महाभारतम्-09-शल्यपर्व-002
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धृतराष्ट्रेण सञ्जयस्य पुरतो दुर्योधनवचनानुस्मरणेन विलापः।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 9-2-1x |
विसृष्टास्वथ नारीषु धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। विललाप महाराज दुःखाद्दुःखतरं गतः।। | 9-2-1a 9-2-1b |
सधूममिव निःश्वस्य करौ धुन्वन्पुनःपुनः। बहु सञ्चिन्तयित्वा तु सञ्जयं वाक्यमब्रवीत्।। | 9-2-2a 9-2-2b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 9-2-3x |
अहो बत महद्दुःखं यदहं पाण्डवान्रणे। क्षेमिणश्चाव्ययांश्चैव त्वत्तः सूत शृणोमि वै।। | 9-2-3a 9-2-3b |
वज्रसारमयं नूनं हृदयं सुदृढं मम। यच्छ्रुत्वा निहतान्पुत्रान्दीर्यते न सहस्रधा।। | 9-2-4a 9-2-4b |
चिन्तयित्वा वचस्तेषां बालक्रीडां च सञ्जय। अद्य चैव हताञ्श्रुत्वा दीर्यते मे भृशं मनः।। | 9-2-5a 9-2-5b |
अन्धत्वाद्यदि पुत्राणां न मे रूपिनिदर्शनम्। पुत्रस्नेहकृता प्रीतिर्नित्यमेतेषु धारिता।। | 9-2-6a 9-2-6b |
बालभावमतिक्रम्य यौवनस्थांश्च तानहम्। श्रियं प्राप्तांश्च ताञ्श्रुत्वा हृष्ट आसं तदाऽनघ।। | 9-2-7a 9-2-7b |
तानद्य निहताञ्श्रुत्वा हतैश्वर्यान्हतौजसः। न लभेयं क्वचिच्छान्तिं पुत्राधिभिरभिप्लुतः।। | 9-2-8a 9-2-8b |
एह्येहि वत्स राजेन्द्र ममानाथस्य पुत्रक। त्वया हीनो महाबाहो कां नु यास्याम्यहं गतिम्।। | 9-2-9a 9-2-9b |
कथं त्वं पृथिवीपालांस्त्यक्त्वा तात समागतान्। शेषे विनिहतो भूमौ प्राकृतः कुनृपो यथा।। | 9-2-10a 9-2-10b |
गतिर्भूत्वा महाराज ज्ञातीनां सुहृदां तथा। अन्धं वृद्वं च मां वीर विहाय क्व नु यास्यसि।। | 9-2-11a 9-2-11b |
सा कृपा सा च ते प्रीतिः सा च राजसु मानिता। कथं त्वं निहतः पार्थैः संयुगेष्वपराजितः।। | 9-2-12a 9-2-12b |
को नु मामुत्थितः काले ताततातेति वक्ष्यति। महाराजेति सततं लोकनाथेति चासकृत्।। | 9-2-13a 9-2-13b |
परिष्वज्य च कं कण्ठे स्नेहेन क्लिन्नलोचनः। अनुशास्ताऽस्मि कौरव्य तत्साधु वदमे वचः।। | 9-2-14a 9-2-14b |
ननु नामाहमश्रौषं वचनं तव पुत्रक। भूयसी मम पृथ्वीयं तात पार्थस्य नो तथा।। | 9-2-15a 9-2-15b |
भगदत्तः कृपः शल्य आवन्त्योऽथ जयद्रथः। भूरिश्रवाः सोमदत्तो महाराजश्च बाह्लिकः।। | 9-2-16a 9-2-16b |
अश्वत्थामा च भोजश्च मागधश्च महाबलः। बृहद्बलश्च क्राथश्च शकुनिश्चापि सौबलः।। | 9-2-17a 9-2-17b |
म्लेच्छाश्च शतसाहस्राः शकाश्च यवनैः सह। सुदक्षिणश्च काम्भोजस्त्रिगर्ताधिपतिस्तथा।। | 9-2-18a 9-2-18b |
भीष्मः पितामहश्चैव भारद्वाजोऽथ गौतमः। श्रुतायुश्चाश्रुतायुश्च शतायुश्चापि वीर्यवान्।। | 9-2-19a 9-2-19b |
जलसन्धोऽथार्ष्यशृङ्गी राक्षसश्चाप्यलायुधः। अलम्बुसो वीरबाहुः सुबाहुश्च महारथः।। | 9-2-20a 9-2-20b |
एते चान्ये च बहवो राजानो राजसत्तम। मदर्थं प्रहरिष्यन्ति प्राणांस्त्यक्त्वा धनानि च।। | 9-2-21a 9-2-21b |
तेषां मध्ये स्थितो युद्धे भ्रातृभिः परिवारितः। योधयिष्याम्यहं पार्थान्पाञ्चालांश्चैव सर्वशः।। | 9-2-22a 9-2-22b |
चेदींश्च नृपशार्दूल द्रौपदेयांश्च संयुगे। सात्यकिं कुन्तिभोजं च राक्षसं च घटोत्कचम्।। | 9-2-23a 9-2-23b |
एकोऽप्येषां महाराज समर्थः सन्निवारणे। समरे पाण्डवेयानां सङ्क्रुद्धो ह्यभिधावताम्।। | 9-2-24a 9-2-24b |
किं पुनः सहिता वीराः कृतवैराश्च पाण्डवैः। अथवा सर्व एवैते पाण्डवस्यानुयायिभिः।। | 9-2-25a 9-2-25b |
योत्स्यन्ते सह राजेन्द्र हनिष्यन्ति च तान्मृधे। कर्ण एको मया सार्धं निहनिष्यति पाण्डवान्।। | 9-2-26a 9-2-26b |
ते वै नृपतयो वीराः स्थास्यन्ति मम शासने।। | 9-2-27a |
यश्च तेषां प्रणेता वै वासुदेवो महाबलः। न स सन्नह्यते राजन्निति मामब्रवीद्वचः।। | 9-2-28a 9-2-28b |
एवं च वदतः सूत बहुशो मम सन्निधौ। युक्तितो ह्यनुपश्यामि निहतान्पाण्डवान्रणे।। | 9-2-29a 9-2-29b |
तेषां मध्ये स्थिता यत्र हन्यन्ते मम पुत्रकाः। व्यायच्छमानाः समरे किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-30a 9-2-30b |
भीष्मश्च निहतो यत्र लोकनाथः प्रतापवान्। शिखण्डिनं समासाद्य मृगेन्द्र इव जम्बुकम्।। | 9-2-31a 9-2-31b |
द्रोणश्च ब्राह्मणो यत्र सर्वशस्त्रास्त्रपारगः। निहतः पाण्डवैः सङ्ख्ये किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-32a 9-2-32b |
कर्णश्च निहतः सङ्ख्ये दिव्यास्त्रज्ञो महाबलः। भूरिश्रवा हतो पत्र सोमदत्तश्च संयुगे। बाह्लिकश्च महाराज किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-33a 9-2-33b 9-2-33c |
भगदत्तो हतो यत्र गजयुद्धविशारदः। जयद्रथश्च निहतः किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-34a 9-2-34b |
सुदक्षिणो हतो यत्र जलसन्धश्च पौरवः। श्रुतायुश्चाश्रुतायुश्च किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-35a 9-2-35b |
महाबलस्तथा पाण्ड्यः सर्वशस्त्रभृतां वरः। निहतः पाण्डवैः सङ्ख्ये किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-36a 9-2-36b |
बृहद्बलो हतो यत्र मागधश्च महाबलः। उग्रायुधश्च विक्रान्तः प्रतिमानं धनुष्मताम्।। | 9-2-37a 9-2-37b |
आवन्त्यो निहतो यत्र त्रैगर्तश्च जनाधिपः। संशप्तकाश्च निहताः किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-38a 9-2-38b |
अलम्बुसस्तथा राजन्राक्षसश्चाप्यलायुधः। आर्ष्यशृङ्गिश्च निहतः किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-39a 9-2-39b |
नारायणा हता यत्र गोपाला युद्धदुर्मदाः। म्लेच्छाश्च बहुसाहस्राः किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-40a 9-2-40b |
शकुनिः सौबलो यत्र कैतव्यश्च महाबलः। निहतः सबलो वीरः किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-41a 9-2-41b |
एते चान्ये च बहवः कृतास्त्रा युद्धदुर्मदाः। राजानो राजपुत्राश्च शूराः परिघबाहवः। निहता बहवो यत्र किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-42a 9-2-42b 9-2-42c |
यत्र शूरा महेष्वासाः कृतास्त्रा युद्वदुर्मदाः। बहवो निहताः सूत महेन्द्रसमविक्रमाः।। | 9-2-43a 9-2-43b |
नानादेशसमावृत्ताः क्षत्रिया यत्र सञ्जय। निहताः समरे सर्वे किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-44a 9-2-44b |
पुत्राश्च मे विनिहताः पौत्राश्चैव महाबलाः। वयस्या भ्रातरश्चैव किमन्यद्भागधेयतः।। | 9-2-45a 9-2-45b |
भागधेयसमायुक्तो ध्रुवमुत्पद्यते नरः। यस्तु भाग्यसमायुक्तः स शुभं प्राप्नुयान्नरः।। | 9-2-46a 9-2-46b |
अहं वियुक्तस्तैर्भाग्यैः पुत्रैश्चैवेह सञ्जय। कथमद्य भविष्यामि वृद्धः शत्रुवशं गतः।। | 9-2-47a 9-2-47b |
नान्यदत्र परं मन्ये वनवासादृते प्रभो। सोऽहं वनं गमिष्यामि निर्बन्धुर्ज्ञातिसंक्षये।। | 9-2-48a 9-2-48b |
न हि मेऽन्यद्भवेच्छ्रेयो वनाभ्युपगमादृते। इमामवस्थां प्राप्तस्य लूनपक्षस्य सञ्जय।। | 9-2-49a 9-2-49b |
दुर्योधनो हतो यत्र शल्यश्च निहतो युधि। दुःशासनो विविंशश्च विकर्णश्च महाबलः।। | 9-2-50a 9-2-50b |
कथं हि भीमसेनस्य श्रोष्येऽहं शब्दमुत्तमम्। एकेन समरे येन हतं पुत्रशतं मम।। | 9-2-51a 9-2-51b |
असकृद्वदतस्तस्य दुर्योधनवधेन च। दुःखशोकाभिसन्तप्तो न श्रोष्ये परुषा गिरः।। | 9-2-52a 9-2-52b |
वैशम्पायन उवाच। | 9-2-53x |
एवं स शोकसन्तप्तः पार्थिवो हतबान्धवः। मुहुर्मुहुर्मुह्यमानः पुत्राधिभिरभिप्लुतः।। | 9-2-53a 9-2-53b |
विलप्य सुचिरं कालं धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। दीर्घमुष्णं स निःश्वस्य चिन्तयित्वा पराभवम्।। | 9-2-54a 9-2-54b |
दुःखेन महता राजन्सन्तप्तो भरतर्षभः। पुनर्गावल्गणिं सूतं पर्यपृच्छद्यथातथम्।। | 9-2-55a 9-2-55b |
धृतराष्ट्र उवाच। | 9-2-56x |
भीष्मद्रोणौ हतौ श्रुत्वा सूतपुत्रं च पातितम्। सेनापतिं प्रणेतारं कमकुर्वत मामकाः।। | 9-2-56a 9-2-56b |
यं यं सेनाप्रणेतारं युधि कुर्वन्ति मामकाः। अचिरेणैव कालेन तं तं निघ्नन्ति पाण्डवाः।। | 9-2-57a 9-2-57b |
रणमूर्ध्नि हतो भीष्मः पश्यतां वः किरीटिना। एवमेव हतो द्रोणः सर्वेषामेव पश्यताम्।। | 9-2-58a 9-2-58b |
एवमेव हतः कर्णः सूतपुत्रः प्रतापवान्। सराजकानां सर्वेषां पश्यतां वः किरीटिना।। | 9-2-59a 9-2-59b |
पूर्वमेवाहमुक्तो वै विदुरेण महात्मना। दुर्योधनापराधेन प्रजेयं विनशिष्यति।। | 9-2-60a 9-2-60b |
केचिन्न सम्यक्पश्यन्ति मूढाः सम्यगवेक्ष्य च। तदिदं मम मूढस्य तथाभूतं वचः स्म तत्।। | 9-2-61a 9-2-61b |
यदब्रवीत्स धर्मात्मा विदुरो दीर्घदर्शिवान्। तत्तथा समनुप्राप्तं वचनं सत्यवादिनाः।। | 9-2-62a 9-2-62b |
दैवोपहतचित्तेन यन्मयाऽनुष्ठितं पुरा। अनयस्य फलं तस्य ब्रूहि गावल्गणे पुनः।। | 9-2-63a 9-2-63b |
को वा मुखमनीकानामासीत्कर्णो निपातिते। अर्जुनं वासुदेवं च को वा प्रत्युद्ययौ रथी।। | 9-2-64a 9-2-64b |
केऽरक्षन्दक्षिणं चक्रं मद्रराजस्य संयुगे। वामं च योद्वुकामस्य के वा वीरस्य पृष्ठतः।। | 9-2-65a 9-2-65b |
कथं च वः समेतानां मद्रराजो महारथः। निहतः पाण्डवैः सङ्ख्ये पुत्रो वा मम सञ्जय।। | 9-2-66a 9-2-66b |
ब्रूहि सर्वं यथातत्त्वं भरतानां महाक्षयम्। यथा च निहतः सङ्ख्ये पुत्रो दुर्योधनो मम।। | 9-2-67a 9-2-67b |
पाञ्चालाश्च यथा सर्वे निहताः सपदानुगाः। धृष्टद्युम्नः शिखण्डी च द्रौपद्याः पञ्च चात्मजाः।। | 9-2-68a 9-2-68b |
पाण्डवाश्च यथा मुक्तास्तथोभौ माधवौ युधि। कृपश्च कृतवर्मा च भारद्वाजस्य चात्मजः।। | 9-2-69a 9-2-69b |
यद्यथा यादृशं चैव युद्धं वृत्तं च साम्प्रतम्। अखिलं श्रोतुमिच्छामि कुशलो ह्यसि सञ्जय।। | 9-2-70a 9-2-70b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि शल्यवधपर्वणि द्वितीयोऽध्यायः* ।। 2 ।।* |
प्रक्षिप्तोध्यायः
सम्पाद्यताम्पार्थेन निहते कर्णे पाण्डवभयात्पलायमानां सेनां निवर्त्य दुर्योधनस्य पुनर्युद्धोद्यमः।। 1 ।।
[सञ्जय उवाच। | 9-2-1x |
शृणु राजन्नवहितो यथावृत्तो महान्क्षयः। कुरूणां पाण्डवानां च समासाद्य परस्परम्।। | 9-2-1a 9-2-1b |
निहते सूतपुत्रे तु पाण्डवेन महात्मना। विद्रुतेषु च सैन्येषु समानीतेषु चासकृत्।। | 9-2-2a 9-2-2b |
घोरे मनुष्यदेहानामाजौ नरवरक्षये। यत्तत्कर्णे हते पार्थः कसिंहनादमथाकरोत्।। | 9-2-3a 9-2-3b |
तदा तव सुतान्राजन्प्राविशत्सुमहद्भयम्।। | 9-2-4a |
न सन्धातुमनीकानि न चैवाथ पराक्रमे। आसीद्बुद्धिर्हते कर्णे तव योधस्य कस्यचित्।। | 9-2-5a 9-2-5b |
वणिजो नावि भिन्नायामगाधे विप्लुवा इव। अपारे पारमिच्छन्तो हते द्वीपे किरीटिना।। | 9-2-6a 9-2-6b |
सूतपुत्रो हते राजन्वित्रस्ताः शरविक्षताः। अनाथा नाथमिच्छन्तो मृगाः सिंहार्दिता इव।। | 9-2-7a 9-2-7b |
भग्नशृङ्गा इव वृषा शीर्णदंष्ट्रा इवोरगाः। प्रत्युपायाम सायाह्ने निर्जिताः सव्यसाचिना।। | 9-2-8a 9-2-8b |
हतप्रवीरा विध्वस्ता निकृत्ता निशितैः शरैः। सूतपुत्रे हते राजन्पुत्रास्ते प्राद्रवंस्ततः।। | 9-2-9a 9-2-9b |
विध्वस्तकवचनाः सर्वे कान्दिशीका विचेतसः। अन्योन्यमभिनिघ्नन्तो वीक्षमाणा भयाद्दिशः।। | 9-2-10a 9-2-10b |
मामेव नूनं बीभत्सुर्मामेव च वृकोदरः। अभियातीति मन्वानाः पेतुर्मम्लुश्च भारत।। | 9-2-11a 9-2-11b |
अश्वानन्ये गजानन्ये रथानन्ये महारथाः। आरुह्य जवसम्पन्नाः पादातान्प्रजहुर्भयात्।। | 9-2-12a 9-2-12b |
कुञ्जरैः स्यन्दना भग्नाः सादिनश्च महारथैः। पदातिसङ्घाश्चाश्वौघैः पलायद्भिर्भृशं हताः।। | 9-2-13a 9-2-13b |
व्यालतस्करसङ्कीर्णे सार्थहीना यथा वने। तथा त्वदीया निहते सूतपुत्रे पदाऽभवन्।। | 9-2-14a 9-2-14b |
हतारोहास्तथा नागाश्छिन्नहस्तास्तथाऽपरे। सर्वं पार्थमयं लोकमपश्यन्वै भयार्दिताः।। | 9-2-15a 9-2-15b |
तान्प्रेक्ष्य द्रवतः सर्वान्भीमसेनभयार्दितान्। दुर्योधनोऽथ स्वं सूतं हाहाकृत्वैवमब्रवीत्।। | 9-2-16a 9-2-16b |
नातिक्रमिष्यते पार्थो धनुष्पाणिमवस्थितम्। जघने युध्यमानं मां तूर्णमश्वान्प्रचोदय।। | 9-2-17a 9-2-17b |
समरे युध्यमानं हि कौन्तेयो मां धनञ्जयः। नोत्सहेताप्यतिक्रान्तुं वेलामिव महार्णवः।। | 9-2-18a 9-2-18b |
अद्यार्जुनं सगोविन्दं मानिनं च वृकोदरम्। निहत्य शिष्टाञ्शत्रूंश्च कर्णस्यानृण्यमाप्नुयाम्।। | 9-2-19a 9-2-19b |
तच्छ्रुत्वा कुरुराजस्य शूरार्यसदृशं वचः। सूतो हेमपरिच्छन्नाञ्शनैरश्वानचोदयत्।। | 9-2-20a 9-2-20b |
गजाश्वरथहीनास्तु पादाताश्चैव मारिष। पञ्चविंशतिसाहस्राः प्राद्रवञ्शनकैरिव।। | 9-2-21a 9-2-21b |
तान्भीमसेनः सङ्क्रुद्धो धृष्टद्युम्नश्च पार्षतः। बलेन चतुरङ्गेण परिक्षिप्याहनच्छरैः।। | 9-2-22a 9-2-22b |
प्रत्ययुध्यंस्तु ते सर्वे भीमसेनं सपार्षतम्। पार्थपार्षतयोश्चान्ये जगृहुस्तत्र नामनी।। | 9-2-23a 9-2-23b |
अक्रुध्यत रणे भीमस्तैर्मृधे प्रत्यवस्थितैः। सोऽवतीर्य रथात्तूर्णं गदापाणिरयुध्यत।। | 9-2-24a 9-2-24b |
न तान्रथस्थो भूमिष्ठान्धर्मापेक्षी वृकोदरः। योधयामास कौन्तेयो भुजवीर्यमुपाश्रितः।। | 9-2-25a 9-2-25b |
जातरूपपरिच्छन्नां प्रगृह्य महतीं गदाम्। न्यवधीत्तावकान्सर्वान्दण्डपाणिरिवान्तकः।। | 9-2-26a 9-2-26b |
पदातयो हि संरब्धास्त्यक्तजीवितबान्धवाः। भीममभ्यद्रवन्सङ्ख्ये पतङ्गा इव पावकम्।। | 9-2-27a 9-2-27b |
आसाद्य भीमसेनं ते संरब्धा युद्धदुर्मदाः। विनेदुः सहसा दृष्ट्वा भूतग्रामा इवान्तकम्।। | 9-2-28a 9-2-28b |
श्येनवद्व्यचरद्भीमः खङ्गेन गदया तथा। पञ्चविंशतिसाहस्रांस्तावकानां व्यपोथयत्।। | 9-2-29a 9-2-29b |
हत्वा तत्पुरुषानीकं भीमः सत्यपराक्रमः। धृष्टद्युम्नं पुरस्कृत्य पुनस्तस्थौ महाबलः।। | 9-2-30a 9-2-30b |
धनञ्जयो रथानीकमन्वपद्यत वीर्यवान्।। | 9-2-31a |
माद्रीपुत्रौ च शकुनिं सात्यकिश्च महाबलः। जवेनाभ्यपतन्हृष्टा घ्नन्तो दौर्योधनं बलम्।। | 9-2-32a 9-2-32b |
तस्याश्ववाहान्सुबहूंस्ते निहत्य शितैः शरैः। तमन्वधावंस्त्वरितास्तत्र युद्धमवर्तत।। | 9-2-33a 9-2-33b |
ततो धनञ्जयो राजन्रथानीकमगाहत। विश्रुतं त्रिषु लोकेषु गाण्डीवं व्याक्षिपन्धनुः।। | 9-2-34a 9-2-34b |
कृष्णसारथिमायान्तं दृष्ट्वा श्वेतहयं रथम्। अर्जुनं चापि योद्वारं त्वदीयाः प्राद्रावन्भयात्।। | 9-2-35a 9-2-35b |
विप्रहीनरथाश्वाश्च शरैश्च परिवारिताः। पञ्चविंशतिसाहस्राः पार्थमार्च्छन्पदातयः।। | 9-2-36a 9-2-36b |
हत्वा तत्पुरुषानीकं पाञ्चालानां महारथः। भीमसेनं पुरस्कृत्य न चिरात्प्रत्यदृश्यत।। | 9-2-37a 9-2-37b |
महाधनुर्धरः श्रीमानमित्रगणमर्दनः। पुत्रः पाञ्चालराजस्य धृष्टद्युम्नो महायशाः।। | 9-2-38a 9-2-38b |
पारावतसवर्णाश्वं कोविदारवरध्वजम्। धृष्टद्युम्नं रणे दृष्ट्वा त्वदीयाः प्राद्रवन्भयात्।। | 9-2-39a 9-2-39b |
गान्धारराजं श्रीघ्रास्त्रमनुसृत्य यशस्विनौ। अचिरात्प्रत्यदृश्येतां माद्रीपुत्रौ ससात्यकी।। | 9-2-40a 9-2-40b |
चेकितानः शिखण्डी च द्रौपदेयाश्च मारिष। हत्वा त्वदीयं सुमहत्सैन्यं शङ्खानथाधमन्।। | 9-2-41a 9-2-41b |
ते सर्वे तावकान्प्रेक्ष्य द्रवतो वै पराङ्मुखान्। अभ्यधावन्त निघ्नन्तो वृषाञ्चित्वा वृषा इव।। | 9-2-42a 9-2-42b |
सेनावशेषं तं दृष्ट्वा तव पुत्रस्य पाण्डवः। अवस्थितं सव्यसाची चुक्रोध बलवन्नृप।। | 9-2-43a 9-2-43b |
तत एनं शरै राजन्सहसा समवाकिरत्। रजसा चोद्गतेनाथ न स्म किञ्चन दृश्यते।। | 9-2-44a 9-2-44b |
अन्धकारीकृते लोके शरीभूते महीतले। दिशः सर्वा महाराज तावकाः प्राद्रवन्भयात्।। | 9-2-45a 9-2-45b |
भज्यमानेषु सर्वेषु कुरुराजो विशाम्पते। परेषामात्मनश्चैव सैन्ये ते समुपाद्रवत्।। | 9-2-46a 9-2-46b |
ततो दुर्योधनः सर्वानाजुहावाथ पाण्डवान्। युद्धाय भरतश्रेष्ठ देवानिव पुरा बलिः।। | 9-2-47a 9-2-47b |
त एनमभिगर्जन्तं सहिताः समुपाद्रवन्। नानाशस्त्रसृजः क्रुद्धा भर्त्सयन्तो मुहुर्मुहुः।। | 9-2-48a 9-2-48b |
दुर्योधनोऽप्यसम्भ्रान्तस्तानरीन्व्यधमच्छरैः।। | 9-2-49a |
तत्राद्भुतमपरश्याम तव पुत्रस्य पौरुषम्। यदेनं पाण्डवाः सर्वे न शेकुरतिवर्तितुम्।। | 9-2-50a 9-2-50b |
नातिदूरापयातं च कृतबुद्धि पलायने। दुर्योधनः स्वकं सैन्यमपश्यकद्भृशविक्षतम्।। | 9-2-51a 9-2-51b |
ततोऽवस्थाप्य राजेन्द्र कृतबुद्धिस्तवात्मजः। हर्षयन्निव तान्योधांस्ततो वचनमब्रवीत्।। | 9-2-52a 9-2-52b |
न तं देशं प्रपश्यामि पृथिव्यां पर्वतेषु च। यत्र यातान्न वो हन्युः पाण्डवाः किं सृतेन वः।। | 9-2-53a 9-2-53b |
स्वल्पं चैव बलं तेषां कृष्णौ च भृशविक्षतौ। यदि सर्वेऽपि तिष्ठामो ध्रुवं नो विजयो भवेत्।। | 9-2-54a 9-2-54b |
विप्लयातांस्तु वो भिन्नान्पाण्डवाः कृतकिल्पिषान्। अनुसृत्य हनिष्यन्ति श्रेयोः न समरे वधः।। | 9-2-55a 9-2-55b |
सुखः साङ्ग्रामिको मृत्युः क्षत्रधर्मेण युध्यताम्। मृतो दुःखं न जानीते प्रेत्य चानन्त्यमश्नुते।। | 9-2-56a 9-2-56b |
शृण्वन्तु क्षत्रियाः सर्वे यावन्तोऽत्र समागताः। द्विषतो भीमसेनस्य वशमेष्यथ विद्रुताः।। | 9-2-57a 9-2-57b |
पितामहैराचरितं न धर्मं हातुमर्हथ। नान्यत्कर्मास्ति पापीयः क्षत्रियस्य पलायनात्।। | 9-2-58a 9-2-58b |
न युद्वधर्माच्छ्रेयान्हि पन्थाः स्वर्गस्य कौरवाः। सुचिरेणार्जिताँलोकान्सद्यो युद्धात्समश्नुते।। | 9-2-59a 9-2-59b |
तस्य तद्वचनं राज्ञः पूजयित्वा महारथाः। पुनरेवाभ्यवर्तन्त क्षत्रियाः पाण्डवान्प्रति। पराजयममृष्यन्त कृतचित्ताश्च विक्रमे।। | 9-2-60a 9-2-60b 9-2-60c |
ततः प्रववृते युद्धं पुनरेव सुदारुणम्। तावकानां परेषां च देवासुररणोपमम्।। | 9-2-61a 9-2-61b |
युधिष्ठिरपुरोगांश्च सर्वसैन्येन पाण्डवान्। अन्वधावन्महाराज पुत्रो दुर्योधनस्तव।।] | 9-2-62a 9-2-62b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अध्यायः।। |
9-2-2 सधूममिव अत्युष्णित्यर्थः।। 9-2-14 परिष्वज्य च मां कण्ठे स्नेहेन क्लिन्नलोचनः। अनुशाधीति कौरव्य तत्साधु वद मे वचः इति झ.पाठः।। 9-2-37 प्रतिमानं केतुभूतः।। 9-2-61 केचित्सम्यक्प्रपश्यन्ति मूढास्तु न तथा परे इति ख.पाठः। सम्यगवेक्ष्य निपुणं विभाव्यापि मूढास्तथाभूतं तद्वचः केचिन्न पश्यन्तीति सम्बन्धः। तथाभूतं यथार्थम्।। 9-2-2 द्वितीयोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-001 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-003 |