महाभारतम्-08-कर्णपर्व-003
← कर्णपर्व-002 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-003 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-004 → |
सञ्जयेन धृतराष्ट्रम्पति युद्धे निहतानां परेषां नामकथनम्।। 1 ।।
|
धृतराष्ट्र उवाच। | 8-3-1x |
आख्याता मामकास्तात निहता युधि पाण्डवैः। हतांश्च पाण्डवेयानां मामकैर्ब्रूहि सञ्जय।। | 8-3-1a 8-3-1b |
सञ्जय उवाच। | 8-3-2x |
कृतिनो युधि विक्रान्ता महासत्वा महाबलाः। सानुबन्धाः सहामात्या गाङ्गेयेन निपातिताः।। | 8-3-2a 8-3-2b |
नारायणा वल्लवाश्च रामाश्च शतशो परे। अनुरक्ताश्च वीरेण भीष्मेण युधि पातिताः।। | 8-3-3a 8-3-3b |
समः किरीटिना सङ्ख्ये वीर्येण च बलेन च। सत्यजित्सत्यसन्धेन द्रोणेन निहतो युधि।। | 8-3-4a 8-3-4b |
पाञ्चालानां महेष्वासाः सर्वे युद्वविशारदाः। द्रोणेन सह सङ्गम्य गता वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-5a 8-3-5b |
तथा विराटद्रुपदौ वृद्वौ सहसुतौ नृपौ। पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन निहतौ रणे।। | 8-3-6a 8-3-6b |
यो बाल एव समरे सम्मितः सव्यसाचिना। केशवेन च दुर्धर्षो बलदेवेन चाभिभूः।। | 8-3-7a 8-3-7b |
परेषां कदनं कृत्वा महद्रणविशारदः। परिवार्य मदामात्रैः षड्भिः परमकै रथैः। अशक्नुवद्भिर्बीभत्सुमभिमन्युर्निपातितः।। | 8-3-8a 8-3-8b 8-3-8c |
कृतं तं विरथं वीरं क्षत्रधर्मे व्यवस्थितम्। दौःशासनिर्महाराज सौभद्रं हतवान्रणे।। | 8-3-9a 8-3-9b |
पटच्चरनिहन्ता च महत्या सेनया वृतः। अम्बष्ठस्य सुतः श्रीमान्मित्रहेतोः पराक्रमन्।। | 8-3-10a 8-3-10b |
आसाद्य लक्ष्मणं वीरं दुर्योधनसुतं रणे। सुमहत्कदनं कृत्वा गतो वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-11a 8-3-11b |
बृहन्तः सुमहेष्वासः कृतास्त्रो युद्वदुर्मदः। दुःशासनेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-3-12a 8-3-12b |
मणिमान्दण्डधारश्च राजानौ युद्धदुर्मदौ। पराक्रमन्तौ मित्रार्थे द्रोणेन युधि पातितौ।। | 8-3-13a 8-3-13b |
अंशुमान्भोजराजस्तु सहसैन्यो महारथः। भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-3-14a 8-3-14b |
सामुद्रश्चित्रसेनश्च सह पुत्रेण भारत। समुद्रसेनेन बलाद्गमितो यमसादनम्।। | 8-3-15a 8-3-15b |
अनूपवासी नीलश्च व्याध्रदत्तश्च वीर्यवान्। अश्वत्थाम्ना विकर्णेन गमितौ यमसादनम्।। | 8-3-16a 8-3-16b |
चित्रायुधश्चित्रयोधी कृत्वा च कदनं महत्। चित्रमार्गेण विक्रम्य विकर्णेन हतो मृधे। | 8-3-17a 8-3-17b |
वृकोदरसमो युद्धे वृतः केकयजो युधि। केकयेन च विक्रम्य भ्राता भ्रात्रा निपातितः।। | 8-3-18a 8-3-18b |
जनमेजयो गदायोधी पार्वतीयः प्रतापवान्। दुर्मुखेन महाराज तव पुत्रेण पातितः।। | 8-3-19a 8-3-19b |
रोचमानौ नरव्याघ्रौ रोचमानौ ग्रहाविव। द्रौणेन युगपद्राजन्दिवं सम्प्रातितौ शरैः।। | 8-3-20a 8-3-20b |
नृपाश्च प्रतियुध्यन्तः पराक्रान्ता विशाम्पते। कृत्वा नसुकरं कर्म गता वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-21a 8-3-21b |
पुरुजित्कृन्तिभोजश्च मातुलौ सव्यसाचिनः। संग्रामनिर्जिताँल्लोकान्गमितौ द्रोणसायकैः।। | 8-3-22a 8-3-22b |
अभिभूः काशिराजश्च काशिकैर्बहुभिर्वृतः। वसुदानस्य पुत्रेण त्याजितो देहमाहवे।। | 8-3-23a 8-3-23b |
अमितौजा युधामन्युरुत्तमौजाश्च वीर्यवान्। निहत्य शतशः सूरानस्मदीयैर्निपातिताः।। | 8-3-24a 8-3-24b |
मित्रवर्मा च पाञ्चाल्यः क्षत्रधर्मा च भारत। द्रोणेन परमेष्वासौ गमितौ यमसादनम्।। | 8-3-25a 8-3-25b |
शिखण्डितनयो युद्धे क्षत्रदेवो युधाम्पतिः। लक्ष्मणेन हतो राजंस्तव पौत्रेण भारत।। | 8-3-26a 8-3-26b |
सुचित्रश्चित्रवर्मा च पितापुत्रौ महारथौ। प्रचरन्तौ महावीरौ द्रोणेन निहतौ रणे।। | 8-3-27a 8-3-27b |
वार्धक्षेमिर्महाराज समुद्र इव पर्वणि। आयुधक्षयमासाद्य प्रशान्तिं परमां गतः।। | 8-3-28a 8-3-28b |
सेनाबिन्दुसुतः श्रेष्ठः शास्त्रवान्प्रहरन्युधि। बाह्लिकेन महाराज कौरवेन्द्रेण पातितः।। | 8-3-29a 8-3-29b |
धृष्टकेतुर्महाराज चेदीनां प्रवरो रथः। कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-30a 8-3-30b |
तथा सत्यधृतिर्वीरः कृत्वा कदनमाहवे। पाण्डवार्थे पराक्रान्तो गमितो यमसादनम्।। | 8-3-31a 8-3-31b |
पुत्रस्तु शिशुपालस्य सुकेतुः पृथिवीपतिः। निहत्य शात्रवान्सङ्ख्ये द्रोणेन निहतो युधि।। | 8-3-32a 8-3-32b |
तथा सत्यधृतिर्वीरो मदिराश्वश्च वीर्यवान्। सूर्यदत्तश्च विक्रान्तो निहतो द्रोणसायकैः।। | 8-3-33a 8-3-33b |
`मात्स्यादवरजः श्रीमाञ्शतानीको निपातितः। श्रेणिमांश्च महाराज युध्यमानः पराक्रमी। कृत्वा नसुकरं कर्म गतो वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-34a 8-3-34b 8-3-34c |
तथैव युधि विक्रान्तो मागधः परमास्त्रवित्। भीष्मेण निहतो राजञ्शेतेऽद्य परवीरहा।। | 8-3-35a 8-3-35b |
विराटपुत्रः शङ्खस्तु उत्तरश्च महारथः। कुर्वन्तौ सुमहत्कर्म गतौ वैवस्वतक्षयम्।। | 8-3-36a 8-3-36b |
वसुदानश्च कदनं कुर्वाणोऽतीव संयुगे। भारद्वाजेन विक्रम्य गमितो यमसादनम्।। | 8-3-37a 8-3-37b |
एते चान्ये च बहवः पाण्डवानां महारथाः। हता द्रोणेन विक्रम्य यन्मां त्वं परिपृच्छसि।। | 8-3-38a 8-3-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि तृतीयोऽध्यायः।। 3 ।। |
8-3-20 रोचमानौ एकानामानौ भ्रातरौ।। 8-3-3 तृतीयोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-002 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-004 |