महाभारतम्-09-शल्यपर्व-021
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।
सञ्जय उवाच। | 9-21-1x |
पुत्रस्तु ते महाराज रथस्थो रथिनां वरः। दुरुत्सहो बभौ युद्धे यथा रुद्रः प्रतापवान्।। | 9-21-1a 9-21-1b |
तस्य बाणसहस्रैस्तु प्रच्छन्ना ह्यभवन्मही। परांश्च सिषिचे बाणैर्धाराभिरिव पर्वतान्।। | 9-21-2a 9-21-2b |
न च सोऽस्ति पुमान्कश्चित्पाण्डवानां बलार्णवे। हयो गजो रथो वाऽपि यः स्याद्बाणैरविक्षतः।। | 9-21-3a 9-21-3b |
यं यं हि समरे योधं प्रपश्यामि विशाम्पते। स स बाणैश्चितोऽभूद्वै पुत्रेण तव भारत।। | 9-21-4a 9-21-4b |
यथा सैन्येन रजसा समुद्भूतेन वाहिनी। प्रत्यदृश्यत सञ्छन्ना तथा बाणैर्महात्मनः।। | 9-21-5a 9-21-5b |
बाणभूतामपश्याम पृथिवीं पृथिवीपते। दुर्योधनेन प्रकृतां क्षिप्रहस्तेन धन्विना।। | 9-21-6a 9-21-6b |
तेषु योधसहस्रेषु तावकेषु परेषु च। नास्ति दुर्योधनसमः पुमानिति मतिर्मम।। | 9-21-7a 9-21-7b |
तत्राद्भुतमपश्याम तव पुत्रस्य विक्रमम्। यदेकं सहिताः पार्था नाभ्यवर्तन्त भारत।। | 9-21-8a 9-21-8b |
युधिष्ठिरं शतेनाजौ विव्याध भरतर्षभ। भीमसेनं च सप्तत्या सहदेवं च पञ्चभिः।। | 9-21-9a 9-21-9b |
नकुलं च चतुःषष्ट्या धृष्टद्युम्नं च पञ्चभिः। पञ्चभिर्द्रौपदेयांश्च त्रिभिर्विव्याध सात्यकिम्।। | 9-21-10a 9-21-10b |
धनुश्चिच्छेद भल्लेन सहदेवस्य मारिष। तदपास्य धनुश्छिन्नं माद्रीपुत्रः प्रतापवान्।। | 9-21-11a 9-21-11b |
अभ्यद्रवत राजानं प्रगृह्यान्यन्महद्धनुः। ततो दुर्योधनं सङ्ख्ये विव्याध दशभिः शरैः।। | 9-21-12a 9-21-12b |
नकुलस्तु ततो वीरो राजानं नवभिः शरैः। घोररूपैर्महेष्वासो विव्याध च ननाद च।। | 9-21-13a 9-21-13b |
सात्यकिश्चैव राजानं शरेणानतपर्वणा। द्रौपदेयास्त्रिसप्तत्या धर्मराजश्च पञ्चभिः। अशीत्या भीमसेनश्च शरै राजानमार्पयन्।। | 9-21-14a 9-21-14b 9-21-14c |
समन्तात्कीर्यमाणस्तु बाणसङ्घैर्महात्मभिः। न चचाल महाराज सर्वसैन्यस्य पश्यतः।। | 9-21-15a 9-21-15b |
लाघवात्सौष्ठवाच्चापि वीर्याच्चापि महात्मनः। अति सर्वाणि भूतानि ददृशुः सर्वपार्थिवाः।। | 9-21-16a 9-21-16b |
धार्तराष्ट्रा हि राजेन्द्र योधास्तु स्वल्पमन्तरम्। अपश्यमाना राजानं पर्यवर्तन्त दंशिताः।। | 9-21-17a 9-21-17b |
तेषामापततां घोरस्तुमुलः समपद्यत। क्षुब्धस्य हि समुद्रस्य प्रावृट्काले यथा स्वनः।। | 9-21-18a 9-21-18b |
समासाद्य रणे ते तु राजानमपराजितम्। प्रत्युद्ययुर्महेष्वासाः पाण्डवानाततायिनः।। | 9-21-19a 9-21-19b |
भीमसेनं रणे क्रुद्धो द्रोणपुत्रो न्यवारयत्। तयोर्बाणैर्महाराज प्रमुक्तैः सर्वतोदिशम्। नाज्ञायन्त रणे वीरा न दिशः प्रदिशस्तथा।। | 9-21-20a 9-21-20b 9-21-20c |
तावुभौ क्रूरकर्माणावुभौ भारतदुःसहौ। घोररूपमयुध्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ।। | 9-21-21a 9-21-21b |
त्रासयन्तौ दिशः सर्वा ज्याक्षेपकठिनत्वचौ। शकुनिस्तु रणे वीरो युधिष्ठिरमपीडयत्।। | 9-21-22a 9-21-22b |
तस्याश्वांश्चतुरो हत्वा सुबलस्य सुतो विभो। नादं चकार बलवत्सर्वसैन्यानि कम्पयन्।। | 9-21-23a 9-21-23b |
एतस्मिन्नन्तरे वीरं राजानमपराजितम्। अपोवाह रथेनाजौ सहदेवः प्रतापवान्।। | 9-21-24a 9-21-24b |
अथान्यं रथमास्थाय धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। शकुनिं नवभिर्विद्ध्वा पुनर्विव्याध पञ्चभिः। ननाद च महानादं प्रवरः सर्वधन्विनाम्।। | 9-21-25a 9-21-25b 9-21-25c |
तद्युद्धमभवच्चित्रं घोररूपं च मारिष। प्रेक्षतां प्रीतिजननं सिद्धचारणसेवितम्।। | 9-21-26a 9-21-26b |
उलूकस्तु महेष्वासं नकुलं युद्धदुर्मदम्। अभ्यवर्षदमेयात्मा शरवर्षैः समन्ततः।। | 9-21-27a 9-21-27b |
तथैव नकुलः शूरः सौबलस्य सुतं रणे। शरवर्षेण महता समन्तात्पर्यवारयत्।। | 9-21-28a 9-21-28b |
तौ तत्र समरे वीरौ कुलपुत्रौ महारथौ। योधयन्तावपश्येतां कृतप्रतिकृतैषिणौ।। | 9-21-29a 9-21-29b |
तथैव कृतवर्माणं शैनेयः शत्रुतापनः। योधयञ्शुशुभे राजन्बलिं शक्र इवाहवे।। | 9-21-30a 9-21-30b |
दुर्योधनो धनुश्छित्त्वा धृष्टद्युम्नस्य संयुगे। अथैनं छिन्नधन्वानं विव्याध निशितैः शरैः।। | 9-21-31a 9-21-31b |
धृष्टद्युम्नोऽपि समरे प्रगृह्य परमायुधम्। राजानं योधयामास पश्यतां सर्वधन्विनाम्।। | 9-21-32a 9-21-32b |
तयोर्युद्धं महच्चासीत्सङ्ग्रामे भरतर्षभ। प्रभिन्नयोर्यथा सक्तं मत्तयोर्वनहस्तिनोः।। | 9-21-33a 9-21-33b |
गौतमस्तु रणे क्रुद्धो द्रौपदेयान्महाबालान्। विव्याध बहुभिः शूरः शरैः सन्नतपर्वभिः।। | 9-21-34a 9-21-34b |
तस्य तैरभवद्युद्धमिन्द्रियैरिव देहिनः। घोररूपमसंवार्यं निर्मर्यादमवर्तत।। | 9-21-35a 9-21-35b |
ते च सम्पीडयामासुरिन्द्रियाणीव बालिशम्। स च तान्प्रतिसंरब्धः प्रत्ययोधयदाहवे।। | 9-21-36a 9-21-36b |
एवं चित्रमभूद्युद्धं तस्य तैः सह भारत। उत्थायोत्थाय हि यथा देहिनामिन्द्रियैर्विभो।। | 9-21-37a 9-21-37b |
नराश्चैव नरैः सार्धं दन्तिनो दन्तिभिस्तथा। हया हयैः समासक्ता रथिनो रथिभिः सह।। | 9-21-38a 9-21-38b |
सङ्कुलं चाभवद्भूयो घोररूपं विशाम्पते।। | 9-21-39a |
इदं चित्रमिदं घोरमिदं रौद्रमिति प्रभो। युद्धान्यासन्महाराज घोरांणि च बहूनि च।। | 9-21-40a 9-21-40b |
ते समासाद्य समरे परस्परमरिन्दमाः। व्यनदंश्चैव जघ्नुश्च समाताद्य महाहवे।। | 9-21-41a 9-21-41b |
तेषां पत्रसमुद्भूतं रजस्तीव्रमदृश्यत। वातेन चोद्धतं राजन्धावद्भिश्चाश्वसादिभिः।। | 9-21-42a 9-21-42b |
रथनेमिसमुद्भूतं निःश्वासैश्चापि दन्तिनाम्। रजः सन्ध्याभ्रकलिलं दिवाकरपथं ययौ।। | 9-21-43a 9-21-43b |
रजसा तेन सम्पृक्तो भास्करो निष्प्रभः कृतः। सञ्छादिताऽभवद्भूमिस्ते च शूरा महारथाः।। | 9-21-44a 9-21-44b |
मुहूर्तादिव संवृत्तं नीरजस्कं समन्ततः। वीरशोणितसिक्तायां भूमौ भरतसत्तम।। | 9-21-45a 9-21-45b |
उपाशाम्यत्ततस्तीव्रं तद्रजो घोरदर्शनम्।। | 9-21-46a |
ततोऽपश्यमहं भूयो द्वन्द्वयुद्धानि भारत। यथाप्राणं यथाश्रेष्ठं मध्याह्ने वै सुदारुणम्।। | 9-21-47a 9-21-47b |
वर्मणां तत्र राजेन्द्र व्यदृश्यन्तोज्ज्वलाः प्रभाः। शब्दश्च तुमुलः सङ्ख्ये शराणां पततामभूत् महावेणुवनस्येव दह्यमानस्य पर्वते।। | 9-21-48a 9-21-48b 9-21-48c |
।। इति श्रीमन्महाभारते शल्यपर्वणि शल्यवधपर्वणि अष्टादशदिवसयुद्धे एकविंशोऽध्यायः।। 21 ।। |
9-21-42 पत्रं वाहनम्।। 9-21-21 एकविंशोऽध्यायः।।
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