ब्रह्मन्नाख्यातुमर्हसि।।
9-45-1a
9-45-1b
यस्मिन्देशे च काले च यथा च वदतां वर।
यैश्चाभिषिक्तो भगवान्विधिना येन च प्रभुः।।
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9-45-2b
स्कन्दो यथा च दैत्यानामकरोत्कदनं महत्।
तथा मे सर्वमाचक्ष्व परं कौतूहलं हि मे।।
9-45-3a
9-45-3b
वैशम्पायन उवाच। 9-45-4x
कुरुवंशस्य सदृशं कौतूहलमिदं तव।
हर्षमुत्पादयत्वेव वचो मे जनमेजय।।
9-45-4a
9-45-4b
हन्त ते कथयिष्यामि शृण्वानस्य नराधिप।
अभिषेकं कुमारस्य प्रभावं च महात्मनः।।
9-45-5a
9-45-5b
तेजो माहेश्वरं स्कन्नमग्नौ प्रपतितं पुरा।
तत्सर्वं भगवानग्निर्नाशकद्धर्तुमक्षयम्।।
9-45-6a
9-45-6b
तेन सीदति तेजस्वी दीप्तिमान्हव्यवाहनः।
न चैवं धारयामास ब्रह्मणे उक्तवान्प्रभुः।।
9-45-7a
9-45-7b
स गङ्गामुपसगम्य नियोगाद्ब्रह्मणः प्रभुः।
गर्भमाहितवान्दिव्यं भास्करोपमतेजसम्।।
9-45-8a
9-45-8b
अथ गङ्गापि तं गर्भमसहन्ती विधारणे
उत्ससर्ज गिरौ रम्ये हिमवत्यमरार्चिते।।
9-45-9a
9-45-9b
स तत्र ववृधे लोकानावृत्य ज्वलनात्मजः।
ददृशुर्ज्वलनाकारं तं गर्भमथ कृत्तिकाः।।
9-45-10a
9-45-10b
शरस्तम्बे महात्मानमनलात्मजमीश्वरम्।
ममायमिति ताः सर्वाः पुत्रार्थिन्योऽभिचुक्रुशुः।।
9-45-11a
9-45-11b
तासां विदित्वा भावं तं मातॄणां भगवान्प्रभुः।
प्रस्नुतानां पयः षड्भिर्वदनैरपिबत्तदा।।
9-45-12a
9-45-12b
तं प्रभावं समालक्ष्य तस्य बालस्य कृत्तिकाः।
परं विस्मयमापन्ना देव्यो दिव्यवपुर्धराः।।
9-45-13a
9-45-13b
यत्रोत्सृष्टश्च गर्भः स गङ्गया निरिमूर्धनि।
स शैलः काञ्चनः सर्वः सम्बभौ मेरुवत्तदा।।
9-45-14a
9-45-14b
वर्धता चैव गर्भेण पृथिवी तेन रञ्जिता।
अतश्च सर्वे संवृत्ता गिरयः काञ्चनात्मकाः।।
9-45-15a
9-45-15b
कुमारः सुमहावीर्यः कार्तिकेय इति स्मृतः।
गाङ्गेयः पूर्वमभवन्महाकायो बलान्वितः।।
9-45-16a
9-45-16b
शमेन तपसा चैव वीर्येण च समन्वितः।
ववृधेऽतीव राजेन्द्र चन्द्रवत्प्रियदर्शनः।
9-45-17a
9-45-17b
स तस्मिन्काञ्चने दिव्ये शरस्तम्बे श्रिया वृतः।
स्तयमानः सदा शेते गन्धर्वैर्मुनिभिस्तथा।।
9-45-18a
9-45-18b
तथैनमन्वनृत्यन्त देवकन्याः सहस्रशः।
दिव्यवादित्रनृत्यज्ञाः स्तुवन्त्यश्चारुदर्शनाः।।
9-45-19a
9-45-19b
अन्वयुश्चाग्नयः सर्वे गङ्गा च सरितां वरा।
दधार पृथिवी चैनं बिभ्रती रूपमुत्तमम्।
9-45-20a
9-45-20b
जातकर्मादिकास्तस्य क्रियाश्चक्रे बृहस्पतिः।
वेदश्चैनं चतुर्मूर्तिरपतस्थे कृताञ्जलिः।।
9-45-21a
9-45-21b
धनुर्वेदश्चतुष्पादः सास्त्रग्रामः ससङ्ग्रहः।
तत्रैनं समुपातिष्ठत्साक्षाद्वाणी च केवला।।
9-45-22a
9-45-22b
स ददर्श महात्मानं देवदेवमुमापतिः।
शैलपुत्र्या समागम्यभूतसङ्घशतैर्वृतः।।
9-45-23a
9-45-23b
निकाया भूतसङ्घानां परमाद्भुतदर्शनाः।
विकृता विकृताकारा विकृताभरणध्वजाः।।
9-45-24a
9-45-24b
व्याघ्रसिंहर्क्षवदना बिडालमकराननाः।
वृषदंशमुखाश्चान्ये गजोष्ट्रवदनास्तथा।।
9-45-25a
9-45-25b
उलूकवदनाः केचिद्गृध्रगोमायुदर्शनाः।
क्रौञ्चपारावतनिभैर्वदनै राङ्कवैरपि।।
9-45-26a
9-45-26b
श्वाविच्छल्यकगोधानामजैडकगवां तथा।
सदृशानि वपूंष्यन्ये तत्रतत्र व्यधारयन्।।
9-45-27a
9-45-27b
केचिच्छेलाम्बुदप्रख्याश्चक्रालातगदायुधाः।
केचिदञ्जनपुञ्जाभाः केचिच्छ्वेताचलप्रभाः।।
9-45-28a
9-45-28b
सप्तमातृगणाश्चैव समाजग्मुर्विशाम्पते।
साध्या विश्वेऽथ मरुतो वसवः पितरस्तथा।।
9-45-29a
9-45-29b
रुद्रादित्यास्तथा सिद्धा भुजगा दानवाः खगाः।
ब्रह्मा स्वयम्भूर्भगवान्सपुत्रः सहविष्णुना।।
9-45-30a
9-45-30b
शक्रस्तथाऽभ्ययाद्द्रष्टुं कुमारममितप्रभम्।
नारदप्रमुखाश्चापि देवगन्धर्वसत्तमाः।।
9-45-31a
9-45-31b
देवर्षयश्च सिद्धाश्च बृहस्पतिपुरोगमाः।
पितरो जगतः श्रेष्ठा देवानामपि देवताः।
तेऽपि तत्र समाजग्मुर्यामा धामाश्च सर्वशः।।
9-45-32a
9-45-32b
9-45-32c
स तु बालोऽपि बलवान्महायोगबलान्वितः।
अभ्याजगाम देवेशं शूलहस्तं पिनाकिनम्।।
9-45-33a
9-45-33b
तमाव्रजन्तमालक्ष्य शिवस्यासीन्मनोगतम्।
युगपच्छैलपुत्र्याश्च गङ्गायाः पावकस्य च।।
9-45-34a
9-45-34b
कं नु पूर्वमयं बालो गौरवादभ्युपैष्यति।
अपि मामिति सर्वेषां तेषामासीन्मनोगतम्।।
9-45-35a
9-45-35b
तेषामेतमभिप्रायं चतुर्णामुपलक्ष्य सः।
युगपद्योगमास्थाय ससर्ज विविधास्तनूः।।
9-45-36a
9-45-36b
ततोऽभवच्चतुर्मूर्तिः क्षणेन भगवान्प्रभुः।
तस्य शाखो विशाखश्च नैगमेयश्च पृष्ठतः।।
9-45-37a
9-45-37b
एवं स कृत्वा ह्यात्मानं चतुर्धा भगवान्प्रभुः।
यतो रुद्रस्ततः स्कन्दो जगामाद्भुतदर्शनः।।
9-45-38a
9-45-38b
विशाखस्तु ययौ देवीं ततो गिरिवरात्मजाम्।
शाखो ययौ स भगवान्दिव्यमूर्तिर्विभावसुम्।।
9-45-39a
9-45-39b
नैगमेयोऽगमद्गङ्गां कुमारः पावकप्रभः।। 9-45-40a
सर्वे भासुरदेहास्ते चत्वारः समरूपिणः।
तान्समभ्ययुरव्यग्रास्तदद्भुतमिवाभवत्।।
9-45-41a
9-45-41b
हाहाकारो महानासीद्देवदानवरक्षसाम्।
तद्दृष्ट्वा महदाश्चर्यमद्भुतं रोमहर्षणम्।।
9-45-42a
9-45-42b
ततो रुद्रश्च देवी च पावकश्च पितामहम्।
गङ्गया सहिताः सर्वे प्रणिपेतुर्जगत्पतिम्।।
9-45-43a
9-45-43b
प्रणिपत्य ततस्ते तु विधिवद्राजपुङ्गव।
इदमूचुर्वचो राजन्कार्तिकेयप्रियेप्सया।।
9-45-44a
9-45-44b
अस्य बालस्य भगवन्नाधिपत्य यथेप्सितम्।
अस्मत्प्रियार्थं देवेश सदृशं दातुमर्हसि।।
9-45-45a
9-45-45b
ततः स भगवान्धीमान्सर्वलोकपितामहः।
मनसा चिन्तयामास किमयं लभतामिति।।
9-45-46a
9-45-46b
ऐश्वर्याणि च सर्वाणि देवगन्धर्वरक्षसाम्।
भूतयक्षविहङ्गानां पन्नगानां च सर्वशः।।
9-45-47a
9-45-47b
सर्वमेवादिदेशासौ कौरवेय महात्मनः।
समर्थं च तमैश्वर्ये महामतिरमन्यत।।
9-45-48a
9-45-48b
ततो मुहूर्तं स ध्यात्वा देवानां स्रेयसि स्थितः।
सैनापत्यं ददौ तस्मै सर्व भूतेषु भारत।।
9-45-49a
9-45-49b
सर्वदेवनिकायानां ये राजानः परिश्रुताः।
तान्सर्वान्व्यादिदेशास्मै सर्वभूतपितामहः।।
9-45-50a
9-45-50b
ततः कुमारमादाय देवा ब्रह्मपुरोगमाः।
अभिषेकार्थमाजग्मुः शैलेन्द्रं सहितास्ततः।।
9-45-51a
9-45-51b
पुण्यां हैमवतीं देवीं सरिच्छ्रेष्ठां सरस्वतीम्।
समन्तपञ्चके या वै त्रिषु लोकेषु विश्रुता।।
9-45-52a
9-45-52b
तत्र तीरे सरस्वत्याः पुण्ये सर्वगुणान्विते।
निषेदुर्देवगन्धर्वाः सर्वे सम्पूर्णमानसाः।।
9-45-53a
9-45-53b
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि
ह्रदप्रवेशपर्वणि पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः।। 45 ।।

सम्पाद्यताम्

9-45-6 तत्सर्वभक्षो भगवान्नाशकद्दग्धुमक्षयमिति झ.पाठः।। 9-45-7 तेनासीदति तेजस्वी इति झ.ङ.पाठः।। 9-45-25 बिडालवृषदंशौ मार्जारजातिभेदौ तत्सदृशाननौ।। 9-45-27 श्वानशल्यकगोधानामिति क.पाठः।। 9-45-37 तस्य स्कन्दस्य पृष्ठतः पश्चात् शाखविशाखनैगमेयाः आसन्। ते स्कन्देन सह चत्वारः।। 9-45-39 वायुमूर्तिर्विभावसुमिति झ.पाठः।। 9-45-42 अद्भुतमदृष्टपूवम्।। 9-45-45 पञ्चचत्वारिंशोऽध्यायः।।

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