महाभारतम्-08-कर्णपर्व-060
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गजयुद्धम्।। 1 ।।
सङ्कुलयुद्धम्।। 2 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-60-1x |
हस्तिभिस्तु महामात्रास्तव पुत्रेण चोदिताः। धृष्टद्युम्नं घ्नतेत्याशु क्रुद्धाः पार्षतमभ्ययुः।। | 8-60-1a 8-60-1b |
प्राच्याश्च दाक्षिणात्याश्च प्रवरा गजयोधिनः। अङ्गा वङ्गाश्च पुण्ड्राश्च मागधास्ताम्रलिप्तकाः।। | 8-60-2a 8-60-2b |
मेकलाः कोशला मद्रा दशार्णा निषधास्तथा। गजयुद्धेषु कुशलाः कलिङ्गैः सह भारत।। | 8-60-3a 8-60-3b |
शरतोमरनाराचैर्वृष्टिमन्त इवाम्बुदाः। सिषिचुस्ते ततः सर्वे पाञ्चालबलमाहवे।। | 8-60-4a 8-60-4b |
तानभिद्रवतो नागान्मदवेगसमुद्धतान्। विपाठक्षुरनाराचैर्धृष्टद्युम्नो ह्यवीवृषत्।। | 8-60-5a 8-60-5b |
एकैकं दशभिः ष़ड्भिरष्टाभिरपि पार्षतः। द्विरदानभिविव्याध क्षिप्रं गिरिनिभाञ्शरैः।। | 8-60-6a 8-60-6b |
प्रच्छाद्यमानं द्विरदैर्मेघैरिव दिवाकरम्। पर्ययुः पाण्डुपाञ्चाला नदन्तो ह्यात्तकार्मुकाः।। | 8-60-7a 8-60-7b |
तान्नागानभिवर्षन्तो ज्यातलत्रविनादिनः। वीरनृत्यं प्रनृत्यन्तः शूरतालप्रचोदितैः। नकुलः सहदेवश्च द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः।। | 8-60-8a 8-60-8b 8-60-8c |
सात्यकिश्च शिखण्डी च चेकितानश्च वीर्यवान्। समन्तात्सिषिचुर्वीरा मेघास्तोयैरिवाचलान्।। | 8-60-9a 8-60-9b |
ते म्लेच्छैः प्रेषिता नागा नरानश्वान्रथानपि। हस्तैराक्षिप्य ममृदुः पद्भिश्चाप्यतिमन्यवः।। | 8-60-10a 8-60-10b |
बिभिदुश्च विषाणाग्रैः समाक्षिप्य च चिक्षिपुः। विषाणलग्नाश्चाप्यन्ये परिपेतुर्विभीषणाः।। | 8-60-11a 8-60-11b |
प्रमुखे वर्तमानं तु द्विपमङ्गस्य सात्यकिः। नाराचेनोग्रवेगेन भित्त्वा मर्माण्यताडयत्।। | 8-60-12a 8-60-12b |
तस्यावर्जितकायस्य द्विरदादुत्पतिष्यतः। नाराचेनाहनद्वक्षः सात्यकिः सोऽपतद्भुवि।। | 8-60-13a 8-60-13b |
पुण्ड्रस्यापततो नागं चलन्तमिव पर्वतम्। सहदेवः प्रसन्नाग्रैर्नाराचैरहनत्त्रिभिः।। | 8-60-14a 8-60-14b |
विपताकं वियन्तारं विवर्मध्वजजीवितम्। तं कृत्वा द्विरदं भूयः सहदेवोऽङ्गमभ्ययात्।। | 8-60-15a 8-60-15b |
सहदेवं तु नकुलो वारयित्वाङ्गमार्दयत्। नाराचैर्यमदण्डाभैस्त्रिभिर्नागं शतेन तम्।। | 8-60-16a 8-60-16b |
दिवाकरकप्रख्यानङ्गश्चिक्षेप तोमरान्। नकुलाय शतान्यष्टौ त्रिधैकैकं तु सोऽच्छिनत्।। | 8-60-17a 8-60-17b |
तथाऽर्धचन्द्रेण शिरस्तस्य चिच्छेद पाण्डवः। स पपात हतो म्लेच्छस्तेनैव सह दन्तिना।। | 8-60-18a 8-60-18b |
अथाङ्गपुत्रे निहते हस्तिशिक्षाविशारदे। अङ्गाः क्रुद्धा महामात्रा नागैर्नकुलमभ्ययुः।। | 8-60-19a 8-60-19b |
चलत्पताकैः सुमुखैर्हेमकक्ष्यातनुच्छदैः। मिमर्दिषन्तस्त्वरिताः प्रदीप्तैरिव पर्वतैः।। | 8-60-20a 8-60-20b |
मेकलोत्कलकालिङ्गा निषधास्ताम्रलिप्तकाः। शरतोमरवर्षाणि विमुञ्चन्तो जिघांसवः।। | 8-60-21a 8-60-21b |
तैश्छाद्यमानं नकुलं निशाकरमिवाम्बुदैः। परिपेतुः सुसंरब्धाः पाण्डुपाञ्चालसात्यकाः।। | 8-60-22a 8-60-22b |
ततस्तदभवद्युद्धं रथिनां हस्तिभिः सह। सृजतां शरवर्षाणि तोमरांश्च सहस्रशः।। | 8-60-23a 8-60-23b |
नागानां प्रास्फुटन्कुम्भा मर्माणि च नखानि च। दन्ताश्चैवातिविद्धानां नाराचैर्हेमभूषणैः।। | 8-60-24a 8-60-24b |
तेषामष्टौ महानागांश्चतुःषष्ट्या सुतेजनैः। नाराचैः सहदेवस्तान्पातयामास सादिभिः।। | 8-60-25a 8-60-25b |
अञ्जोगतिभिरायम्य प्रयत्नाद्धनुरुत्तमम्। नाराचैरहनन्नागान्नकुलः कुलनन्दनः।। | 8-60-26a 8-60-26b |
ततः पाञ्चालशैनेयौ द्रौपदेयाः प्रभद्रकाः। शिखण्डी च महानागान्सिषिचुः शरवृष्टिभिः।। | 8-60-27a 8-60-27b |
ते पाण्डुयोधाम्बुधरैः शत्रुद्विरदपर्वताः। बाणवर्षैर्हताः पेतुर्वज्रवर्षैरिवाचलाः।। | 8-60-28a 8-60-28b |
एवं हत्वा तव गजांस्ते पाण्डुरथकुञ्जराः। द्रुतं सेनां च वर्षन्तो भिन्नकूलामिवापगाम्।। | 8-60-29a 8-60-29b |
तां ते सेनां समालोड्य पाण्डुपुत्रस्य सैनिकाः। विक्षोभयित्वा च पुनः कर्णं समभिदुद्रुवुः।। | 8-60-30a 8-60-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे षष्टितमोऽध्यायः।। 60 ।। |
8-60-7 प्रच्छाद्यमानं धृष्टद्युम्नम्।। 8-60-13 आवर्जितः प्रहारवश्चनेन रक्षितः कायो येन तस्य।। 8-60-60 षष्टितमोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-059 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-061 |