महाभारतम्-08-कर्णपर्व-090
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अर्जुनेन कर्णसूनोर्वृषसेनस्य वधः।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-90-1x |
स सूतजस्य प्रमुखे स्थितस्तदा।। | 8-90-1f |
तमापतन्तं नरवीरमुग्रं महाहवे बाणसहस्रधारिणम्। अभ्यापतत्कर्णसुतो महारथं यथा महेन्द्रं नमुचिः पुरा तथा।। | 8-90-2a 8-90-2b 8-90-2c 8-90-2d |
तौ तत्र शूरौ रथकुञ्जरौ रणे परस्परस्याभिमुखौ महारथौ। ससर्जतुः शरसङ्घाननेका-- न्सम्भ्रान्तरूपौ सुभृशं तदानीम्।। | 8-90-3a 8-90-3b 8-90-3c 8-90-3d |
ततो द्रुतं चैकशरेण पार्थं शितेन विद्ध्वा युधि कर्णपुत्रः। ननाद नादं सुमहानुभावो विद्ध्वेव शक्रं नमुचिः स वीरः।। | 8-90-4a 8-90-4b 8-90-4c 8-90-4d |
पुनः स पार्थं वृषसेन उग्रै-- र्बाणैरविद्ध्यद्भुजमूले तु सव्ये। तथैव कृष्णं नवभिः समार्दय-- त्पुनश्च पार्थं दशभिर्जघान।। | 8-90-5a 8-90-5b 8-90-5c 8-90-5d |
पूर्वं यथा वृषसेनप्रयुक्तै-- रभ्याहतः श्वेतहयः शरैस्तैः। संरम्भमीषद्गमितो वधाय कर्णात्मजस्याथ मनः प्रदध्रे।। | 8-90-6a 8-90-6b 8-90-6c 8-90-6d |
उवाच कर्णं भृशमुत्स्मयंस्तदा।। | 8-90-7f |
दुर्योधनं द्रौणिमुखांश्च सर्वा-- नहं रणे वृषसेनं तमुग्रम्। सम्पश्यतः कर्ण तवाद्य सङ्ख्ये नयामि लोकं निशितैः पृषत्कैः।। | 8-90-8a 8-90-8b 8-90-8c 8-90-8d |
ऊनं च तावद्धि जना वदन्ति सर्वैर्भवद्भिर्मम सूनुर्हतोऽसौ। एको रथो मद्विहीनस्तरस्वी अहं हनिष्ये भवतां समक्षम्।। | 8-90-9a 8-90-9b 8-90-9c 8-90-9d |
संरक्ष्यतां रथसंस्थाः सुतोऽय-- महं हनिष्ये भवतां समक्षम्।। पश्चाद्वधिष्ये त्वामपि सम्प्रमूढ-- महं हनिष्येऽर्जुन आजिमध्ये।। | 8-90-10a 8-90-10b 8-90-10c 8-90-10d |
यस्यानयादेष महान्क्षयोऽभवत्।। | 8-90-11f |
स एवमुक्त्वा विनिमृज्य चापं लक्ष्यं हि कृत्वा वृषसेनमाजौ। ससर्ज बाणान्विशिखान्महात्मा वधाय राजन्कर्णसुतस्य सङ्ख्ये।। | 8-90-12a 8-90-12b 8-90-12c 8-90-12d |
विव्याध चैनं दशभिः पृषत्कै-- र्मर्मस्वशङ्कं प्रहसन्किरीटी। चिच्छेद चास्येष्वसनं भुजौ च क्षुरैश्चतुर्भिर्निशितैः शिरश्च।। | 8-90-13a 8-90-13b 8-90-13c 8-90-13d |
स पार्थबाणाभिहतः पपात रथाद्विबाहुर्विशिरा धरायाम्। सुपुष्पितो वज्रहतोऽतिमात्रो भग्नो यथा साल इवावकृत्तः।। | 8-90-14a 8-90-14b 8-90-14c 8-90-14d |
सञ्जय उवाच। | 8-90-1x1 |
दोधूयमानस्य भृशं धनुषः शृणु निःस्वनम्।। | 8-90-9b9 |
एते दीर्यन्ति सगणाः पाञ्चालानां महारथाः। दृष्ट्वा केसरिणं क्रुद्धं मृगा इव महावने।। | 8-90-10a 8-90-10b |
सर्वयत्नेन कौन्तेय हन्तुमर्हसि सूतजम्। न हि कर्णशरानन्यः सोढुमुत्सहते नरः।। | 8-90-11a 8-90-11b |
सदेवासुरगन्धर्वांस्त्रीँल्लोकान्सचराचरान्। त्वं हि जेतुं रणे शक्तस्तथैव विदितं मम।। | 8-90-12a 8-90-12b |
भीममुग्रं महात्मानं त्र्यक्षं शर्वं कपर्दिनम्। न शक्ता द्रष्टुमीशानं किं पुनर्योधितुं प्रभुम्।। | 8-90-13a 8-90-13b |
त्वया साक्षान्महादेवः सर्वभूतशिवः शिवः। युद्धेनाराधितः स्थाणुर्देवाश्च वरदास्तव।। | 8-90-14a 8-90-14b |
तस्य पार्थ प्रसादेन देवदेवस्य शूलिनः। जहि कर्णं महाबाहो नमुचिं वृत्रहा यथा।। | 8-90-15a 8-90-15b |
श्रेयस्तेऽस्तु सदा पार्थ युद्धे जयमवाप्नुहि।। | 8-90-16a |
अर्जुन उवाच। | 8-90-16bx |
ध्रुव एव जयः कृष्ण मम नास्त्यत्र संशयः। सर्वलोकगुरुर्यस्त्वं तुष्टोऽसि मधुसूदन।। | 8-90-17a 8-90-17b |
चोदयाश्वान्हृषीकेश रथं मम महारथ। नाहत्वा समरे कर्णं निवर्तिष्यति फल्गुनः।। | 8-90-18a 8-90-18b |
अद्य कर्णं हतं पश्य मच्छरैः शकलीकृतम्। मां वा द्रक्ष्यसि गोविन्द कर्णेन निहतं शरैः।। | 8-90-19a 8-90-19b |
उपस्थितमिदं घोरं युद्धं त्रैलोक्यमोहनम्। यज्जनाः कथयिष्यन्ति यावद्भूमिर्धरिष्यति।। | 8-90-20a 8-90-20b |
एवं ब्रुवंस्तदा पार्थः कृष्णमक्लिष्टकारिणम्। प्रत्युद्ययौ रथेनाशु गजं प्रतिगजो यथा।। | 8-90-21a 8-90-21b |
पुनरप्याह तेजस्वी पार्थः कृष्णमरिन्दम। चोदयाश्वान्हृषीकेश कालोऽयमतिवर्तते।। | 8-90-22a 8-90-22b |
एवमुक्तस्तदा तेन पाण्डवेन महात्मना। जयेन सम्पूज्य स पाण्डवं तदा प्रचोदयामास हयान्मनोजवान्।। | 8-90-23a 8-90-23b 8-90-23c |
स पाण्डुपुत्रस्य रथो मनोजवः क्षणेन कर्णस्य रथाग्रगोऽभवत्।। | 8-90-24a 8-90-24b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे नवतितमोऽध्यायः*।। 90 ।। |
8-90-9 ऊनमिति। अभिमन्युं साधनैरिति शेषः। साधनैरूनं वदन्तीत्यन्वयः।। 8-90-90 नवतितमोऽध्यायः।। 8-90-* एतदनन्तरं झ.पुस्तके एकोऽध्यायोऽधिको दृश्यते।
कर्णपर्व-089 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-091 |