महाभारतम्-08-कर्णपर्व-062
← कर्णपर्व-061 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-062 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-063 → |
कृष्णेनार्जुनम्प्रति युधिष्ठिरस्य कर्णेन पराभवकथनपूर्वकं कर्णयुद्धप्रदर्शनम्।। 1 ।।
तथा भीमसेनयुद्धप्रदर्शनम्।। 2 ।।
|
श्रीभगवानुवाच। | 8-62-1x |
आतुरो मे मतो राजा अविपह्यश्च भारत। यथैनमनुवर्तन्ते पञ्चालाः सह पाण्डवैः।। | 8-62-1a 8-62-1b |
त्वरमाणास्त्वराकाले सर्वशस्त्रभृतां वराः। मज्जन्तमिव पाताले बलिनो ह्युज्जिहीर्षवः।। | 8-62-2a 8-62-2b |
न केतुर्दृश्यते राज्ञः कर्णस्य पिहितः शरैः। पश्यतोर्यमयोः पार्थ सात्यकेश्च शिखण्डिनः।। | 8-62-3a 8-62-3b |
धृष्टद्युम्नस्य भीमस्य शतानीकस्य वा विभो। पाञ्चालानां च सर्वेषां चेदीनां चैव भारत।। | 8-62-4a 8-62-4b |
एष कर्णो रणे पार्थ पाण्डवानामनीकिनीम्। शरैर्विध्वंसयामास नलिनीमिव कुञ्जरः।। | 8-62-5a 8-62-5b |
एते द्रवन्ति रथिनस्त्वदीयाः पाण्डुनन्दन। पश्य पश्य यथा पार्थ गच्छन्त्येते महारथाः।। | 8-62-6a 8-62-6b |
एते भारत मातङ्गाः कर्णेनाभिहताः शरैः। आर्तनादान्विकुर्वाणा विद्रवन्ति दिशो दश।। | 8-62-7a 8-62-7b |
रथानां द्रवते वृन्दमेतच्चैव समन्ततः। द्राव्यमाणं रणे पार्थ कर्णेनामिततेजसा।। | 8-62-8a 8-62-8b |
हस्तिकक्ष्यां रणे पश्य चरन्तीं तत्रतत्र ह। रथस्थं सूतपुत्रस्य केतुं केतुमतां वर।। | 8-62-9a 8-62-9b |
असौ धावति राधेयो भीमसेनरथं प्रति। किरञ्शरशतान्येव विनिघ्नंस्तव वाहिनीम्।। | 8-62-10a 8-62-10b |
एते नश्यन्ति पाञ्चाला द्राव्यमाणा महात्मना। शक्रेणेव यथा दैत्या द्राव्यमाणा महात्मना।। | 8-62-11a 8-62-11b |
एष कर्णो रणे जित्वा पाञ्चालान्पाण्डुसृञ्जयान्। दिशो विप्रेक्षते सर्वास्त्वदर्थमिति मे मतिः।। | 8-62-12a 8-62-12b |
एष कर्णो धनुःश्रेष्ठं विधून्वन्बहुशोभते। शत्रुं जित्वा यथा शक्रो देवसङ्खैः समावृतः।। | 8-62-13a 8-62-13b |
एते नर्दन्ति कौरव्या दृष्ट्वा कर्णस्य विक्रमम्। त्रासयन्तो रणे पाण्डून्सृंजयांश्च समन्ततः।। | 8-62-14a 8-62-14b |
एष सर्वात्मना पाण्डूंस्त्रासयित्वा महारणे। अभिभाषति राधेयः सर्वसैन्यानि मानद।। | 8-62-15a 8-62-15b |
अभिद्रवत भद्रं वो द्रुतं द्रवत कौरवाः। यथा न जीववान्कश्चिन्मुच्येत युधि सृञ्जयः।। | 8-62-16a 8-62-16b |
तथा कुरुत संयत्ता वयं यास्याम पृष्ठतः। एवमुक्त्वा गतो ह्येष पृष्ठतो विकिरञ्छरान्।। | 8-62-17a 8-62-17b |
पश्य कर्णं रणे पार्थ श्वेतच्छत्रविराजितम्। उदयं पर्वतं यद्वच्छशाङ्केनाभिशोभितम्।। | 8-62-18a 8-62-18b |
पूर्णचन्द्रनिकाशेन मूर्ध्नि च्छत्रेण भारत। ध्रियमाणेन समरे श्रीमच्छतशलाकिना।। | 8-62-19a 8-62-19b |
एष त्वां प्रेक्षते कर्णः सकटाक्षं धनञ्जय। उत्तमं यत्नमास्थाय ध्रुवमेष्यति संयुगे।। | 8-62-20a 8-62-20b |
पश्य ह्येनं महाबाहो विधुन्वानं महद्धनुः। शरांश्चाशीविषाकारान्विसृजन्तं महारणे।। | 8-62-21a 8-62-21b |
असौ निवृत्तो राधेयो दृष्ट्वा ते वानरध्वजम्। प्रार्थयन्समरं पार्थ त्वया सह परन्तप। वधाय ह्यात्मनोऽभ्येति पावकं शलभो यथा।। | 8-62-22a 8-62-22b 8-62-22c |
कर्णमेकाकिनं दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रो रणाजिरे। त्वां च पार्थाभिसंरब्धं कर्णं प्रति महारथम्।। | 8-62-23a 8-62-23b |
कृतागसं च राधेयं धर्मात्मनि युधिष्ठिरे। अत्मानं च कृतार्थं च समीक्ष्य भरतर्षभ।। | 8-62-24a 8-62-24b |
असौ दुर्योधनः क्रुद्धो रथानीकेन भारत। रिरक्षिषुः सुसंवृत्तो धार्तराष्ट्रो निवर्तते।। | 8-62-25a 8-62-25b |
सर्वैः सहैभिर्दुष्टात्मा बध्यतां च प्रयत्नतः। त्वया यशश्च राज्यं च सुखं चोत्तममिच्छता।। | 8-62-26a 8-62-26b |
अदीनयोर्विश्रुतयोर्युवयोर्योत्स्यमानयोः। देवासुरे पार्थ मृधे देवदानवयोरिव। पश्यन्तु कौरवाः सर्वे तव पार्थ पराक्रमम्।। | 8-62-27a 8-62-27b 8-62-27c |
त्वां च दृष्ट्वातिसंरब्धं कर्णं च भरतर्षम्। असौ दुर्योधनः क्रुद्धो नोत्तरं प्रतिपद्यते।। | 8-62-28a 8-62-28b |
आत्मानं च कृतात्मानं समीक्ष्य भरतर्षभ। कृतागसं च राधेयं धर्मात्मनि युधिष्ठिरे।। | 8-62-29a 8-62-29b |
प्रतिपद्यस्व कौन्तेय प्राप्तकालमनन्तरम्। आर्यां युद्धे मतिं कृत्वा प्रत्येहि रथयूथपम्।। | 8-62-30a 8-62-30b |
पञ्च ह्येतानि मुख्यानि रथानां रथसत्तम। शतान्यxxxxxxजलिनां तिन्मतेजसाम्।। | 8-62-31a 8-62-31b |
पञ्च नाघxxxxx द्विगुणा वाजिनस्तथा। अभिसंहत्य कौन्तेय पदाताः प्रयुतानि च।। | 8-62-32a 8-62-32b |
xxxxxxxx वीर बलं तामभिवर्तते। द्रोमपुत्रं पुरस्कृत्य तच्छीघ्रं सन्निषूदय।। | 8-62-33a 8-62-33b |
निकृत्त्यैतद्रथानीकं बलिनं लोकविश्रुतम्। सूतपुत्रे महेष्वासे दर्शयात्मानमात्मना।। | 8-62-34a 8-62-34b |
xxxxxxxxxxxxxxxभरतर्षभ। xxxxxxxxxxxxx पाञ्चालानभिघावति। | 8-62-35a 8-62-35b |
xxxxxx हि पश्यामि धृष्टद्युम्नरर्थ प्रति। xxxxxx पाञ्चालानिति मन्ये परन्तप।। | 8-62-36a 8-62-36b |
आचचक्षे प्रियं पार्थ तवेदं भरतर्षभ। राजासौ कुशली श्रीमान्धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः।। | 8-62-37a 8-62-37b |
असौ भीमो महाबाहुः सन्निवृत्तश्चमूयुखे। वृतः सृञ्जय सैन्येन शैनेयेन च भप्तत।। | 8-62-38a 8-62-38b |
वध्यन्त एते समरे कौरवा निशितैः शरैः। भीमसेनेन कौन्तेय पाञ्चालैश्च महात्मभिः।। | 8-62-39a 8-62-39b |
सेना हि धार्तराष्ट्रस्य विमुखा व्यद्रवद्रणात्। वेगेन भीमसेनस्य विहता विविधैः शरैः।। | 8-62-40a 8-62-40b |
विपन्नसस्येव मही रुधिरेण समुक्षिता। भारती भरतश्रेष्ठ सेना कृपणदर्शना।। | 8-62-41a 8-62-41b |
निवृत्तं पश्य कौन्तेय भीमसेनं युधाम्पतिम्। आशीविषमिव क्रुद्धं तस्माद्द्रवति भारति।। | 8-62-42a 8-62-42b |
पीतरक्तासितसितास्ताराचन्द्रार्कमण्डिताः। पताका विप्रकीर्यन्ते छत्राण्येतानि चार्जुन।। | 8-62-43a 8-62-43b |
सौवर्णा राजताश्चैव तैजसाश्च पृथग्विधाः। केतवोऽभिनिपात्यन्ते हस्त्यश्वं च प्रकीर्यते।। | 8-62-44a 8-62-44b |
रथेभ्यः प्रपतन्त्येते रथिनो विगतासवः। नानावर्णैर्हता बाणैः पाञ्चालैरपलायिभिः।। | 8-62-45a 8-62-45b |
निर्मनुष्यान्गजानश्वान्रथांश्चैव धनञ्जय। समाद्रवन्ति पाञ्चाला धार्तराष्ट्रांस्तरस्विनः।। | 8-62-46a 8-62-46b |
विमृद्रन्ति नरव्याघ्रा भीमसेनबलाश्रयात्। बलं परेषां दुर्धर्षं त्यक्त्वा प्राणानरिन्दम्।। | 8-62-47a 8-62-47b |
एते नर्दिन्ति पाञ्चाला ध्मापयन्ति च वारिजान्। अभिद्रवन्ति च रणे मृद्रन्तः सायकैः परान्।। | 8-62-48a 8-62-48b |
पश्य स्वर्गस्य माहात्म्यं पाञ्चाला हि पराक्रमात्। धार्तराष्ट्रान्विनिघ्नन्तो विशन्त्येते रथोत्तमान्।। | 8-62-49a 8-62-49b |
[शस्त्रमाच्छिद्य शत्रूणां सायुधानां निरायुधाः। तेनैवैतानमोघास्त्रा निघ्नन्ति च नदन्ति च।। | 8-62-50a 8-62-50b |
शिरांस्येतानि पात्यन्ते शत्रूणां बाहवोऽपि च। रथनागहया वीरा यशस्याः सर्व एव च]।। | 8-62-51a 8-62-51b |
सर्वतश्चाभिपन्नैषा धार्तराष्ट्री महाचमूः। त्यक्त्वा प्राणान्महेष्वासैः पाञ्चालैः परिपात्यते।। | 8-62-52a 8-62-52b |
सुहृदश्च पराक्रान्ताः कृपकर्णादयो विभो। निवारणे महेष्वासाः पाञ्चालानां परन्तप।। | 8-62-53a 8-62-53b |
अनिवृत्तांश्च भीतांस्तान्धार्तराष्ट्रान्परन्तप। धृष्टद्युम्नमुखा वीरा घ्नन्ति शत्रून्सहस्रशः।। | 8-62-54a 8-62-54b |
रथाश्च विविधाः सर्वे निवृत्ते भरतर्षभे। विवर्णमुखभूयिष्ठा धार्तराष्ट्री महाचमूः।। | 8-62-55a 8-62-55b |
पश्य भीमेन नाराचैर्भिन्ना नागाः पतन्त्यमी। वज्रिवज्रहतानीव शिखराणि धराभृताम्।। | 8-62-56a 8-62-56b |
भीमसेनस्य निर्विद्धा बाणैः सन्नतपर्वभिः। स्वान्यनीकानि मृद्गन्तो द्रवन्त्येते महागजाः।। | 8-62-57a 8-62-57b |
`एते द्रवन्ति कुरवो भीमसेनभयार्दिताः। त्यक्त्वा रथान्गजांश्चैव हयांश्चैव सहस्रशः।। | 8-62-58a 8-62-58b |
हस्त्यश्वरथपत्तीनां द्रवतां निःस्वनं शृणु। भीमसेनस्य निनदं द्रावयानस्य कौरवान्।। | 8-62-59a 8-62-59b |
अभिजानामि भीमस्य सिंहनादं पुनःपुनः'। नदतः पाण्डवेयस्य सङ्ग्रामे जितकाशिनः।। | 8-62-60a 8-62-60b |
विसृजंस्तोमरान्क्रुद्धो दण्डपाणिरिवान्तकः।। | 8-62-61a 8-62-61b |
तस्य चैव भुजौ छिन्नौ भीमसेनेन गर्जतः। नागश्च क्रकरप्रख्यैर्नाराचैर्दशभिर्हतः।। | 8-62-62a 8-62-62b |
हन्तैते पुनरायान्ति नागा ह्यन्ये प्रहारिणः। नीलाञ्जनचयप्रख्या महामात्रैरधिष्ठिताः।। | 8-62-63a 8-62-63b |
शक्तितोमरसङ्घतैर्विनिघ्नन्तो वृकोदरम्। सप्तसप्त च नागस्था वैजयन्त्यश्च सध्वजाः। नवत्या निशितैर्बाणैश्छिन्नाः पार्थाग्रजेन ते।। | 8-62-64a 8-62-64b 8-62-64c |
दशभिर्दशभिश्चैको नाराचैर्निहतो गजः।। | 8-62-65a |
न चासौ धार्तराष्ट्राणां श्रूयते निनदस्तथा। पुरन्दरसमे क्रुद्धे निवृत्ते भरतर्षभे।। | 8-62-66a 8-62-66b |
अक्षौहिण्यस्तथा तिस्रो धार्तराष्ट्रस्य सङ्गताः। क्रुद्धेन भीमसेनेन नरसिंहेन वारिताः।। | 8-62-67a 8-62-67b |
न शक्नुवन्ति वै पार्थं पार्थिवाः समुदीक्षितुम्। मध्यन्दिनगतं सूर्यं यथा दुर्बलचक्षुषः।। | 8-62-68a 8-62-68b |
एते भीमस्य सन्त्रस्ताः सिंहस्येवेतरे मृगाः। शरैः सन्त्रासिताः सह्ख्ये न लभन्ते सुखं क्वचित्।। | 8-62-69a 8-62-69b |
राधेयो बहुभिः सार्धमसौ गच्छति वेगितः। वर्धयित्वा तु भीरुं तं पार्श्वतो ह्यानयद्धनुः। तं पालयन्महाराजं धार्तराष्ट्रं बलान्वितः।। | 8-62-70a 8-62-70b 8-62-70c |
सञ्जय उवाच। | 8-62-71x |
एतच्छ्रुत्वा महाबाहुर्वासुदेवाद्धनञ्जयः। भीमसेनेन तत्कर्म कृतं दृष्ट्वा सुदुष्करम्। अर्जुनो व्यधमच्छिष्टान्संशप्तकगणान्बहून्।। | 8-62-71a 8-62-71b 8-62-71c |
ते वध्यमानाः पार्थेन संशप्तकगणाः प्रभो। शक्रस्यातिथितां गत्वा विशोका ह्यभवंस्तदा।। | 8-62-72a 8-62-72b |
नारायणांस्तु गोपालान्व्यधमत्पाण्डुनन्दनः। उत्तमं वेxxxxxप्तास्थाय चण्डवायुर्धनानिव।। | 8-62-73a 8-62-73b |
अन्वकीर्यन्त भीतास्ते तत्रतत्रैव भारत। लुलितांश्च ततः शूरानहनत्पुरुषोत्तमः।। | 8-62-74a 8-62-74b |
पुनश्च पुरुषव्याघ्रः शरैः सन्नतपर्वभिः। जघान धार्तराष्ट्रस्य चतुर्विधबलां चमूम्।। | 8-62-75a 8-62-75b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे द्विषष्टितमोऽध्यायः।। 62 ।। |
8-62-9 हस्तिकक्ष्यां केतुमिति सम्बन्धः।। 8-62-19 छत्रेणोपलक्षितः।। 8-62-34 द्रोणपुत्रे महेष्वासे इति क.ट.पाठः।। 8-62-62 द्विषष्टितमोऽध्यायः।।
कर्णपर्व-061 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-063 |