महाभारतम्-08-कर्णपर्व-013
← कर्णपर्व-012 | महाभारतम् अष्टमपर्व महाभारतम्-08-कर्णपर्व-013 वेदव्यासः |
कर्णपर्व-014 → |
शल्येन श्रुतकीर्तिपराजयः।।
|
`सञ्जय उवाच। | 8-13-1x |
श्रुतकीर्तिमथायान्तं किरन्तं निशिताञ्शरान्। मद्रराजो महाराज वारयामास हृष्टवत्।। | 8-13-1a 8-13-1b |
मद्रराजं समासाद्य श्रुतकीर्तिर्महारथः। विव्याध भल्लैर्विशत्या कार्तस्वरविभूषितैः।। | 8-13-2a 8-13-2b |
प्रतिविव्याध तं शल्यं त्रिभिस्तूर्णमजिह्मगैः। सारथिं चास्य भल्लेन भृशं विव्याध भारत।। | 8-13-3a 8-13-3b |
स शल्यं शरवर्षेण च्छादयामास संयुगे। मुमोच निशितान्बाणान्मद्रराजरथं प्रति।। | 8-13-4a 8-13-4b |
ततः शल्यो महाराज श्रुतकीर्तिभुजच्युतान्। चिच्छेद समरे बाणासन्बणैः सन्नतपर्वभिः।। | 8-13-5a 8-13-5b |
श्रुतकीर्तिस्ततः श्ल्यं भित्त्वा नवभिरायसैः। सारथिं त्रिभिरानर्च्छत्पुनः शल्यं च प़ञ्चभिः।। | 8-13-6a 8-13-6b |
तस्य शल्यो धनुश्छित्त्वा हस्तावापं निकृत्य च। विव्याध समरे तूर्णं सप्तभिस्तं शरोत्तमैः।। | 8-13-7a 8-13-7b |
अथान्यद्धनुरादाय श्रुतकीर्तिर्महारथः। भद्रेश्वरं चतुःषष्ट्या बाह्वोरुरसि चार्पयत्।। | 8-13-8a 8-13-8b |
ततस्तु समरे राजंस्तेन विद्वः शिलीमुखैः। xxविव्याध तं चापि नवत्या निशितैः शरैः।। | 8-13-9a 8-13-9b |
तस्य मद्रेश्वरश्चापं पुनश्चिच्छेद मारिष। स च्छिन्नधन्वा समरे गदां चिक्षेप सत्वरः।। | 8-13-10a 8-13-10b |
पट्टैर्जाम्बूनदैर्बद्धां रुप्यपट्टैश्च भारत। भ्राजमानां यथा नारीं दिव्यवस्त्रविभूषिताम्।। | 8-13-11a 8-13-11b |
तामापतन्तीं सहसा दीप्यमानाशनिप्रभाम्। शरैरनेकसाहस्रैर्व्यष्टम्भयत मद्रराट्।। | 8-13-12a 8-13-12b |
विष्टभ्य च गदां वीरः पातयित्वा च भूतले। श्रुकीर्तिमथायत्तो राजन्विव्याध पञ्चभिः।। | 8-13-13a 8-13-13b |
तस्य शक्तिं रमे भूयश्चिक्षेप भुजोपमाम्। तां द्विधा चाछिनच्छल्यो मेदिन्यां सा त्वशीर्यत।। | 8-13-14a 8-13-14b |
तस्य शल्यः क्षुरप्रेण यन्तुः कायाच्छिरोऽहरत्। बालहस्ताद्यथा श्येन आमिषं वै नरोत्तम।। | 8-13-15a 8-13-15b |
स पपात रथोपस्थात्सारथिस्तस्य भारत। ततस्ते प्राद्रवन्सङ्ख्ये हय्नास्तस्य महात्मनः।। | 8-13-16a 8-13-16b |
पलायमानैस्तैरश्वैः सोपनीतो रमाजिरात्। श्रुतकीर्तिर्महाराज पश्यतां सर्वयोधिनाम्।। | 8-13-17a 8-13-17b |
ततो मद्रेश्वरो राजा पाण्डवानामनीकिनीम्। व्यगाहत मुदा युक्तो नलिनीं द्विरदो यथा।। | 8-13-18a 8-13-18b |
लोलयामास स बलं सिंहः पशुगणानिव। शल्यस्तत्र महारङ्गे पाण्डवानां महात्मनाम्।। | 8-13-19a 8-13-19b |
निपात्य पाण्डुपाञ्चालान्पृतनासु व्यवस्थितः। अशोभत रणे शल्यो विधूमोऽग्निरिव ज्वलन्।। | 8-13-20a 8-13-20b |
सेनाकक्षं महद्दग्ध्वा कक्षमग्निरिवोत्थितः। स्थितो रराज समरे पुरं दग्ध्वेव शङ्करः।। | 8-13-21a 8-13-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते कर्णपर्वणि षोडशदिवसयुद्धे त्रयोदशोऽध्यायः।। 13 ।। |
कर्णपर्व-012 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | कर्णपर्व-014 |