महाभारतम्-08-कर्णपर्व-004
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सञ्जयेन धृतराष्ट्रम्प्रति हतावशिष्टानां नामकथनम्।। 1 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 8-4-1x |
मामकस्यास्य सैन्यस्य हृतोत्सेकस्य स़ञ्जय। अवशेषं न पश्यामि ककुदे मृदिते सति।। | 8-4-1a 8-4-1b |
तौ हि वीरौ महेष्वासौ मदर्थे कुरुसत्तमौ। भीष्मद्रोणौ हतौ श्रुत्वा कोन्वर्थो जीवितेन मे।। | 8-4-2a 8-4-2b |
न च मृष्यामि राधेयं हतमाहवशोभिनम्। यस्य बाह्वोर्बलं तुल्यं कुञ्जराणां शतं शतम्।। | 8-4-3a 8-4-3b |
हतप्रवरसैन्यं मे यथा शंससि सञ्जय। अहतानपि मे शंस येऽत्र जीवन्ति केचन।। | 8-4-4a 8-4-4b |
एतेषु हि मृतेष्वद्य ये त्वया परिकीर्तिताः। येऽपि जीवन्ति ते सर्वे मृता इति मतिर्मम।। | 8-4-5a 8-4-5b |
सञ्जय उवाच। | 8-4-6x |
यस्मिन्महास्त्राणि समर्पितानि चित्राणि शुभ्राणि चतुर्विधानि। दिव्यानि राजन्विहितानि चैव द्रोणेन वीरे द्विजसत्तमेन।। | 8-4-6a 8-4-6b 8-4-6c 8-4-6d |
महारथः कृतिमान्क्षिप्रहस्तो दृढायुधो दृढमुष्टिर्दृढेषुः। स वीर्यवान्द्रोणपुत्रस्तरस्वी व्यवस्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-7a 8-4-7b 8-4-7c 8-4-7d |
आनर्तवासी हृदिकात्मजोऽसौ महारथः सात्वतानां वरिष्ठः। स्वयं भोजः कृतवर्मा कृतास्त्रो व्यवस्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-8a 8-4-8b 8-4-8c 8-4-8d |
आर्तायनिः समरे दुष्प्रकम्प्यः सेनाग्रणीः प्रथमस्तावकानाम्। यः स्वस्रीयान्पाण्डवेयान्विसृज्य सत्यां वाचं स्वां चिकीर्षुस्तरस्वी।। | 8-4-9a 8-4-9b 8-4-9c 8-4-9d |
तजोवधं सूतपुत्रस्य सङ्ख्ये प्रतिश्रुत्याजातशत्रोः पुरस्तात्। दुराधर्षः शक्रसमानवीर्यः शल्यः स्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-10a 8-4-10b 8-4-10c 8-4-10d |
शारद्वतो गौतमश्चापि राज-- न्महाबाहुचित्रास्त्रयोधी। धनुश्चित्रं सुमहद्भावरसाहं व्यवस्थितो योद्वुकामः प्रगृह्य।। | 8-4-11a 8-4-11b 8-4-11c 8-4-11d |
गान्धारराजः ससुतश्च राज-- न्दुर्द्यूतदेवी कलहप्रियश्च। गान्धारमुख्यैर्यवनैश्च राज-- न्व्यवस्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-12a 8-4-12b 8-4-12c 8-4-12d |
महारथः केकयराजपुत्रः सदश्वयुक्तं च पताकिनं च। रथं समारुह्य कुरुप्रवीर व्यवस्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-13a 8-4-13b 8-4-13c 8-4-13d |
तथा सुतस्ते ज्वलनार्कवर्णं रथं समास्थाय कुरुप्रवीरः। व्यवस्थितः पुरुमित्रो नरेन्द्र व्यभ्रे सूर्यो भ्राजमानो यथा खे।। | 8-4-14a 8-4-14b 8-4-14c 8-4-14d |
दुर्योधनो नागकुलस्य मध्ये व्यवस्थितः सिंह इवाबभासे। रथेन जाम्बूनदभूषणेन व्यवस्थितः समरे योत्स्यमानः।। | 8-4-15a 8-4-15b 8-4-15c 8-4-15d |
स राजमध्ये पुरुषप्रवीरो रराज जाम्बूनदचित्रवर्मा। पद्मप्रभो वह्निरिवाल्पधूमो मेघान्तरे सूर्य इव प्रकाशः।। | 8-4-16a 8-4-16b 8-4-16c 8-4-16d |
तथा सुषेणोऽप्यसिचर्मपाणि-- स्तवात्मजः सत्यसेनश्च वीरः। व्यवस्थितौ चित्रसेनेन सार्धं हृष्टात्मानौ समरे योद्धकामौ।। | 8-4-17a 8-4-17b 8-4-17c 8-4-17d |
हीनिषेवो भारतराजपुत्र उग्रायुधः श्रुतवर्मा जयश्च। शलश्च सत्यव्रतदुःशलौ च व्यवस्थिताः सहसैन्या नराग्र्याः।। | 8-4-18a 8-4-18b 8-4-18c 8-4-18d |
कैतव्यानामधिपः शूरमानी रणेरणे शत्रुहा राजपुत्रः। रथी हयी नागपत्तिप्रयायी व्यवस्थितो योद्वुकामस्त्वदर्थे।। | 8-4-19a 8-4-19b 8-4-19c 8-4-19d |
वीरः श्रुतायुश्च धृतायुधश्च चित्राङ्गदश्चित्रसेनश्च वीरः। व्यवस्थिता योद्वुकामा नराग्र्याः प्रहारिणो मानिनः सत्यसन्धाः।। | 8-4-20a 8-4-20b 8-4-20c 8-4-20d |
कर्णात्मजः सत्यसन्धो महात्मा व्यवस्थितः समरे योद्वुकामः।। | 8-4-21a 8-4-21b |
अथापरौ कर्णसुतौ वरास्त्रौ व्यवस्थितौ लघुहस्तौ नरेन्द्र। बले महत्युल्बणसत्ववीर्यौ समास्थितौ योद्वुकामौ त्वदर्थे।। | 8-4-22a 8-4-22b 8-4-22c 8-4-22d |
एतैश्च मुख्यैरपरैश्च राज-- न्योधप्रवीरैरमितप्रभावैः। व्यवस्थितो नागकुलस्य मध्ये यथा महेन्द्रः कुरुराजो जयाय।। | 8-4-23a 8-4-23b 8-4-23c 8-4-23d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 8-4-24x |
आख्याता जीवमाना ये परे सैन्या यथायथम्। इतीदमवगच्छामि व्यक्तमर्थाभिपत्तितः।। | 8-4-24a 8-4-24b |
वैशम्पायन उवाच। | 8-4-25x |
एवं ब्रुवन्नेव तदा धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। हतप्रवीरं भूयिष्ठं किञ्चिच्छेषं स्वकं बलम्। श्रुत्वा व्यामोहमागच्छच्छोकव्याकुलितेन्द्रियः।। | 8-4-25a 8-4-25b 8-4-25c |
व्याकुलं मे मनस्तात श्रुत्वा सुमहदप्रियम्।। मनो मुह्यति चाङ्गानि न च शक्नोमि धावितुम्। इत्येवमुक्त्वा वचनं धृतराष्ट्रोऽम्बिकासुतः। भ्रान्तचित्तस्ततः सोऽथ बभूव जगतीपतिः।। | 8-4-26a 8-4-26b 8-4-26c 8-4-26d |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि चतुर्थोऽध्यायः।। 4 ।। |
8-4-1 ककुदे प्रधानपुरुषसमूहे भीष्मद्रोणकर्णरूपे मृदितेनाशिते सति।। 8-4-5 मृताः मृतप्रायाः।। 8-4-6 चतुर्विधानि दृढदूरसूक्ष्मशब्दवेधीनि। विहितानि धनुर्वेदोदितानि।। 8-4-7 कृतिमान् अवन्ध्ययत्नः।। 8-4-9 आर्तायनिः शल्यः। स्वस्रीयान् भागिनेयान्।। 8-4-19 नागपत्तिप्रयायी नागैः पत्तिभिश्च प्रयातुं शीलमस्य। नागरथप्रयायीति पाठान्तरम्।। 8-4-24 सैन्याः सेनामर्हन्ति ते राजानः। यथायथं पक्षद्वयेऽपि जीवमाना आख्याताः। इदं भाविजयपराजयादिकम्। इति अनेन पक्षद्वयबलतोलनेन व्यक्तं स्पृष्टमभिगच्छामि जानामि। अर्थाभिपत्तितः फलोपपत्तितः। तेन जयो मदीयानां नास्तीति निश्चिनोमीति भावः। आख्याता वै जीवमानाः परेभ्योऽन्ये यथा ध्नुवम्। इतीदमवगच्छामि व्यक्तमर्थो व्यवस्थितः। इति क.ख.ड.पाठः।। 8-4-4 चतुर्थोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-003 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-005 |