महाभारतम्-09-शल्यपर्व-024

← शल्यपर्व-023 महाभारतम्
नवमपर्व
महाभारतम्-09-शल्यपर्व-024
वेदव्यासः
शल्यपर्व-025 →

धृष्टद्युम्नपराजितेन दुर्योधनेनाश्वारोहणेन पलायनम्।। 1 ।।
अश्वत्थामादिभिस्तदन्वेषणम्।। 2 ।।

  1. 001
  2. 002
  3. 003
  4. 004
  5. 005
  6. 005ब
  7. 006
  8. 007
  9. 008
  10. 009
  11. 010
  12. 011
  13. 012
  14. 013
  15. 014
  16. 015
  17. 016
  18. 017
  19. 018
  20. 019
  21. 020
  22. 021
  23. 022
  24. 023
  25. 024
  26. 025
  27. 026
  28. 027
  29. 028
  30. 029
  31. 030
  32. 031
  33. 032
  34. 033
  35. 034
  36. 035
  37. 036
  38. 037
  39. 038
  40. 039
  41. 040
  42. 041
  43. 042
  44. 043
  45. 044
  46. 045
  47. 046
  48. 047
  49. 048
  50. 049
  51. 050
  52. 051
  53. 052
  54. 053
  55. 054
  56. 055
  57. 056
  58. 057
  59. 058
  60. 059
  61. 060
  62. 061
  63. 062
  64. 063
  65. 064
  66. 065
  67. 066
सञ्जय उवाच। 9-24-1x
युध्यतां यतमानानां शूराणामनिवर्तनाम्।
सङ्कल्पमकरोन्मोघं गाण्डीवेन धनञ्जयः।।
9-24-1a
9-24-1b
इन्द्राशनिसमस्पर्शानविषह्यान्महौजसः।
विसृजन्दृश्यते बाणान्धारा मुञ्चन्निवाम्बुदः।।
9-24-2a
9-24-2b
तत्सैन्यं भरतश्रेष्ठ वध्यमानं किरीटिना।
सम्प्रदुद्राव सङ्ग्रामात्तव पुत्रस्य पश्यतः।।
9-24-3a
9-24-3b
पितॄन्भ्रातॄन्परित्यज्य वयस्यानपि चापरे।। 9-24-4a
हतधुर्या रथाः केचिद्धतसूतास्तथा परे।
भग्नाक्षयुगचक्रेषाः केचिदासन्विशाम्पते।।
9-24-5a
9-24-5b
अन्येषां सायकाः क्षीणास्तथाऽन्ये बाणपीडिताः।
अक्षता युगपत्केचित्प्राद्रवन्भयपीडिताः।।
9-24-6a
9-24-6b
केचित्पुत्रानुपादाय हतभूयिष्ठबान्धवाः।
विचुक्रुशुः पितॄंस्त्वन्ये सहायानपरे पुनः।।
9-24-7a
9-24-7b
बान्धवांश्च नरव्याघ्र भ्रातॄन्सम्बन्धिनस्तथा।
दुद्रुवुः केचिदुत्सृज्य तत्रतत्र विशाम्पते।।
9-24-8a
9-24-8b
बहवोऽत्र भृशं विद्धा मुह्यमाना महारथाः।
निःश्वसन्ति स्म दृश्यन्ते पार्थबाणहता नराः।।
9-24-9a
9-24-9b
तानन्ये रथमारोप्य ह्याश्वास्य च मुहूर्तकम्।
विश्रान्ताश्च वितृष्णाश्च पुनर्युद्धाय जग्मिरे।।
9-24-10a
9-24-10b
तानपास्य गताः केचित्पुनरेव युयुत्सवः।
कुर्वन्तस्तव पुत्रस्य शासनं युद्धदुर्मदाः।।
9-24-11a
9-24-11b
पानीयमपरे पीत्वा पर्याश्वास्य च वाहनम्।
वर्माणि च समारोप्य केचिद्भरतसत्तम।।
9-24-12a
9-24-12b
समाश्वास्यापरे भ्रातॄन्निक्षिप्य शिबिरेऽपि च।
पुत्रानन्ये पितॄनन्ये पुनर्युद्धमरोचयन्।।
9-24-13a
9-24-13b
सज्जयित्वा रथान्केचिद्यथामुख्यं विशाम्पते।
आवृत्य पाण्डवानीकं पुनर्युद्धमरोचयन्।।
9-24-14a
9-24-14b
ते शूराः किङ्किणीजालैः समाच्छन्ना बभासिरे।
त्रैलोक्यविजये युक्ता यथा दैतेयदानवाः।।
9-24-15a
9-24-15b
आगम्य सहसा केचिद्रथैः स्वर्णविभूषितैः।
पाण्डवानामनीकेषु धृष्टद्युम्नमयोधयन्।।
9-24-16a
9-24-16b
धृष्टद्युम्नोऽपि पाञ्चाल्यः शिखण्डी च महारथः।
नाकुलिस्तु शतानीको रथानीकमयोधयन्।।
9-24-17a
9-24-17b
पाञ्चाल्यस्तु ततः क्रुद्धः सैन्येन महता वृतः।
अभ्यद्रवत्सुसङ्क्रुद्धस्तावकान्हन्तुमुद्यतः।।
9-24-18a
9-24-18b
ततस्त्वापततस्तस्य तव पुत्रो जनाधिप।
बाणसङ्घाननेकान्वै प्रेषयामास भारत।।
9-24-19a
9-24-19b
धृष्टद्युम्नस्ततो राजंस्तव पुत्रेण धन्विना।
नाराचैरर्धनाराचैर्बहुभिः क्षिप्रकारिभिः।।
9-24-20a
9-24-20b
वत्सदन्तैश्च बाणैश्च कर्मारपरिमार्जितैः।
अश्वांश्च चतुरो हत्वा बाह्वोरुरसि चार्पितः।।
9-24-21a
9-24-21b
सोऽतिविद्धो महेष्वासस्तोत्रार्दित इव द्विपः।
तस्याश्वांश्चतुरो बाणैः प्रेषयामास मृत्यवे।
सारथेश्चास्य भल्लेन शिरः कायादपाहरत्।।
9-24-22a
9-24-22b
9-24-22c
ततो दुर्योधनो राजा पृष्ठमारुह्य वाजिनः।
अपाक्रामद्वतरथो नातिदूरमरिन्दमः।।
9-24-23a
9-24-23b
दृष्टा तु हतविक्रान्तं स्वमनीकं महाबलः।
तव पुत्रो महाराज प्रययौ यत्र सौबलः।।
9-24-24a
9-24-24b
ततो रथेषु भग्नेषु त्रिसाहस्रा महाद्विपाः।
पाण्डवान्रथिनः सर्वान्समन्तात्पर्यवारयन्।।
9-24-25a
9-24-25b
ते वृताः समरे पञ्च गजानीकेन भारत।
अशोभन्त महाराज ग्रहास्तारागणैरिव।।
9-24-26a
9-24-26b
ततोऽर्जुनो महाराज लब्धलक्षौ महाभुजः।
विनिर्ययौ रथेनैव श्वेताश्वः कृष्णसारथिः।।
9-24-27a
9-24-27b
तैः समन्तात्परिवृतः कुञ्जरैः पर्वतोपमैः।
नाराचैर्विमलैस्तीक्ष्णैर्गजानीकमयोधयत्।।
9-24-28a
9-24-28b
तत्रैकबाणनिहतानपश्याम महागजान्।
पतितान्पात्यमानांश्च निर्भिन्नान्सव्यसाचिना।।
9-24-29a
9-24-29b
भीमसेनस्तु तान्दृष्ट्वा नागान्मत्तगजोपमः।
करेणादाय महतीं गदामभ्यपतद्बली।
अथाप्लुत्य रथात्तूर्णं दण्डपाणिरिवान्तकः।।
9-24-30a
9-24-30b
9-24-30c
तमुद्यतगदं दृष्ट्वा पाण्डवानां महारथम्।
वित्रेसुस्तावकाः सैन्याः शकृन्मूत्रं च सुस्रुवुः।।
9-24-31a
9-24-31b
आविग्नं च बलं सर्वं गदाहस्ते वृकोदरे।। 9-24-32a
गदया भीमसेनेन भिन्नकुम्भान्निपातितान्।
धावमानानपश्याम कुञ्जरान्पर्वतोपमान्।।
9-24-33a
9-24-33b
प्राद्रवन्कुञ्जरास्ते तु भीमसेनगदाहताः।
पेतुरार्तस्वरं कृत्वा छिन्नपक्षा इवाद्रयः।।
9-24-34a
9-24-34b
प्रभिन्नकुम्भांस्तु बहून्द्रवमाणानितस्ततः।
पतमानांश्च सम्प्रेक्ष्य वित्रेसुस्तव सैनिकाः।।
9-24-35a
9-24-35b
युधिष्ठिरोऽपि सङ्क्रुद्धो माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।
गार्ध्रपत्रैः शितैर्बाणैर्जघ्नुर्वै गजयोधिनः।।
9-24-36a
9-24-36b
धृष्टद्युम्नस्तु समरे पारजित्य नराधिपम्।
अपक्रान्ते तव सुते हयपृष्ठे समाश्रिते।।
9-24-37a
9-24-37b
दृष्ट्वा च पाण्डवान्सर्वान्कुञ्चरैः परिवारितान्।
धृष्टद्युम्नो महाराज सहसा समुपाद्रवत्।।
9-24-38a
9-24-38b
पुत्रः पाञ्चालराजस्य जिघांसुः कुञ्जरान्ययौ।
अदृष्ट्वा तु रथानीके दुर्योधनमरिन्दमम्।।
9-24-39a
9-24-39b
अश्वत्थामा कृपश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।
अपृच्छन्क्षत्रियांस्तत्र क्व नु दुर्योधनो गतः।।
9-24-40a
9-24-40b
तेऽपश्यमाना राजानं वर्तमाने जनक्षये।
मन्वाना निहतं तत्र तव पुत्रं महारथाः।
विवर्णवदना भूत्वा पर्यपृच्छन्त ते सुतम्।।
9-24-41a
9-24-41b
9-24-41c
आहुः केचिद्वते सूते प्रयातो यत्र सौबलः।
हित्वा पाञ्चालराजस्य तदनीकं दुरुत्सहम्।।
9-24-42a
9-24-42b
अपरे त्वब्रुवंस्तत्र क्षत्रिया भृशविक्षताः।
दुर्योधनेन किं कार्यं द्रक्ष्यध्वं यदि जीवति।
युध्यध्वं सहिताः सर्वे किं वो राजा करिष्यति।।
9-24-43a
9-24-43b
9-24-43c
ते क्षत्रियाः क्षतैर्गात्रैर्हतभूयिष्ठवाहनाः।
शरैः सम्पीड्यमानास्तु नातिव्यक्तमथाब्रुवन्।।
9-24-44a
9-24-44b
इदं सर्वं बलं हन्मो येन स्म परिवारिताः।
एते सर्वे गजान्हत्वा उपयान्ति स्म पाण्डवाः।।
9-24-45a
9-24-45b
श्रुत्वा तु वचनं तेषामश्वत्थामा महाबलः।
भित्त्वा पाञ्चालराजस्य तदनीकं दुरुत्सहम्।।
9-24-46a
9-24-46b
कृपश्च कृतवर्मा च प्रययौ यत्र सौबलः।
रथानीकं परित्यज्य शूराः सुदृढधन्विनः।।
9-24-47a
9-24-47b
ततस्तेषु प्रयातेषु धृष्टद्युम्नपुरस्कृताः।
आययुः पाण्डवा राजन्विनिघ्नन्तः स्म तावकान्।।
9-24-48a
9-24-48b
दृष्ट्वा तु तानापततः सम्प्रहृष्टान्महारथान्।
पराक्रान्तास्ततो वीरा निराशा जीविते तदा।।
9-24-49a
9-24-49b
विवर्णमुखभूयिष्ठमभवत्तावकं बलम्।
परिक्षीणायुधान्दृष्ट्वा तानहं परिवारितान्।।
9-24-50a
9-24-50b
राजन्बलेन त्र्यङ्गेन त्यक्त्वा जीवितमात्मनः।
आत्मना पञ्चमोऽयुध्यं पाञ्चालस्य बलेन ह।।
9-24-51a
9-24-51b
तस्मिन्देशे व्यवस्थाय यत्र शारद्वतः स्थितः।
सम्प्रद्रुता वयं पञ्च किरीटिशरपीडिताः।।
9-24-52a
9-24-52b
धृष्टद्युम्नं महारौद्रं तत्र नाभूद्रणो महान्।
जितास्तेन वयं सर्वे व्यपयाम रणात्ततः।।
9-24-53a
9-24-53b
अथापश्यं सात्यकिं तमुपायातं महारथम्।
रथैश्चतुः शतैर्वीरो मामभ्यद्रवदाहवे।।
9-24-54a
9-24-54b
धृष्टद्युम्नादहं मुक्तः कञ्छिछ्रान्तवाहनात्।
पतितो माधवानीकं दुष्कृती नरकं यथा।।
9-24-55a
9-24-55b
तत्र युद्धमभूद्धोरं मुहूर्तमतिदारुणम्।। 9-24-56a
सात्यकिस्तु महाबाहुर्मम हत्वा परिच्छदम्।
जीवग्राहमगृह्णान्मां मूर्च्छितं पतितं भुवि।।
9-24-57a
9-24-57b
ततो मुहूर्तादिव तद्गजानीकमविध्यत।
गदया भीमसेनेन नाराचैरर्जुनेन च।।
9-24-58a
9-24-58b
अभिपिष्टैर्महानागैः समन्तात्पर्वतोपमैः।
नातिप्रसिद्धैव गतिः पाण्डवानामजायत।।
9-24-59a
9-24-59b
रथमार्गं ततश्चक्रे भीमसेनो महाबलः।
पाण्डवानां महाराज व्यपाकर्षन्महागजान्।।
9-24-60a
9-24-60b
अश्वत्थामा कृपश्चैव कृतवर्मा च सात्वतः।
अपश्यन्तो रथानीके दुर्योधनसमरिन्दमम्।
राजानं मृगयामासुस्तव पुत्रं महारथम्।।
9-24-61a
9-24-61b
9-24-61c
परित्यज्य च पाञ्चाल्यं प्रयाता यत्र सौबलः।
राज्ञोऽदर्शनसंविग्ना वर्तमानो जनक्षये।।
9-24-62a
9-24-62b
।। इति श्रीमन्महाभारते
शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि
अष्टादशदिवसयुद्धे चतुर्विंशोऽध्यायः।। 24 ।।

9-24-4 सम्प्रदुद्रावेति पूर्वस्थं सम्प्रदुद्रुवुरिति विपरिणामेन सम्बध्यते।। 9-24-24 चतुर्विंशोऽध्यायः।।

शल्यपर्व-023 पुटाग्रे अल्लिखितम्। शल्यपर्व-025