महाभारतम्-08-कर्णपर्व-046
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भीमकर्णयोर्युद्धम्।। 1 ।।
भीमेन दुर्योधनानुजानां कतिपयानां हननम्।। 2 ।।
सङ्कुलयुद्धं च।। 3 ।।
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धृतराष्ट्र उवाच। | 8-46-1x |
सुदुष्करमिदं कर्म कृतं भीमेन सञ्जय। येन कर्णो महाबाहू रथोपस्थे निपातितः।। | 8-46-1a 8-46-1b |
कर्णो ह्येको रणे हन्ता पाण्डवान्सृञ्जयैः सह। इति दुर्योधनः सूत प्राब्रवीन्मां मुहुर्मुहुः।। | 8-46-2a 8-46-2b |
पराजितं तु राधेयं दृष्ट्वा भीमेन संयुगे। ततः परं किमकरोत्पुत्रो दुर्योधनो मम।। | 8-46-3a 8-46-3b |
सञ्जय उवाच। | 8-46-4x |
विमुखं प्रेक्ष्य राधेयं सूतपुत्रं महाहवे। पुत्रस्तव महाराज सोदर्यानिदमब्रवीत्।। | 8-46-4a 8-46-4b |
शीघ्रं गच्छत भद्रं वो राधेयं परिरक्षत। भीमसेनभयेऽगाधे म़ज्जन्तं व्यसनार्णवे।। | 8-46-5a 8-46-5b |
ते तु राज्ञा समादिष्टा भीमसेनं जिघांसवः। अभ्यवर्तन्त सङ्क्रुद्धाः पतङ्गाः पावकं यथा।। | 8-46-6a 8-46-6b |
श्रुतायुर्दुर्धरः क्राथो विवित्सुर्विकटः समः। निषङ्गी कवची पाशी तथा नन्दोपनन्दकौ।। | 8-46-7a 8-46-7b |
दुष्प्रधर्षः सुबाहुश्च वातवेगसुवर्चसौ। धनुर्ग्राहो दुर्मदश्च जलसन्धः शलः सहः।। | 8-46-8a 8-46-8b |
एते रथैः परिवृता वीर्यवन्तो महाबलाः। भीमसेनं समासाद्य समन्तात्पर्यवारयन्।। | 8-46-9a 8-46-9b |
ते व्यमुञ्चञ्छरव्रातान्नानालिङ्गान्समन्ततः। स तैरभ्यर्द्यमानस्तु भीमसेनो महाबलः।। | 8-46-10a 8-46-10b |
तेषामापततां क्षिप्रं सुतानां ते जनाधिप। रथैः पञ्चशतैः सार्धं पञ्चाशदहनद्रथान्।। | 8-46-11a 8-46-11b |
विवित्सोस्तु ततः क्रुद्धो भल्लेनापाहरच्छिरः। भीमसेनो महाराज तत्पपात हतं भुवि।। | 8-46-12a 8-46-12b |
सकुण्डलशिरस्त्राणं पूर्णचन्द्रोपमं तथा। `अशोभत महाराज पूर्णचन्द्र इवाम्बरे'।। | 8-46-13a 8-46-13b |
तं दृष्ट्वा निहतं शूरं भ्रातरः सर्वतस्तदा। अभ्यद्रवन्त समरे भीमं भीमपराक्रमम्।। | 8-46-14a 8-46-14b |
ततोऽपराभ्यां भल्लाभ्यां पुत्रयोस्ते महाहवे। जहार समरे प्राणान्भीमो भीमपराक्रमः।। | 8-46-15a 8-46-15b |
तौ धरामन्वपद्येतां वातरुग्णाविव द्रुमौ। विकटश्च सहश्चोमौ देवपुत्रोपमौ नृप।। | 8-46-16a 8-46-16b |
ततस्तु त्वरितो भीमः क्राथं निन्ये यमक्षयम्। नाराचेन सुतीक्ष्णेन स हतो न्यपतद्भुवि।। | 8-46-17a 8-46-17b |
हाहाकारस्ततस्तीव्रः सम्बभूव जनेश्वर। वध्यमानेषु वीरेषु तव पुत्रेषु धन्विषु।। | 8-46-18a 8-46-18b |
तेषां सुलुलिते सैन्ये पुनर्भीमो महाबलः। नन्दोपनन्दौ समरे प्रैषयद्यमसादनम्।। | 8-46-19a 8-46-19b |
ततस्ते प्राद्रवन्भीताः पुत्रास्ते विह्वलीकृताः। भीमसेनं रणे दृष्ट्वा कालान्तकयमोपमम्।। | 8-46-20a 8-46-20b |
पुत्रांस्ते निहतान्दृष्ट्वा सूतपुत्रः सुदुर्मनाः। हंसवर्णान्हयान्भूयः प्रैषयद्यत्र पाण्डवः।। | 8-46-21a 8-46-21b |
ते प्रेषिता महाराज मद्रराजेन वाजिनः। भीमसेनरथं प्राप्य समसज्जन्त वेगिताः।। | 8-46-22a 8-46-22b |
स सन्निपातस्तुमुलो घोररूपो विशाम्पते। आसीद्रौद्रो महाराज कर्णपाण्डवयोर्मृधे।। | 8-46-23a 8-46-23b |
दृष्ट्वा मम महाराज तौ समेतौ महारथौ। आसीद्बुद्विः कथं युद्वमेतदद्य भविष्यति।। | 8-46-24a 8-46-24b |
ततो भीमो रणश्लाघी छादयामास पत्रिभिः। कर्णं रणे महाराज पुत्राणां तव पश्यताम्।। | 8-46-25a 8-46-25b |
ततः कर्णो भृशं क्रुद्धो भीमं नवभिरायसैः। विव्याध परमास्त्रज्ञो भल्लैः सन्नतपर्वभिः।। | 8-46-26a 8-46-26b |
तान्निहत्य महाबाहुर्भीमो भीमपराक्रमः। आकर्णपूर्णैर्विशिखैः कर्णं विव्याध सप्तभिः।। | 8-46-27a 8-46-27b |
ततः कर्णो महाराज आशीविष इव श्वसन्। शरवर्षेण महता छादयामास पाण्डवम्।। | 8-46-28a 8-46-28b |
भीमोऽपि ततं शरव्रातैश्छादयित्वा महारथम्। पश्यतां कौरवेयाणां विननर्द महाबलः।। | 8-46-29a 8-46-29b |
ततः कर्णो भृशं क्रुद्धो दृढमादाय कार्मुकम्। भीमं विव्याध दशभिः कङ्कपत्रैः शिलाशितैः। कार्मुकं चास्य चिच्छेद भल्लेन निशितेन च।। | 8-46-30a 8-46-30b 8-46-30c |
ततो भीमो महाबाहुर्हेमपट्टविभूषितम्। परिघं घोरमादाय मृतत्युदण्डमिवापरम्। कर्णस्य निधनाकाङ्क्षी चिक्षेपातिबलो नदन्।। | 8-46-31a 8-46-31b 8-46-31c |
तमापतन्तं परिघं वज्राशनिसमस्वनम्। चिच्छेद बहुधा कर्णः शरैराशीविषोपमैः।। | 8-46-32a 8-46-32b |
ततः कार्मुकमादाय भीमो दृढतरं तदा। छादयामास विशिखैः कर्णं परबलार्दनम्।। | 8-46-33a 8-46-33b |
ततो युद्धमभूद्धोरं कर्णपाण्डवयोर्मृधे। बलीन्द्रयोरिव मुहुः परस्परवधैषिणोः।। | 8-46-34a 8-46-34b |
ततः कर्णो महाराज भीमसेनं त्रिभिः शरैः। आकर्णपूर्णैर्विव्याध दृढमानम्य कार्मुकम्।। | 8-46-35a 8-46-35b |
सोऽतिविद्धो महेष्वासः कर्णेन बलिनां वरः। घोरमादत्त विशिखं कर्णकायावदारणम्।। | 8-46-36a 8-46-36b |
तस्य भित्त्वा तनुत्राणं भित्त्वा कायं च सायकः। प्राविशद्वरणीं राजन्वल्मीकमिव पन्नगः।। | 8-46-37a 8-46-37b |
स तेनातिप्रहारेण व्यथितो विह्वलन्निव।। सञ्चचाल रथे कर्णः क्षितिकम्पे यथाऽचलः।। | 8-46-38a 8-46-38b |
ततः कर्णो महाराज रोषामर्षसमन्वितः। भीमं तं पञ्चविंशत्या नाराचानां समार्पयत्।। | 8-46-39a 8-46-39b |
चिच्छेद कार्मुकं तूर्णं पाण्डवस्याशु पत्रिणा।। | 8-46-40a |
तततो मुहूर्ताद्राजेन्द्र नातिकृच्छ्राद्वसन्निव। विरथं भीमकर्माणं भीमं कर्णश्चकार ह।। | 8-46-41a 8-46-41b |
विरथो भरतश्रेष्ठ प्रहसन्ननिलोपमः। गदां गृह्य महाबाहुरपतत्स्यन्दनोत्तमात्।। | 8-46-42a 8-46-42b |
गदया च महाराज कर्णस्य रथकूबरम्। पोथयामास सङ्क्रुद्धः समरे शत्रुतापनः।। | 8-46-43a 8-46-43b |
स क्रोधवशमापन्नः पाण्डुपुत्रः प्रतापवान्। विद्राव्य गदया वीरस्तव पुत्रान्महाहवे।। | 8-46-44a 8-46-44b |
नागान्सप्तशतान्राजन्नीषादन्तान्प्रहारिणः। व्यधमत्सहसा भीमः क्रुद्धरूपः परन्तपः।। | 8-46-45a 8-46-45b |
दन्तवेष्टेषु नेत्रेषु कुम्भेषु च कटेषु च। मर्मस्वपि च मर्मज्ञस्तान्नागानवधीद्बली।। | 8-46-46a 8-46-46b |
`अर्दिता भीमसेनेन विनदन्तो भृशातुराः'। ततस्ते प्राद्रवन्भीताः प्रहताश्च पुनःपुनः। महामात्रास्तमावव्रुर्मेघा इव दिवाकरम्।। | 8-46-47a 8-46-47b 8-46-47c |
तान्स सप्तशतान्नागान्सारोहायुधकेतनान्। भूमिष्ठो गदया जघ्ने वज्रेणेन्द्र इवाचलान्।। | 8-46-48a 8-46-48b |
ततः सुबलपुत्रस्य नागानतिबलान्पुनः। पोथयामास कौन्तेयो द्विपञ्चाशदरिन्दमः।। | 8-46-49a 8-46-49b |
तथा रथशततं साग्रं पत्तींश्च शतशोऽपरान्। न्यहनत्पाण्डवो युद्धे तापयंस्तव वाहिनीम्।। | 8-46-50a 8-46-50b |
प्रताप्यमानं सूर्येण भीमेन च महात्मना। तव सैन्यं सञ्चुकोच चर्माग्नावाहितं यथा।। | 8-46-51a 8-46-51b |
ते भीमभयसन्त्रस्तास्तावका भरतर्षभ। विहाय समरे कर्णं दुद्रुवुर्वै दिशो दश।। | 8-46-52a 8-46-52b |
रथाः पञ्चशताश्चान्ये हादिनः शरवर्षिणः। भीममभ्यद्रवन्घ्नन्तः शरपूगैः समन्ततः।। | 8-46-53a 8-46-53b |
तान्स पञ्चशतान्वीरान्सपताकध्वजायुधान्। पोथयामास गदया भीमो विष्णुरिवासुरान्।। | 8-46-54a 8-46-54b |
ततः शकुनिनिर्दिष्टाः सादिनः शूरसम्मताः। त्रिसाहस्राण्यभिययुः शरशक्त्यृष्टिपाणयः।। | 8-46-55a 8-46-55b |
तान्प्रत्युद्गम्य यवनान्साश्वारोहांस्तदाऽरिहा। विविधान्विचरन्मार्गान्गदया समपोथयत्।। | 8-46-56a 8-46-56b |
तेषामासीन्महाञ्छब्दस्ताडितानां च सर्वशः। अग्निभिर्दह्यमानानां नलानामिव भारत।। | 8-46-57a 8-46-57b |
एवं सुबलपुत्रस्य त्रिसाहस्रान्हयोत्तमान्। हत्वाऽन्यं रथमास्थाय क्रुद्धो राधेयमभ्ययात्।। | 8-46-58a 8-46-58b |
कर्णोऽपि समरे राजन्धर्मपुत्रमरिन्दमम्। स शरैश्छादयामास सारथिं चाप्यपातयत्।। | 8-46-59a 8-46-59b |
ततः स प्रद्रुतं सैन्यं दृष्ट्वा कर्णो महारथः। | 8-46-60a 8-46-60b |
राजानमभिधावन्तं शरैरावृत्य रोदसी। क्रुद्धः प्रच्छादयामास शरजालेन मारुतिः।। | 8-46-61a 8-46-61b |
सन्निवृत्तस्ततस्तूर्णं राधेयः शत्रुकर्शनः। भीमं प्रच्छादयामास समन्तान्निशितैः शरैः।। | 8-46-62a 8-46-62b |
भीमसेनरथप्रेप्सुं कर्णं भारत सात्यकिः। अभ्यर्दयदमेयात्मा पार्ष्णिग्रहणकारणात्।। | 8-46-63a 8-46-63b |
भीमसेनरथप्रेप्सुं कर्णो भारत सात्यकिम्। अभ्यवर्तत शैनेयमर्दयञ्छरवृष्टिभिः।। | 8-46-64a 8-46-64b |
तावन्योन्यं समासाद्य वृषभौ सर्वधन्विनाम्। विसृजन्तौ शरान्दीप्तान्विभ्राजेतां मनस्विनौ।। | 8-46-65a 8-46-65b |
ताभ्यां वियति राजेन्द्र विततततं भीमदर्शनम्। कौञ्चपृष्ठारुणं रौद्रं बाणजालं व्यदृश्यत।। | 8-46-66a 8-46-66b |
नैव सूर्यप्रभा राजन्न दिशः प्रदिशस्तथा। प्राज्ञासिष्म वयं ते वा शरैर्मुक्तैः सहस्रशः।। | 8-46-67a 8-46-67b |
मध्याह्ने तपतो राजन्भास्करस्य महाप्रभाः। हृताः सर्वाः शरौघैस्तैः कर्णमाधवयोस्तदा।। | 8-46-68a 8-46-68b |
सौबलं कृतवर्माणं द्रौणिमाधिरथिं कृपम्। संसक्तान्पाण्डवैर्दृष्ट्वा निवृत्ताः कुरवः पुनः।। | 8-46-69a 8-46-69b |
तेषामापततां शब्दस्तीत्र आसीद्विशाम्पते। उद्वृत्तानां यथा वृष्ट्या सागराणां भयावहः।। | 8-46-70a 8-46-70b |
ते सेने भृशसंसक्ते दृष्ट्वाऽन्योन्यं महाहवे। हर्षेण महता युक्ते परिगृह्य परस्परम्।। | 8-46-71a 8-46-71b |
ततः प्रववृते युद्धं मध्यं प्राप्ते दिवाकरे। यादृशं नैवमस्माभिर्दृष्टपूर्वं न च श्रुतम्।। | 8-46-72a 8-46-72b |
बलौघस्तु समासाद्य बलौघं सहसा रणे। उपसर्पत वेगेन वार्योघ इव सागरम्।। | 8-46-73a 8-46-73b |
आसीन्निनादः सुमहान्बाणौघानां परस्परम्। गर्जतां सागरौघाणां यथा स्यान्निःस्वनो महान्।। | 8-46-74a 8-46-74b |
ते तु सेने समासाद्य वेगवत्यौ परस्परम्। एकीभावमनुप्राप्ते नद्याविव समागमे।। | 8-46-75a 8-46-75b |
ततः प्रववृते युद्धं घोररूपं विशाम्पते। कुरूणां पाण्डवानां च लिप्सतां सुमहद्यशः।। | 8-46-76a 8-46-76b |
शूराणां गर्जतां तत्र ह्यविच्छेदकृता गिरः। श्रुयन्ते विविधा राजन्नामान्युद्दिश्य भारत।। | 8-46-77a 8-46-77b |
यस्य यद्धि रणे व्यङ्गं पितृतो मातृतोऽपि वा। कर्मतः शीलतो वाऽपि स तच्छ्रावयते युधि।। | 8-46-78a 8-46-78b |
तान्दृष्ट्वा समरे शूशांस्तर्जमानान्परस्परम्। अभवन्मे मती राजन्नैषामस्तीति जीवितम्।। | 8-46-79a 8-46-79b |
तेषां दृष्ट्वा तु क्रुद्धानां वपूंष्यमिततेजसाम्। अभवन्मे भयं तीव्रं कथमेतद्भविष्यति।। | 8-46-80a 8-46-80b |
ततस्ते पाण्डवा राजन्कौरवाश्च महारथाः। ततक्षुः सायकैस्तूर्णमन्योन्यं विजयैषिणः।। | 8-46-81a 8-46-81b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे षट्चत्वारिंशोऽध्यायः।। 46 ।। |
कर्णपर्व-045 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-047 |