महाभारतम्-09-शल्यपर्व-046
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बृहस्पत्यादिभिः स्कन्दस्य सैनापत्येऽभिषेचनम्।। 1 ।। ब्रह्मादिभिः स्कन्दाय स्वस्वपारिषदानां दानम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 9-46-1x |
ततोऽभिषेकसम्भारान्सर्वान्सम्भृत्य शास्त्रतः। बृहस्पतिः समिद्धेऽग्नौ जुहावाग्निं यथाविधि।। | 9-46-1a 9-46-1b |
ततो हिमवता दत्ते मणिप्रवरशोभिते। दिव्यरत्नाचिते पुण्ये निषण्णं परमासने।। | 9-46-2a 9-46-2b |
सर्वमङ्गलसम्भारैर्विधिमन्त्रपुरस्कृतम्। आभिषेचनिकं द्रव्यं गृहीत्वा देवतागणाः।। | 9-46-3a 9-46-3b |
इन्द्राविष्णू महावीर्यौ सूर्योचन्द्रमसौ तथा। धाता चैव विधाता च तथा चैवानिलानलौ।। | 9-46-4a 9-46-4b |
पूष्णा भगेनार्यम्णा च अंशेन च विवस्वतां। रुद्रश्च सहितो धीमान्मित्रेण वरुणेन च।। | 9-46-5a 9-46-5b |
रुद्रैर्वसुभिरादित्यैरश्विभ्यां च वृतः प्रभुः। विश्वैर्देवैर्मरुद्भिश्च साध्यैश्च पितृभिः सह।। | 9-46-6a 9-46-6b |
गन्धर्वैरप्सरोभिश्च यक्षराक्षसपन्नगैः। देवर्षिभिरसङ्ख्यातैस्तथा ब्रह्मर्षिभिस्तथा।। | 9-46-7a 9-46-7b |
वैखानसैर्वालखिल्यैर्वाय्वाहारैर्मरीचिपैः। भृगुभिश्चाङ्गिरोभिश्च यतिभिश्च महात्मभिः।। | 9-46-8a 9-46-8b |
सर्वैर्विद्याधरैः पुण्यैर्योगसिद्धैस्तथा वृतः। पितामहः पुलस्त्यश्च पुलहश्च महातपाः।। | 9-46-9a 9-46-9b |
अङ्गिराः कश्यपोऽत्रिश्च मरीचिर्भृगुरेव च। क्रतुर्हरिः प्रचेताश्च मनुर्दक्षस्तथैव च।। | 9-46-10a 9-46-10b |
ऋतवश्च ग्रहाश्चैव ज्योतींषि च विशाम्पते। मूर्तिमत्यश्च सरितो वेदाश्चैव सनातनाः।। | 9-46-11a 9-46-11b |
समुद्राश्च हदाश्चैव तीर्थानि विविधानि च। पृथिवी द्यौर्दिशश्चैव पादपाश्च जनाधिप।। | 9-46-12a 9-46-12b |
अदितिर्देवमाता च हीः श्रीः स्वाहा सरस्वती। उमा शची सिनीवाली तथैवानुमतिः कुहूः।। | 9-46-13a 9-46-13b |
राका च धिषणा चैव पत्न्यश्चान्या दिवौकसाम्। हिमवांश्चैव विन्ध्यश्च मेरुश्चानेकशृङ्गवान्।। | 9-46-14a 9-46-14b |
ऐरावतः सानुचरः कलाः काष्ठास्तथैव च। मासार्धमासा ऋतवस्तथा रात्र्यहनी नृप।। | 9-46-15a 9-46-15b |
उच्चैः श्रवा हयश्रेष्ठो नागराजश्च वासुकिः। अरुणो गरुडश्चैव वृक्षाश्चौषधिभिः सह।। | 9-46-16a 9-46-16b |
धर्मश्च भगवान्देवः समाजग्मुर्हि सङ्गताः। कालो यमश्च मृत्युश्च यमस्यानुचराश्च ये।। | 9-46-17a 9-46-17b |
बहुलत्वाच्च नोक्ता ये विविधा देवतागणाः। ते कुमाराभिषेकार्षं समाजग्मुस्ततस्ततः।। | 9-46-18a 9-46-18b |
जगृहुस्ते तदा राजन्सर्वं एव दिवौकसः। आभिषेचनिकं भाण्डं मङ्गलानि च सर्वशः।। | 9-46-19a 9-46-19b |
दिव्यसम्भारसंयुक्तैः कलशैः काञ्चनैर्नृप। सारस्वताभिः पुण्याभिरद्भिस्ताभिरलङ्कृतम्।। | 9-46-20a 9-46-20b |
अभ्यषिञ्चन्कुमारं वै सम्प्रहृष्टा दिवौकसः। सैनापत्ये महात्मानमसुराणां भयङ्करम्।। | 9-46-21a 9-46-21b |
पुरा यथा महाराज वरुणं वै जलेश्वरम्। तथाऽभ्यषिञ्चद्भगवान्सर्वलोकपितामहः।। | 9-46-22a 9-46-22b |
कश्यपश्च महातेजा ये चान्ये सोककीर्तिताः। तस्मै ब्रह्मा ददौ प्रीतो बलिनो वातरंहसः।। | 9-46-23a 9-46-23b |
कामवीर्यधरान्सिद्धान्महापारिषदान्प्रभुः। नन्दिसेनं लोहिताक्षं घण्टाकार्णं च सम्मतम्।। | 9-46-24a 9-46-24b |
चतुर्थमस्यानुचरं ख्यातं कुमुदमालिनम्। तत्र स्थाणुर्महातेजा महापारिषदं प्रभुः।। | 9-46-25a 9-46-25b |
मायाशतधरं कामं कामवीर्यबलान्वितम्। ददौ स्कन्दाय राजेन्द्र सुरारिविनिबर्हणम्।। | 9-46-26a 9-46-26b |
सहि देवासुरे युद्धे दैत्यानां भीमकर्मणाम्। जघान दोर्भ्यां सङ्क्रुद्धः प्रयुतानि चतुर्दश।। | 9-46-27a 9-46-27b |
तथा देवा ददुस्तस्मै सेनां नैर्ऋतसङ्कुलाम्। देवशत्रुक्षयकरीमजय्यां विश्वरूपिणीम्।। | 9-46-28a 9-46-28b |
जयशब्दं तथा चक्रुर्देवाः सर्वे सवासवाः। गन्धर्वा यक्षरक्षांसि मुनयः पितरस्तथा।। | 9-46-29a 9-46-29b |
ततः प्रादादनुचरौ यमः कालोपमावुभौ। उन्माथं च प्रमाथं च महावीर्यौ महाद्युती।। | 9-46-30a 9-46-30b |
सुभ्राजो भास्वरश्चैव यौ तौ सूर्यानुयायिनौ। तौ सूर्यः कार्तिकेयाय ददौ प्रीतः प्रतापवान्।। | 9-46-31a 9-46-31b |
कैलासशृङ्गसङ्काशौ श्वेतमाल्यानुलेपनौ। सोमोऽप्यनुचरौ प्रादान्मणिं सुमणिमेव च।। | 9-46-32a 9-46-32b |
ज्वालाजिह्वं तथा ज्योतिरात्मजाय हुताशनः। ददावनुचरौ शूरौ परसैन्यप्रमाथिनौ।। | 9-46-33a 9-46-33b |
परिधं च वटं चैव भीमं च सुमहाबलम्। दहतिं दहनं चैव प्रचण्डौ वीर्यसम्मतौ।। | 9-46-34a 9-46-34b |
अंशोऽप्यनुचरान्पञ्च ददौ स्कन्दाय धीमते। उत्क्रोशं सत्करं चैव वज्रदण्डधरावुभौ।। | 9-46-35a 9-46-35b |
ददावनलपुत्राय वासवः परवीरहा। तौ हि शत्रून्महेन्द्रास्य जघ्नतुः समरे बहून्।। | 9-46-36a 9-46-36b |
चक्रं विक्रमकं चैव सङ्क्रमं च महाबलम्। स्कन्दाय त्रीननुचरान्ददौ विष्णुर्महायशाः।। | 9-46-37a 9-46-37b |
वर्धनं नन्दनं चैव सर्वविद्याविशारदौ। स्कन्दाय ददतुः प्रीतावश्विनौ भिषजां वरौ।। | 9-46-38a 9-46-38b |
किन्दुं च कुसुमं चैव कुमुदं च महायशाः। डम्बराडम्बरौ चैव ददौ धाता महात्मने।। | 9-46-39a 9-46-39b |
वक्रानुवक्रौ बलिनौ मेषवक्त्रौ बलोत्कटौ। ददौ त्वष्टा महामायौ स्कन्दायानुचरावुभौ।। | 9-46-40a 9-46-40b |
सुव्रतं सत्यसन्धं च ददौ मित्रो महात्मने। कुमाराय महात्मानौ तपोविद्याधरौ प्रभुः।। | 9-46-41a 9-46-41b |
सुदर्शनीयौ वरदौ त्रिषु लोकेषु विश्रुतौ। सुव्रतं च महात्मानं शुभकर्माणमेव च।। | 9-46-42a 9-46-42b |
कार्तिकेयाय सम्प्रादाद्विधाता लोकविश्रुतौ। पाणीतकं कालिकं च महामायाविनावुभौ।। | 9-46-43a 9-46-43b |
पूषा च पार्षदौ प्रादात्कार्तिकेयाय भारत। बलं चातिबलं चैव महावक्त्रौ महाबलौ।। | 9-46-44a 9-46-44b |
प्रददौ कार्तिकेयाय वायुर्भरतसत्तम। यमं चातियमं चैव तिमिवक्त्रौ महाबलौ।। | 9-46-45a 9-46-45b |
प्रददौ कार्तिकेयाय वरुणः सत्यसङ्गरः। सुवर्चसं महात्मानं तथैवाप्यतिवर्चसम्।। | 9-46-46a 9-46-46b |
हिमवान्प्रददौ राजन्हुताशनसुताय वै। काञ्चनं च महात्मानं मेघमालिनमेव च।। | 9-46-47a 9-46-47b |
ददावनुचरौ मेरुरग्निपुत्राय भारत। स्थिरं चातिस्थिरं चैव मेरुरेवापरौ ददौ।। | 9-46-48a 9-46-48b |
महात्मा त्वग्निपुत्राय महाबलपराक्रमौ। उच्छृङ्गं चातिशृङ्गं च महापाषाणयोधिनौ।। | 9-46-49a 9-46-49b |
प्रददावग्निपुत्राय विन्ध्यः पारिषदावुभौ। सङ्ग्रहं विग्रहं चैव समुद्रोऽमि गदाधरौ।। | 9-46-50a 9-46-50b |
प्रददावग्निपुत्राय महापारिषदावुभौ। उन्मादं शङ्कुकर्णं च पुष्पदन्तं तथैव च।। | 9-46-51a 9-46-51b |
प्रददावग्निपुत्राय पार्वती शुभदर्शना। जयं महाजयं चैव गङ्गा ज्वलनसूनवे।। | 9-46-52a 9-46-52b |
प्रददौ पुरुषव्याघ्र वासुकिः पन्नगेश्वरः। एवं साध्याश्च रुद्राश्च वसवः पितरस्तथा।। | 9-46-53a 9-46-53b |
सागराः सरितश्चैव गिरयश्च महाबलाः। ददुः सेनागणाध्यक्षाञ्शूलपट्टसधारिणः।। | 9-46-54a 9-46-54b |
दिव्यप्रहरणोपेतान्नानावेषविभूषितान्। शृणु नामानि चाप्येषां येऽन्ये स्कन्दस्य सैनिकाः।। | 9-46-55a 9-46-55b |
विविधायुधसम्पन्नाश्चित्राभरणभूषिताः। शङ्कुकर्णो निकुम्भश्च पद्मः कुमुद एव च।। | 9-46-56a 9-46-56b |
अनन्तो द्वादशभुजस्तथा कृष्णोपकृष्णकौ। घ्राणश्रवाः कपिस्कन्धः काञ्चनाक्षो जलन्धमः।। | 9-46-57a 9-46-57b |
अक्षः सन्तर्जनो राजन्कुनदीकस्तमोन्तकृत्। एकाक्षो द्वाशाक्षश्च तथैवैकजटः प्रभुः।। | 9-46-58a 9-46-58b |
सहस्रबाहुर्विकटो व्याघ्राक्षः क्षितिकम्पनः। पुण्यनामा सुनामा च सुचक्रः प्रियदर्शनः।। | 9-46-59a 9-46-59b |
परिश्रुतः कोकनदः प्रियमाल्यानुलेपनः। अजोदरो गजशिराः स्कन्धाक्षः शतलोचनः।। | 9-46-60a 9-46-60b |
ज्वालाजिह्वः करालाक्षः शितिकेशो जटी हरिः। परिश्रुतः कोकनदः कृष्णकेशो जटाधरः।। | 9-46-61a 9-46-61b |
चतुर्दंष्ट्रोऽष्टजिह्वश्च मेघनादः पृथुश्रवाः। विद्युताक्षो धनुर्वक्त्रो जाठरो मारुताशनः।। | 9-46-62a 9-46-62b |
उदाराक्षो रथाक्षश्च वज्रनाभो वसुप्रभः। समुद्रवेगो राजेन्द्र शैलकम्पी तथैव च।। | 9-46-63a 9-46-63b |
वृषो मेषः प्रवाहश्च तथा नन्दोपनन्दकौ। धूम्रः श्वेतः कलिङ्गश्च सिद्धार्थो वरदस्तथा।। | 9-46-64a 9-46-64b |
प्रियकश्चैव नन्दश्च गोनन्दश्च प्रतपवान्। आनन्दश्च प्रमोदश्च स्वस्तिको ध्रुवकस्तथा।। | 9-46-65a 9-46-65b |
क्षेमवाहः सुवाहश्च सिद्धपात्रश्च भारत। गोव्रजः कनकापीडो महापारिषदेश्वरः।। | 9-46-66a 9-46-66b |
गायनो हसनश्चैव बाणः खङ्गश्च वीर्यवान्। वैताली गतिताली च तथा कथकवातिकौ।। | 9-46-67a 9-46-67b |
हंसजः पङ्कदिग्धाङ्गः समुद्रोन्मादनश्च ह। रणोत्कटः प्रहासश्च श्वेतसिद्धश्च नन्दनः।। | 9-46-68a 9-46-68b |
कालकण्ठः प्रभासश्च तथा कुम्भाण्डकोदरः। कालकक्षः सितश्चैव भूतानां मथनस्तथा।। | 9-46-69a 9-46-69b |
यज्ञवाहः सुवाहश्च देवयाजी च सोमपः। मज्जानश्च महातेजाः क्रथक्राथौ च भारत।। | 9-46-70a 9-46-70b |
तुहरश्च तुहारश्च चित्रदेवश्च वीर्यवान्। मधुरः सुप्रसादश्च किरीटी च महाबलः।। | 9-46-71a 9-46-71b |
वत्सलो मधुवर्णश्च कलशोदर एव च। धर्मदो मन्मथकरः सूचीवक्त्रश्च वीर्यवान्।। | 9-46-72a 9-46-72b |
श्वेतवक्त्रः सुवक्त्रश्च चारुवक्त्रश्च पाण्डुरः। दण्डबाहुः सुबाहुश्च रजः कोकिलकस्तथा।। | 9-46-73a 9-46-73b |
अचलः कनकाक्षश्च बालानामपि यः प्रभुः। सञ्चारकः कोकनदो गृध्रपत्रश्च जम्बुकः।। | 9-46-74a 9-46-74b |
लोहाजवक्त्रो जवनः कुम्भवक्त्रश्च कुम्भकः। स्वर्णग्रीवश्च कृष्णौजा हंसवक्त्रश्च चन्द्रभः।। | 9-46-75a 9-46-75b |
पाणिकूर्चाश्च शम्बूकः पञ्चवक्त्रश्च शिक्षकः। चाषवक्त्रक्ष जम्बूकः शाकवक्त्रश्च कुञ्जलः।। | 9-46-76a 9-46-76b |
योगयोक्ता महात्मानः सततं ब्राह्मणप्रियाः। पैतामहा महात्मानो महापारिषदाश्च ये।। | 9-46-77a 9-46-77b |
यौवनस्थाश्च बालाश्च वृद्धाश्च जनमेजय। सहस्रशः पारिषदाः कुमारमुपतस्थिरे।। | 9-46-78a 9-46-78b |
वक्त्रैर्नानाविधैर्ये तु शृणु ताञ्चनमेजय। कूर्मकुक्कुटवक्त्राश्च शशोलूकमुखास्तथा।। | 9-46-79a 9-46-79b |
खरोष्ट्रवदनाश्चान्ये वराहवदनास्तथा। मार्जारशशवक्ताश्च दीर्घवक्त्राश्च भारत।। | 9-46-80a 9-46-80b |
नकुलोलूकवक्त्राश्च काकवक्त्रास्तथा परे। आखुबभ्रुकवक्त्राश्च मयूरवदनास्तथा।। | 9-46-81a 9-46-81b |
मत्स्यमेषाननाश्चान्ये अजाविमहिषाननाः। ऋक्षशार्दूलवक्त्राश्च द्वीतिसिंहाननास्तथा।। | 9-46-82a 9-46-82b |
भीमा गजाननाश्चैव तथा नक्रमुखाश्च ये। गरुडाननाः कङ्कुमुखा वृककाकमुखास्तथा।। | 9-46-83a 9-46-83b |
गोखरोष्ट्रमुखाश्चान्ये वृषदंशमुखास्तथा। महाजठरपादाङ्गास्तारकाक्षाश्च भारत।। | 9-46-84a 9-46-84b |
पारावतमुखाश्चान्ये तथा वृषमुखाः परे। कोकिलाभाननाश्चान्ये श्येनतित्तिरिकाननाः।। | 9-46-85a 9-46-85b |
कृकलासमुखाश्चैव विरजोम्बरधारिणः। व्यालवक्त्राः शूलमुखाश्चण्डवक्त्राः शुभाननाः।। | 9-46-86a 9-46-86b |
आशीविषाश्चीरधरा गोनासावदनास्तथा। स्थूलोदराः कृशाङ्गाश्च स्थूलाङ्गाश्च कृशोदराः।। | 9-46-87a 9-46-87b |
हस्वग्रीवा महाकर्णा नानाव्यालविभूषणाः। गजेन्द्रचर्मवसनास्तथा कृष्णाजिनाम्बराः।। | 9-46-88a 9-46-88b |
स्कन्धेमुखा महाराज तथाप्युदरतोमुखाः। पृष्ठेमुखा हनुमुखास्तथा जङ्घामुखा अपि।। | 9-46-89a 9-46-89b |
पार्श्वाननाश्च बहवो नानादेशमुखास्तथा। तथा कीटपतङ्गानां सदृशास्या गणेश्वराः।। | 9-46-90a 9-46-90b |
नानाव्यालमुखाश्चान्ये बहुबाहुशिरोधराः। नानावृक्षभुजाः केचित्कटिशीर्षास्तथा परे।। | 9-46-91a 9-46-91b |
भुजङ्गभोगवदना नानागुल्मनिवासिनः। चीरसंवृतगात्राश्च नानाकनकवाससः।। | 9-46-92a 9-46-92b |
नानावेषधराश्चैव नानामाल्यानुलेपनाः। नानावस्त्रधराश्चैव चर्मवासस एव च।। | 9-46-93a 9-46-93b |
उष्णीषिणो मुकुटिनः सुग्रीवाश्च सुवर्चसः। किरीटिनः पञ्चशिखास्तथा काञ्चनमूर्धजाः।। | 9-46-94a 9-46-94b |
त्रिशिखा द्विशिखाश्चैव तथा सप्तशिखाः परे। शिखण्डिनो मुकुटिनो मुण्डाश्च जटिलास्तथा।। | 9-46-95a 9-46-95b |
चित्रमालाधराः केचित्केचिद्रोमाननास्तथा। विग्रहैकरसा नित्यमजेताः सुरसत्तमैः।। | 9-46-96a 9-46-96b |
कृष्णा निर्मांसवक्त्राश्च दीर्घपृष्ठास्तनूदराः। स्थूलपृष्ठा हस्वपृष्ठाः प्रलम्बोदरमेहनाः।। | 9-46-97a 9-46-97b |
महाभुजा हस्वभुजा हस्वगात्राश्च वामनाः। कुब्जाश्च हस्वजङ्घाश्च हस्तिकर्णशिरोधराः।। | 9-46-98a 9-46-98b |
हस्तिनासाः कूर्मनासा वृकनासास्तथा परे। दीर्घोच्छ्वासा दीर्घजङ्घा विकराला ह्यधोमुखाः।। | 9-46-99a 9-46-99b |
महादंष्ट्रा हस्वदंष्ट्राश्चतुर्दंष्ट्रास्तथा परे। वारमेन्द्रनिभाश्चान्ये भीमा राजन्सहस्रशः।। | 9-46-100a 9-46-100b |
सुविभक्तशरीराश्च दीप्तिमन्तः स्वलङ्कृताः। पिङ्गाक्षाः शङ्कुकर्णाश्च रक्तनासाश्च भारत।। | 9-46-101a 9-46-101b |
पृथुदंष्ट्रा महादंष्ट्राः स्थूलौष्ठा हरिमूर्धजाः। नानापादौष्ठदंष्ट्राश्च नानाहस्तशिरोधराः।। | 9-46-102a 9-46-102b |
नानाचर्मभिराच्छन्ना नानाभाषाश्च भारत। कुशला देशभाषासु जल्पन्तोऽन्योन्यमीश्वराः।। | 9-46-103a 9-46-103b |
हृष्टाः परिपतन्ति स्म महापारिषदास्तथा। दीर्घग्रीवा दीर्घनखा दीर्घपादशिरोभुजाः।। | 9-46-104a 9-46-104b |
पिङ्गाक्षा नीलकण्ठाश्च लम्बकर्णाश्च भारत। वृकोदरनिभाश्चैव केचिदञ्जनसन्निभाः।। | 9-46-105a 9-46-105b |
श्वेताक्षा लोहितग्रीवाः पिङ्गाक्षाश्च तथा परे। कल्माषा बहवो राजंश्चित्रवर्णाश्च भारत।। | 9-46-106a 9-46-106b |
चामरापीडकनिभाः श्वेतलोहितराजयः। नानावर्णाः सवर्णाश्च मयूरसदृशप्रभाः।। | 9-46-107a 9-46-107b |
पुनः प्रहरणान्येषां कीर्त्यमानानि मे शृणु। शेषैः कृतः पारिषदैरायुधानां परिग्रहः।। | 9-46-108a 9-46-108b |
पाशोद्यतकराः केचिद्व्यादितास्याः खराननाः। पृष्ठाक्षा नीलकण्ठाश्च तथा परिघबाहवः।। | 9-46-109a 9-46-109b |
शतघ्नीचक्रहस्ताश्च तथा मुसलपाणयः। असिमुद्ग्ररहस्ताश्च दण्डहस्ताश्च भारत।। | 9-46-110a 9-46-110b |
गदाभुशुण्डिहस्ताश्च तथा तोमरपाणयः। आयुधैर्विविधैर्घोरैर्महात्मानो महाजवाः।। | 9-46-111a 9-46-111b |
महाबला महावेगा महापारिषदास्तथा। अभिषेकं कुमारस्य दृष्ट्वा हृष्टा रणप्रियाः।। | 9-46-112a 9-46-112b |
घण्टाजालपिनद्धाङ्गा ननृतुस्ते महौजसः। एते चान्ये च बहवो महापारिषदा नृप।। | 9-46-113a 9-46-113b |
उपतस्थुर्महात्मानं कार्तिकेयं यशस्विनम्। दिव्याश्चाप्यान्तरिक्षाश्च पार्थिवाश्चानिलोपमाः।। | 9-46-114a 9-46-114b |
व्यादिष्टा दैवतैः शूराः स्कन्दस्यानुचराऽभवन्। तादृशानां सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च। अभिषिक्तं महात्मानं परिवार्योपतस्थिरे।। | 9-46-115a 9-46-115b 9-46-115c |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि ह्रदप्रवेशपर्वणि षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।। 46 ।। |
9-46-13 नागराजश्च वामन इति ख.पाठः।। 9-46-45 घसं त्वातिघसं चैवेति ख.पाठः।। 9-46-46 षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।।
शल्यपर्व-045 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | शल्यपर्व-047 |