महाभारतम्-08-कर्णपर्व-040
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दुर्योधनेन सेनाप्रोत्साहनम्।। 1 ।। भीमेन दुर्योधनपराजयपूर्वकं गजानीकवधः।। 2 ।।
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सञ्जय उवाच। | 8-40-1x |
दुर्योधनस्ततः कर्णमुपेत्य भरतर्षभ। अब्रवीन्मद्रराजं च तथैवान्यान्महारथान्।। | 8-40-1a 8-40-1b |
यदृच्छयाऽयमव्यग्रो धर्मः परमकः सखा। सुखिनः क्षत्रियाः कर्ण लभन्ते युद्धमीदृशम्।। | 8-40-2a 8-40-2b |
यादृशं क्षत्रियैः शूरैः शूराणां दीव्यतां युधि। इष्टं भवति राधेय तदिदं समुपस्थितम्।। | 8-40-3a 8-40-3b |
हत्वा तु पाण्डवान्युद्धे स्थिरामुर्वीं प्रशासथ। निहता वा परैर्युद्धे वीरलोकानवाप्स्यथ।। | 8-40-4a 8-40-4b |
दुर्योधनस्य वचनं श्रुत्वा तत्क्षत्रियर्षभाः। सिंहनादानुदक्रोशन्वादित्राणि च जघ्निरे।। | 8-40-5a 8-40-5b |
तस्मिन्प्रमुदिते सैन्ये त्वदीये भरतर्षभ। हर्षयंस्तावकान्योधान्द्रौणिर्विचनमब्रवीत्।। | 8-40-6a 8-40-6b |
प्रत्यक्षं सर्वसैन्यानां भवतां चापि पश्यताम्। न्यस्तशस्त्रो मम पिता धृष्टद्युम्नेन पातितः।। | 8-40-7a 8-40-7b |
स तेनाहममर्षेण पित्रर्थे चापि भारत। धृष्टद्युम्नमहत्वाऽहं न विमोक्ष्यामि दंशनम्।। | 8-40-8a 8-40-8b |
कृत्वाऽनृतां प्रतिज्ञां वो नास्मि प्राप्ता महत्फलम्। अर्जुनं भीमसेनं च यश्च मां प्रतियोत्स्यति। सर्वांस्तान्प्रमथिष्यामि इति मे निश्चिता मतिः।। | 8-40-9a 8-40-9b 8-40-9c |
सञ्जय उवाच। | 8-40-10x |
एवमुक्ते ततः सर्वा हर्षिता भारती चमूः। अभ्यवर्तत कौन्तेयांस्तथा तां चापि पाण्डवाः।। | 8-40-10a 8-40-10b |
स सन्निपातो रथयूथपानां महाहवे भारत लोभनीये। जनक्षयः कालयुगान्तकल्पः प्रावर्तताग्रे कुरुसृञ्जयानाम्।। | 8-40-11a 8-40-11b 8-40-11c 8-40-11d |
ततः प्रवृत्ते युधि सम्प्रहारे भूतानि सर्वाणि सदैवतानि। आसन्समेतानि सहाप्सरोभि-- निरीक्षतीभिर्युधि वीरसङ्घान्।। | 8-40-12a 8-40-12b 8-40-12c 8-40-12d |
दिव्यैश्च गन्धैः परमैश्च पुष्पै-- रन्यैश्च रत्नैर्विविधैर्नराग्र्याः। रणेषु कर्मोद्वहताः प्रहृष्टा- ननन्दयन्नप्सरसः प्रहृष्टाः।। | 8-40-13a 8-40-13b 8-40-13c 8-40-13d |
समीरणस्तांस्तु निषेव्य गन्धा-- न्निषेवते तानपि योधमुख्यान्। निषेव्यमाणास्त्वनिलेन योधाः परस्परं चुक्रुशुराजिमध्ये।। | 8-40-14a 8-40-14b 8-40-14c 8-40-14d |
तथा तु तस्मिंस्तुमुले प्रवृत्ते दुर्योधनः क्रोधममृष्यमाणः। `अवेभ्य भीमं बलमध्यसंस्थः समार्पयत्क्षुद्रकाणां शतेन।। | 8-40-15a 8-40-15b 8-40-15c 8-40-15d |
दुःशासनश्चित्रसेनश्च वीर-- स्तथोलूकः कितवः सौबलश्च। गजानीकैः सर्वतो भीमसेनं तथाविषक्तं सहसैवाभ्यगच्छन्।। | 8-40-16a 8-40-16b 8-40-16c 8-40-16d |
तमापतन्तं सम्प्रेक्ष्य गजानीकं वृकोदरः। दुर्योधनं महाबाहुः शरवर्षैरवाकिरत्।। | 8-40-17a 8-40-17b |
दुर्योधनं ततो भीमः सायकैर्वज्रसन्निभैः। पाण्डवो विमुखीकृत्य गजानभ्यद्रवद्बली।। | 8-40-18a 8-40-18b |
ततः पावकसङ्काशैर्भीमबाणैरवक्रगैः। शलभैरिव नागांस्तानर्दयामास पाण्डवः।। | 8-40-19a 8-40-19b |
ततः कुञ्जरयूथानि भीमसेनो महाबलः। व्यधमन्निशितैर्बाणैर्महावातो घनानिव।। | 8-40-20a 8-40-20b |
नित्यमत्ताश्च मातङ्गाः शूरैर्मत्तैरधिष्ठिताः। आरोहकैर्महामात्रैस्तोमराङ्कुरापाणिभिः।। | 8-40-21a 8-40-21b |
सुवर्णजालैः प्रच्छन्ना मणिजालैश्च कुञ्जराः। रूप्यजाम्बूनदाभासः क्षुरमालाभ्यलङ्कृताः।। | 8-40-22a 8-40-22b |
वध्यमानाः शरै राजन्भीमसेनेन ते गजाः। विभिन्नहृदयाः केचित्तत्रैवाभ्यपतन्भुवि।। | 8-40-23a 8-40-23b |
निपतद्भिर्महावेगैर्हेमभाण्डविभूषितैः। अशोभत महाराज धातुचित्रैरिवाचलैः।। | 8-40-24a 8-40-24b |
दीप्ताभरणवद्भिश्च गजपृष्ठनिपातितैः। सङ्गरः शुशुभे राजन्क्षीणपुण्यैरिवामरैः।। | 8-40-25a 8-40-25b |
महापरिघसङ्काशौ चन्दनागरुरूषितौ। अपश्यं भीमसेनस्य धनुर्विक्षिपतो भुजौ।। | 8-40-26a 8-40-26b |
तस्य ज्यातलनिर्घोषमस्यतः सव्यदक्षिणम्। तं श्रुत्वाऽभ्यद्रवन्नागा भीमसेनभयार्दिताः।। | 8-40-27a 8-40-27b |
तस्य भीमस्य तत्कर्म राजन्नेकस्य धीमतः। अपश्याम महाराज तद्भूतमिवाभवत्'।। | 8-40-28a 8-40-28b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि सप्तदशदिवसयुद्धे चत्वारिंशोऽध्यायः।। 40 ।। |
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