महाभारतम्-08-कर्णपर्व-085
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सङ्कुलयुद्धम्।। 1 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-85-1x |
तमायान्तं महावेगैरश्वैः कपिवरध्वजम्। युद्धायाभ्यद्रवन्दीराः कुरूणां नवतीं रथाः।। | 8-85-1a 8-85-1b |
कृत्वा संशप्तका घोरं शपथं पारलौकिकम्। परिवव्रुर्नरव्याघ्रा नरव्याघ्रं रणेऽर्जुनम्।। | 8-85-2a 8-85-2b |
कृष्णः श्वेतान्महावेगानश्वान्काञ्चनभूषणान्। मुक्ताजालप्रतिच्छन्नान्प्रैषीत्कर्णरथं प्रति।। | 8-85-3a 8-85-3b |
प्रेक्ष्य कर्णरथं यान्तमरिघ्नं तं धनञ्जयम्। बाणवर्षैरभिघ्नन्तः संशप्तकगणा ययुः।। | 8-85-4a 8-85-4b |
त्वरमाणांस्तु तान्सर्वान्ससूतेष्वसनध्वजान्। जघान नवतिं वीरानर्जुनो निशितैः शरैः।। | 8-85-5a 8-85-5b |
तेऽपतन्त हता बाणैर्नानारूपैः किरीटिना। विमानेभ्यः सुकृतिनः स्वर्गात्पुण्यक्षये यथा।। | 8-85-6a 8-85-6b |
ततः सरथनागाश्वाः कुरवः कुरुसत्तमम्। निर्भया भरतश्रेष्ठमभ्यवर्तन्त फल्गुनम्।। | 8-85-7a 8-85-7b |
तदायस्तमनुष्याश्वमुदीर्णवरवारणम्। पुत्राणां ते महासैन्यं समरौत्सीद्धनञ्जयम्।। | 8-85-8a 8-85-8b |
शक्त्यृष्टितोमरप्रासैर्गदानिस्त्रिंशसायकैः। प्राच्छादयन्महेष्वासाः कुरवः कुरुनन्दनम्।। | 8-85-9a 8-85-9b |
तामन्तरिक्षे विततां शस्त्रवृष्टिं समन्ततः। व्यधमत्पाण्डवो बाणैस्तमः सूर्य इवांशुभिः।। | 8-85-10a 8-85-10b |
ततो म्लेच्छाः स्थिता मत्तैस्त्रयोदशशतैर्गजैः। पार्श्वतो व्यहनन्पार्थं तव पुत्रस्य शासनात्।। | 8-85-11a 8-85-11b |
कर्णिनालीकनाराचैस्तोमरप्रासशक्तिभिः। कर्पणैर्भिण्डिपालैश्च रथस्थं पार्थमार्दयन्।। | 8-85-12a 8-85-12b |
तां शस्त्रवृष्टिमतुलां द्विपस्थैः प्रेषितां प्रभुः। चिच्छेद निशितैर्भल्लैरर्धचन्द्रैश्च फल्गुनः।। | 8-85-13a 8-85-13b |
अथ तान्द्विरदान्सर्वान्नानालिङ्गैः शरोत्तमैः। सपताकध्वजारोहान्गिरीन्वज्रैरिवाभिनत्।। | 8-85-14a 8-85-14b |
ते हेमपुङ्खैरिषुभिरर्दिता हेममालिनः। हताः पेतुर्महानागाः साग्रिज्वाला इवाद्रयः।। | 8-85-15a 8-85-15b |
ततो गाण्डीवनिर्घोषो महानासीद्विशाम्पते। स्तनतां कूजतां चैव मनुष्यगजवाजिनाम्।। | 8-85-16a 8-85-16b |
कुञ्चराश्च हता राजन्दद्रुवुस्ते समन्ततः। अश्वाश्च पर्यधावन्त हतारोहा दिशो दश।। | 8-85-17a 8-85-17b |
रथा हीना नहाराज रथिभिर्वाजिभिस्तथा। गन्धर्वनगराकारा दृश्यन्ते स्म सहस्रशः।। | 8-85-18a 8-85-18b |
अश्वारोहा महाराज धावमाना इतस्ततः। तत्रतत्रैव दृश्यन्ते निहताः पार्थसायकैः।। | 8-85-19a 8-85-19b |
तस्मिन्क्षणे पाण्डवस्य बाह्वोर्बलमदृश्यत। यत्सादिनो वारणांश्च रथांश्चैकोऽजयद्युधि।। | 8-85-20a 8-85-20b |
असंयुक्ताश्च ते राजन्परिवृत्ता रणं प्रति। नरा नागा रथाश्चैव नदन्तोऽर्जुनमभ्ययुः।। | 8-85-21a 8-85-21b |
ततस्त्र्येङ्गेण महता बलेन भरतर्षभ। दृष्ट्वा परिवृतं राजन्भीमसेनः किरीटिनम्।। | 8-85-22a 8-85-22b |
हतावशेषानुत्सृज्य त्वदीयान्कतिचिद्रथान्। जवेनाभ्यद्रवद्भीमो धनञ्जयरथं प्रति।। | 8-85-23a 8-85-23b |
ततस्तत्प्राद्रवत्सैन्यं हतभूयिष्ठमातुरम्। दृष्ट्वाऽर्जुनं तदा भीममागतं भ्रातरं प्रति।। | 8-85-24a 8-85-24b |
हतावशिष्टांस्तुरगानर्जुनेन महाबलः। भीमो व्यधमदश्रान्तो गदापाणिर्महाहवे।। | 8-85-25a 8-85-25b |
`गदापाणिं तदा दृष्ट्वा भीमं भारत भारताः। मेनिरे तमनुप्राप्तं दण्डपाणिमिवान्तकम्'।। | 8-85-26a 8-85-26b |
कालरात्रिमिवात्युग्रां नरनागाश्वभोजनाम्। प्राकाराट्टपुरद्वारदारणीमतिदारुणाम्।। | 8-85-27a 8-85-27b |
गदां तुरगनाशाय त्वरन्भीमो व्यवासृजत्। सा जघान बहूनश्वानश्वारोहांश्च मारिष।। | 8-85-28a 8-85-28b |
कांस्यायसतनुत्रांश्च नरानश्वांश्च पाण्डवः। पोथयामास गदया सशब्दं तेऽपतन्हताः।। | 8-85-29a 8-85-29b |
दन्तैर्दशन्तो वसुधां शेरते क्षतजोक्षिताः। भग्नमूर्धास्थिचरणाः क्रव्यादगणभोजनाः।। | 8-85-30a 8-85-30b |
असृङ्मांसवसाभिश्च तृप्तिमभ्यागता गदा। अस्थीन्यप्यश्नती तस्थौ कालरात्रीव दुर्दृशा।। | 8-85-31a 8-85-31b |
सहस्राणि दशाश्वानां हत्वा पत्तींश्च भूयसः। भीमोऽभ्यधावत्सङ्क्रुद्धो गदापाणिरितस्ततः।। | 8-85-32a 8-85-32b |
गदापाणिं ततो भीमं दृष्ट्वा भारत तावकाः। मेनिरे समनुप्राप्तं कालदण्डोद्यतं यमम्।। | 8-85-33a 8-85-33b |
स मत्त इव मातङ्गः सङ्क्रुद्धः पाण्डुनन्दनः। प्रविवेश गजानीकं मकरः सागरं यथा।। | 8-85-34a 8-85-34b |
विगाह्य च गजानीकं प्रगृह्य महतीं गदाम्। क्षणेन भीमः सङ्क्रुद्धस्तन्निन्ये यमसादनम्।। | 8-85-35a 8-85-35b |
गजान्सकङ्कटान्मत्तान्सारोहान्सपताकिनः। पततः समपश्याम सपक्षान्पर्वतानिव।। | 8-85-36a 8-85-36b |
हत्वा तु तद्गजानीकं भीमसेनो महाबलः। पुनः स्वरथमास्थाय पृष्ठतोऽर्जुनमभ्ययात्।। | 8-85-37a 8-85-37b |
ततः पराङ्मुखीभूतं निरुत्साहं बलं तव। तदानीं तु महाराज प्रायशः शस्त्रवेष्टितम्।। | 8-85-38a 8-85-38b |
विलम्बमानं तत्सैन्यभप्रगल्भमवस्थितम्। दृष्ट्वा प्राच्छादयद्बाणैरर्जुनः शस्त्रवृष्टिभिः।। | 8-85-39a 8-85-39b |
नराश्वरथमातङ्गा युधि गाण्डीवधन्वना। शरव्रातैश्चिता रेजुः कदम्बा इव केसरैः।। | 8-85-40a 8-85-40b |
ततः कुरुणामभवदार्तनादो महान्नृप। नराश्वनागासुहनान्दृष्ट्वा बाणान्किरीटिनः।। | 8-85-41a 8-85-41b |
हाहाकृतं भृशं त्रस्तं लीयमानं परस्परम्। अलातचक्रवत्सैन्यं तदा बभ्राम तावकम्।। | 8-85-42a 8-85-42b |
ततोऽर्जुनशरध्वस्तं कुरूणां सुमहद्बलम्। न ह्यत्रासीदनिर्भिन्नो रथः सादी हयो गजः।। | 8-85-43a 8-85-43b |
आदीप्तमिव तत्सैन्यं शरैश्छिन्नतनुच्छदम्। आसीत्स्वशोणितक्लिन्नं रौद्रं नष्टं विशाम्पते।। | 8-85-44a 8-85-44b |
तत्सैन्यं हतभूयिष्ठमाहतं निशितैः शरैः। न जहौ समरं प्राप्य फल्गुनं शत्रुतापनम्।। | 8-85-45a 8-85-45b |
तत्राद्भुतमपश्याम कौरवाणां पराक्रमम्। वध्यमानोऽपि यत्पार्थं न जहौ भरतर्षभ।। | 8-85-46a 8-85-46b |
तं दृष्ट्वा विक्रमं तस्य कुरवः सव्यसाचिनः। निराशाः समपद्यन्त सर्वे कर्णस्य जीविते।। | 8-85-47a 8-85-47b |
अविषह्यं तु पार्थस्य शरसंस्पर्शमाहवे। मत्वा न्यवर्तन्कुरवो जिता गाण्डीवधन्वना।। | 8-85-48a 8-85-48b |
ते हित्वा समरे पार्थं वध्यमानाश्च सायकैः। प्रदुद्रुवुर्दिशो भीताश्चुक्रुशुश्चापि सूतजम्।। | 8-85-49a 8-85-49b |
तान्विद्रावयते पार्थः किरञ्शरशतान्बहून्। हर्षयन्पाण्डवीं सेनां राजानं च युधिष्ठिरम्।। | 8-85-50a 8-85-50b |
पुत्रास्तव महाराज जग्मुः कर्णरथं प्रति। अगाधे मज्जतां तेषां द्वीपः कर्णोऽभवत्तदा।। | 8-85-51a 8-85-51b |
कुरवो हि महाराज निर्विषाः पन्नगा इव। कर्णमेवोपलीयन्त भयाद्गाण्डीवघन्वनः।। | 8-85-52a 8-85-52b |
यथा सर्वाणि भूतानि मृत्योर्भीतानि मारिष। उपलीयन्ति सन्त्रासाद्धर्मं लोकपरायणम्।। | 8-85-53a 8-85-53b |
तथा कर्णं महेष्वासं पुत्रास्तव नराधिप। उपालीयन्त सन्त्रासात्पाण्डवस्य महात्मनः।। | 8-85-54a 8-85-54b |
ताञ्शोणितपरिक्लिन्नान्विषमस्थाञ्शरातुरान्। मा भैष्टेत्यब्रवीत्कर्णो भीतानाविष्टचेतसः।। | 8-85-55a 8-85-55b |
सम्भग्नं हि बलं दृष्ट्वा बलात्पार्थेन तावकम्। धनुर्विस्फारयन्कर्णस्तस्थौ शत्रुजिघांसया।। | 8-85-56a 8-85-56b |
तान्प्रद्रुतान्कुरून्दृष्ट्वा कर्णः शस्त्रभृतां वरः। सञ्चिन्तयित्वा पार्थस्य वधे दध्रे मनः श्वसन्।। | 8-85-57a 8-85-57b |
विस्फार्य सुमहच्चापं ततश्चाधिरथिर्वृषः। पाञ्चालान्पुनराधावत्पश्यतः सव्यसाचिनः।। | 8-85-58a 8-85-58b |
ततः क्षणेन क्षितिपाः क्षतजप्रतिमेक्षणाः। शरौघैश्छादयामासुर्महामेघा इवाचलम्।। | 8-85-59a 8-85-59b |
ततः शरसहस्राणि कर्णमुक्तानि मारिष। पाञ्चालानां हरत्प्राणांस्तमांसीव तमोनुदः।। | 8-85-60a 8-85-60b |
महदासीत्तदा युद्धं पाञ्चालानां महामते। वध्यतां सूतपुत्रेण मित्रार्थे मित्रगृद्धिना।। | 8-85-61a 8-85-61b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे पञ्चाशीतितमोऽध्यायः।। 85 ।। |
8-85-12 मुसलैर्भिन्दिपालैश्च इति झ.पाठः।। 8-85-85 पञ्चाशीतितमोऽध्यायः।।
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